भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का घरेलू पूंजी बाज़ारों की ओर रुझान
- 15 Dec 2025
- 76 min read
प्रिलिम्स के लिये: पूंजी बाज़ार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI), म्यूचुअल फंड, प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO)
मेन्स के लिये: आर्थिक वृद्धि और वित्तीय गहराई में पूंजी बाज़ार की भूमिका, FPI पर निर्भरता में कमी का मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता पर प्रभाव, शेयर बाज़ारों में बढ़ती रिटेल भागीदारी की चुनौतियाँ
चर्चा में क्यों?
भारत के पूंजी बाज़ार एक संरचनात्मक परिवर्तन से गुजर रहे हैं, जिसमें घरेलू परिवारों की बचत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) की जगह मुख्य बाज़ार तरलता स्रोत के रूप में बढ़ती जा रही है।
- जहाँ इस बदलाव ने अस्थिर वैश्विक पूंजी के जोखिम को कम किया और बाज़ार स्थिरता में सुधार किया है, वहीं इसने असमान भागीदारी, निवेशक संरक्षण और विकसित भारत 2047 की दिशा में समावेशी वृद्धि के मुद्दों को भी उजागर किया है।
सारांश
- भारत के पूंजी बाजार घरेलू नेतृत्व वाली वृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि घरेलू परिवारों की बचत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की जगह ले रही है, जिससे स्थिरता और नीति स्वायत्तता में सुधार हो रहा है।
- हालाँकि समावेशी वृद्धि को सुनिश्चित करने और विकसित भारत 2047 की दिशा में आगे बढ़ने के लिये निवेशक संरक्षण, मूल्यांकन जोखिम तथा असमान भागीदारी जैसी चुनौतियों को संबोधित करना आवश्यक है।
घरेलू धन भारतीय पूंजी बाज़ार को कैसे आकार दे रहा है?
- बाज़ार के स्वामित्व और शक्ति में बदलाव: भारतीय इक्विटी में FPI का स्वामित्व 16.9% तक घटकर 15 महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गया है, और NIFTY 50 में यह 24.1% है।
- इसके विपरीत घरेलू म्यूचुअल फंड लगातार तिमाही-दर-तिमाही रिकॉर्ड स्तर छू रहे हैं, जो निरंतर SIP निवेश के कारण संभव हो रहा है।
- खुदरा निवेशक, डायरेक्ट इक्विटी होल्डिंग्स और म्यूचुअल फंड्स के माध्यम से, अब शेयर बाजार का लगभग 19% हिस्सा रखते हैं, जो पिछले दो दशकों में सबसे उच्च स्तर है।
- यह वैश्विक रूप से चलनशील पूंजी से घरेलू बचतकर्त्ताओं की ओर बाज़ार की ताकत में बदलाव को दर्शाता है, जिससे भारतीय इक्विटीज़ बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो गई हैं।
- प्राथमिक बाजार और पूंजी निर्माण में तेज़ी: वर्ष 2025 में घरेलू निवेशकों का भरोसा प्राथमिक बाजार में स्पष्ट दिख रहा है, जिसमें इस वित्तीय वर्ष में 71 मेनबोर्ड प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) से 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक जुटाए गए हैं।
- वित्त वर्ष 2025 में कॉरपोरेट निवेश की घोषणाएँ वार्षिक आधार पर 39% बढ़ीं, जिनमें लगभग 70% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की रही। यह मज़बूत घरेलू जोखिम लेने की क्षमता और पूंजी जुटाने में तेज़ी को दर्शाता है।
- अधिक बाज़ार स्थिरता: घरेलू बचत एक स्थिर और दीर्घकालिक आधार के रूप में काम करती है, जिससे अचानक होने वाले FPI के निवेश प्रवाह और निकासी से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता कम होती है।
- यह 2025 के अक्तूबर में निफ्टी 50 की तेज़ी में स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद घरेलू निवेश प्रवाह ने ‘स्थिरता की ओर पलायन’ के रूप में एक सुरक्षा कवच प्रदान किया।
