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भारतीय राजनीति

असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा विवाद का समाधान

  • 22 Apr 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वे ऑफ इंडिया, बेलागवी, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956, महाजन आयोग, लुशाई हिल्स, खासी और जयंतिया हिल्स, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131

मेन्स के लिये:

भारत में राज्यों के बीच सीमा विवाद, अंतर्राज्यीय परिषद

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच वर्ष 1972 से चले आ रहे सीमा विवाद का स्थायी समाधान हो गया है।  

  • असम और अरुणाचल प्रदेश 804 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं।

समझौते के प्रमुख बिंदु:

  • इस समझौते से ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, जनसांख्यिकीय प्रोफाइल, प्रशासनिक सुविधा, सीमा की निकटता और निवासियों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए दोनों राज्यों के बीच 700 किलोमीटर से अधिक की सीमा को कवर करने वाले 123 गाँवों से संबंधित विवाद का समाधान होने की उम्मीद है। 
    • यह अंतिम समझौता होगा जिसके अंतर्गत कोई भी राज्य भविष्य में किसी भी क्षेत्र या गाँव से संबंधित कोई नया दावा नहीं करेगा 
  • समझौते के बाद सीमाओं का निर्धारण करने के लिये दोनों राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा एक विस्तृत सर्वेक्षण किया जाएगा।

भारत में राज्यों के बीच अन्य सीमा विवाद:  

  • कर्नाटक-महाराष्ट्र:  
    • उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा विवाद काफी पुराना है। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की सीमाओं को भाषायी आधार पर पुनः तैयार किया गया, तो बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
      • यह अधिनियम न्यायमूर्ति फज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर आधारित था जिसे 1953 में नियुक्त किया गया था और इसने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 
      • महाराष्ट्र का दावा है कि बेलगावी के कुछ हिस्से, जहाँ मराठी प्रमुख भाषा है, को महाराष्ट्र में ही रहना चाहिये। 
    • अक्तूबर 1966 में केंद्र ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में सीमा विवाद को हल करने के लिये महाजन आयोग की स्थापना की। 
      • आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक में ही रहेंगे। महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया
  • असम-मिज़ोरम:  
    • असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद वर्ष 1875 और वर्ष 1933 की ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाओं की विरासत है, जब मिज़ोरम को असम का एक ज़िला लुशाई हिल्स कहा जाता था।
      • वर्ष 1875 की अधिसूचना ने लुशाई हिल्स को कछार के मैदानों से तथा लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच अन्य सीमांकित सीमा से अलग कर दिया।  
    • जबकि मिज़ोरम विद्रोह के वर्षों के बाद वर्ष 1987 में ही एक राज्य बन गया था, यह अभी भी वर्ष 1875 में तय की गई सीमा पर ज़ोर देता है। 
      • दूसरी ओर असम वर्ष 1986 में (1933 की अधिसूचना के आधार पर) सीमा का सीमांकन चाहता था
  • हरियाणा-हिमाचल प्रदेश:
    • दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को लेकर परवाणू क्षेत्र सुर्खियों में रहा है।
    • यह हरियाणा के पंचकुला ज़िले के निकट है और हरियाणा ने हिमाचल प्रदेश में भूमि के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताया है।
  • हिमाचल प्रदेश-लद्दाख:
    • हिमाचल और लद्दाख लेह तथा मनाली के बीच के मार्ग के एक क्षेत्र सरचू पर दावा करते हैं।
    • यह एक प्रमुख बिंदु है जहाँ यात्रीगण इन दो शहरों के बीच यात्रा के दौरान रुकते हैं।
    • सरचू हिमाचल के लाहुल तथा स्पीति ज़िले और लद्दाख के लेह ज़िले के बीच में है। 
  • मेघालय-असम:
    • असम और मेघालय के बीच सीमा को लेकर समस्या तब शुरू हुई जब मेघालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 को चुनौती दी जिसके तहत मिकिर हिल्स अथवा वर्तमान के कार्बी आंगलोंग ज़िले के खंड I और II असम को सौंप दिये गए थे।
    • मेघालय का तर्क है कि जब वर्ष 1835 में दोनों खंडों को अधिसूचित किया गया था, तब ये दोनों खंड तत्कालीन संयुक्त खासी और जयंतिया हिल्स ज़िले का हिस्सा थे। 
  • असम-नगालैंड:
    • वर्ष 1963 में नगालैंड राज्य के रूप में स्थापित होने के तुरंत बाद सीमा संबंधी विवाद की शुरुआत हो गई।
    • नगालैंड राज्य अधिनियम, 1962 के तहत वर्ष 1925 की एक अधिसूचना के अनुसार, राज्य की सीमाओं को परिभाषित किया गया था जब नगा हिल्स और तुएनसांग क्षेत्र (NHTA) को एक नई प्रशासनिक इकाई में एकीकृत किया गया था।
    • हालाँकि नगालैंड सीमा रेखांकन को स्वीकार नहीं करता है और उसने मांग की है कि नए राज्य में उत्तरी कछार और नागाँव ज़िलों में सभी नगा बहुल क्षेत्र शामिल होने चाहिये।
    • राज्य के तुरंत बाद असम और नगालैंड के बीच तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1965 में पहला सीमा संघर्ष हुआ।
      • इसके बाद क्रमशः वर्ष 1968, 1979, 1985, 2007 और 2014 में सीमा पर दोनों राज्यों के बीच बड़ी झड़पें हुईं।

भारत में सीमा विवादों के समाधान के अन्य तरीके:  

  • अनुसूचित जाति के विशेष मूल अधिकार क्षेत्र के माध्यम से:  
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के पास अनन्य मूल क्षेत्राधिकार है, जिसका अर्थ है कि कोई अन्य न्यायालय इन मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है:
      • यह भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों को सुनवाई कर सकता है।
      • यह एक तरफ भारत सरकार और किसी भी राज्य (राज्यों) और दूसरी तरफ एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच विवादों की सुनवाई कर सकता है।
      • यह दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों को सुनवाई कर सकता है यदि विवाद में कानून या तथ्य का प्रश्न शामिल है जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्त्व या सीमा निर्भर करती है।
    • क्षेत्राधिकार से संबंधित सीमाएँ: सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार उन संधियों, समझौतों, प्रसंविदाओं, अनुबंधों या इसी तरह के अन्य आयामों से उत्पन्न होने वाले ऐसे विवादों तक नहीं है जो संविधान के प्रारंभ से पहले दर्ज किये गए थे या इनके द्वारा ऐसा प्रावधान किया गया है कि इसका क्षेत्राधिकार ऐसे विवादों तक विस्तारित नहीं होगा।
  • अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा:  
    • संविधान का अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को अंतर्राज्यीय परिषद स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • यह राज्यों के बीच चर्चा और विवादों के समाधान के साथ-साथ राज्यों या संघ एवं एक या अधिक राज्यों के बीच सामान्य हितों से संबंधित विषयों पर चर्चा हेतु एक मंच के रूप में कार्य करती है।
    • वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना की गई थी।  
      • वर्ष 2021 में इस परिषद का पुनर्गठन किया गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतर्राज्यीय जल विवादों को हल करने हेतु उपलब्ध संवैधानिक तंत्र संबंधित समस्याओं को हल करने में विफल रहा है। क्या यह विफलता संरचनात्मक या प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता या दोनों कारणों से है? चर्चा कीजिये। (2013) 

स्रोत: पी.आई.बी.

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