18 जून को लखनऊ शाखा पर डॉ. विकास दिव्यकीर्ति के ओपन सेमिनार का आयोजन।
अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें:

  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

वैश्विक जल संकट पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

  • 24 May 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाटर फोरम, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, जल क्रांति अभियान, विश्व बैंक, अटल भूजल योजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक जल कमी के मुद्दे, चुनौतियों से निपटने के लिये उठाए गए कदम।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

इंडोनेशिया के बाली में हुए 10वें वर्ल्ड वाटर फोरम में जारी विश्व बैंक की नई रिपोर्ट, "वाटर फॉर शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी" चिंताजनक वैश्विक जल संकट तथा विश्व भर में मानव और आर्थिक विकास पर इसके प्रभाव को उजागर करती है।

रिपोर्ट की प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जल की कमी के चिंताजनक आँकड़े:
    • विश्व स्तर पर जल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच में महत्त्वपूर्ण अंतर मौज़ूद हैं। वर्ष 2022 तक, विश्व भर में 2.2 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं तथा 3.5 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता तक पहुँच नहीं है। बुनियादी पेयजल और स्वच्छता सेवाओं से वंचित दस में से आठ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
  • जल तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • ताज़े जल (Freshwater) के वितरण में असमानता: वैश्विक जनसंख्या के 36% के साथ चीन और भारत के पास विश्व का केवल 11% ताज़ा जल है, जबकि 5% जनसंख्या के साथ उत्तरी अमेरिका के पास 52% ताज़ा जल है।
    • अफ्रीका और एशिया: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पास अफ्रीका के आधे से अधिक जल संसाधन हैं, फिर भी साहेल, दक्षिणपूर्वी अफ्रीका तथा दक्षिण एवं मध्य एशिया जैसे क्षेत्र में जल-संकट बना हुआ हैं।
    • निम्न आय वाले देश: इन देशों में सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में कमी देखी गई है, वर्ष 2000 के बाद से अतिरिक्त 197 मिलियन लोगों तक इसकी पहुँच नहीं है।
    • अधिकारहीन समूह: पहुँच में असमानताएँ लिंग, स्थान, जातीयता, नस्ल और अन्य सामाजिक पहचान के आधार पर हाशिये पर रहने वाले समूहों को भी प्रभावित करती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन से जल-संबंधी जोखिम बढ़ गए हैं, जिससे विकासशील देशों को अधिक गंभीर और लंबे समय तक सूखे तथा बाढ़ जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • 800 मिलियन से अधिक लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ सूखा पड़ने का जोखिम काफी अधिक है और इससे दोगुने लोग बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
    • वर्ष 2100 तक मौसम संबंधी सूखे का वैश्विक भूमि क्षेत्र के 15% अधिक भाग को प्रभावित करने का अनुमान है, जो तापमान प्रभावों पर विचार करने पर लगभग 50% तक बढ़ जाता है।
      • मध्य यूरोप, एशिया, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, भारत, उत्तरी अमेरिका, अमेज़ोनिया और मध्य ऑस्ट्रेलिया ऐसे क्षेत्र हैं जो इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे।
    • निर्धन जनसंख्या जल से संबंधित जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है और उनके पास अनुकूलन की सीमित क्षमता होती है, जिससे निर्धनता चक्र कायम रहता है।

Hotspots_For_Poverty_&_Droughts

  • मानव पूंजी एवं आर्थिक विकास:
    • शैक्षिक प्राप्ति तथा समग्र मानव पूंजी विकास हेतु जल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
      • कम आय वाले देशों में 56% रोज़गार मुख्य रूप से जल-गहन क्षेत्रों में मौज़ूद हैं, जो जल की उपलब्धता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • उप-सहारा अफ्रीका में 62% नौकरियाँ पानी पर निर्भर हैं, और कम वर्षा से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि बहुत प्रभावित होती है।
  • सामाजिक सामंजस्य एवं संघर्ष:
    • प्रभावी एवं न्यायसंगत जल प्रबंधन सामुदायिक विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देता है, जबकि कुप्रबंधन संघर्षों को बढ़ा सकता है।
    • बेहतर जल संसाधन प्रबंधन समावेशिता को बढ़ावा देकर तथा तनाव को कम करके शांति एवं सामाजिक सामंजस्य में योगदान देता है।
  • सतत् जल प्रबंधन हेतु अनुशंसित हस्तक्षेप:
    • सर्वाधिक निर्धन जनसंख्या के लिये जल-जलवायु जोखिमों (hydro-climatic risks) के प्रति समुत्थानशीलता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
      • इसके लिये जल संसाधनों का बेहतर विकास, प्रबंधन एवं आवंटन ज़रूरी है।
    • निर्धनता कम करने और साझा समृद्धि (Shared Prosperity) बढ़ाने के लिये जल सेवाओं की न्यायसंगत व समावेशी की पहुँच को बढ़ावा देना आवश्यक है।

