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सामाजिक न्याय

उड़ीसा में अनुसूचित जाति एवं जनजातीय क्षेत्र

  • 02 Mar 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

ओडिशा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान द्वारा तैयार किये गए मानचित्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

ओडिशा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (Odisha Scheduled Caste and Scheduled Tribe Research and Training Institute- SCSTRTI) द्वारा ऐसे संभावित क्षेत्रों का एक मानचित्र तैयार किया गया है, जहाँ ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ [Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006] लागू किया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:

  • 27 फरवरी, 2020 को केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री द्वारा भुवनेश्वर में जारी किये गए मानचित्र में 27,818.30 वर्ग किमी. क्षेत्र को चिह्नित किया गया है जहाँ सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resources- CFR) अधिकारों को मान्यता दी जा सकती है।
  • इस मानचित्र के अनुसार, 7,921.36 वर्ग किमी. क्षेत्र को व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR) के रूप में मान्यता दी जा सकती है।

CFR और IFR:

  • CFR अधिकारों पारंपरिक वन सीमाओं के आधार पर सभी ग्राम सभाओं को प्राप्त होते हैं।
  • वन भूमि का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को IFR संबंधी अधिकार प्राप्त होते हैं, इसके अंतर्गत आने वाली भूमि का क्षेत्रफल चार हेक्टेयर से अधिक नहीं हो सकता है।
  • यह दोनों अधिकार ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ से लिये गए हैं।
  • सितंबर 2019 में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, CFR अधिकारों के लिये केवल 951.84 वर्ग किमी. और IFR के लिये 2,600.27 वर्ग किमी. क्षेत्र को मान्यता दी गई है।
  • इस मानचित्र में वन क्षेत्र की पहचान के लिये वर्ष 1999 के ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ की रिपोर्ट और जनगणना 2001 के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है।

लाभ:

यह नीति निर्माताओं और वन आश्रित समुदायों को इस बात का आकलन करने करने में सहायता करेगा कि यह कानून किस हद तक लागू किया गया है।

इस नए अनुमान में ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ की मान्यता की योजना एवं प्रभावी कार्यान्वयन के लिये एक आधार रेखा की पेशकश की गई है।

मानचित्र के लिये किया गया शोध:

  • इस मानचित्र संबंधी शोध को ओडिशा SCSTRTI द्वारा ‘वसुंधरा’ नामक एक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  • वर्ष 2014 में SCSTRTI ने मयूरभंज जिले में संभावित FRA क्षेत्रों के लिये एक पायलट अध्ययन का निष्पादन किया और निष्कर्ष प्रस्तुत किया। वर्ष 2015 में इस संबंध में सभी राज्यों से अध्ययन की मांग की गई थी परंतु अभी तक केवल ओडिशा ने ही अपना कार्य पूर्ण किया है।
  • ओडिशा में कई रियासतें थीं। स्वतंत्रता के बाद वनवासियों के अधिकारों का निपटान के लिये उनकी वन भूमि को आरक्षित या संरक्षित वनों के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ ने इनके खिलाफ होते आए ऐतिहासिक अन्याय को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006:

  • वनों में रहने वाले कई आदिवासी परिवारों की विषम जीवन स्थिति को दूर करने के लिये अनुसूचित जाति एवं अन्‍य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 का ऐतिहासिक कानून अमल में लाया गया है।
  • इस कानून को वनों में रहने वाले अनुसूचित जातियों एवं अन्‍य पारंपरिक वन निवासियों को उनका वाज़िब अधिकार दिलाने के लिये जो पीढि़यों से जंगलों में रह रहे हैं लेकिन जिन्‍हें वन अधिकारों तथा वन भूमि में आजीविका से वंचित रखा गया है, लागू किया गया है।
  • इस अधिनियम में न केवल आजीविका के लिये, स्‍व–कृषि या निवास के लिये व्‍यक्ति विशेष को वन भूमि में रहने के अधिकार का प्रावधान है बल्कि यह वन संसाधनों पर उनका नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये कई अन्‍य अधिकारों का भी प्रावधान करता है।
  • इनमें स्‍वामित्‍व का अधिकार, संग्रह तक पहुँच, लघु वन उत्पाद का उपयोग व निपटान, अन्य सामुदायिक अधिकार, आदिम जनजातीय समूहों तथा कृषि समुदायों के लिये निवास के अधिकार, ऐसे किसी सामुदायिक वन संसाधन जिसकी वे ठोस उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से सुरक्षा या संरक्षण करते रहे हैं, के पुनर्निर्माण या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है।
  • इस अधिनियम में ग्राम सभाओं की अनुशंसा के साथ विद्यालयों, चिकित्‍सालयों, उचित दर की दुकानों, बिजली तथा दूरसंचार लाईनों, पानी की टंकियों आदि जैसे सरकार द्वारा प्रबंधित जन उपयोग सुविधाओं के लिये वन उत्पाद के उपयोग संबंधी प्रावधान भी हैं।
  • इसके अतिरिक्‍त जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी लोगों के लाभ के लिये कई योजनाएँ भी क्रियान्वित की गई हैं।
  • इनमें वन क्षेत्रों के लिये ‘न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य’ के जरिये लघु वन उत्पादों के विपणन के लिये एक तंत्र तथा वैल्‍यू चैन के विकास जैसी योजनाएँ भी शामिल हैं।
  • वन ग्रामों के विकास के लिये सड़क, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा, लघु सिंचाई, वर्षा जल, पीने का पानी, स्‍वच्‍छता, समुदाय हॉल जैसी बुनियादी सेवाओं तथा सुविधाओं से संबंधित ढाँचागत कार्यों के लिये जनजातीय उप योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये विशेष केंद्रीय सहायता से फंड जारी किये जाते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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