शासन व्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सोशल मीडिया को विनियमित करने का आह्वान
- 30 Aug 2025
- 88 min read
प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, सोशल मीडिया, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, IT अधिनियम, 2000 की धारा 69A, IT अधिनियम, 2000 की धारा 79(1), सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021, के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017), अनुच्छेद 21।
मेन्स के लिये: भारत में सोशल मीडिया का विनियमन, समाज के विभिन्न वर्गों पर सोशल मीडिया का प्रभाव।
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने हास्य कलाकारों द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यवसायीकरण कर रहे हैं। न्यायालय ने चेतावनी दी कि इस प्रकार की सामग्री कमज़ोर वर्गों की गरिमा को ठेस पहुँचा सकती है और सरकार से आग्रह किया कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सामाजिक संवेदनशीलताओं के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु प्रभावी दिशानिर्देश तैयार करे।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख अवलोकन और सिफारिशें
- प्रमुख अवलोकन:
- व्यावसायीकरण और जवाबदेही: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्रीकरण (Monetisation) करते हैं, जो प्राय: प्रतिबंधित अभिव्यक्ति के साथ मिश्रित हो जाती है। न्यायालय ने चेतावनी दी कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति का उपयोग कमज़ोर वर्गों (दिव्यांगजन, महिलाएँ, बच्चे, अल्पसंख्यक, वरिष्ठ नागरिक) पर प्रहार करने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
- हास्य बनाम गरिमा: जहाँ हास्य आवश्यक है, वहीं आपत्तिजनक चुटकुले एवं असंवेदनशील टिप्पणियाँ कलंक और भेदभाव को बढ़ावा देती हैं तथा वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के संवैधानिक दायित्व को ठेस पहुँचाती हैं।
- डिजिटल क्षेत्र में स्पष्ट सीमाएँ: न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, व्यावसायिक अभिव्यक्ति और प्रतिबंधित अभिव्यक्ति के बीच स्पष्ट सीमांकन होना चाहिये, क्योंकि गैर-ज़िम्मेदार ऑनलाइन टिप्पणियाँ गरिमा, सामाजिक सद्भाव तथा सामुदायिक विश्वास को कमज़ोर करती हैं।
- सिफारिशें:
- परिणामों सहित दिशानिर्देश: केंद्र सरकार को (नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन से परामर्श कर) इन्फ्लुएंसर/पॉडकास्टरों के लिये नियामक दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया गया, जिनमें अनुपातिक और लागू किये जाने वाले परिणाम हों, केवल ‘औपचारिकता’ न हो।
- संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी: सामाजिक नुकसान के लिये उल्लंघनकर्त्ताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं के बीच जागरूकता, संवेदनशीलता और डिजिटल नैतिकता के महत्त्व पर बल दिया गया।
- माफी और अधिकारों का संतुलन: इन्फ्लुएंसरों को अपने प्लेटफार्मों के माध्यम से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करना नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता और गरिमा के बीच संतुलन बनाना है ताकि विविध समाज में सामुदायिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।
भारत में सोशल मीडिया के उपयोग को नियंत्रित करने वाले प्रमुख नियम क्या हैं?
- प्रमुख कानून:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक संचार और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है।
- धारा 79(1) मध्यस्थों (जैसे फेसबुक, X, इंस्टाग्राम) को तृतीय-पक्ष सामग्री के लिये देयता से ‘सुरक्षित आश्रय’ (Safe harbour) का संरक्षण प्रदान करती है, बशर्ते वे निष्पक्ष मंच के रूप में कार्य करें और सामग्री को नियंत्रित या संशोधित न करें।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A सरकार को संप्रभुता, सुरक्षा, रक्षा, विदेशी संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा करने और अपराधों को भड़काने से रोकने के लिये ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने की अनुमति प्रदान करती है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को उपयोगकर्त्ता सुरक्षा सुनिश्चित करने, गैरकानूनी सामग्री को हटाने और गोपनीयता, कॉपीराइट, मानहानि और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का आदेश प्रदान करता है।
- इन नियमों में 2023 के संशोधन ने मध्यस्थों को भारत सरकार से संबंधित झूठी या भ्रामक सामग्री हटाने के लिये बाध्य किया था। हालाँकि, इसके प्रवर्तन पर सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने दुरुपयोग की आशंका का हवाला देते हुए रोक लगा दी है।
- प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ:
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) में, सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को उसकी अस्पष्टता के कारण निरस्त कर दिया। न्यायालय ने दोहराया कि आलोचना, व्यंग्य और असहमति अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित हैं, जब तक कि वे अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए युक्तिसंगत प्रतिबंधों के दायरे में न आते हों।
- धारा 66A में कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से झूठी या आपत्तिजनक जानकारी भेजने को अपराध घोषित किया गया था, जिसके लिये अधिकतम 3 वर्ष का कारावास निर्धारित था।
- के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में, सर्वोच्च न्यायालय ने गोपनीयता को अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की।
- इस फैसले ने बाद के डेटा संरक्षण उपायों को आकार दिया, जिनमें डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 शामिल है तथा इसने व्हाट्सऐप की गोपनीयता नीतियों तथा आधार डेटा मानकों के नियमन को भी प्रभावित किया।
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) में, सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को उसकी अस्पष्टता के कारण निरस्त कर दिया। न्यायालय ने दोहराया कि आलोचना, व्यंग्य और असहमति अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित हैं, जब तक कि वे अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए युक्तिसंगत प्रतिबंधों के दायरे में न आते हों।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक संचार और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है।
सोशल मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता क्यों है?
