मुख्य परीक्षा
न्यायाधीशों के लिये महाभियोग और आंतरिक जाँच
- 09 Dec 2025
- 61 min read
भारत ब्लॉक के सांसद (MPs) मदुराई बेंच, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जी.आर. स्वामिनाथन के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत करने की योजना बना रहे हैं।
- यह कदम उनके उस आदेश के बाद उठाया गया है, जिसमें कार्तिगाई दीपम उत्सव के दौरान दरगाह के पास दीपथूण (स्तंभ) में दीपक जलाने के लिये सुब्रमणिया स्वामी मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया गया था।
भारत में न्यायाधीशों के लिये महाभियोग प्रक्रिया क्या है?
- न्यायिक महाभियोग: हालाँकि संविधान में ‘महाभियोग’ शब्द स्पष्ट रूप से प्रयोग नहीं किया गया है, यह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सिद्ध दोषपूर्ण आचरण या अक्षमता के आधार पर हटाने की औपचारिक प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसका उद्देश्य राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
- संवैधानिक और कानूनी आधार: भारत के संविधान का अनुच्छेद 124(4) और न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने का प्रारूप प्रदान करते हैं। अनुच्छेद 218 इन प्रावधानों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक लागू करता है।
- न्यायाधीशों को केवल सिद्ध दोषपूर्ण आचरण गंभीर नैतिक या पेशेवर कदाचार और अक्षम्यता शारीरिक या मानसिक कारणों से कर्त्तव्यों का निर्वहन न कर पाने की स्थिति के आधार पर ही हटाया जा सकता है।
- महाभियोग प्रक्रिया:
- प्रस्ताव प्रस्तुत करना: महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- इसके लिये लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक है।
- प्रस्ताव तभी आगे बढ़ सकता है जब अध्यक्ष या सभापति इसे स्वीकार कर लेते हैं।
- जाँच समिति: न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 के तहत एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है। इसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (या भारत के मुख्य न्यायाधीश), उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।
- समिति एक तथ्यान्वेषी निकाय की तरह काम करती है और आरोपों की अर्द्ध-न्यायिक जाँच करती है।
- समिति की रिपोर्ट और संसदीय बहस: जाँच समिति अपनी रिपोर्ट उस सदन को प्रस्तुत करती है जिसने प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
- यदि न्यायाधीश दोषी पाया जाता है, तो प्रस्ताव पर बहस होगी और उसे दोनों सदनों में विशेष बहुमत (दो तिहाई उपस्थित और मतदान, तथा कुल सदस्यता का पूर्ण बहुमत) द्वारा पारित किया जाना चाहिये।
- संसद की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति अंतिम निष्कासन आदेश जारी करते हैं।
- प्रस्ताव प्रस्तुत करना: महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- मुख्य कमियाँ: यदि न्यायाधीश प्रक्रिया के बीच में ही त्यागपत्र दे देता है, तो आमतौर पर कार्यवाही समाप्त हो जाती है।
- भारत में अब तक किसी भी न्यायाधीश पर सफलतापूर्वक महाभियोग नहीं चलाया जा सका है।
- बहुत अधिक मतदान-सीमा के कारण हटाया जाना अत्यंत दुर्लभ हो जाता है।
इन-हाउस इन्क्वायरी
- उत्पत्ति एवं उद्देश्य: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1999 में इन-हाउस इन्क्वायरी शुरू की।
- इसकी प्रेरणा सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य मामले (1995) से मिली, जिसमें महाभियोग (संविधान के अनुच्छेद 124 और 218) की सीमा से नीचे के न्यायिक कदाचार से निपटने के लिये किसी तंत्र के अभाव को उज़ागर किया गया था।
- इन-हाउस इन्क्वायरी का उद्देश्य महाभियोग सीमा से नीचे न्यायिक कदाचार को संबोधित करना है, यह सामान्य कदाचार और "सिद्ध कदाचार" के बीच की खाई को कम करता है।
- शिकायतों की जाँच: शिकायतों की जाँच संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा सीधे की जाती है।
- अनावश्यक शिकायतों को प्रारंभिक चरण में ही खारिज कर दिया जाता है। गंभीर शिकायतों के लिये न्यायाधीश की प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