- RBI के लिये नीति निर्धारण की अधिक स्वतंत्रता: FPI प्रवाह पर निर्भरता कम होने से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को मौद्रिक नीति में अधिक स्वायत्तता मिलती है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंक ऋण बढ़ाने के लिये अधिक स्वतंत्रता देता है, विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है, तथा पूंजी के पलायन को रोकने के लिये रुपये की बार-बार रक्षा करने की आवश्यकता को कम करता है।
- हालाँकि यह नीतिगत लचीलापन घरेलू उपभोक्ताओं के निरंतर विश्वास पर निर्भर करता है और बाज़ारों में अचानक सुधार या गिरावट होने पर यह जल्दी बदल भी सकता है।
भारत में वित्तीय बाज़ार
- परिचय: वित्तीय बाज़ार वे प्लेटफॅार्म हैं जहाँ शेयर, बॉण्ड और मुद्राओं जैसी प्रतिभूतियों का लेन-देन किया जाता है।
- ये बाज़ार—जिनमें विदेशी मुद्रा, बॉण्ड, शेयर, मुद्रा और डेरिवेटिव्स बाज़ार शामिल हैं—एक देश की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत में वित्तीय बाज़ारों के घटक:
- मनी मार्केट: यह अल्पकालिक वित्तीय साधनों (एक वर्ष से कम अवधि वाले) से संबंधित होता है और बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों के बीच उधार और ऋण की सुविधा प्रदान करता है।
- पूंजी बाजार: यह दीर्घकालिक निवेशों (एक वर्ष से अधिक की परिपक्वता अवधि वाले) से संबंधित होता है। इसमें प्राथमिक बाज़ार शामिल है, जहाँ नई प्रतिभूतियाँ जारी की जाती हैं, और द्वितीयक बाज़ार, जहाँ पहले से जारी प्रतिभूतियों का लेन-देन होता है।
- विदेशी मुद्रा बाज़ार: यह मुद्रा के लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं निवेश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- डेरिवेटिव्स बाज़ार: इसमें ऐसे वित्तीय उपकरणों का लेन-देन होता है, जैसे विकल्प और फ्यूचर्स, जिनका मूल्य किसी मूलभूत संपत्ति से प्राप्त होता है।
भारत के घरेलू-केंद्रित पूंजी बाज़ारों की ओर बदलाव से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- निवेशक तैयारी और वित्तीय साक्षरता का अंतर: लाखों नए खुदरा निवेशक शेयर बाज़ार में प्रवेश कर रहे हैं, जिनमें से कई जोखिम, बाज़ार चक्र और मूल्यांकन की सीमित समझ रखते हैं।
- बाज़ार सुधारों के दौरान, ये निवेशक अधिक नुकसान झेल सकते हैं, जिससे शेयर बाज़ार में लंबी अवधि का विश्वास कमज़ोर हो सकता है।
- मूल्यांकन की अत्यधिकता: कई IPO और नए युग की कंपनियों (New-age Companies) को उनके कमाई और बुनियादी आर्थिक आधार से कहीं अधिक कीमत पर मूल्यांकन किया जा रहा है।
- यदि बाज़ार की स्थिति बदलती है, तो ऐसे बढ़े हुए मूल्यांकन तेज़ गिरावट ला सकते हैं, जिससे छोटे निवेशकों पर असमान प्रभाव पड़ता है।
- निम्न निवेशक प्रतिफल: इनकी लोकप्रियता के बावजूद, अधिकांश सक्रिय म्यूचुअल फंड शुल्क और जोखिम को ध्यान में रखने के बाद बाज़ार से लगातार बेहतर प्रदर्शन करने में विफल रहते हैं, फिर भी वे निवेश पर हावी हैं।
- जबकि कम लागत वाले निष्क्रिय फंड का उपयोग कम ही होता है, जिससे छोटे निवेशकों के प्रतिफल कम होते हैं।
- असमान भागीदारी: इक्विटी और म्यूचुअल फंड का स्वामित्व बेहतर वित्तीय पहुँच वाले, उच्च आय वाले और शहरी परिवारों तक ही केंद्रित बना हुआ है।
- परिणामस्वरूप, बाज़ार में होने वाले लाभ का वितरण असमान होता है, जो समावेशी विकास में पूंजी बाज़ारों की भूमिका को सीमित करता है।
- कॉर्पोरेट प्रशासन संबंधी चिंताएँ: प्रवर्तक हिस्सेदारी में गिरावट दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और अवसरवादी निकास के जोखिम पर प्रश्न उठाती है।
- ऐसे में, उन घरेलू बचतकर्त्ताओं के हितों की रक्षा के लिये, जो अब बाज़ारों का प्रमुख आधार बन चुके हैं, अधिक सुदृढ़ कॉर्पोरेट प्रशासन और पारदर्शिता की आवश्यकता है।