- कमज़ोर समूहों की सुरक्षा: अनियमित प्लेटफॉर्म अपमानजनक सामग्री, साइबर बुल्लिंग, ट्रोलिंग और शोषण को बढ़ावा देते हैं, खासकर महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, अल्पसंख्यकों और विकलांग व्यक्तियों के लिये।
- गलत सूचना और अभद्र भाषा पर अंकुश लगाना: फर्जी खबरों, डीपफेक, घृणा अभियानों और अतिवादी प्रचार का तेज़ी से प्रसार सामाजिक सद्भाव, लोकतांत्रिक संवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करता है।
- प्रभावी विनियमन से दुष्प्रचार पारिस्थितिकी तंत्र पर अंकुश लगाया जा सकता है तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखा जा सकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों की सुरक्षा: अंतहीन स्क्रॉलिंग, छूट जाने का डर (FOMO) और चुनिंदा पहचान जैसी विशेषताएँ युवाओं में नशे की लत, चिंता और अवसाद को बढ़ावा देती हैं।
- विनियमन डिजिटल कल्याण, ज़िम्मेदार डिज़ाइन और नैतिक संचार मानकों को बढ़ावा दे सकते हैं।
- प्रभावशालियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना: इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के बढ़ते चलन के साथ, उपयोगकर्त्ता अक्सर अप्रकटित पेड प्रमोशन्स और अवैध उत्पादों (जैसे, बेटिंग ऐप्स) के कारण वित्तीय जोखिमों में फंस जाते हैं। विनियमन पारदर्शिता, खुलासा मानदंडों और उपभोक्ता संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
- डेटा गोपनीयता एवं सुरक्षा: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बड़े पैमाने पर उपयोगकर्त्ताओं का डेटा एकत्रित करते हैं, अक्सर उनकी सूचित सहमति के बिना। इससे गोपनीयता का उल्लंघन, निगरानी और लाभ या राजनीतिक प्रभाव के लिये दुरुपयोग होता है। इनका विनियमन, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गोपनीयता के संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिये आवश्यक है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी में संतुलन: अनुच्छेद 19(1)(a) मुक्त अभिव्यक्ति की गारंटी प्रदान करता है, लेकिन यह अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तिसंगत प्रतिबंधों (लोक व्यवस्था, नैतिकता, शिष्टता, राज्य की सुरक्षा) के अधीन है। विनियमन वैध मुक्त अभिव्यक्ति और हानिकारक/अपमानजनक सामग्री के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है।
भारत में सोशल मीडिया को विनियमित करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- नियामक क्षमता पर दबाव: ऑनलाइन सामग्री की अत्यधिक मात्रा के कारण निरंतर निगरानी करना कठिन हो जाता है। इसके साथ ही उपयोगकर्त्ताओं की गुमनामी उन्हें घृणा फैलाने वाले भाषण, फेक न्यूज़ और हानिकारक सामग्री साझा करने के लिये और अधिक साहसी बना देती है, जिससे नियामक क्षमता पर दबाव पड़ता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं होती तथा सामग्री की निगरानी से जुड़ी नीतियों में जवाबदेही का अभाव होता है। स्वतंत्र निगरानी के न होने से इनकी अपारदर्शी कार्यप्रणाली एवं मनमानी फैसलों को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- हानिकारक सामग्री की परिभाषा: हानिकारक सामग्री को परिभाषित करना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों में अंतर के कारण आम सहमति बनाना कठिन हो जाता है। यह अस्पष्टता वैध अभिव्यक्ति तथा प्रतिबंधित भाषण के बीच एक 'ग्रे ज़ोन' (अनिश्चित क्षेत्र) उत्पन्न करती है।
