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लोक सेवा में नैतिक डिजिटल आचरण

  • 31 Jul 2025
  • 80 min read

प्रिलिम्स के लिये:

RTI अधिनियम, 2005, शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

मेन्स के लिये:

लोक सेवा में नैतिक डिजिटल आचरण के प्रमुख स्तंभ, सिविल सेवकों के सोशल मीडिया उपयोग के विनियमन के पक्ष और विपक्ष में तर्क।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों? 

राजनीतिक निष्पक्षता और सूचना गोपनीयता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सरकारी कर्मचारियों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करने के महाराष्ट्र सरकार के हालिया निर्देश ने लोक सेवा में नैतिक डिजिटल आचरण पर बड़ी बहस को पुनः जीवंत कर दिया है।

  • इसी क्रम में, LBSNAA ने अप्रैल 2025 में नवचयनित सिविल सेवकों को जारी अपनी सलाह में भी इसी चिंता को रेखांकित किया है, जिसमें अधिकारियों से सोच-समझकर ऑनलाइन व्यवहार करने और किसी भी प्रकार के प्रलोभन को स्वीकार न करने की अपील की गई है।
    • यह सलाह डिजिटल माध्यम में सत्यनिष्‍ठा बनाए रखने और संयम बरतने के महत्त्व पर विशेष बल देती है।

लोक सेवा में नैतिक डिजिटल आचरण के प्रमुख स्तंभ क्या हैं?

  • पारदर्शिता: लोक सेवकों को डिजिटल संचार और निर्णयों को स्पष्ट, सुलभ तथा जनसाधारण के लिये समझने योग्य बनाकर पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिए।
    • इससे सरकार की गतिविधियाँ नागरिकों के लिये दृश्यमान और उत्तरदायी बनती हैं, जिससे जनविश्वास स्थापित होता है।
  • उत्तरदायित्व: सिविल सेवकों को अपने डिजिटल कार्यों के लिये पेशेवर और व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार होना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनका ऑनलाइन व्यवहार सार्वजनिक अपेक्षाओं एवं संस्थागत मानकों के अनुरूप हो।
    • इसमें किसी भी डिजिटल गलती के लिये जवाबदेह होना और नैतिक सत्यनिष्‍ठा बनाए रखना शामिल है।
  • निष्पक्षता: लोक सेवकों को डिजिटल संवाद में किसी भी प्रकार की पक्षपातपूर्ण छवि से बचना चाहिये।
    • इसका अर्थ है सोशल मीडिया पर राजनीतिक निष्पक्षता बनाए रखना और ऐसा कोई भी सामग्री पोस्ट करने से बचना, जिसे जनमत को अनुचित रूप से प्रभावित करने या शासन में अपेक्षित निष्पक्षता का उल्लंघन माना जा सके।
  • सत्यनिष्‍ठा: लोक सेवकों को अपने सभी डिजिटल व्यवहार में ईमानदारी, निरंतरता और न्यायप्रियता के साथ कार्य करना चाहिये।
    • उन्हें ऑनलाइन किसी भी प्रकार के भ्रामक या धोखाधड़ीपूर्ण व्यवहार से दूर रहना चाहिये, क्योंकि ऐसा आचरण सार्वजनिक संस्थाओं में विश्वास को कमज़ोर कर सकता है।

नोट: हाल के दिनों में, व्यक्तिगत दृश्यता और अभिव्यक्ति के लिये सिविल सेवकों द्वारा डिजिटल प्लेटफॉर्म, विशेषकर सोशल मीडिया के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसने चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

  • हालाँकि डिजिटल प्लेटफॉर्म जनसंपर्क और पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं, लेकिन इनका दुरुपयोग निष्पक्षता, सत्यनिष्‍ठा तथा जनविश्वास को प्रभावित कर सकता है। इसलिये, इनके उपयोग के लिये विनियमन आवश्यक हो गया है।

सिविल सेवकों के सोशल मीडिया उपयोग का विनियमन किस हद तक उचित है?

