दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


मुख्य परीक्षा

न्यायपालिका राष्ट्रपति और राज्यपालों पर समय-सीमा लागू नहीं कर सकती: सर्वोच्च न्यायालय

  • 25 Nov 2025
  • 60 min read

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 5 न्यायाधीशोंकी संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत 16वें प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर अपनी सलाह दी है।

  • न्यायालय ने कहा कि राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति के लिये वह कोई न्यायिक समय-सीमा निर्धारित नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसी समय-सीमाएँ संघवाद के सिद्धांतों और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध होंगी।
  • यह संदर्भ उस निर्णय से उत्पन्न हुआ जो तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल (अप्रैल 2025) मामले में दिया गया था, जिसमें लंबित विधेयकों पर संवैधानिक स्वीकृति के लिये समय-सीमाएँ और ‘अनुमानित स्वीकृति’ (Deemed Assent) का प्रावधान निर्धारित किया गया था।

16वें प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर SC के निर्णय के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • न्यायिक रूप से निर्धारित समय-सीमा नहीं: न्यायालय ने माना कि न तो राज्यपाल (अनुच्छेद 200 के तहत) और न ही राष्ट्रपति (अनुच्छेद 201 के तहत) विधेयकों को स्वीकृति देने या रोकने के लिये निश्चित, न्यायालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा के अधीन हैं, क्योंकि ऐसा करना न्यायिक अतिक्रमण के समान होगा तथा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 200 और 201 में कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है और "जितनी जल्दी हो सके (As soon as possible)" वाक्यांश की व्याख्या सख्त या लागू करने योग्य समय-सीमा के रूप में नहीं की जा सकती।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “लंबी, अस्पष्टीकृत और अनिश्चित निष्क्रियता” की न्यायपालिका द्वारा समीक्षा की जा सकती है तथा ऐसे मामलों में न्यायालय राज्यपाल को कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है, लेकिन कोई समय सीमा निर्धारित किये बिना या निर्णय की योग्यता की जाँच किये बिना।
  • ‘अनुमानित स्वीकृति (Deemed Assent)’ असंवैधानिक है: न्यायालय ने यह विचार स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया कि यदि राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी निर्धारित अवधि में कोई कार्रवाई नहीं करते तो विधेयक स्वतः कानून बन जाएगा (यानी deemed assent मिल जाएगा)
    • न्यायालय ने कहा कि अनुमानित स्वीकृति का संविधान में कोई आधार नहीं है और अनुच्छेद 142 का उपयोग करके ऐसा प्रावधान बनाना अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे न्यायपालिका राज्यपाल या राष्ट्रपति की भूमिका अपने हाथ में ले लेगी जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
  • राष्ट्रपति के लिये अनिवार्य रूप से सर्वोच्च न्यायालय की सलाह लेना आवश्यक नहीं: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रत्येक आरक्षित विधेयक पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत अनिवार्य रूप से न्यायालय की राय लेने की ज़रूरत नहीं है।
    • अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति अपनी संवैधानिक संतुष्टि के आधार पर स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है।

राज्य विधानमंडल द्वारा विधेयक पारित करने के बाद राज्यपाल और राष्ट्रपति की क्या भूमिका होती है?

राज्यपाल की भूमिका (अनुच्छेद 200)

  • राज्य विधानमंडल द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बाद उसे अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के पास भेजा जाता है।
  • राज्यपाल निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
    • स्वीकृति प्रदान करना: राज्यपाल विधेयक को मंज़ूरी दे सकता है, जिससे यह कानून बन जाएगा। 
    • स्वीकृति रोकना: राज्यपाल के पास विधेयक पर स्वीकृति देने से इंकार करने का अधिकार है। 
    • विधेयक को पुनर्विचार के लिये वापस भेजना (धन विधेयक को छोड़कर): राज्यपाल विधेयक को आगे की समीक्षा और पुनर्विचार के लिये राज्य विधानमंडल को वापस भेज सकता है।
      • यदि विधानमंडल पुनर्विचार के बाद विधेयक को पुन: पारित कर देती है तो राज्यपाल के पास केवल दो विकल्प रहते हैं: या तो वह अपनी स्वीकृति दे या उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करे। इस चरण में राज्यपाल के पास पुनः स्वीकृति रोकने का अधिकार नहीं होता।
    • राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षण: कुछ मामलों में राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये आरक्षित कर सकता है, विशेषकर जब विधेयक राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों से संबंधित हों या केंद्र के कानूनों से असंगति या विरोध उत्पन्न करता हो।

