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भारतीय अर्थव्यवस्था

बृहद अवसंरचनात्मक परियोजनाओं का वित्तपोषण

  • 10 Jun 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रावधान, राजकोषीय घाटा, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP), केयर रेटिंग, कॉर्पोरेट बाॅण्ड बाज़ार

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline- NIP), राष्ट्रीय अवसंरचना एवं विकास वित्तपोषण बैंक (National Bank for Financing Infrastructure and Development- NaBFID), राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF), भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के समक्ष वित्तपोषण संबंधी मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने बुनियादी ढाँचे, गैर-बुनियादी ढाँचे और वाणिज्यिक अचल संपत्ति क्षेत्रों में दीर्घकालिक परियोजनाओं के वित्तपोषण के विनियमन में सुधार के लिये एक नया ढाँचा प्रस्तावित किया है।

  • यह कदम इन परियोजनाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों, जैसे विलंब और लागत में वृद्धि को देखते हुए उठाया गया है।

परियोजना के वित्तपोषण के लिये RBI द्वारा प्रस्तावित प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • ऋण वितरण कार्यक्रमों को सीमित करना: यह ढाँचा ऋण चूक, परियोजना की वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ तिथि (DCCO) में विस्तार, अतिरिक्त ऋण आवश्यकताओं या परियोजना के शुद्ध वर्तमान मूल्य (Net Present Value- NPV) में कमी जैसे ऋणों वितरण अवसरों में कमी करने को प्राथमिकता देता है।
  • प्रावधान में वृद्धि: संभावित नुकसान के विरुद्ध बफर बनाने के लिये रूपरेखा में बैंकों द्वारा प्रावधान (निधि अलग रखना) में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का प्रस्ताव किया गया है।
    • निर्माण चरण (परियोजना शुरू होने से पहले) के दौरान प्रावधान को ऋण राशि के मौजूदा 0.4% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
      • 5% प्रावधान धीरे-धीरे लागू किया जाएगा, जो वित्त वर्ष 2025 में 2%, वित्त वर्ष 2026 में 3.5% तथा वित्त वर्ष 2027 तक 5% तक पहुँच जाएगा।
      • अनुमान है कि अतिरिक्त प्रावधान आवश्यकताएँ बैंकों की निवल संपत्ति का 0.5-3% होंगी और इससे CET1 (Common Equity Tier 1) अनुपात प्रभावित हो सकता है।
  • परिचालन के दौरान प्रावधान में कमी: यदि कोई परियोजना सकारात्मक शुद्ध परिचालन नकदी प्रवाह (पुनर्भुगतानों को कवर करने के लिये पर्याप्त आय) प्रदर्शित करती है तथा वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने के बाद अपने कुल ऋण को 20% तक कम कर देती है, तो प्रावधान को कम किया जा सकता है।
  • प्रस्तावित ढाँचे के संभावित प्रभाव:
    • बैंकों पर प्रभाव: 
      • उच्च प्रावधान आवश्यकताओं से अल्पावधि में बैंक की लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त उच्च जोखिम को दर्शाने के लिये ऋण मूल्य निर्धारण में अल्प वृद्धि हो सकती है।
      • सरकारी स्वामित्व वाले बैंक सतर्कता के साथ आशावादी हैं, तथा उनका कहना है कि मूल्य निर्धारण पर प्रभाव मध्यम हो सकता है।
    • उधारकर्त्ताओं पर प्रभाव:
      • उधारकर्त्ताओं को सख्त वित्तपोषण शर्तों और संभावित रूप से उच्च ब्याज दरों का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि इस ढाँचे का उद्देश्य परियोजना की व्यवहार्यता में सुधार करना और लंबे समय में समग्र जोखिम को कम करना है।
      • रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि वित्तपोषण लागत में 20-40 आधार अंकों की वृद्धि हो सकती है।

बैंक पूंजी का वर्गीकरण:

