भारतीय राजव्यवस्था
अंतर्राज्यीय परिषद
- 25 May 2022
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प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राज्यीय परिषद, सरकारिया आयोग, अनुच्छेद 263 मेन्स के लिये:अंतर्राज्यीय परिषद और मुद्दे, केंद्र-राज्य संबंध, अंतर्राज्यीय संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अंतर्राज्यीय परिषद (ISC) का पुनर्गठन किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री अध्यक्ष के रूप में और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और छह केंद्रीय मंत्री सदस्य के रूप में होते हैं।
- दस केंद्रीय मंत्री अंतर्राज्यीय परिषद में स्थायी रूप से आमंत्रित होंगे।
- सरकार ने अध्यक्ष के रूप में केंद्रीय गृह मंत्री के साथ अंतर्राज्यीय परिषद की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया है।
- आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी अंतर-राज्य परिषद की स्थायी समिति के सदस्य हैं।
अंतर्राज्यीय परिषद:
- पृष्ठभूमि:
- केंद्र सरकार ने केंद्र और राज्यों के बीच वर्तमान व्यवस्थाओं के कार्यकरण की समीक्षा करने के लिये न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में वर्ष 1988 में एक आयोग गठित किया था।
- सरकारिया आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार परिभाषित अधिदेश के अनुसरण में परामर्श करने के लिये एक स्वतंत्र राष्ट्रीय फोरम के रूप में अंतर्राज्यीय परिषद स्थापित किये जाने की महत्त्वपूर्ण सिफारिश की थी।
- परिचय:
- अंतर्राज्यीय परिषद को राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों की जाँच करने और सलाह देने, कुछ या सभी राज्यों या केंद्र एवं एक या अधिक राज्यों के समान हित वाले विषयों की पड़ताल तथा विमर्श करने का अधिकार है।
- यह इन विषयों पर नीति और कार्रवाई के बेहतर समन्वय के लिये सिफारिशें भी करता है, राज्यों के सामान्य हित के मामलों पर विचार-विमर्श करता है, जिसे इसके अध्यक्ष द्वारा संदर्भित किया जा सकता है।
- यह राज्यों के सामान्य हित के अन्य मामलों पर भी विचार करता है, जो परिषद के अध्यक्ष द्वारा भेजा गया हो।
- परिषद की एक वर्ष में कम-से-कम तीन बार बैठक हो सकती है।
- परिषद की एक स्थायी समिति भी होती है।
- संगठन:
- अध्यक्ष- प्रधानमंत्री
- सदस्य- सभी राज्यों के मुख्यमंत्री
- विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और विधानसभा नहीं रखने वाले केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक तथा राष्ट्रपति शासन (जम्मू-कश्मीर के मामले में राज्यपाल शासन) के तहत राज्यों के राज्यपाल सदस्य।
- प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कैबिनेट रैंक के छह मंत्री।
अंतर्राज्यीय परिषद के कार्य:
- देश में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और उसका समर्थन करने के लिये एक मज़बूत संस्थागत ढाँचा तैयार करना तथा नियमित बैठकें आयोजित करके परिषद व क्षेत्रीय परिषदों को सक्रिय करना।
- क्षेत्रीय परिषदों और अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा केंद्र-राज्य तथा अंतर-राज्य संबंधों के सभी लंबित व उभरते मुद्दों पर विचार करने की सुविधा प्रदान करता है।
- उनके द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक प्रणाली विकसित करना।
अंतर्राज्यीय परिषद की स्थायी समिति:
- परिचय:
- इसकी स्थापना वर्ष 1996 में परिषद के विचारार्थ मामलों के निरंतर परामर्श और प्रसंस्करण के लिये की गई थी।
- इसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं: (i) केंद्रीय गृह मंत्री अध्यक्ष के रूप में (ii) पाँच केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (iii) अंतर्राज्यीय परिषद सचिवालय की सहायता हेतु नौ मुख्यमंत्रियों की एक परिषद।
- यह सचिवालय वर्ष 1991 में स्थापित किया गया था और इसका नेतृत्व भारत सरकार के एक सचिव द्वारा किया जाता है। वर्ष 2011 से यह क्षेत्रीय परिषदों के सचिवालय के रूप में भी कार्य कर रहा है।
- कार्य:
- स्थायी समिति के पास परिषद के विचार के लिये निरंतर परामर्श और प्रक्रिया संबंधी मामले होंगे, केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित सभी मामलों को अंतर-राज्य परिषद में विचार करने से पहले संसाधित करना।
- स्थायी समिति परिषद की सिफारिशों पर लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन की निगरानी भी करती है तथा अध्यक्ष या परिषद द्वारा संदर्भित किसी अन्य मामले पर विचार करती है।
अंतर्राज्यीय संबंध को बढ़ावा देने वाले अन्य निकाय:
- क्षेत्रीय परिषद:
- क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक (संवैधानिक नहीं) निकाय हैं। ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित किये गए हैं।
- इस अधिनियम ने देश को पाँच क्षेत्रों- उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी में विभाजित किया तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक क्षेत्रीय परिषद प्रदान की।
- इन क्षेत्रों का निर्माण करते समय कई कारकों को ध्यान में रखा गया है जिनमें शामिल हैं: देश का प्राकृतिक विभाजन, नदी प्रणाली और संचार के साधन, सांँस्कृतिक व भाषायी संबंध तथा आर्थिक विकास, सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था की आवश्यकता।
- उत्तर-पूर्वी परिषद: उत्तर-पूर्वी राज्य (i) असम, (ii) अरुणाचल प्रदेश, (iii) मणिपुर, (iv) त्रिपुरा, (v) मिज़ोरम, (vi) मेघालय और (vii) नगालैंड, क्षेत्रीय परिषदों में शामिल नहीं हैं तथा उनकी विशेष समस्याओं को उत्तर-पूर्वी परिषद द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसे उत्तर-पूर्वी परिषद अधिनियम, 1972 के तहत स्थापित किया गया था।
- अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य:
- संविधान का भाग XIII, अनुच्छेद 301 से 307 भारतीय क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और मेल-जोल से संबंधित है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद:
- संविधान का अनुच्छेद 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करता है।
- यह दो प्रावधान करता है:
- संसद कानून द्वारा किसी भी अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटी के ज़ल के उपयोग, वितरण तथा नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन का प्रावधान कर सकती है।
- संसद यह भी प्रावधान कर सकती है कि इस तरह के किसी भी विवाद या शिकायत पर सर्वोच्च न्यायालय सहित किसी भी अन्य न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।
आगे की राह
- यदि अंतर-राज्य परिषद को अंतर-राज्यीय संघर्षों को हल करने के लिये प्राथमिक संस्थान बनना है, तो उसे पहले नियमित बैठक कार्यक्रम तैयार करना होगा।
- भारतीय संघ में अभी संस्थागत अंतर है और अंतर्राज्यीय संघर्षों के नियंत्रण से बाहर होने से पहले इसे भरने की ज़रूरत है।
- परिषद के पास एक स्थायी सचिवालय भी होना चाहिये जो यह सुनिश्चित कर सके कि आवधिक बैठकें अधिक उपयोगी हों।