राष्ट्रपति की भूमिका (अनुच्छेद 201)

  • जब किसी विधेयक को राज्यपाल द्वारा आरक्षित किया जाता है तो वह अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति निम्नलिखित कर सकते हैं:
    • स्वीकृति प्रदान करना: राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति देकर उसे कानून बना सकता है।
    • स्वीकृति रोकना: राष्ट्रपति चाहे तो विधेयक को स्वीकृति देने से इंकार कर सकता है।
    • विधेयक को पुनर्विचार के लिये वापस भेजना: गैर-धन विधेयकों में, यदि राष्ट्रपति स्वीकृति नहीं देता तो वह राज्यपाल को यह निर्देशित कर सकता है कि विधेयक को पुनः विचार हेतु वापस विधानमंडल को भेजा जाए।
      • विधानमंडल को छह महीनों के भीतर कार्रवाई करनी होती है। यदि विधेयक पुन: पारित किया जाता है तो इसे अंतिम स्वीकृति के लिये पुन: राष्ट्रपति को भेजना अनिवार्य होता है।
      • पुनर्विचार के बाद फिर से पारित होने पर राष्ट्रपति को अंतिम निर्णय लेना होता है और इसके लिये संविधान में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय समय-सीमा और अनुमानित स्वीकृति की अवधारणा को अस्वीकार कर संवैधानिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित करता है। यह राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों के विवेकाधिकार की रक्षा करता है, साथ ही अनुचित विलंब के विरुद्ध सीमित समीक्षा की अनुमति भी देता है। समग्र रूप से यह विधायी स्वीकृति से संबंधित शक्तियों के पृथक्करण को और सुदृढ़ करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  किसी राज्य की विधानमंडल द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बाद राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिका को विनियमित करने वाली संवैधानिक व्यवस्था की समीक्षा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. संविधान का अनुच्छेद 200 क्या है?
अनुच्छेद 200 राज्य की विधानमंडल द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बाद राज्यपाल के विकल्पों को निर्धारित करता है। इनमें शामिल हैं: स्वीकृति प्रदान करना, स्वीकृति रोकना, विधेयक वापस भेजना (धन विधेयक छोड़कर) या उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना।

2. अनुच्छेद 201 क्या है?
अनुच्छेद 201 उस स्थिति से संबंधित है जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के लिये आरक्षित किया गया हो। इसमें राष्ट्रपति के विकल्प शामिल हैं: स्वीकृति प्रदान करना, स्वीकृति रोकना या गैर–धन विधेयक को पुनर्विचार के लिये वापस भेजना।

3. क्या संविधान अनुच्छेद 200 या 201 के तहत स्वीकृति के लिये किसी समय-सीमा का उल्लेख करता है?
नहीं। संविधान कोई निर्धारित समय-सीमा नहीं बताता। केवल ‘यथाशीघ्र’ शब्द का उपयोग किया गया है, जो एक अनिवार्य अंतिम समय-सीमा नहीं है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को, राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को, भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में कौन-सी लोकसभा की अनन्य शक्ति(याँ) है/हैं ? (2022)

  1. आपात की उद्घोषणा का अनुसमर्थन करना
  2. मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करना
  3. भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना

नीचे दिये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022)

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज़्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014)

close
Share Page
images-2
images-2