भारतीय अर्थव्यवस्था
मुक्त व्यापार समझौतों की ओर भारत का रणनीतिक रुख
- 17 Dec 2025
- 91 min read
प्रिलिम्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौते, विश्व व्यापार संगठन, आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता
मेन्स के लिये: बहुध्रुवीय विश्व में भारत की बदलती व्यापार नीति, भारत की विदेश नीति और भू-राजनीति में FTA की भूमिका
चर्चा में क्यों?
भारत वर्तमान में न्यूज़ीलैंड, रूस और ओमान जैसे विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की दिशा में अपनी कोशिशों को तीव्र कर रहा है। हालाँकि विगत FTA से केवल सीमित व्यापारिक लाभ ही प्राप्त हुए थे।
- यह फोकस में बदलाव को दर्शाता है, जिसमें अब FTA का उपयोग केवल व्यापार बढ़ाने हेतु नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारियों और भू-राजनीतिक हितों को सुरक्षित करने के लिये किया जा रहा है।
सारांश
- भारत का FTA के लिये नवीनीकृत प्रयास शुद्ध व्यापार उदारीकरण से हटकर FTA का उपयोग भू-राजनीतिक संरेखण, आपूर्ति शृंखला सुरक्षा और कमज़ोर होती बहुपक्षीय व्यवस्था में रणनीतिक साझेदारियों के साधन के रूप में करने की दिशा में एक कदम को दर्शाता है।
- विगत FTA ने निर्यात में केवल सीमित वृद्धि दी जबकि व्यापार घाटा बढ़ा और घरेलू क्षेत्रों पर दबाव पड़ा, जिससे मज़बूत सुरक्षा उपायों के साथ संतुलित तथा सेवा-केंद्रित समझौतों की आवश्यकता स्पष्ट हुई।
भारत FTA पर पुनः ध्यान क्यों केंद्रित कर रहा है?
- वैश्विक भू-राजनीति में रणनीतिक पुनर्संरेखण: एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय व्यवस्था में वैश्विक बदलाव (जैसे अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्द्धा, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की कमज़ोरी) ने द्विपक्षीय और क्षेत्रीय FTA को रणनीतिक जुड़ाव के साधन के रूप में बदल दिया है।
- भारत FTA का उपयोग राजनीतिक संरेखण को मज़बूत करने के लिये कर रहा है, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में।
- एक अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में FTA ‘राजनीतिक सुरक्षा जाल’ के रूप में कार्य करते हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करते हैं तथा रणनीतिक बीमा सुनिश्चित करते हैं (जैसे भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता (ECTA), भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA))।
- बहुपक्षवाद का पतन: WTO वार्ताओं (दोहा राउंड) में ठहराव और वैश्विक स्तर पर बढ़ते संरक्षणवादी रुझानों ने बहुपक्षीय व्यापार मंचों की प्रभावशीलता को कम कर दिया है।
- FTA, WTO-प्लस प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं, विशेष रूप से सेवाओं, डिजिटल व्यापार और निवेश जैसे क्षेत्रों में।
- भारत-EFTA TEPA इस बदलाव का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें 15 वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के FDI के लिये बाध्यकारी प्रतिबद्धता शामिल है।
- आर्थिक और व्यापारिक साझेदारों का विविधीकरण: FTA कुछ बाज़ारों (जैसे अमेरिका, EU, चीन) पर अधिक निर्भरता को कम करने में सहायता करते हैं।
- ये भारत को नए बाज़ारों तक पहुँच बनाने, आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने और महत्त्वपूर्ण संसाधनों (जैसे ऊर्जा, खनिज) को सुरक्षित करने में सक्षम बनाते हैं।