  • बेसल-III मानदंडों के अनुसार, बैंकों की नियामक पूंजी को टियर 1 और टियर 2 में विभाजित किया गया है, जबकि टियर 1 को कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) और अतिरिक्त टियर-1 (AT-1) पूंजी में विभाजित किया गया है।
    • कॉमन इक्विटी टियर 1 कैपिटल में इक्विटी इंस्ट्रूमेंट शामिल होते हैं, जहाँ रिटर्न बैंकों के प्रदर्शन और इसलिये शेयर की कीमत के प्रदर्शन से जुड़े होते हैं। इनकी कोई परिपक्वता नहीं होती।
    • अतिरिक्त टियर-1 पूंजी स्थायी बाॅण्ड हैं, जिन पर बैंक के पिछले या वर्तमान मुनाफे से सालाना भुगतान योग्य एक निश्चित कूपन होता है। इनकी कोई परिपक्वता नहीं होती है और इनके लाभांश को कभी भी रद्द किया जा सकता है।
  • टियर 2 पूंजी में असुरक्षित अधीनस्थ ऋण शामिल होता है जिसकी मूल परिपक्वता अवधि कम-से-कम पाँच वर्ष होती है।

प्रावधान कवरेज अनुपात (Provisioning Coverage Ratio- PCR): 

  • प्रावधान के तहत बैंकों को अपनी खराब परिसंपत्तियों का एक निर्धारित प्रतिशत धनराशि अलग रखनी होती है या उपलब्ध करानी होती है।
  • यह मूलतः सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के लिये प्रावधान का अनुपात है तथा यह दर्शाता है कि बैंक ने ऋण घाटे को कवर करने के लिये कितनी धनराशि अलग रखी है।

भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के समक्ष वित्तपोषण संबंधी क्या समस्याएँ हैं?

  • सरकार पर राजकोषीय भार: परंपरागत रूप से सरकार अवसंरचना परियोजनाओं के लिये धन का प्राथमिक स्रोत रही है, जिसके कारण राजकोषीय घाटा अधिक होता है। इससे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे अन्य सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च सीमित हो जाता है।
    • वर्ष 2022 में सरकार का बुनियादी ढाँचा व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.3% था, जो एक सकारात्मक कदम है लेकिन अभी भी वांछित स्तर से नीचे है।
  • वाणिज्यिक बैंकों की परिसंपत्ति-देयता में असमानता: वाणिज्यिक बैंक, जो अवसंरचना के वित्तपोषण का एक प्रमुख स्रोत है, वे कम अवधि के ऋणों को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें कम रिटर्न मिलता है। धीमा रिटर्न वाली दीर्घकालिक अवसंरचना परियोजनाएँ कम आकर्षक हो जाती हैं।
    • कई अवसंरचना परियोजनाओं में देरी और लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, जिससे ऋण देने वाले बैंकों के लिये वित्तीय तनाव उत्पन्न होता है। इससे बड़ी परियोजनाओं के लिये आगे ऋण देने में बाधा उत्पन्न होती है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP) परियोजनाओं में निवेश में कमी: PPP के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। अनिश्चित विनियामक वातावरण, जटिल परियोजना संरचना और भूमि अधिग्रहण के मुद्दे निजी निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
    • भारतीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स (CARE Ratings) की 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि अवसंरचना परियोजनाओं में निजी क्षेत्र का निवेश कुल आवश्यकता का लगभग 5% रहा है।
    • अकुशल और अविकसित कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार: भारत का कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार, जो अवसंरचना के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण का एक संभावित स्रोत है, अभी भी अपेक्षाकृत छोटा है और इसमें तरलता की कमी है। इससे अवसंरचना कंपनियों के लिये बॉण्ड जारी करके धन जुटाना मुश्किल हो जाता है।
    • वर्ष 2023 में भारत के कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार का आकार लगभग 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो कि महत्त्वपूर्ण है लेकिन 51 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अभी भी छोटा है।
    • बीमा एवं पेंशन फंडों के निवेश दायित्व: विनियमों के अनुसार अक्सर बीमा एवं पेंशन फंडों को अपने फंड का एक बड़ा हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना पड़ता है। इससे जोखिमपूर्ण अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है, जो कि उच्च रिटर्न दे सकती हैं।
    • विश्व बैंक के अनुसार, भारतीय पेंशन फंड की केवल 2% परिसंपत्तियाँ ही अवसंरचना परियोजनाओं में निवेशित हैं, जबकि वैश्विक औसत 5-10% है।

भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण से संबंधित सरकार की क्या नई पहलें हैं?

