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यूनिवर्सल बेसिक इनकम

  • 04 Nov 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल बेसिक इनकम, वर्कफ्री पायलट प्रोजेक्ट, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), सशर्त नकद हस्तांतरण (CCT), MGNREGA

मेन्स के लिये:

यूनिवर्सल बेसिक इनकम के गुण एवं दोष, इसकी व्यवहार्यता और वैकल्पिक उपाय

स्रोत: डाउन टू अर्थ

हाल ही में तेलंगाना में वर्ष 2022 में शुरू किये गए वर्कफ्री पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से व्यक्तियों और परिवारों पर यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के सकारात्मक परिणाम पर प्रकाश डाला गया है।

वर्कफ्री (WorkFREE) पायलट प्रोजेक्ट:

  • परिचय:
    • यह परियोजना यूरोपीय अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषण के साथ यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, मोंटफोर्ट सोशल इंस्टीट्यूट, हैदराबाद और इंडिया नेटवर्क फॉर बेसिक इनकम के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है।
    • पायलट प्रोजेक्ट के तहत एक वयस्क को 1,000 रुपए और एक बच्चे को 18 महीने तक 500 रुपये प्रतिमाह का भुगतान किया जाता है।
    • यह परियोजना हैदराबाद की पाँच मलिन बस्तियों में 1,250 निवासियों को सहायता प्रदान करती है।
    • वर्कफ्री पायलट प्रोजेक्ट को एक परिवर्तनकारी पहल के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो व्यक्तियों और परिवारों पर इसके सकारात्मक परिणामों को उजागर करती है।
    • तेलंगाना के कुछ निवासी स्थानांतरण से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए थे और उन्हें UBI समर्थन के माध्यम से वित्तीय स्थिरता मिली है। उन्होंने नकद सहायता का उपयोग चूड़ी व्यवसाय शुरू करने के लिये किया जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
    • निवासियों ने नकद सहायता का उपयोग भोजन, ईंधन, कपड़े खरीदने और यूटिलिटी बिलों का भुगतान करने के लिये भी किया, जो आमतौर पर मासिक खर्च का बड़ा हिस्सा होता है।
  • अन्य समान पायलट प्रोजेक्ट:
    • स्व-रोज़गार महिला संघ (Self Employed Women’s Association- SEWA) पायलट प्रोजेक्ट वर्ष 2011 में दिल्ली और मध्य प्रदेश में आयोजित किया गया था। इस प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लगभग 100 परिवारों को प्रतिमाह 1,000 रुपए मिलते थे।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम:

  • परिचय:
    • सार्वभौमिक बुनियादी आय एक सामाजिक कल्याण प्रस्ताव है जिसमें सभी लाभार्थियों को बिना शर्त हस्तांतरण भुगतान के रूप में नियमित रूप से एक गारंटीकृत आय प्राप्त होती है।  
    • एक बुनियादी आय प्रणाली के लक्ष्यों में गरीबी को कम करना और ऐसे अन्य आवश्यकता-आधारित सामाजिक कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित करना शामिल है जिसके लिये संभावित रूप से अधिक नौकरशाही संलग्नता की आवश्यकता होती है। 
    • UBI आमतौर पर बिना शर्तों के या न्यूनतम शर्तों के साथ सभी (या आबादी के एक अत्यंत बड़े भाग) तक पहुँच बनाने का लक्ष्य रखती है।
  • गुण:
    • गरीबी उन्मूलन: यह सभी के लिये, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर और हाशिये पर स्थित समूहों के लिये एक न्यूनतम आय सीमा प्रदान करके गरीबी तथा आय असमानता को कम करती है। यह लोगों को खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को वहन करने में भी मदद कर सकती है।
    • एक स्वास्थ्य प्रोत्साहक: गरीबी और वित्तीय असुरक्षा से संबद्ध तनाव, दुश्चिंता तथा अवसाद को कम करके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाती है। यह लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और पोषण तक पहुँच बनाने में भी सक्षम कर सकती है।
    • सरलीकृत कल्याण प्रणाली: यह विभिन्न लक्षित सामाजिक सहायता कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित कर मौजूदा कल्याण प्रणाली को सुव्यवस्थित कर सकती है। यह प्रशासनिक लागत को कम करती है और साधन-परीक्षण, पात्रता आवश्यकताओं एवं बेनिफिट क्लिफ (benefit cliffs) से जुड़ी जटिलताओं को समाप्त करती है।
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि: UBI लोगों को वित्तीय सुरक्षा और उनके कार्य, शिक्षा एवं व्यक्तिगत जीवन के बारे में चयन की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है।
    • आर्थिक प्रोत्साहक: यह प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के हाथों में धन का प्रवेश कराती है, जो उपभोक्ता व्यय को उत्प्रेरित करती है और आर्थिक विकास को गति देती है। यह स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा दे सकती है, वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये मांग उत्पन्न कर सकती है तथा रोज़गार के अवसर सृजित कर सकती है।
      • यह लोगों को उद्यमशीलता की राह पर आगे बढ़ने, जोखिम उठाने और रचनात्मक या सामाजिक रूप से लाभकारी गतिविधियों में संलग्न होने के लिये सशक्त कर सकती है जो अन्यथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं भी हो सकते हैं।
  • दोष:
    • लागत और राजकोषीय संवहनीयता: सार्वभौमिक बुनियादी आय की लागत अत्यधिक होती है और इसके वित्तपोषण के लिये उच्च करों, व्यय में कटौती या ऋण की आवश्यकता होगी। यह मुद्रास्फीति उत्पन्न कर सकती है, श्रम बाज़ार को विकृत कर सकती है और आर्थिक विकास को मंद कर सकती है।
    • विकृत प्रोत्साहन का निर्माण: यह काम करने की प्रेरणा को कम करती है और उत्पादकता एवं दक्षता में कमी लाती है। यह निर्भरता, पात्रता तथा आलस्य की एक संस्कृति का भी निर्माण कर सकती है। यह लोगों को कौशल, शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने से भी हतोत्साहित कर सकती है।
    • मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: यह मुद्रास्फीति संबंधी दबावों में योगदान कर सकती है। यदि सभी को एक निश्चित राशि प्राप्त होगी तो इससे वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि हो सकती है क्योंकि व्यवसाय बाज़ार में उपलब्ध अतिरिक्त आय पर कब्ज़ा करने के लिये अपनी मूल्य निर्धारण रणनीतियों को समायोजित करते हैं।
    • निर्भरता बढ़ाने की क्षमता: सार्वभौमिक बुनियादी आय सरकारी समर्थन पर लोगों की निर्भरता का निर्माण कर सकती है और इसमें एक जोखिम शामिल है कि कुछ लोग आत्मसंतुष्ट या मूल आय पर आश्रित बन सकते हैं, जिससे व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक विकास के लिये प्रेरणा कम हो सकती है। 

