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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत-अमेरिका व्यापार विवाद: मुक्त व्यापार समझौता

  • 04 Sep 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

व्यापार अधिशेष, भारत-यूरोपीय संघ, व्यापार घाटा, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौते की अवधारणा एवं भारत की विदेश व्यापार नीति से संबंधी मुद्दे, सकल घरेलू उत्पाद  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्त्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया है कि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है, जिसके साथ भारत का महत्त्वपूर्ण व्यापार अधिशेष  (Trade Surplus) है।

  • यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील (US-India mini-trade deal) को समाप्त करने से भारत को वैश्विक व्यापार पर अपने रुख की समग्र रूप से समीक्षा करने का अवसर प्राप्त होगा।

प्रमुख बिंदु 

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
    • FTA के बारे में:
      • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु  किया गया एक समझौता है।  इसके तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है जिसके तहत दोनों देशों के मध्य उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ता हो जाता है। 
      • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
    • भारत तथा मुक्त व्यापार समझौते:
      • नवंबर 2019 में भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर होने के बाद, 15 सदस्यीय FTA समूह जिसमें जापान, चीन और ऑस्ट्रेलिया, FTA शामिल हैं, भारत के लिये निष्क्रिय हो गया।
      • लेकिन मई 2021 में यह घोषणा हुई कि भारत-यूरोपीय संघ की वार्ता, जो 2013 से रुकी हुई थी, फिर से शुरू की जाएगी। इसके बाद खबर आई कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों के साथ भी FTAs चर्चा के विभिन्न चरणों में हैं।
  • यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील के बारे में :
    • भारत की मांग :
      • सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) के तहत कुछ खास घरेलू उत्पादों पर निर्यात लाभ बहाल करने की मांग की गई है।
      • कृषि, ऑटोमोबाइल, ऑटो और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के उत्पादों को बाज़ार तक अधिक-से-अधिक पहुँच प्रदान करने की भी मांग की गई है।
    • अमेरिका की मांग :
      • अमेरिका, कृषि तथा विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिये बाज़ार तक अधिक पहुँच की मांग कर रहा है। 
      • यू.एस. ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (US Trade Representative-USTR) के कार्यालय ने कंपनियों द्वारा अपने नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को देश के बाहर भेजने से प्रतिबंधित करने हेतु भारत द्वारा किये गए उपायों/मानदंडो को डिजिटल व्यापार के लिये प्रमुख बाधा के रूप में रेखांकित किया है।
      • USTR रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि विदेशी ई-कॉमर्स फर्मों पर डेटा इक्वलाइजेशन लेवी (Equalisation Levy)  लगाने का भारत का यह कदम अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करता है।
      • अमेरिका ने भारत के साथ बढ़ते व्यापार घाटे पर भी चिंता व्यक्त की है।
  • भारत-अमेरिका व्यापार संबंधी अन्य प्रमुख मुद्दे: 
    • टैरिफ: अमेरिका द्वारा भारत को  "टैरिफ किंग" के रूप में संदर्भित किया गया है क्योंकि यह "अत्यधिक उच्च" आयात शुल्क आरोपित करता है।
      • जून 2019 में ट्रम्प प्रशासन ने GSP योजना के तहत भारत के लाभों को समाप्त करने का निर्णय लिया था।
      • बढ़ते व्यापार तनाव के बीच GSP सूची से हटाने से भारत को अंततः कई अमेरिकी आयातों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने के लिये प्रेरित किया। इसने अमेरिका को भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) का रुख करने के लिये प्रेरित किया।
    • बौद्धिक संपदा (IP): नवाचार को प्रोत्साहित करने और दवाओं तक पहुँच जैसे अन्य नीतिगत लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये IP सुरक्षा को संतुलित करने के तरीके पर दोनों पक्षों में भिन्नता है।
      • पेटेंट, उल्लंघन दर और व्यापार संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी की सुरक्षा जैसी चिंताओं के आधार पर भारत 2021 के लिये "विशेष 301" प्राथमिकता निगरानी सूची में बना हुआ है।
    • सेवाएँ: भारत द्वारा दोनों देशों के बीच अपने व्यवसाय (Careers) को साझा करने वाले श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के समन्वय के लिये "समग्रता समझौते" की तलाश जारी है।
  • भारत की विदेश व्यापार नीति से संबंधी मुद्दे:
    • खराब विनिर्माण क्षेत्र: हाल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 14% है।
      • जर्मनी, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे उन्नत और विकसित देशों के लिये तुलनीय आँकड़े क्रमशः 19%, 11%, 25% और 21% हैं।
      • चीन, तुर्की, इंडोनेशिया, रूस, ब्राज़ील जैसे उभरते और विकासशील देशों के लिये, संबंधित आँकड़े क्रमशः 27%, 19%, 20%, 13%, 9% हैं, और निम्न आय वाले देशों के लिये यह हिस्सेदारी 8% है।
    • प्रतिकूल मुक्त व्यापार समझौता (FTA): पिछले एक दशक में, भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान), कोरिया गणराज्य, जापान और मलेशिया के साथ FTAs पर हस्ताक्षर किये।
      • हालाँकि मोटे तौर पर यह माना जाता है कि भारत की तुलना में भारत के व्यापार भागीदारों को इन समझौतों से अधिक लाभ हुआ है।
    • संरक्षणवाद: आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इस विचार को और बढ़ा दिया है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।

आगे की राह:

  • बहुपक्षवाद की ओर रूख: यह देखते हुए कि भारत किसी भी मेगा-व्यापार सौदे का भागीदार नहीं है, यह एक सकारात्मक व्यापार नीति एजेंडे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होगा।
    • RCEP से बाहर निकलने के बाद, भारत को यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम सहित अपने संभावित FTA भागीदारों को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि यह कोविड के बाद की विश्व में चीन के लिये एक व्यवहार्य विकल्प है।
  • आर्थिक सुधार: भारत की व्यापार नीति के ढाँचे को आर्थिक सुधारों द्वारा समर्थित होना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप एक खुली, प्रतिस्पर्द्धी और तकनीकी रूप से नवीन भारतीय अर्थव्यवस्था हो।
  • विनिर्माण में सुधार: मेक इन इंडिया पहल जैसी योजनाओं के कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को बढ़ाने की जरूरत है।
  • नवाचार की आवश्यकता: यदि नवाचार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, तो शायद भारत को एक नवाचार प्रोत्साहन नीति का अनावरण करना चाहिये, क्योंकि बौद्धिक संपदा अधिकार नवाचार रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है।

स्रोत: द हिंदू

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