  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)
  • राष्ट्रीय अवसंरचना एवं विकास वित्तपोषण बैंक (NaBFID)
  • राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (NIIF)
  • अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs) और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REITs)
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में सुधार: सरकार कानूनी जटिलताओं को कम करने, अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाने और विवाद समाधान प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने जैसे उपाय कर रही है।
    • उदाहरण: वित्त मंत्रालय ने निजी निवेशकों की चिंताओं को दूर करने तथा परियोजनाओं को मंज़ूरी देने के लिये एक समर्पित PPP सेल और मॉडल रियायत समझौते (Model Concession Agreements) की स्थापना की है।
  • सॉवरेन वेल्थ फंड (SWF):
    • भारत सरकार बड़े सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds- SWF) वाले संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे आदि देशों के साथ भारतीय बाज़ार में उनके निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये सक्रिय रूप से संपर्क कर रही है।
      • SWF बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण का एक स्थिर स्रोत प्रदान कर सकते हैं तथा सरकार के बजट पर जोखिम के बोझ को कम करने में मदद कर सकते हैं।

भारत में बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण में सुधार हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • परियोजना की तैयारी और जोखिम न्यूनीकरण को बढ़ाना: व्यापक व्यवहार्यता अध्ययन आयोजित करना, जो परियोजना की व्यवहार्यता, लागत तथा संभावित जोखिमों का सटीक आकलन करता है, निवेशकों को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • एक निष्पक्ष और पारदर्शी जोखिम आवंटन ढाँचा सुनिश्चित करना जो सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के हितों में संतुलन बनाए रखे।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करना: सरकार परियोजना लागत और निजी निवेशकों द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि (व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण) के बीच के अंतर को पाटने के लिये अनुदान या सब्सिडी प्रदान कर सकती है, जिससे परियोजनाएँ अधिक आकर्षक बन सकती हैं।
  • वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाना: पेंशन फंड, बीमा कंपनियों और अन्य संस्थागत निवेशकों से निवेश आकर्षित करने के लिये अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Infrastructure Investment Trusts- InvITs) और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (Real Estate Investment Trusts- REITs) के निर्माण को प्रोत्साहित करना।
    • दीर्घकालिक अवसंरचना वित्तपोषण के लिये देश के विदेशी मुद्रा भंडार का लाभ उठाने हेतु भारत में एक संप्रभु संपदा निधि का निर्माण करना।
  • अनुमोदन और मंज़ूरी को सुव्यवस्थित करना: परियोजना विकास के लिये भूमि की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, जो वर्तमान में एक बड़ी बाधा है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और मंज़ूरी के लिये अधिक कुशल प्रणाली विकसित करना, परियोजना समय-सीमा के साथ पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करना।
  • परियोजना निष्पादन और दक्षता में सुधार: परियोजना दक्षता में सुधार तथा लागत को कम करने के लिये प्री-फैब्रिकेशन और मॉड्यूलर निर्माण जैसी नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
    • बड़ी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने और लागत में वृद्धि से बचने के लिये सख्त निष्पादन निगरानी तथा जवाबदेही उपायों को लागू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये। साथ ही यह स्पष्ट कीजिये कि इनकी सुविधा को आसान बनाने के लिये सरकार ने क्या पहल की है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पालिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
  2. यह एक 12 सदस्यीय निकाय है जिसमें RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन किया जाता है।
  3.  यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं  करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3. बैंक दर को घटाना और रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इरडा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)

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