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भारतीय अर्थव्यवस्था

विकसित भारत 2047 के लिये महिला-नेतृत्व वाले विकास

  • 28 Aug 2025
  • 58 min read

प्रिलिम्स के लिये: महिला श्रम शक्ति भागीदारी, जेंडर बजट, स्टार्टअप इंडिया, नमो ड्रोन दीदी, मुद्रा ऋण 

मेन्स के लिये: महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण और विकास, भारत के आर्थिक परिवर्तन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, भारत में महिला सशक्तीकरण में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: PIB

चर्चा में क्यों?

भारत की विकास गाथा बदल रही है, जहाँ महिलाएँ उच्च कार्यबल भागीदारी, उद्यमिता और वित्तीय पहुँच के माध्यम से आर्थिक विकास को आगे बढ़ा रही हैं। उन्हें सशक्त बनाना अब विकसित भारत 2047 की दृष्टि का केंद्रीय हिस्सा बन गया है। 

भारत के आर्थिक परिवर्तन में महिलाएँ किस प्रकार योगदान दे रही हैं? 

  • कार्यबल भागीदारी: भारत की महिला कार्यबल भागीदारी वर्ष 2017-18 में 22% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 40.3% हो गई, जबकि बेरोजगारी 5.6% से घटकर 3.2% हो गई। 
    • ग्रामीण महिलाओं के रोज़गार में 96% और शहरी महिलाओं में 43% की वृद्धि हुई, जिससे महिलाओं के लिये अवसरों में मज़बूत वृद्धि देखी गई। 
    • स्नातक महिलाओं की रोज़गार क्षमता वर्ष 2013 में 42% से बढ़कर 2024 में 47.53% हो गई, जबकि स्नातकोत्तर और उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त महिलाओं का श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) 2017-18 में 34.5% से बढ़कर 2023-24 में 40% हो गया। 
    • पिछले सात वर्षों में, 1.56 करोड़ महिलाएँ औपचारिक कार्यबल में शामिल हुईं, जबकि 16.69 करोड़ महिला असंगठित श्रमिकों ने ई-श्रम पर पंजीकरण कराया और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच प्राप्त की। 
  • महिला विकास से महिला-नेतृत्व विकास: एक दशक में जेंडर बजट में 429% की वृद्धि हुई, जो 0.85 लाख करोड़ रुपये (2013-14) से बढ़कर 4.49 लाख करोड़ रुपये (2025-26) हो गया, जो महिला-नेतृत्व वाले विकास की ओर बदलाव का संकेत है। 
    • स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं ने महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा दिया है, जहाँ उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) से पंजीकृत 50% स्टार्टअप्स में कम-से-कम एक महिला निदेशक है। 
    • लगभग दो करोड़ महिलाएँ अब लखपति दीदी बन चुकी हैं, जिन्हें नमो ड्रोन दीदी जैसी पहलों का समर्थन प्राप्त है। 
    • महिला-नेतृत्व वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। वर्ष 2010-11 में 1 करोड़ से बढ़कर 2023-24 में 1.92 करोड़ हो गई तथा इसने वित्त वर्ष 2021 से 2023 के बीच महिलाओं के लिये 89 लाख अतिरिक्त नौकरियाँ सृजित कीं। 
      • यह बदलाव महिलाओं के लिये विकास से महिलाओं द्वारा विकास की दिशा में एक निर्णायक कदम है। 
    • वित्तीय समावेशन योजनाएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही हैं, जहाँ महिलाओं ने MUDRA ऋणों का 68% (लगभग ₹14.72 लाख करोड़) प्राप्त किया और प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना (PM SVANidhi) के अंतर्गत पथ विक्रेताओं में 44% लाभार्थी महिलाएँ हैं। 

महिला-नेतृत्व विकास क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • नेता के रूप में महिलाएँ: महिलाओं को कल्याण लाभार्थियों से परिवर्तन के वाहक के रूप में बदलना। 
  • लैंगिक समानता: यह रूढ़िवादिता और पीढ़ीगत असमानता को कम करता है, जो महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत 2025 के ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में 148 देशों में 131वें स्थान पर रहा। 
  • आर्थिक विकास: रोज़गार में जेंडर गैप को कम करना भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में संभावित रूप से 30% की वृद्धि कर सकता है। 
  • समावेशी विकास: महिलाओं की भागीदारी उत्पादकता, नवाचार और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाती है। 
    • महिलाओं को सशक्त बनाने से उन्हें स्वायत्तता, अवसरों तक पहुँच और व्यक्तिगत, पेशेवर एवं सामाजिक निर्णयों पर प्रभाव प्राप्त होता है, जो सार्थक आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन को गति प्रदान करता है। 

भारत में महिला-नेतृत्व विकास के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? 