- जाँच समिति का गठन: यदि आगे जाँच की आवश्यकता होती है, तो मुख्य न्यायाधीश एक तीन सदस्यीय समिति (उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये अलग-अलग संरचना) का गठन करते हैं।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश: (3 सदस्यीय समिति जिसमें अन्य उच्च न्यायालयों के 2 मुख्य न्यायाधीश और 1 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होंगे)।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश: (3 सदस्यीय समिति जिसमें 1 उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश और 2 उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे)।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश: (3 सदस्यीय समिति जिसमें 3 उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं)
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI): (कोई विशिष्ट आंतरिक प्रक्रिया परिभाषित नहीं है)।
- समिति प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित करते हुए जाँच करती है, तथा न्यायाधीश को जवाब देने का अवसर देती है।
- परिणाम:
- कदाचार सिद्ध होने पर: न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी जा सकती है।
- मना करने पर न्यायाधीश को न्यायिक कर्त्तव्यों से मुक्त किया जा सकता है, और यदि आवश्यक हो तो मुख्य न्यायाधीश महाभियोग की सिफारिश कर सकते हैं।
- कदाचार साधारण है: न्यायाधीश को चेतावनी दी जाती है और रिपोर्ट रिकॉर्ड में अभिलिखित कर ली जाती है।
- कदाचार सिद्ध होने पर: न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी जा सकती है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में न्यायाधीशों को हटाए जाने की संवैधानिक प्रक्रिया का परीक्षण कीजिये और चर्चा कीजिये कि अभी तक किसी भी न्यायाधीश पर सफलतापूर्वक महाभियोग क्यों नहीं लगाया जा सका है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाए जाने के लिये कौन-से संवैधानिक प्रावधान किये गए हैं?
न्यायाधीशों को हटाए जाने का प्रावधान अनुच्छेद 124(4) (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 218 (उच्च न्यायालयों तक विस्तारित) में किया गया है, जिससे संबंधित न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 है; इसका आधार सिद्ध कदाचार या असमर्थता होते हैं।
2. महाभियोग प्रस्ताव शुरू करने के लिये किस संसद में कितने सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है?
प्रस्ताव के लिये 100 लोकसभा सांसदों या 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है, और यदि यह सिद्ध हो जाता है तो इसे दोनों सदनों में विशेष बहुमत (पूर्ण बहुमत सहित उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) द्वारा पारित किया जाना चाहिये।
3. आंतरिक प्रक्रिया क्या है और इसे क्यों शुरू किया गया?
वर्ष 1999 में अपनाई गई (1995 के बाद रविचंद्रन अय्यर मामले में), आंतरिक प्रक्रिया न्यायपालिका को सहकर्मी समितियों के माध्यम से न्यूनतर कदाचार की जाँच करने की अनुमति देती है, जिससे लघु चूक और महाभियोग योग्य अपराधों के बीच एक अंतराल को कम किया जा सकता है।
सारांश
- न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन के थिरुपरनकुंद्रम दीपथून आदेश में एक दरगाह के निकट कार्तिगई दीपम की अनुमति देने से व्यापक राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया।
- INDIA गुट ने महाभियोग के लिये प्रयास किया, जिससे न्यायाधीशों को हटाए जाने की शायद ही कभी उपयोग में लाइ गई संवैधानिक प्रक्रिया को ध्यान में लाया गया।
- न्यायिक महाभियोग अनुच्छेद 124(4) और 218 तथा न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 द्वारा नियंत्रित होता है, जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
- इस मामले ने सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक जाँच प्रक्रिया (1999) को भी उजागर किया है, जो महाभियोग सीमा से न्यूनतर कदाचार के मामलों का निपटान करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
- भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर:(c)
मेन्स:
प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)