दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स



मुख्य परीक्षा

दया याचिका

  • 17 Dec 2025
  • 43 min read

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2012 में महाराष्ट्र में एक दो वर्षीय बच्ची के अपहरण, बलात्कार और हत्या के अपराध में दोषी ठहराए गए एक अभियुक्त की दया याचिका को अस्वीकार कर दिया है, जिससे मृत्युदंड से संबंधित संवैधानिक प्रक्रिया की पुनः पुष्टि होती है।

सारांश

  • राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका को अस्वीकार किये जाने से अनुच्छेद 72 और 161 के तहत दया याचिकाओं की प्रक्रिया, BNSS 2023 की समयबद्ध रूपरेखा, सीमित न्यायिक समीक्षा तथा अनुच्छेद 21 को बनाए रखते हुए न्याय के संभावित विफल होने से बचाव के लिये दया के मानवीय औचित्य पर ध्यान केंद्रित होता है।

दया याचिका क्या है?

  • परिचय: दया याचिका एक संवैधानिक उपाय है जो दोषियों, विशेष रूप से मृत्युदंड के मामलों में क्षमा, दंड परिवर्तन, दंड माफी या सज़ा के निलंबन की मांग करने के लिये उपलब्ध होता है।
  • संवैधानिक आधार: दंड को क्षमा करने, परिवर्तित करने, घटाने या निलंबित करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति और अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल में निहित है।
    • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति राज्यपाल की तुलना में व्यापक होती है, क्योंकि यह सेना न्यायालय (Court-martial) के मामलों तक विस्तृत होती है, जबकि राज्यपाल की शक्ति केवल राज्य कानूनों के अंतर्गत आने वाले अपराधों तक सीमित रहती है और सेना न्यायालय द्वारा दी गई सज़ाओं पर लागू नहीं होती।
  • दायर करने के आधार: दया याचिका अच्छे आचरण, मानसिक स्वास्थ्य, आयु, चिकित्सीय स्थिति, मानवीय कारणों, न्याय के संभावित दुरुपयोग (न्यायिक त्रुटि) या पुनर्वास के प्रयासों जैसे आधारों पर दायर की जा सकती है।
  • कानूनी प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के धारा 472(1) में दया याचिकाओं के लिये समयबद्ध प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
    • सज़ा पाए हुए व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपील खारिज किये जाने या उच्च न्यायालय द्वारा मृत्युदंड की पुष्टि होने के 30 दिन के भीतर याचिका दायर करनी होती है, जबकि यदि मामले में कई अभियुक्त हों तो याचिकाएँ 60 दिन के भीतर दायर करनी होंगी।
  • सरकार की भूमिका: BNSS, 2023 के तहत, दया याचिका प्राप्त होने पर केंद्रीय सरकार राज्य सरकार से टिप्पणियाँ मांगती है, मामले के रिकॉर्ड की जाँच करती है और 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजती है।
    • केंद्र आवश्यकता पड़ने पर मुकदमे के न्यायाधीश की राय और प्रमाणित रिकॉर्ड भी प्राप्त कर सकता है। यदि मामले में कई अभियुक्त हों, तो याचिकाओं का निर्णय एक साथ किया जाता है।
    • हालाँकि राष्ट्रपति के निर्णय के लिये कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, केंद्र को राष्ट्रपति का आदेश राज्य गृह विभाग और जेल अधिकारियों को 48 घंटे के भीतर संप्रेषित करना अनिवार्य है।
  • अंतिमता और गैर-न्यायिकता: BNSS की धारा 472(7) के तहत, दया याचिका पर राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम माना जाता है।
    • न्यायालयों को क्षमा या दंड-परिवर्तन के आधारों पर सवाल करने या समीक्षा करने से रोका गया है, जिससे दया शक्तियों की विशेष कार्यकारी प्रकृति को पुष्ट किया जाता है।
  • न्यायिक घोषणाएँ:
    • मारू राम बनाम भारत संघ (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर प्रयोग की जानी चाहिये, जिससे दया को व्यक्तिगत विवेक के बजाय एक कार्यकारी कार्य माना गया।  
    • केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है, लेकिन सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन है ताकि प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके, न कि निर्णय की योग्यता का मूल्यांकन करने के लिये।

भारत में क्षमादान शक्तियों का दार्शनिक आधार

  • क्षमादान शक्तियाँ इस तथ्य को मान्यता देती हैं कि न्यायिक प्रणाली सर्वशक्तिमान नहीं है और संभावित न्यायिक त्रुटियों को सुधारने के लिये एक मानवीय तंत्र प्रदान करती हैं।
    • वर्ष 2012 में 14 सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने 9 मृत्युदंडों को आजीवन कारावास में परिवर्तित करने के लिये राष्ट्रपति से अनुरोध किया, न्यायिक त्रुटियों के प्रति चिंता जताते हुए।
  • इसका उद्देश्य अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को बनाए रखते हुए न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखना भी है।

दृष्टि मेंस प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत दया याचिकाओं के लिये पेश किये गए समयबद्ध प्रक्रियाओं के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत में दया याचिका क्या है?
दया याचिका एक संवैधानिक उपाय है, जो अनुच्छेद 72 और 161 के तहत क्षमा, दंड-परिवर्तन, दंड-न्यूनिकरण या दंड के निलंबन की मांग करती है।

2. BNSS, 2023 दया याचिका प्रक्रिया में क्या बदलाव लाता है?
BNSS दया याचिकाएँ दायर करने के लिये समय सीमाएँ निर्धारित करता है और केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की संरचित भूमिका को निर्दिष्ट करता है।

3. किसके पास अधिक व्यापक क्षमादान शक्तियाँ हैं—राष्ट्रपति या राज्यपाल?
राष्ट्रपति के पास अधिक व्यापक शक्तियाँ हैं, जो सेना न्यायालय और मृत्युदंड मामलों में भी लागू होती हैं, जबकि राज्यपाल की शक्तियाँ इन तक सीमित नहीं हैं।

4. क्या न्यायालय राष्ट्रपति के दया याचिका निर्णय की समीक्षा कर सकते हैं?
न्यायालय निर्णय की योग्यता का परीक्षण नहीं कर सकते, लेकिन प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये सीमित न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

मेन्स 

प्रश्न. मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिये एक समय सीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (2014)

close
Share Page
images-2
images-2