विनियमन के पक्ष में तर्क:

  • राजनीतिक तटस्थता बनाए रखना: राजनीतिक विचार व्यक्त करना या किसी विचारधारा का समर्थन करना सिविल सेवा के गैर-राजनीतिक स्वरूप को प्रभावित करता है।
    • यह विनियमन कर्त्तव्यप्रधान नैतिकता (Deontological Ethics) के अनुरूप है, जो व्यक्तिगत राय की बजाय कर्त्तव्य को प्राथमिकता देती है, और रॉल्स के न्याय सिद्धांत के अनुसार सभी नागरिकों के प्रति निष्पक्षता का समर्थन करता है, चाहे उनकी राजनीतिक या व्यक्तिगत मान्यताएँ कुछ भी हों।
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय पक्षपात रहित और निष्पक्ष हों, जो व्यक्तिगत पसंद के बजाय न्याय के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित हों।
  • संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा: सिविल सेवकों की सोशल मीडिया गतिविधियाँ अनजाने में सूचनाओं के लीक या गलत जानकारी के प्रसार का कारण बन सकती हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
    • विनियमन गोपनीयता बनाए रखने और सार्वजनिक विश्वास की रक्षा करने में सहायता करता है, जो कांट की कर्त्तव्यनिष्ठ नैतिकता (Kantian Duty Ethics) पर आधारित है, जिसमें यह माना जाता है कि कर्त्तव्य का उल्लंघन गलत होता है, चाहे उसका उद्देश्य कुछ भी हो।
  • संस्थानिक सत्यनिष्‍ठा बनाए रखना: सिविल सेवक, विशेष रूप से वर्दीधारी सेवाओं में, राज्य की छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, पुणे में एक पुलिस उपनिरीक्षक सोमनाथ ज़ेंडे को ऑनलाइन फैंटेसी लीग के माध्यम से पैसा जीतने के बाद पुलिस आचरण नियमों का उल्लंघन करने के कारण निलंबित कर दिया गया था।
    • ऑनलाइन की गई गैर-पेशेवर गतिविधियाँ संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती हैं और इस प्रकार का विनियमन सद्गुण नैतिकता (Virtue ethics) के अनुरूप होता है, जो सार्वजनिक जीवन में गरिमा, शालीनता तथा संयम को महत्त्व देता है।
  • जनहित प्रथम सिद्धांत: गांधीवादी नि:स्वार्थ सेवा के सिद्धांत के अनुसार, सिविल सेवकों को व्यक्तिगत अभिव्यक्ति से ऊपर जनकल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • उपयोगितावादी नैतिकता (Utilitarian ethics) इस प्रकार के विनियमन का समर्थन करती है, यह तर्क देते हुए कि जहाँ आवश्यक हो, वहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में व्यापक जनहित को वरीयता दी जानी चाहिये।

अति-विनियमन के विरुद्ध:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन: अति-विनियमन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त मौलिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने का जोखिम उत्पन्न करता है।
    • जॉन स्टुअर्ट मिल के स्वतंत्रता सिद्धांत के अनुसार, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं पर केवल तभी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये जब स्पष्ट रूप से किसी हानि का प्रमाण हो।
  • पारदर्शिता का क्षरण: सोशल मीडिया पारदर्शिता का एक माध्यम बन सकता है, जिससे सिविल सेवक सरकारी जानकारी और अपडेट सीधे जनता से साझा कर सकते हैं।
    • अत्यधिक विनियमन इस प्रक्रिया को सीमित कर सकता है, जिससे जनता की जानकारी तक पहुँच बाधित हो सकती है।
    • साथ ही, सोशल मीडिया पर सिविल सेवकों की मौजूदगी ने उनके पिछले रिकॉर्ड, संपत्ति विवरण और भर्ती से संबंधित दस्तावेज़ों (जैसे पूजा खेड़कर मामला) की सार्वजनिक जाँच को बढ़ावा दिया है, जिससे नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों की सत्यनिष्‍ठा का आकलन करने और उनसे जुड़ने के लिये  एक खुला मंच मिल गया है।
      • हालाँकि, उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर अत्यधिक नियंत्रण इस पारदर्शी संवाद को सीमित कर सकता है, जिससे अंततः जवाबदेही के स्तर में कमी आ सकती है।
  •  पीढ़ीगत अलगाव: युवा सिविल सेवक सोशल मीडिया की कार्यप्रणाली से अधिक परिचित होते हैं।
    • अत्यधिक विनियमन सरकार को तकनीक-सक्षम युवा आबादी से दूर कर सकता है, जो सहानुभूति और समावेशिता जैसे नैतिक सिद्धांतों के विपरीत है।
  • मनोबल और विश्वास: अत्यधिक प्रतिबंध सिविल सेवकों के बीच अविश्वास और अलगाव की भावना उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे उनका मनोबल प्रभावित होता है।
    • ऐसे माहौल से बचने के लिये संतुलन आवश्यक है, जो संस्थागत न्याय और विश्वास जैसे तत्त्वों के लिये हानिकारक हो सकते हैं, जो किसी स्वस्थ संस्थागत संस्कृति के लिये अनिवार्य हैं।

भारत में सिविल सेवकों के लिये मौजूदा विनियामक तंत्र क्या है?