- स्वतंत्र अभिव्यक्ति बनाम सेंसरशिप: किसी भी प्रकार का नियमन प्रयास सेंसरशिप या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश के रूप में देखा जा सकता है, विशेष रूप से तब जब मानदंड स्पष्ट, वस्तुनिष्ठ और अनुपातिक न हों।
- सीमा पार क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दे: हानिकारक सामग्री का एक बड़ा हिस्सा भारत के क्षेत्राधिकार के बाहर से आता है, जिससे घरेलू कानून के तहत प्रवर्तन और विनियमन कठिन हो जाता है।
- राजनीतिक निष्पक्षता संबंधी चिंताएँ: सामग्री की निगरानी से जुड़े निर्णयों पर अक्सर राजनीतिक पक्षपात के आरोप लगते हैं, जिससे प्लेटफॉर्म की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं और नियामक तंत्र में जनता का विश्वास कमज़ोर पड़ता है।
भारत में सोशल मीडिया की विश्वसनीयता और उपयोगिता में सुधार हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- मज़बूत कानूनी-नीति ढाँचा: IT अधिनियम, 2000 को डिजिटल इंडिया एक्ट के माध्यम से अद्यतन किया जाए, ताकि प्लेटफॉर्म की जवाबदेही, डेटा सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके। इसके साथ ही किसी भी अतिरेक से बचने के लिये न्यायिक निगरानी का प्रावधान भी आवश्यक है।
- एल्गोरिदमिक पारदर्शिता और जवाबदेही: एल्गोरिदम की ऑडिटिंग, पारदर्शिता रिपोर्ट तथा स्वतंत्र निरीक्षण निकायों को अनिवार्य किया जाए। तटस्थता और शीघ्र समाधान सुनिश्चित करने के लिये AI-आधारित मॉडरेशन टूल्स के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकीय और संस्थागत क्षमता: साइबर फॉरेंसिक लैब्स का विस्तार किया जाए, एजेंसियों की क्षमताओं को सशक्त बनाया जाए तथा गोपनीयता व एन्क्रिप्शन मानकों की रक्षा करते हुए AI-सक्षम निगरानी प्रणालियों का एकीकरण किया जाए।
- डिजिटल साक्षरता और नैतिक उपयोग: राष्ट्रव्यापी डिजिटल साक्षरता अभियान चलाए जाएँ, जिनका उद्देश्य गलत सूचना, डीपफेक तथा साइबरबुलिंग के खिलाफ जागरूकता फैलाना हो। साथ ही ज़िम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार को बढ़ावा दिया जाए एवं ऐसे नैतिक डिज़ाइन प्रथाओं को अपनाया जाए जो उपयोगकर्त्ता के कल्याण को प्राथमिकता दें।
- वैश्विक और बहु-हितधारक सहयोग: सीमापार विनियमन (Cross-Border Regulation) के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत किया जाए तथा एक समावेशी व भविष्य-उन्मुख डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु नागरिक समाज, शिक्षाविदों एवं उद्योग जगत की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया का नियमन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमज़ोर समूहों की गरिमा और अधिकारों के साथ संतुलित करने के लिये आवश्यक है। मज़बूत कानूनी ढाँचे, प्रौद्योगिकीय समाधान, डिजिटल साक्षरता तथा नैतिक प्रथाओं के संयोजन से जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है, गलत सूचना को रोका जा सकता है, एवं एक सुरक्षित, समावेशी व विश्वसनीय ऑनलाइन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गोपनीयता संबंधी चिंताओं और जवाबदेही की आवश्यकता के बीच संतुलन को ध्यान में रखते हुए, भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्ष के प्रश्न:
मेन्स
प्रश्न. ‘सामाजिक संजाल स्थल’ क्या होती हैं और इन स्थलों के क्या सुरक्षा उलझने प्रस्तुत होती हैं? (2013)
प्रश्न. बच्चों को दुलारने की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। बच्चों के समाजीकरण पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2023)