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भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार

  • 22 Sep 2025
  • 91 min read

प्रिलिम्स के लिये: विश्व बैंक, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, भारतीय खाद्य निगम, पोषण अभियान 

मेन्स के लिये: भारत में खाद्य सुरक्षा: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और सुधार, पोषण और हिडन हंगर

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

क्रिसिल द्वारा 'थाली सूचकांक' का उपयोग करते हुए किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि 50% ग्रामीण और 20% शहरी भारतीय एक दिन में दो समय का संतुलित भोजन नहीं कर सकते हैं, जिससे व्यापक रूप से खाद्यान्न अभाव का पता चलता है। यह वर्ष 2024 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण पर आधारित विश्व बैंक की पावर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ के विपरीत है, जो दावा करता है कि अत्यधिक निर्धनता वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर 2022-23 में 2.3% हो गई है। 

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के समर्थन के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न अभाव 40% तथा शहरी क्षेत्रों में 10% बना रहा, जो आय-आधारित निर्धनता अनुमानों की तुलना में अधिक गहरी खाद्य असुरक्षा को दर्शाता है। 

थाली सूचकांक 

  • केवल कैलोरी या आय पर आधारित पारंपरिक निर्धनता मापों के विपरीत, ‘थाली सूचकांक’ दृष्टिकोण यह आकलन करके खाद्यान्न अभाव को मापता है कि क्या परिवार एक बुनियादी, संतुलित भोजन (थाली, जिसमें चावल, दाल, रोटी, सब्ज़ियाँ, दही और सलाद शामिल हैं) का व्यय वहन करने की क्षमता रखता है। 
  • यह केवल कैलोरी नहीं बल्कि पोषण और तृप्ति दोनों को दर्शाता है। यह छिपी हुई वंचना को उजागर करता है, क्योंकि कई परिवारों के लिये आधिकारिक निर्धनता दर कम होने के बावजूद दिन में दो थाली भी वहन करना संभव नहीं है। 
  • यह दृष्टिकोण प्राथमिक खाद्य उपभोग में समानता को बढ़ावा देने के लिये PDS के पुनर्गठन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्राथमिक खाद्य उपभोग में समानता को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पुनर्गठन की आवश्यकता क्यों है? 

  • वर्तमान PDS की सीमाएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सभी आय वर्गों में अनाज की खपत को समान बनाने में सफल रही है। हालाँकि PDS मुख्य रूप से चावल और गेहूँ प्रदान करता है, जिनमें कैलोरी तो अधिक होती है, लेकिन प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्त्व कम होते हैं। इससे भूख तो कम लगती है, लेकिन संतुलित पोषण नहीं मिलता। 
  • दलहनों की खपत में अंतर: एक स्वस्थ आहार के लिये केवल कैलोरी ही नहीं, बल्कि प्रोटीन, विटामिन और खनिज भी आवश्यक हैं। दलहन, जो प्राय: निर्धन के लिये प्रोटीन का एकमात्र स्रोत होती हैं, सब्सिडी के बिना उनकी पहुँच से बाहर रहती हैं। 
    • परिणामस्वरूप, ग्रामीण क्षेत्रों के सबसे निर्धन 5% परिवार, सबसे संपन्न 5% परिवारों की तुलना में केवल आधी दलहनों का उपभोग करते हैं, जो लागत बाधाओं के कारण उत्पन्न गंभीर पोषण संबंधी अंतर को उजागर करता है। 
  • सब्सिडी का गलत उपयोग: ग्रामीण भारत में, शीर्ष 10% उपभोग वर्ग के व्यक्तियों को सबसे निर्धन 5% लोगों को मिलने वाली सब्सिडी का 88% तक प्राप्त होता है। 
    • यह समूह सबसे निर्धन लोगों की तुलना में भोजन पर तीन गुना अधिक व्यय करता है, फिर भी PDS सब्सिडी से लाभ उठाता रहता है, जो लीकेज और गलत आवंटन को दर्शाता है। 
    • शहरी क्षेत्रों में, यद्यपि प्रणाली अधिक प्रगतिशील है, फिर भी 80% लोग अभी भी PDS सब्सिडी प्राप्त करते हैं, भले ही वे ‘दो थाली’ उपभोग मानदंड से अधिक हों। 
  • राजकोषीय बोझ और संसाधन का दुरुपयोग: जनवरी 2024 में, केंद्र सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत) प्रदान की। 
    • हालाँकि, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2023-24 के आँकड़े बताते हैं कि इनमें से कई परिवार पहले से ही पर्याप्त अनाज का उपभोग कर रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर अधिकार वास्तविक आवश्यकता को नहीं दर्शाती और सार्वजनिक धनराशि की बर्बादी करती है।  
    • अधिक आवंटन से भारतीय खाद्य निगम (FCI) की खरीद, भंडारण और वितरण लागत भी बढ़ जाती है। 

