इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

POSH अधिनियम, 2013 के तहत अधिकारियों की नियुक्ति

  • 23 Oct 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, विशाखा दिशा-निर्देश, स्थानीय शिकायत समिति (LCC)

मेन्स के लिये:

भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित पहल और उससे संबंधित मुद्दे।    

स्रोत: द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के महिला एवं बाल विकास मंत्रालयों (MoWCD) को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के तहत ज़िला अधिकारियों को नियुक्त करने का निर्देश दिया है ताकि कानून का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

राज्यों को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश की आवश्यकता:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अनुभव किया कि महिलाओं को उनकी पहुँच से परे कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक कानून के तहत सुरक्षा मिली।
    • न्यायालय ने पाया कि कई राज्यों ने इन सभी वर्षों में POSH अधिनियम के तहत ज़िला अधिकारियों को सूचित करने की ज़हमत नहीं उठाई। इसलिये उसने सभी राज्यों को POSH अधिनियम के तहत तुरंत ज़िला अधिकारियों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया।
  • POSH अधिनियम के तहत ज़िला अधिकारियों की भूमिका:
    • POSH अधिनियम राज्यों को प्रत्येक ज़िले में एक अधिकारी नियुक्त करने का आदेश देता है जो अधिनियम के कार्यान्वयन में "महत्त्वपूर्ण" भूमिका निभाएगा। 
    • ज़िला अधिकारी 10 से कम श्रमिकों वाले छोटे प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिलाओं या ऐसे मामलों में जहाँ हमलावर स्वयं नियोक्ता है, से शिकायतें प्राप्त करने के लिये स्थानीय शिकायत समितियों (LCC) का गठन करेगा।
    • एक ज़िला अधिकारी की ज़िम्मेदारियों में ग्रामीण, आदिवासी और शहरी क्षेत्रों में अधिनियम के तहत नोडल अधिकारी की नियुक्ति करना भी शामिल था।
  • नोडल व्यक्तियों की नियुक्ति: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) को अपने प्रमुख सचिव के माध्यम से विभाग के भीतर एक 'नोडल व्यक्ति' की पहचान करने पर विचार करना चाहिये, जो PoSH अधिनियम के तहत समन्वय की निगरानी और सहायता करेगा।
    • यह व्यक्ति इस अधिनियम और इसके कार्यान्वयन से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार के साथ समन्वय करने में भी सक्षम होगा।
  • रिपोर्ट प्रस्तुत करने की समय सीमा:
    • इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार को 8 सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को निम्नलिखित निर्देशों के अनुपालन की एक समेकित रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी:

PoSH अधिनियम, 2013:

  • परिचय:
    • PoSH अधिनियम, कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले यौन उत्पीड़न के मुद्दे को संबोधित करने के लिये वर्ष 2013 में भारत सरकार द्वारा अधिनियमित एक कानून है।
      • इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं के लिये एक सुरक्षित एवं अनुकूल कार्य वातावरण बनाने के साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना है।
    • PoSH अधिनियम, यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है जिसमें अवांछित कृत्यों जैसे शारीरिक संपर्क तथा यौन प्रगति, यौन संबंधों की मांग अथवा अनुरोध, यौन टिप्पणियाँ करना, अश्लील साहित्य दिखाना एवं यौन संबंध के किसी भी अन्य प्रकृति के अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण को शामिल किया गया है।
  • पृष्ठभूमि: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय में 'विशाखा दिशा-निर्देश' दिये।
    • इन दिशा-निर्देशों ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का आधार बनाया।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 (केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ) सहित संविधान के कई प्रावधानों से अपनी शक्ति प्राप्त की, साथ ही प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों एवं मानदंडों जैसे कि सामान्य सिफारिशों से भी प्रेरणा ली। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), जिसे भारत ने वर्ष 1993 में अनुमोदित किया था।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • रोकथाम एवं निषेध: अधिनियम नियोक्ताओं पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने तथा प्रतिबंधित करने का कानूनी दायित्व रखता है।
    • आंतरिक शिकायत समिति (ICC): यौन उत्पीड़न की शिकायतें प्राप्त करने तथा उनका समाधान करने के लिये नियोक्ताओं को 10 अथवा अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक ICC का गठन करना आवश्यक है।
      • शिकायत समितियों के पास साक्ष्य एकत्रित करने के लिये सिविल न्यायालयों की शक्तियाँ हैं।
    • नियोक्ताओं के कर्तव्य: नियोक्ताओं को जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिये, एक सुरक्षित कामकाज़ी माहौल प्रदान करना चाहिये साथ भी कार्यस्थल पर POSH अधिनियम के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिये।
    • ज़ुर्माना: अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन न करने पर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जिसमें ज़ुर्माना एवं व्यापार लाइसेंस रद्द करना भी शामिल है।

आगे की राह:

  • रोज़गार न्यायाधिकरण: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के बजाय रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना का पालन किया जाना चाहिये।
  • स्वयं की प्रक्रिया बनाने की शक्ति: शिकायतों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिये यह प्रस्तावित करना आवश्यक है कि न्यायाधिकरण सिविल न्यायालय के रूप में कार्य न करे जबकि प्रत्येक शिकायत के निपटान के लिये स्वयं प्रक्रिया का चयन कर सकता है।
  • अधिनियम के दायरे का विस्तार: घरेलू कामगारों को अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
    • न्यायमूर्ति वर्मा समिति के अनुसार किसी भी "अवांछनीय व्यवहार" को शिकायतकर्त्ता की व्यक्तिपरक धारणा से देखा जाना चाहिये, इस प्रकार यौन उत्पीड़न की परिभाषा का दायरा व्यापक हो जाएगा।
  • नियोक्ता का दायित्व: न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने कहा कि नियोक्ता को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिये यदि:
    • उसने यौन उत्पीड़न को बढ़ावा दिया हो।
    • ऐसे माहौल की अनुमति दी हो जहाँ यौन दुराचार व्यापक और व्यवस्थित हुआ हो।
    • जहाँ नियोक्ता यौन उत्पीड़न पर कंपनी की नीति और श्रमिकों द्वारा शिकायत दर्ज करने के तरीकों का खुलासा करने में विफल रहता हो।
    • वर्मा पैनल ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज करने की तीन महीने की समय-सीमा खत्म की जानी चाहिये और किसी शिकायतकर्त्ता को उसकी सहमति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिये।

महिला सुरक्षा से संबंधित अन्य पहले:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: स्वाधार और स्वयं सिद्ध महिलाओं के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई दो योजनाएँ हैं। उनके बीच अंतर के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2010) 

  1. स्वयं सिद्ध उन लोगों के लिये है जो प्राकृतिक आपदाओं या आतंकवाद से बची महिलाओं, ज़ेलों से रिहा महिला कैदियों, मानसिक रूप से विकृत महिलाओं आदि जैसी कठिन परिस्थितियों में हैं, जबकि स्वाधार स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के समग्र सशक्तीकरण के लिये है। 
  2. स्वयं सिद्ध स्थानीय स्व-सरकारी निकायों या प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है जबकि स्वाधार राज्यों में स्थापित आईसीडीएस इकाइयों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2