फ्रेमवर्क/नियम

मुख्य प्रावधान

केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964

सरकारी नीतियों की आलोचना पर प्रतिबंध लगाता है और राजनीतिक निष्पक्षता की आवश्यकता होती है।

अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968

गरिमापूर्ण आचरण को अनिवार्य करता है और सूचना के प्रकटीकरण पर रोक लगाता है।

RTI अधिनियम, 2005 एवं शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923

संवेदनशील और गोपनीय जानकारी को लीक होने से बचाते हैं।

विनियामक संतुलन के साथ सिविल सेवकों में नैतिक डिजिटल आचरण को बढ़ावा देने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • स्पष्ट और विशिष्ट दिशानिर्देश तैयार करना: नियमों में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिये कि ऑनलाइन व्यवहार में क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं तथा व्यक्तिगत विचारों तथा आधिकारिक ज़िम्मेदारियों के बीच अंतर को स्पष्ट करना चाहिये।
    • यह सेवा की गरिमा की रक्षा करते हुए अस्पष्टता को दूर करता है।
  • सोशल मीडिया के रचनात्मक उपयोग को बढ़ावा देना: जन जागरूकता, शिकायत निवारण और नीति प्रचार जैसे कार्यों के लिये प्लेटफॉर्म के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • नैतिक उपयोग को मान्यता देना नौकरशाही के भीतर ज़िम्मेदार नवाचार की संस्कृति को प्रेरित कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2018 के केरल बाढ़ के दौरान, IAS अधिकारी प्रशांत नायर ("कलेक्टर ब्रो") ने सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग करते हुए तकनीकी स्वयंसेवकों को संगठित किया और राहत कार्यों का समन्वय किया।
  • डिजिटल नैतिकता को प्रशिक्षण में शामिल करना: सिविल सेवकों सहित सभी सरकारी कर्मचारियों को डिजिटल आचरण, डेटा गोपनीयता और नैतिक संवाद से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
    • यह आत्म-जागरूकता को बढ़ावा देता है और कार्यों को संवैधानिक तथा नैतिक ज़िम्मेदारियों के अनुरूप बनाता है।
  • विभाग-विशिष्ट प्रोटोकॉल: हर मंत्रालय या राज्य विभाग अपनी संचालन आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं की सोशल मीडिया नीति तैयार कर सकता है।
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण संदर्भ-संवेदनशील विनियमन सुनिश्चित करता है।
  • स्तरीय उत्तरदायित्व तंत्र लागू करना: कठोर और एक समान दंड की बजाय, परामर्श चेतावनी से लेकर औपचारिक कार्रवाई तक का अनुपातिक प्रतिक्रिया तंत्र अपनाया जाए, जिससे अनुशासन बना रहे तथा अधिकारियों का मनोबल न टूटे।
  • सद्गुण-आधारित आत्म-नियमन को प्रोत्साहन देना: अधिकारियों को संयम, विनम्रता और सत्यनिष्‍ठा जैसे सद्गुणों को मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में अपनाने के लिये प्रेरित करना चाहिये। अति-विनियमन की तुलना में आत्म-अनुशासन की संस्कृति अधिक प्रभावी सिद्ध होती है।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे सिविल सेवक डिजिटल युग में आगे बढ़ते हैं, मुख्य बात यह है कि स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी, अभिव्यक्ति तथा नैतिकता के बीच संतुलन बना रहे। नियमों को नवाचार या पहुँच को बाधित नहीं करना चाहिये, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आचरण तटस्थता, सत्यनिष्ठा और जन विश्वास पर आधारित रहे। जैसा कि LBSNAA का आदर्श वाक्य बुद्धिमत्ता से याद दिलाता है "शीलम् परम भूषणम्" यानी "चरित्र ही सर्वोच्च आभूषण है" और यह चरित्र, ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन व्यवहार में भी झलकना चाहिये।  

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. तेज़ी से डिजिटल होते विश्व में, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लोक सेवकों का नैतिक आचरण निरंतर जाँच के दायरे में है। लोक सेवा में डिजिटल नैतिकता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संस्थागत उत्तरदायित्व के बीच संतुलन सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. 'आचार संहिता' और 'नैतिक संहिता' लोक प्रशासन में मार्गदर्शन के स्रोत हैं। आचार संहिता पहले से ही क्रियान्वित है जबकि नैतिक संहिता अभी तक लागू होना बाकी है। शासन में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखने के लिये एक उपयुक्त आदर्श नैतिक संहिता का सुझाव दीजिये।  (2024)\

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