प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 10 जून से शुरू :   संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 05 मई

  • 05 May 2018
  • 9 min read

राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र

हाल ही में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा नई दिल्‍ली में राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र (National Water Informatics Centre - NWIC) का निर्माण किया गया है। NWIC राष्‍ट्र व्‍यापी जल संसाधन डेटा का एक संग्राहक होगा और यह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के एक अधीनस्‍थ कार्यालय के रूप में काम करेगा। इस केंद्र का प्रमुख संयुक्‍त सचिव स्‍तर का एक अधिकारी होगा।

  • जल संसाधनों का प्रबंधन एक अत्‍यंत जटिल एवं कठिन कार्य है, जिसमें बहु विषयक ज्ञान क्षेत्रों की विशेषज्ञता की ज़रूरत पड़ती है और यह ऐतिहासिक एवं वास्‍तविक समय वाले विश्‍वसनीय डेटा एवं सूचनाओं पर निर्भर रहता है।
  • इसके लिये पहली आवश्‍यकता यह है कि एक व्‍यापक ‘जल संसाधन सूचना प्रणाली (Water Resources Information System - WRIS) को विकसित कर उसका समुचित रख-रखाव एवं नियमित अद्यतन सार्वजनिक तौर पर किया जाए, ताकि जल संसाधनों के कारगर एकीकृत प्रबंधन के लिये जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ सभी संब‍ंधित हितधारकों को इसमें शामिल किया जा सके।
  • यह वैज्ञानिक आकलन, निगरानी, प्रतिरूपण एवं निर्णय समर्थन प्रणाली (Decision Support System - DSS) और एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated water resource Management) के लिये भी पहली आवश्‍यकता है।
  • इसे ध्‍यान में रखते हुए एनडब्‍ल्‍यूआईसी द्वारा जल संसाधनों एवं संबंधित विषयों (थीम) पर अद्यतन डेटा का ‘एकल खिड़की’ (Single Window) स्रोत मुहैया कराए जाने की आशा है।
  • इसके साथ ही NWIC द्वारा इसके प्रबंधन एवं सतत् विकास के लिये सभी हितधारकों को मूल्य वर्द्धित उत्‍पाद एवं सेवाएँ मुहैया कराने जाने की उम्‍मीद है।
  • यह केंद्र जल एवं जल विज्ञान संबंधी चरम या भीषण स्थिति से निपटने हेतु आपातकालीन उपाय करने वाले अन्‍य केंद्रीय एवं राज्‍य संगठनों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रमुख अनुसंधान संस्‍थानों के साथ सहयोग करेगा।

डकोटा डीसी 3 वीपी 905

हिंडन एयर फोर्स स्टेशन पर आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में नवीनीकृत डकोटा विमान को औपचारिक रूप से भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया। इस विमान को चार दशक से भी अधिक समय पहले वायु सेना से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

  • अब इसे नया नाम "परशुराम" देकर पुन: लाया गया है।
  • इस डकोटा डीसी-3 वीपी-905 विमान को कबाड़ से खरीदकर ब्रिटेन में नवीनीकृत कराया गया है।
  • ब्रिटेन से भारत की यात्रा ने इस विमान की विश्वसनीयता और मजबूती को साबित कर दिया है।
  • 1947 के युद्ध के अलावा 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के लिये अहम भूमिका निभाने वाला डकोटा फायटर जेट एक बार फिर से वायुसेना में शामिल होने जा रहा है। 

कॉन्टैक्ट लेंस में सुपरमैन की अद्भुत शक्ति

ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज के शोधकर्त्ताओं द्वारा एक ऐसा कॉन्टैक्ट लेंस विकसित किया गया है जिसे पहनने से आँखों से रोशनी की किरणें निकलने लगेंगी। नेचर कम्यूनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन-पत्र के अनुसार विशेषज्ञों द्वारा बेहद बारीक स्टिकर तैयार किये गए हैं, जिन्हें कॉन्टैक्ट लेंस पर लगाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। 

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, महान दार्शनिक प्लेटो का मानना था कि आँखों की बीम दृश्य धारणा की मध्यस्थता करती है। इस बीम के ज़रिये पर्यावरण की जाँच की जा सकती है।
  • प्लेटो की धारणा को ध्यान में रखते हुए शोधकर्त्ताओं द्वारा आँखों में पहने जा सकने वाले यह उपकरण तैयार किया गया है, जिसकी सहायता से कोई भी व्यक्ति अपनी आँखों से लेज़र बीम छोड़ सकता है।
  • यह लेज़र तकरीबन 20 इंच की दूरी तक छोड़ी जा सकती है। इस रोशनी को डिजिटल 0 और 1 के साथ एनकोड किया जा सकता है, जिससे इसे रोशनी आधारित बारकोड में तब्दील किया जा सकता है। इस तकनीक के इस्तेमाल से सुरक्षा स्कैनरों की जाँच की जा सकती है।
  • इस कॉन्टैक्ट लेंस में इस्तेमाल की गई फिल्म किसी स्मार्टफोन स्क्रीन की तरह होती है, जो रोशनी के संपर्क में आते ही उसके पिक्सेल को सक्रिय कर देती है।
  • कॉन्टैक्ट लेंस स्टिकर के पॉलिमर पर तेज़ रोशनी पड़ते ही फ्लूरोसेंस की तरह चमकने लगते हैं, जिससे लेज़र को रोशनी मिल जाती है। यह अध्ययन हुआ है।

पश्चिमी घाटों में साँप की नई प्रजाति

तमिलनाडु के कोयंबटूर ज़िले में अनाकाटी (Anaikatty) पहाड़ियों के जंगलों में साँप की एक नई प्रजाति की खोज की गई। 40 सेमी. लंबा और चमकदार भूरे रंग के इस नए साँप को Uropeltis bhupathyi नाम दिया गया है। इसे यह नाम स्वर्गीय सरीसृप विज्ञानवेत्ता एस. भूपति के नाम पर दिया गया है।

  • यह सरीसृप केवल प्रायद्वीपीय भारत और श्रीलंका में पाए गए साँपों के परिवार से संबंधित है।
  • ये गैर-विषैले होते हैं और अधिकतर बुरोइंग (burrowing) और केंचुए खाते हैं। इनकी लंबी और सपाट पूंछ के कारण इन्हें shieldtails कहा जाता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस नई प्रजाति में 200 से अधिक तुला अर्थात् scales हैं।
  • scales मछलियों और सरीसृपों की त्वचा की रक्षा करने वाली छोटी, पतली सींग के जैसी या हड्डी वाली परत जो आमतौर पर एक-दूसरे को ओवरलैप करती है। यह इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता है।
  • यह खोज पत्र जुटाक्स (Zootaxa) नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ। इस खोज के बाद shieldtails की ज्ञात प्रजातियों की संख्या 41 हो गई है।
  • भारत में 300 से अधिक साँप की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। आण्विक फाईलोजेनेटिक्स (molecular phylogenetics) अर्थात् डीएनए-आधारित अध्ययन और समर्पित क्षेत्र सर्वेक्षणों (dedicated field surveys) के आगमन ने इस प्रकार की खोजों में एक बड़ी भूमिका निभाई है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इस साँप की खोज बहुत पहले की जा चुकी थी, लेकिन उस समय तक इन्हें शील्डटेल की एक सामान्य प्रजाति माना जा रहा था, लेकिन इस विषय में किये गए अध्ययनों और शोध में यह बात सामने आई कि यह साँप की एकदम अलग प्रजाति है, जो पहली बार दुनिया के सामने आई है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2