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भारतीय अर्थव्यवस्था

नगर निगम बॉण्ड

  • 04 Dec 2020
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लखनऊ नगर निगम (Lucknow Municipal Corporation) ने 200 करोड़ रुपए के बॉण्ड को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange) में सूचीबद्ध किया है।

  • लखनऊ ऐसा करने वाला भारत का नौवाँ शहर (उत्तर भारत का पहला) बन गया है, इसे आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने अमृत मिशन के तहत प्रोत्साहित किया गया है।
    • BSE भारत के साथ-साथ एशिया में भी सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है।

प्रमुख बिंदु

नगर निगम बॉण्ड :

  • नगर निगम बॉण्ड (मुनि) एक प्रकार की ऋण सुरक्षा होती है जिसे राज्य, नगर निगम या प्रबंध मंडल (County) द्वारा राजमार्गों, पुलों या स्कूलों के निर्माण जैसे कार्यों के चलते अपने पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिये जारी किया जाता है।
    • मुनि बॉण्ड के माध्यम से नगर निगम एक निर्दिष्ट ब्याज राशि पर व्यक्तियों या संस्थानों से धन जुटाता है और एक निर्धारित परिपक्वता तिथि पर मूल राशि लौटा देता है।
  • ऐसे बॉण्ड प्रायः संघीय, राज्य और स्थानीय करों से मुक्त होते हैं, जिस वजह से उच्च आय वाले लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं।

भारत में नगर निगम बॉण्ड का इतिहास:

  • भारत में 74वें संवैधानिक संशोधन द्वारा शहरी स्थानीय निकायों को विकेंद्रीकृत और स्वायत्तता देने के 5 साल बाद पहली बार 1997 में नगर निगम बॉण्ड जारी हुए थे इसके बाद नागरिकों के प्रति  निगमों की जवाबदेहिता के साथ ही उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ और इनकी पहुँच पूंजी बाज़ार तथा वित्तीय संस्थानों तक हो गई।
  • बंगलूरू, अहमदाबाद और नासिक के नगर निगमों ने 1997-2010 के बीच ऐसे बॉण्ड जारी किये लेकिन बड़ी मुश्किल से 1,400 करोड़ रुपए ही इकट्ठा हो पाए।
  • निवेशकों के आकर्षण में कमी का प्रमुख कारण बॉण्ड की व्यापारिक दक्षता और नियामक स्पष्टता में कमी थी।
  • मार्च 2015 में सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने नगर निगम बॉण्डों को जारी और सूचीबद्ध करने के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये, इससे उनकी नियामक स्थिति स्पष्ट हुई और इन्हें निवेशकों के लिये सुरक्षित माना गया।
  • 2017 में पुणे नगर निगम ने अपनी 24x7 जल आपूर्ति परियोजना के वित्तपोषण के लिये मुनि बॉण्ड के माध्यम से 7.59% ब्याज पर 200 करोड़ रुपए  जुटाए।
    • देश में उस समय सबसे बड़े नगर निगम बॉण्ड कार्यक्रम से 5 साल में 2,264 करोड़ रुपये जुटाने की योजना थी।

नगर निगम बॉण्ड बाज़ार का महत्त्व:

  • नगर निगम राजस्व का एकमात्र प्रमुख स्रोत संपत्ति कर होने के कारण यह बॉण्ड शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies) को बजटीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिये राजस्व जुटाने में मदद कर सकता है।
  • भारत के बड़े शहरों और कस्बों के खराब हो रहे आधारभूत संरचना लिये नगर पालिका बॉण्ड बाज़ार का विकास किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
  • स्मार्ट शहर और अमृत जैसी केंद्रीय परियोजनाओं की सफलता के लिये भी नगर निकायों का आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है।

निवेशकों के लिये नगर निगम बॉण्ड के लाभ:

पारदर्शिता:

  • जनता को जारी किये जाने वाले नगर निगम बॉण्ड का मूल्यांकन CRISIL (Credit Rating Information Services of India Limited) जैसी प्रसिद्ध एजेंसियों द्वारा किया जाता है, जिससे निवेशकों को निवेश विकल्पों से संबंधित पारदर्शिता की सुविधा उपलब्ध हो पाती है।

कर लाभ:

  • भारत में यदि निवेशक कुछ निर्धारित नियमों के अनुरूप निवेश करते हैं तो  नगर निगम बॉण्ड को कराधान से छूट दी जाती है। इसके अलावा निवेश पर मिलने वाले ब्याज दरों को भी कराधान से छूट दी जाती है।

न्यूनतम जोखिम:

  • नगर निगम के प्राधिकारियों द्वारा इन प्रतिभूतियों में न्यूनतम जोखिम को शामिल करने के बाद नगर निगम बॉण्ड को जारी किया जाता है।
    • सरकारी बॉण्ड को आमतौर पर कम जोखिम वाले निवेश के रूप में देखा जाता है क्योंकि सरकार के ऋण के भुगतान में चूक की संभावना कम होती है।

चुनौतियाँ:

  • निवेशकों के भरोसे और आत्मविश्वास में कमी: शहरी एजेंसियों की कमज़ोर वित्तीय स्थिति, खराब अभिशासन और प्रबंधन से  बॉण्ड जारी करने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है जिसने निवेशकों के भोरेसे तथा आत्मविश्वास को कम किया है।
  • प्रामाणिक वित्तीय डेटा की अनुपलब्धता: प्रामाणिक वित्तीय डेटा उपलब्ध नहीं होने से निवेशकों को स्थानीय निकायों पर संदेह होने लगता है।
  • अन्य मुद्दे: शहरी एजेंसियों की जवाबदेहिता और स्वायत्तता में कमी के कारण एक उचित वातावरण का अभाव बना रहता है।

आगे की राह

  • कोरोना वायरस महामारी के कारण राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है, जिससे शहरी स्थानीय निकायों के वित्तपोषण में भी बाधा उत्पन्न हुई है। हालाँकि ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ पैकेज के तहत राज्य सरकारों को उनके द्वारा किये गए सुधारों के आधार पर अधिक उधार प्राप्त करने की छूट देने की पेशकश की गई है।
  • अभी भी अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों के पास धन जुटाने, लेखांकन प्रणाली और विश्वसनीय परियोजनाओं को प्रभावी रूप से संचालित करने के लिये संस्थागत एजेंसी नहीं है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 15वें वित्त आयोग में सूचीबद्ध सुधारों (जो शहरी स्थानीय निकायों के लिये यह अनिवार्य बनाते हैं कि वे अनुदान वितरण को अपने लेखा परीक्षण खातों के साथ जोड़ें) को लागू किया जाना चाहिये।
  • ULBs की पारदर्शिता से उनकी ऋण दक्षता बढ़ेगी,साथ ही मुनि बॉण्ड  के कार्यान्वयन में सुधार होगा, जिससे वे आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बुनियादी ढाँचे के निर्माण में योगदान कर पाएंगे।

स्रोत: पी.आई.बी.

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