- इसके अलावा, FTA अब केवल बाज़ार पहुँच तक सीमित नहीं हैं; ये ‘चीन प्लस वन’ नीति को लागू करने और ऊपरी स्तरीय आपूर्ति शृंखलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक उपकरण बन गए हैं।
- सेवाएँ और निवेश में अप्रयुक्त संभावनाओं को खोलना: भारत को सेवाओं (IT, स्वास्थ्य, शिक्षा) में तुलनात्मक लाभ प्राप्त है, लेकिन विगत FTA ने इस संभावनाओं का पूर्ण उपयोग नहीं किया।
- नई FTA (जैसे UAE-इंडिया CEPA) अब सेवाओं, फिनटेक और निवेश प्रवाह पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं।
- घरेलू क्षमताओं और मूल्य शृंखला को सुदृढ़ करना: FTA 'मेक इन इंडिया' और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) जैसी पहलों के साथ संरेखित हैं, जिनका उद्देश्य भारतीय विनिर्माण को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करना है। रणनीतिक FTA विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और तकनीकी हस्तांतरण को आकर्षित करने में सहायता कर सकते हैं।
- पिछले असंतुलनों को सुधारना: विगत असममित लाभ वाली FTA (जैसे ASEAN) से सीखते हुए, भारत अब बेहतर संतुलित और सेवा-केंद्रित समझौतों की तलाश कर रहा है, ताकि घरेलू उद्योगों के हित सुरक्षित रह सकें।
- उदाहरण के लिये, भारत का ASEAN में निर्यात हिस्सा केवल 10.2% से बढ़कर 10.8% हुआ, जबकि जापान के साथ यह 2.1% से घटकर 1.9% एवं दक्षिण कोरिया के साथ 1.9% से घटकर 1.4% हो गया, जो संबंधित FTA से पहले और बाद के पाँच-वर्षीय औसत पर आधारित है।
- यह प्रवृत्ति संकेत देती है कि विगत FTA ने अधिकतर मौजूदा व्यापार प्रवाह को औपचारिक रूप दिया है, बजाय इसके कि उन्होंने महत्त्वपूर्ण नए व्यापार को उत्पन्न किया हो।
मुक्त व्यापार समझौते
- परिचय: मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों या क्षेत्रीय समूहों के बीच ऐसा समझौता है, जिसमें व्यापार को बढ़ावा देने के लिये आपसी वार्ता के माध्यम से व्यापारिक बाधाओं को कम या समाप्त किया जाता है।
- FTA के तहत प्रमुख कवरेज: कस्टम ड्यूटी (टैरिफ), मूल के नियम, गैर-शुल्क उपाय (TBT), सैनिटरी एवं फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय और व्यापार उपचार।
- FTA वस्तुओं के व्यापार (जैसे कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं के व्यापार (जैसे बैंकिंग, निर्माण, व्यापार आदि) को शामिल कर सकते हैं।
- इसके अलावा, FTA बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धा नीति जैसे अन्य क्षेत्रों को भी शामिल कर सकते हैं।
- व्यापार समझौते के प्रकार:
- द्विपक्षीय (Bilateral): दो देशों के बीच व्यापार के अवसरों का विस्तार करने के लिये।
- बहुपक्षीय (Plurilateral): कई देशों के बीच, क्षेत्रीय या अन्य रूप में।
- बहुराष्ट्रीय (Multilateral): आमतौर पर WTO फ्रेमवर्क के तहत, वैश्विक व्यापार नियम निर्धारित करने के लिये।
- भारत और FTA: WTO के अनुसार, भारत ने हाल ही में हुए भारत–ब्रिटेन व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (CETA) और भारत–यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौता (TEPA) के अतिरिक्त 20 क्षेत्रीय या मुक्त व्यापार समझौते किये हैं।
- वर्तमान में भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और दक्षिण अफ्रीकी कस्टम्स यूनियन के साथ FTA पर वार्ता कर रहा है।
भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के बढ़ते नेटवर्क से जुड़ी चिंताएँ क्या हैं?
