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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी अरब ने की तेल की कीमतों में वृद्धि

  • 11 Jun 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

ओपेक (OPEC)

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार पर प्राइज़ वॉर का प्रभाव, कोरोना वायरस (COVID-19) का अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब ने कच्चे तेल (Crude Oil) के निर्यात के लिये कीमतों में कम-से-कम बीते दो दशकों में सर्वाधिक वृद्धि की है। 

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन’ (Organization of the Petroleum Exporting Countries-OPEC) और रूस समेत इसके अन्य सहयोगी देशों ने जुलाई माह के अंत तक कच्चे तेल के उत्पादन में रिकॉर्ड कटौती जारी रखने का निर्णय लिया था। 

तेल की कीमतों में वृद्धि के निहितार्थ

  • सऊदी अरब के इस निर्णय का प्रभाव एशिया (Asia) के निर्यात पर देखने को मिलेगा, क्योंकि यह सऊदी अरब के प्रमुख उत्पादक सऊदी अरामको (Saudi Aramco) के सबसे बड़े क्षेत्रीय बाज़ारों में से एक है।
  • कीमतों में इतनी अधिक वृद्धि यह बताती है कि सऊदी अरब अप्रैल माह में कच्चे तेल की कीमतों में हुई तेज़ गिरावट के बाद तेल बाज़ार को चालू करने के लिये अपने सभी उपकरणों का उपयोग कर रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि मध्य पूर्व में एक कीमत निर्धारक के रूप में सऊदी अरब द्वारा की गई आधिकारिक मूल्य वृद्धि क्षेत्र के अन्य उत्पादकों को भी इस ओर प्रेरित करेगी।
  • हालाँकि कई तेल शोधनकर्त्ताओं (Oil Refiners) ने सऊदी अरब द्वारा बढाई गई कीमतों के कारण ईंधन में कच्चे तेल की प्रोसेसिंग से होने वाले मुनाफे पर प्रभाव पड़ने को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।

उत्पादन में कटौती

  • सउदी और रूस के नेतृत्त्व में कच्चे तेल के उत्पादन में अभूतपूर्व कटौती ने मई माह में कीमतों को बढ़ाने और कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण प्रभावित तेल बाज़ार को पुनः पटरी पर लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • इसे देखते हुए ओपेक (OPEC) और रूस समेत अन्य सहयोगी देशों ने जुलाई माह में भी कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती जारी रखने का निर्णय लिया है।
  • उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर जारी लॉकडाउन में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा धीरे-धीरे छूट दी जा रही है, जिससे जुलाई माह में तेल की मांग बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है, किंतु ओपेक (OPEC) के समक्ष अभी एक बड़ी चुनौती मार्च माह में जमा हुए अतिरिक्त 1 बिलियन बैरल तेल को समाप्त करना है।
  • कई विश्लेषकों का मानना है कि ओपेक (OPEC) और उसके सहयोगी देशों द्वारा तेल के उत्पादन में कटौती करने का निर्णय ओपेक (OPEC) देशों को अपने अतिरिक्त तेल भंडार को समाप्त करने में मदद करेगा।

‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’ 

(Organization of the Petroleum Exporting Countries-OPEC)

  • OPEC एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन 10-14 सितंबर, 1960 को आयोजित बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला ने किया था।
  • इन पाँच संस्थापक सदस्यों के बाद इसमें कुछ अन्य सदस्यों को शामिल किया गया, ये देश हैं-
  • कतर (1961), इंडोनेशिया (1962), लीबिया (1962), संयुक्त अरब अमीरात (1967), अल्जीरिया (1969), नाइजीरिया (1971), इक्वाडोर (1973), अंगोला (2007), गैबन (1975), इक्वेटोरियल गिनी (2017) और कांगो (2018)
  • वर्तमान में इस संगठन में सदस्य देशों की संख्या 13 है।
  • इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और  एकीकरण करना तथा उपभोक्ता को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है। 

स्रोत: द हिंदू

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