भारत में उपभोग के आधार पर गरीबी से संबंधित समितियाँ 

  • कार्य समूह (1962): न्यूनतम खाद्य और गैर-खाद्य आवश्यकताओं के आधार पर परिमाणित गरीबी रेखा। वर्ष 1960-61 के मूल्यों पर प्रति व्यक्ति प्रति माह ग्रामीण (20 रुपए) और शहरी (25 रुपए) को अलग-अलग किया गया। 
  • वी.एम. दांडेकर और एन. रथ (1971): प्रति व्यक्ति 2,250 किलो कैलोरी/दिन की पूर्ति हेतु आवश्यक व्यय के आधार पर व्युत्पन्न गरीबी रेखा। 
  • वाई.के. अलघ (1979): गरीबी रेखा बुनियादी कैलोरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये  आवश्यक प्रति व्यक्ति उपभोग पर आधारित थी: ग्रामीण क्षेत्रों में 2,400 किलो कैलोरी/दिन और शहरी क्षेत्रों में 2,100 किलो कैलोरी/दिन, जो ग्रामीण परिवारों के लिये 49.09 रुपए प्रति माह तथा शहरी परिवारों के लिये 56.64 रुपए प्रति माह के अनुरूप थी (1973-74 की कीमतें)। 
  • लकड़ावाला विशेषज्ञ समूह (1993): अलघ समिति की गरीबी रेखाओं को राष्ट्रीय स्तर पर बरकरार रखा गया तथा मूल्य अंतर को दर्शाने के लिये राज्य-विशिष्ट रेखाएँ शुरू की गईं। 
  • तेंदुलकर विशेषज्ञ समूह (2009): राज्य स्तर पर ग्रामीण और शहरी गरीबी को निकालने के लिये एक ही अखिल भारतीय शहरी गरीबी रेखा का उपयोग किया गया, जो पहले अलग-अलग ग्रामीण तथा शहरी गरीबी रेखा की प्रथा के स्थान पर था। 
    • इसने कैलोरी-आधारित से लक्ष्य-आधारित पोषण परिणामों की ओर परिवर्तन की सिफारिश की तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए एक समान अखिल भारतीय गरीबी रेखा की सिफारिश की। 
  • रंगराजन समिति (2014): खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को शामिल करते हुए उपभोग बास्केट के साथ अलग-अलग ग्रामीण और शहरी गरीबी रेखाएँ पुनः लागू की गईं। 
    • गरीबी रेखा का अनुमान शहरी क्षेत्रों में 1407 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में 972 रुपए प्रति व्यक्ति मासिक व्यय के रूप में लगाया गया है। सरकार ने इस रिपोर्ट को आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है।

पोषण-संवेदनशील PDS को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं? 

  • लक्षित लाभार्थियों की सही पहचान: उन परिवारों की पहचान करना कठिन है जो वास्तव में "प्रतिदिन दो थाली" के मानदंड से कम भोजन करते हैं। 
    • इसमें बहिष्करण त्रुटियों (निर्धन परिवारों का छूट जाना) और समावेशन त्रुटियों (अच्छी स्थिति वाले परिवारों को लाभ मिलना) का उच्च जोखिम रहता है। 
  • अनाज अनुदान कम करने में राजनीतिक संवेदनशीलता: कई परिवार, जिनमें मध्यम वर्ग और समृद्ध स्थिति वाले समूह भी शामिल हैं, वर्तमान में सब्सिडी वाले चावल तथा गेहूँ का लाभ उठा रहे हैं। 
    • उनके अधिकारों में कटौती या उन्हें समाप्त करने से राजनीतिक प्रतिरोध और सार्वजनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है। 
  • दालों की खरीद और वितरण: चावल तथा गेहूँ के विपरीत, दालों का उत्पादन कम मात्रा में होता है, इनकी कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव होता है एवं इनके भंडारण के लिये बेहतर सुविधाओं की आवश्यकता होती है। 
    • PDS के माध्यम से उनकी खरीद और वितरण को बढ़ाना तार्किक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा। 
  • वित्तीय स्थिरता: दालों पर सब्सिडी बढ़ाने के साथ-साथ अनाज पर समर्थन जारी रखने से खाद्य सब्सिडी बिल पर भारी दबाव पड़ सकता है। 
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पुनर्गठन के बिना यह सरकार के लिये वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं हो सकता। 
    • सब्सिडी वाले खाद्य पदार्थ अक्सर खुले बाज़ारों में भेज दिये जाते हैं। दलहन जैसी महंगी वस्तुओं को शामिल करने से कालाबाज़ारी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। 
  • प्रशासनिक और निगरानी क्षमता: पोषण-संवेदनशील PDS को लागू करने के लिये विश्वसनीय डेटा सिस्टम, डिजिटल ट्रैकिंग तथा मज़बूत निगरानी की आवश्यकता होती है। 
    • कमज़ोर निगरानी से कार्यकुशलता प्रभावित होती है और लाभ वास्तव में ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाते हैं। 

न्यायसंगत एवं पौष्टिक खाद्यान्न पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है? 

