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शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923

  • 26 May 2025
  • 3 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हरियाणा के एक ट्रैवल ब्लॉगर को कथित गुप्तचरी और पाकिस्तान समर्थक सामग्री को बढ़ावा देने के आरोप में शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 की धारा 3 और 5 तथा भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत गिरफ्तार किया गया

शासकीय गुप्त बात अधिनियम (OSA), 1923

  • परिचय:  इसका गठन औपनिवेशिक युग के भारतीय शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1889 के दौरान हुआ था, जिसका उद्देश्य प्रेस की असहमति को दबाना था एवं वर्ष 1904 में लॉर्ड कर्जन के अधीन इसे और अधिक कठोर बना दिया गया तथा अंततः वर्ष 1923 में इसे संशोधित किया गया
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य गुप्तचरी और वर्गीकृत संवेदनशील जानकारी के अनधिकृत प्रकटीकरण को रोकना, भारत की संप्रभुता, अखंडता एवं सामरिक हितों की रक्षा करना है, विशेष रूप से विदेशी खतरों से।
  • प्रयोज्यता: यह भारत और विदेश में सरकारी अधिकारियों सहित सभी भारतीय नागरिकों पर लागू है तथा गैर-नागरिकों पर भी लागू है, यदि वे गुप्तचरी के कृत्यों में शामिल हैं।

OSA, 1923 की धाराएँ:

  • शासकीय गुप्त बात अधिनियम की धारा 3 गुप्तचरी और राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध कृत्यों को अपराध मानती है, जिसमें संवेदनशील दस्तावेज़ों को रखना या गुप्त कोड को साझा करना शामिल है, जिसके लिये 14 वर्ष तक के कारावास की सज़ा हो सकती है।
  • धारा 5 में सरकारी दस्तावेज़ों के अनाधिकृत प्रकटीकरण, कब्ज़े, प्रतिधारण या उन्हें वापस न करने पर दंड का प्रावधान है, इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो दुर्भावनापूर्ण ऐसी सूचना प्राप्त करते हैं।
  • धारा 10 गुप्तचरों को शरण देने पर दंड से संबंधित है।

BNS की धारा 152

  • BNS की धारा 152 (राजद्रोह से संबंधित) जानबूझकर किये गए ऐसे कृत्यों को अपराध मानती है - शब्दों, संकेतों, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या वित्तीय माध्यमों द्वारा- जो अलगाव, विद्रोह को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पहुँचाते हैं, जबकि सरकार की वैध व कानूनी आलोचना को छूट दी गई है।

और पढ़ें: शासकीय गुप्त बात अधिनियम, राजद्रोह के आरोप के तहत गिरफ्तारी।  

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