- व्यापार घाटा और असममित लाभ: भारत की कई पूर्व FTA से निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाई है। प्राय: साझेदार देशों से आयात, निर्यात की तुलना में तेज़ी से बढ़ा है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ गया।
- उदाहरण: वित्त वर्ष 2008-2009 से वित्त वर्ष 2022-2023 के बीच ASEAN से भारत में आयात 234.4% बढ़ा, जबकि FTA होने के बावजूद भारत से ASEAN को निर्यात केवल 130.4% ही बढ़ पाया।
- इसके अलावा, भारतीय निर्यातकों को अक्सर समान (पारस्परिक) बाज़ार पहुँच प्राप्त नहीं हो पाती है।
- उदाहरण: वित्त वर्ष 2008-2009 से वित्त वर्ष 2022-2023 के बीच ASEAN से भारत में आयात 234.4% बढ़ा, जबकि FTA होने के बावजूद भारत से ASEAN को निर्यात केवल 130.4% ही बढ़ पाया।
- गैर-शुल्क बाधाएँ (NTB): विकसित अर्थव्यवस्थाएँ कड़े मानक (जैसे IPR, स्वच्छता/स्वास्थ्य संबंधी उपाय) लागू करती हैं, जो शुल्क रियायतों के लाभ को कमज़ोर कर देते हैं। डेटा स्थानीयकरण और IPR से जुड़े मुद्दों के कारण भारत–EU FTA पर वार्ता भी लंबित है।
- इसके अतिरिक्त भारत की FTA उपयोग दर केवल लगभग 25% है, जबकि विकसित देशों में यह 70–80% तक रहती है।
- EU और UK के साथ होने वाली FTA में कठोर पर्यावरणीय एवं श्रम अनुपालन आवश्यकताएँ शामिल हैं, जिन्हें अपनाने को लेकर भारत सतर्क है; साथ ही यह स्थिति भारत के उभरते ‘ग्रीन’ व्यापार व्यवस्थाओं से बाहर हो जाने का जोखिम भी उत्पन्न करती है।
- घरेलू क्षेत्रों को नुकसान: MSME, किसान और श्रम-प्रधान क्षेत्र किफायती आयात के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष करते हैं। शुल्क कटौती उन क्षेत्रों को नुकसान पहुँचा सकती है जो अभी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी नहीं हैं।
- FTA में प्राय: तैयार वस्तुओं के शून्य-शुल्क आयात की प्रतिबद्धता होती है, जबकि कच्चे माल पर घरेलू शुल्क ऊँचे बने रहते हैं (ऊपरी स्तर के उद्योगों की सुरक्षा हेतु), जिससे भारतीय विनिर्माताओं के लिये एक संरचनात्मक नुकसान की स्थिति बनती है।
- यह ‘उलटी शुल्क संरचना’ (Inverted Duty Structure) विनिर्माण के बजाय व्यापार (तैयार वस्तुओं के आयात) को प्रोत्साहित करती है, जो आत्मनिर्भर भारत (मेक इन इंडिया) की अवधारणा के प्रतिकूल है।
- उदाहरण: ASEAN FTA के तहत किफायती आयात से भारतीय रबर किसानों को नुकसान पहुँचा।
- डेयरी, बागान फसलों या अनाज क्षेत्रों में बाज़ार खोलने से किसानों की आजीविका को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- FTA में प्राय: तैयार वस्तुओं के शून्य-शुल्क आयात की प्रतिबद्धता होती है, जबकि कच्चे माल पर घरेलू शुल्क ऊँचे बने रहते हैं (ऊपरी स्तर के उद्योगों की सुरक्षा हेतु), जिससे भारतीय विनिर्माताओं के लिये एक संरचनात्मक नुकसान की स्थिति बनती है।
- तीसरे देशों के माध्यम से अप्रत्यक्ष आयात बढ़ने की आशंका: गैर-FTA देशों की वस्तुएँ, मूल के नियमों का दुरुपयोग कर, साझेदार देशों के रास्ते भारत में प्रवेश कर सकती हैं। इससे घरेलू विनिर्माण कमज़ोर होता है और FTA की मूल भावना भी प्रभावित होती है।
भारत की FTA रणनीति की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये नीति दृष्टिकोण क्या होना चाहिये?
- घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सुदृढ़ करना: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये उद्योगों को तैयार करने हेतु अनुसंधान एवं विकास (R&D), अवसंरचना, कौशल विकास और MSME समर्थन में निवेश करना।
- WTO-प्लस क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: डिजिटल व्यापार, हरित ऊर्जा और सेवाओं जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दें, विशेष रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ भविष्य की FTA में।
- संतुलित सुरक्षा उपायों को शामिल करना: तीसरे देशों द्वारा दुरुपयोग रोकने के लिये सशक्त मूल-नियम (Rules of Origin), सेफगार्ड शुल्क और एंटी-डंपिंग प्रावधान सुनिश्चित करना।
- संस्थागत सुधार और अंतर-मंत्रालयी समन्वय: विदेश मंत्रालय (MEA), वाणिज्य मंत्रालय और नीति आयोग के बीच सहयोग को मज़बूत करें ताकि रणनीतिक एवं आर्थिक हितों का बेहतर संरेखण हो सके।
- विवाद निपटान ढाँचे में सुधार: व्यापार विवादों के त्वरित समाधान के लिये FTA में बाध्यकारी समय-सीमाएँ और स्वतंत्र पैनल शामिल करना।
- मौजूदा FTA की निगरानी और समीक्षा: आवधिक प्रभाव आकलन, सार्वजनिक परामर्श और आवश्यक सुधार हेतु तंत्र स्थापित करना।
- समावेशी और सतत व्यापार को बढ़ावा देना: घरेलू अनुकूलन प्रभावित किये बिना श्रम और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना।
निष्कर्ष
FTA पर भारत का नया ज़ोर व्यापार मात्रा के विस्तार से अधिक अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में दिशा तय करने से जुड़ा है। जैसे-जैसे बहुपक्षवाद कमज़ोर पड़ रहा है और भू-राजनीति अर्थशास्त्र पर हावी हो रही है, FTA रणनीतिक संरेखण, कूटनीतिक बीमा तथा आपूर्ति-शृंखला सुरक्षा के उपकरण के रूप में विकसित हो गए हैं। इस उभरते वैश्विक परिदृश्य में, भारत की व्यापार नीति को अब केवल आर्थिक दक्षता नहीं, बल्कि रणनीतिक तर्क अधिकाधिक दिशा देगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. पहले के FTA से सीमित लाभ मिलने के बावजूद भारत अधिक FTA क्यों कर रहा है?
भारत अब FTA को बहुध्रुवीय विश्व में रणनीतिक संरेखण, आपूर्ति-शृंखला अनुकूलन और भू-राजनीतिक साझेदारियों के साधन के रूप में देख रहा है।
2. ASEAN जैसे पूर्व FTA के तहत भारत को कौन-सी प्रमुख समस्या का सामना करना पड़ा है?
आयात, निर्यात की तुलना में तेज़ी से बढ़े, जिससे व्यापार घाटा बढ़ गया। उदाहरण के तौर पर, ASEAN से आयात वित्त वर्ष 2012-2013 में 8 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-2023 में 44 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
3. FTA भारत के घरेलू क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करते हैं?
MSME और किसानों पर किफायती आयात का दबाव बढ़ता है, विशेषकर रबर, डेयरी और बागान फसलों जैसे क्षेत्रों में।
4. नई FTA में WTO-प्लस मुद्दे क्या हैं?
इनमें WTO प्रतिबद्धताओं से आगे के क्षेत्र शामिल होते हैं, जैसे सेवाएँ, डिजिटल व्यापार, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), श्रम और पर्यावरणीय मानक।
5. कौन-से सुरक्षा उपाय भारत के FTA परिणामों को बेहतर बना सकते हैं?
सशक्त मूल-नियम (Rules of Origin), सेफगार्ड शुल्क, आवधिक समीक्षा और बेहतर विवाद-निपटान तंत्र।
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दृष्टि मेंस प्रश्न: प्रश्न. भारत द्वारा हाल के वर्षों में मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) में आई तेज़ी, बाज़ार पहुँच से हटकर भू-राजनीतिक संरेखण की ओर हुए रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है। विवेचना कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
- चीन
- भारत
- जापान
- यूएसए
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में से हैं?
(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हालिया परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार प्रभावित करेंगी? (2018)