  • सामाजिक और सुरक्षा संबंधी बाधाएँ: पितृसत्ता निर्णय लेने की क्षमता को सीमित करती है और अवैतनिक घरेलू कार्य को बढ़ाती है। 
    • अल्पायु में विवाह, घरेलू ज़िम्मेदारियाँ और व्यक्तिगत सुरक्षा के खतरे (क्योंकि भारत में हर घंटे महिलाओं के विरुद्ध 51 अपराध के मामले दर्ज होते हैं) गतिशीलता, करियर प्रगति और समाज में सक्रिय भागीदारी को सीमित करते हैं। 
  • शिक्षा और कौशल अंतराल: महिला साक्षरता दर 65.4% (2011 जनगणना) है, जो वैश्विक औसत से कम है, जिससे अवसर सीमित होते हैं। 
  • शासन और नेतृत्व में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: महिलाएँ राजनीतिक, कॉरपोरेट और संस्थागत निर्णय लेने में अभी भी कम प्रतिनिधित्व रखती हैं, जिससे उन पर प्रभाव डालने वाली नीतियों में उनकी भागीदारी सीमित रहती है। 
    • भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैश्विक औसत 25% से काफी नीचे है। 
  • डिजिटल और तकनीकी बहिष्करण: तकनीक, इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता तक सीमित पहुँच महिलाओं को आधुनिक अर्थव्यवस्था में पूर्ण भागीदारी से रोकती है। 
  • कार्यबल भागीदारी की बाधाएँ: महिलाएँ असमान वेतन, ग्लास सीलिंग प्रभाव, व्यवसायिक पृथक्करण, कार्यस्थल पर सुरक्षा और औपचारिक एवं उच्च-कौशल वाले क्षेत्रों में सीमित प्रतिनिधित्व जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। 

आर्थिक विकास में महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • बाल देखभाल एवं केयर इकॉनमी: नेशनल क्रेच ग्रिड की स्थापना करना, कार्यस्थलों पर क्रेच की व्यवस्था होना, देखभाल करने वाले कर्मचारियों का पेशेवरकरण तथा अनौपचारिक क्षेत्रों में भी सवेतन मातृत्व अवकाश का विस्तार किया जाए ताकि कार्यबल में महिलाओं की स्थायी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। 
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं डिजिटल समावेशन: स्वच्छता, परिवहन, जल, आवास में जेंडर-रेस्पोंसिव बजटिंग को अनिवार्य करना। 
  • महिलाओं के डिजिटल सशक्तीकरण के लिये डिजिटल साक्षरता (Digital Saksharta) और पीएम-गति शक्ति डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) को राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे और ग्रामीण इंटरनेट परियोजनाओं में शामिल करना। 
  • प्रतिनिधित्व एवं शासन: बोर्डों, पंचायतों, एमएसएमई परिषदों में लिंग कोटा लागू करना; जेंडर बजट में क्षमता निर्माण करना; महिलाओं के समावेशन के लिये प्रोत्साहनों को जोड़ना। 
  • विकेंद्रीकृत लैंगिक योजना: ग्राम पंचायत, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर लैंगिक कार्ययोजनाएँ संस्थागत करना। इन योजनाओं को महिला सभाओं और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के इनपुट के साथ सह-निर्मित तथा वार्षिक विकास योजना एवं वित्तपोषण में एकीकृत किया जाए। 
  • कार्यस्थल पर सुरक्षा एवं महिलाओं की गतिशीलता का सशक्तीकरण: महिला-हितैषी अवसंरचना का निर्माण करना, जिसमें सुलभ स्थान हों और यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 2013 के तहत आंतरिक शिकायत समितियों (ICCs) की स्थापना करना ताकि उत्पीड़न का समाधान हो सके। 
  • शून्य-सहिष्णुता (Zero-Tolerance) की संस्कृति को बढ़ावा देना और शिक्षा, सशक्तीकरण एवं नीतिगत सुधारों के माध्यम से सांस्कृतिक और संरचनात्मक हिंसा का समाधान करना ताकि एक समान एवं सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित हो सके। 

निष्कर्ष: 

महिलाएँ भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन रही हैं, ग्रामीण उद्यमों से लेकर कॉर्पोरेट नेतृत्व तक परिवर्तन ला रही हैं, जैसा कि जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था, "किसी राष्ट्र की स्थिति का आकलन उसकी महिलाओं की स्थिति से किया जा सकता है," भारत नारी शक्ति को मूर्त रूप देते हुए विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहा है। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों और कार्यबल की भागीदारी की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

 

मुख्य परीक्षा

प्रश्न 1: “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (2019)  

प्रश्न 2: भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चर्चा कीजिये? (2015)  

प्रश्न 3: महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013)

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