वर्ल्ड वाटर फोरम, 2024:

  • 10वाँ वर्ल्ड वाटर फोरम, 2024 (10th World Water Forum- WWF) वाटर फॉर शेयर्ड प्रोस्पेरिटी (Water for Shared Prosperity) की थीम के साथ, इंडोनेशिया गणराज्य की सरकार विश्व जल परिषद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गयाI 
  • इसका लक्ष्य ग्रह के सतत् एवं न्यायसंगत विकास हेतु राजनीतिक प्राथमिकता के रूप में जल का संरक्षण करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एकत्रित करना है।
  • विश्व जल परिषद, वर्ष 1996 में स्थापित और मार्सिले में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें भारत सहित 52 देशों के 260 सदस्य संगठन हैं।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा कार्यक्रम है और वर्ष 1997 के बाद से प्रत्येक तीन वर्ष में एक पृथक देश इसकी मेज़बानी करता ह
  • यह जल समुदाय और प्रमुख निर्णय निर्माताओं को सभी के लिये स्वच्छ एवं उपयुक्त जल उपलब्ध कराने के लिये वैश्विक जल चुनौतियों पर सहयोग करने तथा दीर्घकालिक प्रगति प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करने के लिये  एक बेहतर मंच प्रदान करता है।

भारत में जल की कमी का विस्तार क्या है?

  • भारत का जल संकट: नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की "समग्र जल प्रबंधन सूचकांक" रिपोर्ट के अनुसार, भारत सर्वाधिक जल संकट का सामना कर रहा है, जिसमें लगभग 600 मिलियन लोग अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भारत के शहरी क्षेत्रों में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 मिलियन बच्चों के समक्ष दूषित जल आपूर्ति के कारण स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है।
    • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में से 120वें स्थान पर है, जहाँ लगभग 70% जल दूषित है।
  • असंगत जल संसाधन: वैश्विक जनसंख्या का 18% होने के बावजूद, भारत के पास विश्व के स्वच्छ जल संसाधनों का केवल 4% है। यह असंतुलन उपलब्ध जल पर अत्यधिक दबाव का कारण बनता है।
  • जल की तनावग्रस्त उपलब्धता:
    • भूजल स्तर में गिरावट: जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित 5वीं लघु सिंचाई जनगणना से पता चलता है कि देश में लगभग 20.52 मिलियन कुएँ हैं, जिनमें खोदे गए कुएँ, कम गहराई वाले ट्यूबवेल, मध्यम गहराई वाले ट्यूबवेल और गहरे ट्यूबवेल शामिल हैं।
    • shallow tube wells, medium tube wells, and deep tube wells.
      • भारत भूजल स्तर पर अत्यधिक रूप से निर्भर है, लेकिन यहाँ पर भूजल के निष्कर्षण की दर पुनःपूर्ति से काफी अधिक है, जिस कारण भूजल स्तर में तेज़ी से गिरावट आ रही है, जिससे भविष्य में जल की उपलब्धता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
      • वर्ष 2019 की केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट देश के कई क्षेत्रों में गंभीर या अत्यधिक दोहन वाले भूजल स्तरों का संकेत देती है।
    • सूखती नदियाँ और जलाशय: जलवायु परिवर्तन और जल के असंवहनीय उपयोग के कारण नदियाँ तथा जलाशय खासकर मानसून आने से पहले सूख जाते हैं।
      • यह विशेष रूप से गर्मियों के समय में जल के प्रवाह और पहुँच को बाधित करता है।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा को खतरा:
    • उच्च जल खपत: भारत के जल उपयोग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कृषिगत कार्यों में प्रयुक्त होता है। वर्तमान में जल की कमी से खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता को अत्यधिक खतरा है।
    • अपेक्षित माँग-आपूर्ति अंतर: अकेले कृषि क्षेत्र में वर्ष 2030 तक मांग-आपूर्ति का अंतर 570 बिलियन क्यूबिक मीटर तक होने की संभावना है। इस अंतर से भोजन की कमी के कारण उसकी कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
      • विश्व बैंक की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में जल संसाधनों की कमी के कारण वर्ष 2050 तक कृषि उत्पादकता में 50% की गिरावट आ सकती है।
  • आर्थिक परिणामः नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जल संसाधनों की कमी से भारत को वर्ष 2050 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6% तक नुकसान हो सकता है।
  • जल की कमी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • मानसून वर्षा: भारतीय मानसून तेज़ी से अनियमित होता जा रहा है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 1950 के दशक के बाद से औसत मानसून वर्षा में 10% की कमी दर्ज़ की गई है।
    • वाष्पीकरण दर: जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते वैश्विक तापमान से वाष्पीकरण दर में वृद्धि होती है।
      • नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत की प्राकृतिक झीलों और जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल की कमी (वाष्पीकरण की मात्रा) वर्ष 1985 से 2018 के दौरान प्रति दशक 5.9% की दर से बढ़ी है।
      • वाष्पीकरण बढ़ने से सतही जल की उपलब्धता कम हो जाती है, नदियाँ और झीलें सूख जाती हैं तथा मृदा में नमी की मात्रा कम हो जाती है, जो कृषि के लिये आवश्यक है।
    • ग्लेशियर का पिघलना: गंगा और सिंधु जैसी प्रमुख नदियों के स्रोत हिमालय में तेज़ी से ग्लेशियर पिघल रहे है। हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में ग्लेशियरों का पिघलना मानव उपभोग के लिये उपयोगी लग सकता है, लेकिन यह प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न को बाधित करता है।
    • दक्षिणी भारत में जल संकट: कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित भारत के दक्षिणी राज्यों में प्रमुख जलाशयों में जलस्तर बहुत कम होने के कारण गंभीर जल संकट देखा गया।
      • इन राज्यों में अधिकांश जलाशय अपनी क्षमता का केवल 25% या उससे भी कम भरे हुए हैं, जबकि कुछ बाँध तो 5% या उससे भी कम भरे हुए हैं।
      • यह मुख्य रूप से अल-नीनो की घटनाओं के कारण प्रभावित वर्षा के कारण होता है, जिससे लंबे समय तक सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है।
      • इसके अतिरिक्त, देरी से आने वाले मानसून और मानसून के बाद की वर्षा की कमी ने भी जल स्तर में होने वाले गिरावट में योगदान दिया है।