  • पोषण आधारित खाद्य मानक स्थापित करना: एक "न्यूनतम संतुलित आहार" मानक निर्धारित करना (जैसे, दिन में दो थालियाँ) जिसमें अनाज, दलहन, सब्जियाँ और दुग्ध उत्पाद शामिल हों। 
    • स्थानीय आहार पैटर्न और लागत को प्रतिबिंबित करने के लिये इसे क्षेत्र-विशिष्ट बनाइये। 
    • जैसा कि तेंदुलकर समिति (2009) ने सिफारिश की थी, गरीबी का आकलन कैलोरी मानदंडों से आगे बढ़कर व्यापक उपभोग की श्रेणी में होना चाहिये, जिसमें भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा शामिल हों। 
  • आवश्यकता के आधार पर सब्सिडी का लक्ष्य निर्धारित करना: पोषण मानक से नीचे के परिवारों की पहचान करने के लिये नवीनतम HCES डेटा को अद्यतन करना और उसका उपयोग करना। 
    • सबसे अधिक वंचितों को पूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सहायता प्रदान करना तथा मानक से ऊपर वाले लोगों के लिये सब्सिडी को कम या समाप्त करना। 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दालों को शामिल करने का विस्तार: प्रोटीन की कमी को दूर करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रमुख दलहन (अरहर, मूँग, चना) का वितरण बढ़ाया जाए। कम प्रोटीन सेवन वाले निम्न-आय वाले परिवारों के लिये आपूर्ति को प्राथमिकता दें और खरीद को न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा बफर स्टॉकिंग तकनीक से जोड़ा जाए। 
  • अत्यधिक अनाज आवंटन में कटौती: जहाँ खपत पहले से ही लक्षित स्तर तक पहुँच चुकी है, वहाँ अनाज के कोटे में कटौती करें। इससे होने वाली बचत का उपयोग खाद्य टोकरी में विविधता लाने और पोषण स्तर सुधारने के लिये करें। 
  • पायलट और धीरे-धीरे विस्तार: राज्य स्तर पर पायलट परियोजना लागू करना, पोषण, वित्तीय लागतों तथा आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभावों की निगरानी करना, फिर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना। 
  • बेहतर लक्ष्य निर्धारण हेतु तकनीक का उपयोग: पारदर्शिता में सुधार तथा लीकेज को कम करने के लिये डिजिटल राशन कार्ड, आधार लिंकिंग और वास्तविक समय डेटा का उपयोग करना। 
    • दलहन और विविध आहारों के उपयोग को बढ़ाने के लिये लाभार्थियों के बीच पोषण साक्षरता को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

एक सुधारित और पोषण-केंद्रित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) भारत के अप्रत्यक्ष कुपोषण के अंतर को पाटने के लिये अत्यंत आवश्यक है। भविष्य की योजनाओं में रणनीतिक लक्ष्य निर्धारण, वित्तीय समझदारी तथा आहार विविधता को प्राथमिकता देनी चाहिये। भोजन की समानता केवल वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पोषण के माध्यम से गरिमा प्रदान करने का माध्यम भी है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. लगभग सार्वभौमिक कैलोरी पर्याप्तता के बावजूद, भारत गंभीर पोषण असमानता का सामना कर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और कार्यान्वयन हेतु एक संक्षिप्त रोडमैप प्रस्तावित कीजिये।

UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।  
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।  
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।  
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 1, 2 और 3 

(c) केवल 1, 2 और 4 

(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a) 

प्रश्न.2 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL)' की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।  
  2. राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से घर की सबसे बड़ी महिला, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, घर की मुखिया होगी।  
  3. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद छह महीने तक प्रति दिन 1600 कैलोरी का 'टेक-होम राशन' मिलता है 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 2 

(c) केवल 1 और 3 

(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: खाद्य सुरक्षा बिल से भारत में भूख व कुपोषण के विलोपन की आशा है। उसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये। साथ ही यह भी बताइये कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इससे कौन-सी चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं? (2013) 

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