UBI के स्थान पर भारत कौन-से विकल्प चुन सकता है?

  • Quasi UBRI: अर्द्ध-सार्वभौमिक बुनियादी ग्रामीण आय (Quasi-Universal Basic Rural Income- QUBRI) सार्वभौमिक बुनियादी आय का एक रूप है, जिसे ऐसे हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया गया है जो सार्वभौमिक रूप से बिना शर्त और नकद रूप में प्रदान किया जाता है। भारत में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को (उन परिवारों को छोड़कर जो प्रत्यक्ष रूप से समृद्ध हैं और कृषि संकट का सामना कर सकते हैं) 18,000 रुपए प्रतिवर्ष का प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (Direct Cash Transfer) प्रदान करने का विचार पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefits Transfers- DBT): इस योजना के तहत सब्सिडी या नकद को प्रत्यक्ष रूप से लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किया जाता है (बजाय इसके कि बिचौलियों की मदद ली जाए या वस्तु या सेवाओं के रूप में हस्तांतरण किया जाए)। DBT का उद्देश्य कल्याणकारी वितरण की दक्षता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही में सुधार के साथ-साथ लीकेज और भ्रष्टाचार को कम करना है।
  • सशर्त नकद हस्तांतरण (Conditional Cash Transfers- CCT): इस योजना के तहत गरीब परिवारों को इस शर्त पर नकद राशि प्रदान की जाती है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने, उनका टीकाकरण कराने या स्वास्थ्य जाँच में भाग लेने जैसी कुछ शर्तों की पूर्ति करेंगे। CCT का उद्देश्य मानव पूंजी और गरीबों के दीर्घकालिक परिणामों में सुधार के साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करना है।
  • अन्य आय सहायता योजनाएँ: इन योजनाओं के तहत किसानों, महिलाओं, वृद्धजनों, दिव्यांगों जैसे लोगों के ऐसे विशिष्ट समूहों को नकद या अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है जो इसकी आवश्यकता रखते हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य इन समूहों के समक्ष विद्यमान विशिष्ट भेद्यताओं और चुनौतियों का समाधान करना है, साथ ही साथ उनके सशक्तीकरण एवं समावेशन को बढ़ावा देना है।
  • रोज़गार गारंटी योजनाएँ: मनरेगा (MGNREGA) के साथ भारत के पास पहले से ही इसका एक सफल उदाहरण मौजूद है। ये योजनाएँ ग्रामीण परिवारों को एक वर्ष में निश्चित दिनों के लिये रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करती हैं। ऐसे कार्यक्रमों का विस्तार और सुदृढ़ीकरण यह सुनिश्चित कर सकता है कि व्यक्तियों की रोज़गार अवसरों तक पहुँच हो और वे आजीविका अर्जित कर सकें।
  • कौशल विकास एवं प्रशिक्षण: कौशल विकास एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश से व्यक्तियों को स्थायी रोज़गार सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक कौशल से लैस किया जा सकता है। कौशल संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करके सरकार व्यक्तियों को उपयुक्त नौकरी खोजने और अपनी आय संभावनाओं में सुधार करने में सक्षम बना सकती है।

आगे की राह 

  • प्राप्तकर्त्ताओं का समर्थन करते समय हतोत्साहित करने वाले कार्य से बचने के लिये प्रदान की गई राशि को सावधानीपूर्वक संतुलित किया जाना चाहिये। UBI की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये पूरक उपायों के रूप में सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सहित मज़बूत समर्थन प्रणालियों का सुझाव दिया गया है।
  • हालाँकि नकद हस्तांतरण जैसी ये योजनाएँ UBI सिद्धांतों के अनुरूप हैं, वे प्रायः विशिष्ट जनसांख्यिकी को लक्षित करती हैं, इस प्रकार संभावित लाभार्थियों को बाहर करने का जोखिम हो सकता है। 
  • धन के गलत आवंटन को कम करने और मौजूदा कल्याण योजनाओं में रिसाव को कम करने के लिये UBI को अधिक कुशल विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया गया है।
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