Groundwater_in_India

आगे की राह

  • सूक्ष्म-सिंचाई तकनीक: ड्रिप (टपक) सिंचाई और स्प्रिंकलर आधारित कृषि के माध्यम से जल के उपयोग को नियंत्रित किया जा सकता है, जो एक प्रमुख जल उपभोक्ता है।
  • वर्षा जल संचयन: टैंकों और अन्य संरचनाओं में वर्षा जल का भंडारण घरों तथा समुदायों के लिये एक स्थायी जल स्रोत प्रदान कर सकता है।
  • विलवणीकरण: दैनिक उपयोग के लिये समुद्री जल का प्रयोग करके तटीय क्षेत्रों में एक विश्वसनीय जल स्रोत स्थापित किया जा सकता है, हालाँकि इसके लिये ऊर्जा खपत पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
    • सिंचाई या अन्य गैर-पीने योग्य उपयोगों के लिये अपशिष्ट जल का प्रयोग करने से स्वच्छ जल के स्रोतों पर दबाव कम हो जाता है।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: आर्द्रभूमि और प्राकृतिक जल निकायों को बहाल करने में निवेश करना। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र स्वाभाविक रूप से जल को शुद्ध करते हैं और भूजल भंडार को बहाल करते हैं।
  • "वाटर ATM" विकसित करना: वंचित क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता वाला जल प्रदान करने और भुगतान-प्रति-उपयोग प्रणाली के माध्यम से सही तरीके से जल के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये प्रीपेड कार्ड के माध्यम से संचालित, जल प्रदान करने वाली वेंडिंग मशीनें (वाटर ATM) लगाना।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: ऐसी कृषि पद्धतियों को अपनाना, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक समुत्थानशील हों, जैसे कि सूखा प्रतिरोधी फसलें उगाना, इससे अभावग्रस्त क्षेत्रों में जल की कमी के प्रभावों को कम किया जा सकता है।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को जल संरक्षण के बारे में शिक्षित करना और सही तरीके से जल के उपयोग के व्यवहार को बढ़ावा देना, दीर्घकालिक समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जल संसाधनों तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताओं और विशेष रूप से विकासशील देशों में जल संबंधी जोखिमों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'वॉटरक्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?   

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2