हिंदी साहित्य: पेन ड्राइव कोर्स
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सहूलियत

  • 23 Feb 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पहली बार गैर-बैंकिंग उधारदाताओं को उनके कार्य संचालन में सहूलियत देने के लिये महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए।

  • केंद्रीय बैंक द्वारा अपनी वर्तमान त्रिस्तरीय संरचना में परिवर्तन करके इन कंपनियों को एकल श्रेणी प्रदान की गई।
  • साथ ही केंद्रीय बैंक ने यह भी निर्णय लिया है कि कोर निवेश कंपनियों को छोड़कर सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Company-NBFC) का उनके क्रेडिट रेटिंग के अनुसार भारित जोखिम का भी खुलासा किया जाएगा।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लिये गए दोनों निर्णयों की घोषणा पहली बार अंतिम द्विमासिक समीक्षा में मौद्रिक नीति की विकास और विनियामक नीतियों पर दिये गए अपने बयान के तहत की गई थी।
  • इस अधिसूचना में कहा गया है कि NBFC के परिचालन को अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिये इनकी संस्था को नियमन के बजाय गतिविधि सिद्धांत के आधार पर तैयार किया जाएगा।
  • एसेट फाइनेंस कंपनियों, ऋणदाता कंपनियों और निवेशक कंपनियों को एक साथ मिलाकर ‘गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निवेश और क्रेडिट कंपनी’ (NBFC-ICCs) के नाम से एक नई श्रेणी प्रदान की गई है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी
Non Banking Financial Company

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत है और जिसका मुख्य काम उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न तरीकों से वित्तीय मध्‍यस्‍थता का कार्य करता है जैसे -
  • जमा स्‍वीकार करना।
  • ऋण और अग्रिम देना।
  • प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना।
  • अंतिम व्यय कर्त्ता को उधार देना।
  • थोक और खुदरा व्यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

स्रोत – द हिंदू, इकोनॉमिक टाइम्स

एसएमएस अलर्ट
Share Page