भारत के पूंजी बाज़ारों को सुदृढ़ करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- पहुँच एवं सूचना असममिति का समाधान: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के निवेशक संरक्षण ढाँचे को मज़बूत बनाना। इसके लिये सेबी (सूचीबद्धता (लिस्टिंग) बाध्यताएँ और प्रकटीकरण अपेक्षाएँ) विनियम, 2015 के तहत मात्र प्रकटीकरण से आगे बढ़कर, उपयुक्तता-आधारित विक्रय, सरलीकृत उत्पादों और वितरकों विशेष रूप से प्रथम-बार निवेशकों के लिये, पर सख्त निगरानी पर ध्यान देना आवश्यक है।
- कम लागत वाले निष्क्रिय निवेश को प्रोत्साहन: सक्रिय फंडों से शुल्क-पश्चात खराब प्रतिफल की समस्या के समाधान हेतु, म्यूचुअल फंड सही है अभियान के माध्यम से कम व्यय अनुपात और निवेशक जागरूकता द्वारा सूचकांक फंडों और ETF को प्रोत्साहित करना।
- वित्तीय साक्षरता और विश्वास को मज़बूत करना: वित्तीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय रणनीति (NSFE) के तहत वित्तीय शिक्षा का विस्तार करना, जिसमें छोटे निवेशकों, महिलाओं और प्रथम-बार बाजार प्रतिभागियों पर केंद्रित पहुँच शामिल हो।
- कॉर्पोरेट प्रशासन सुधारों को गहरा करना: कंपनी अधिनियम, 2013, सेबी LODR मानदंडों, स्वतंत्र निदेशकों और प्रबलित प्रकटीकरण के माध्यम से मज़बूत प्रशासन को लागू करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रवर्तक हिस्सेदारी में गिरावट वास्तविक पूंजी निर्माण को दर्शाए न कि मूल्य निष्कर्षण को।
- डेटा-आधारित समावेश नीतियों को अपनाना: भारतीय रिज़र्व बैंक, सेबी और राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के आँकड़ों का लाभ उठाना और जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) व डिजिटल इंडिया ढाँचों के साथ समन्वय स्थापित करना, ताकि वित्तीय पहुँच में मौजूद अंतरालों की पहचान की जा सके और अल्प-प्रतिनिधित्व वाले निवेशकों के लिये लक्षित हस्तक्षेपों को डिज़ाइन किया जा सके।
निष्कर्ष
घरेलू बचतों की ओर हुआ यह बदलाव बाज़ार स्थिरता को मज़बूत करता है और बाह्य जोखिमों को कम करता है, किंतु समावेशन, साक्षरता और संरक्षण के अभाव में यह स्थिरता निर्बल सिद्ध हो सकती है। विकसित भारत 2047 के मार्ग पर वृद्धि और विश्वास को बनाए रखने के लिये शासन को गहरा करना तथा निवेशकों के परिणामों में सुधार करना अनिवार्य है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: चर्चा कीजिये कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेश से घरेलू परिवारों की बचतों की ओर हुआ बदलाव भारत के पूंजी बाज़ारों को किस प्रकार पुनः आकार दे रहा है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. भारत में घरेलू पूंजी बाज़ारों की ओर यह बदलाव किसके कारण हो रहा है?
बढ़ती घरेलू बचतें, SIP अंतर्वाह के रिकॉर्ड स्तर और बढ़ी हुई खुदरा भागीदारी अस्थिर FPI प्रवाहों के स्थान पर बाज़ार तरलता के मुख्य स्रोत के रूप में उभर रही हैं।
2. इस बदलाव ने बाज़ार स्थिरता में कैसे सुधार किया है?
घरेलू बचतें दीर्घकालिक पूंजी उपलब्ध कराती हैं, जिससे अचानक विदेशी पूंजी के प्रवेश और निकास से होने वाली अस्थिरता कम होती है।
3. नए खुदरा निवेशकों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
सीमित वित्तीय साक्षरता, अधिमूल्यित IPO में जोखिम और सक्रिय फंडों से शुल्क-पश्चात खराब प्रतिफल से नकारात्मक जोखिम बढ़ जाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)
(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त कर सकना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपये में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिए अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)
