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भारतीय अर्थव्यवस्था

PACS का डिजिटलीकरण

  • 01 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

PACS का डिजिटलीकरण, इसका महत्त्व। 

मेन्स के लिये:

PACS का महत्त्व और मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?  

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने लगभग 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies-PACS) के डिजिटलीकरण की मंज़ूरी दी। 

  • 2,516 करोड़ रुपए की लागत से PACS का डिजिटलीकरण किया जाएगा, जिससे लगभग 13 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होगा। प्रत्येक प्राथमिक कृषि ऋण समिति को अपनी क्षमता को उन्नत करने के लिये लगभग 4 लाख रुपए मिलेंगे और यहांँ तक कि पुराने लेखा रिकॉर्ड को भी डिजिटल किया जाएगा और क्लाउड आधारित सॉफ्टवेयर से जोड़ा जाएगा। 

पहल का महत्त्व: 

  • PACS के कम्प्यूटरीकरण से उनकी पारदर्शिता, विश्वसनीयता और दक्षता में वृद्धि होगी एवं बहुउद्देशीय PACS के लेखांकन में भी सुविधा होगी। 
  • यह PACS को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), ब्याज़ सहायता योजना (ISS), फसल बीमा योजना (PMFBY) और उर्वरक एवं बीज के आदानों जैसी विभिन्न सेवाएंँ प्रदान करने के लिये एक नोडल केंद्र बनने में भी मदद करेगा। 
  • इस पहल से प्रत्येक केंद्र में लगभग 10 नौकरियों के अवसर उत्पन्न करने में मदद मिलेगी और इसका उद्देश्य अगले पांँच वर्षों में PACS की संख्या को बढ़ाकर 3 लाख करना है। 

प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ: 

  • परिचय: 
    • PACS ज़मीनी स्तर की सहकारी ऋण संस्थाएँ हैं जो किसानों को विभिन्न कृषि और कृषि गतिविधियों के लिये अल्पकालिक एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करती हैं। 
    • यह ज़मीनी स्तर पर ग्राम पंचायत और ग्राम स्तर पर काम करती हैं। 
    • पहली प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS) का गठन वर्ष 1904 में किया गया था। 
    • सहकारी बैंकिंग प्रणाली के आधार पर कार्यरत PACS ग्रामीण क्षेत्र को लघु अवधि और मध्यम अवधि के ऋण के प्रमुख खुदरा बिक्री केंद्रों का गठन करती हैं। 
  • उद्देश्य: 
    • ऋण लेने और सदस्यों की आवश्यक गतिविधियों का समर्थन करने के उद्देश्य से पूंजी जुटाना। 
    • सदस्यों की बचत की आदत में सुधार लाने के उद्देश्य से जमा राशि एकत्र करना। 
    • सदस्यों को उचित मूल्य पर कृषि आदानों और सेवाओं की आपूर्ति करना। 
    • सदस्यों के लिये पशुधन की उन्नत नस्लों की आपूर्ति एवं विकास की व्यवस्था करना। 
    • सदस्यों के लिये पशुधन की उन्नत नस्लों की आपूर्ति एवं उनके विकास की व्यवस्था करना। 
    • आवश्यक आदानों और सेवाओं की आपूर्ति के माध्यम से विभिन्न आय-सृजन गतिविधियों को प्रोत्साहित करना। 

PACS का महत्त्व: 

  • ये बहुआयामी संगठन हैं जो बैंकिंग, साइट पर आपूर्ति, विपणन, उत्पाद और उपभोक्ता वस्तुओं के व्यापार जैसी विभिन्न सेवाएंँ प्रदान करते हैं। 
  • ये वित्त प्रदान करने के लिये मिनी-बैंकों के साथ-साथ कृषि इनपुट और उपभोक्ता सामान प्रदान करने हेतु काउंटर के रूप में कार्य करते हैं। 
  • ये समितियांँ किसानों को अपने खाद्यान्नों के संरक्षण और भंडारण हेतु भंडारण सेवाएंँ भी प्रदान करती हैं। 
  • देश में सभी संस्थाओं द्वारा दिये गए किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card- KCC) ऋणों में PACS का 41% (3.01 करोड़ किसान) हिस्सा है तथा PACS के माध्यम से इन KCC ऋणों में से 95% (2.95 करोड़ किसान) छोटे और सीमांत किसानों के हैं।  

PACS से संबंधित मुद्दे: 

  • अपर्याप्त कवरेज: 
    • हालांँकि भौगोलिक रूप से सक्रिय PACS, 5.8 गांँवों में से लगभग 90% को कवर करता है, देश के कुछ हिस्से खासकर उत्तर-पूर्व में यह कवरेज बहुत कम है। 
    • इसके अलावा सदस्यों के रूप में शामिल की गई आबादी सभी ग्रामीण परिवारों का केवल 50% है। 
  • अपर्याप्त संसाधन: 
    • PACS के संसाधन ई-ग्रामीण अर्थव्यवस्था की लघु और मध्यम अवधि की ऋण आवश्यकताओं के संबंध में बहुत अधिक अपर्याप्त हैं। 
    • यहांँ तक कि इन अपर्याप्त निधियों का बड़ा हिस्सा उच्च वित्तपोषण एजेंसियों से आता है, न कि 'समाजों के स्वामित्व वाले धन या उनके द्वारा जमा जुटाने' के माध्यम से। 
  • सीमित क्रेडिट: 
    • PACS कुल ग्रामीण आबादी के केवल एक छोटे से हिस्से को ही ऋण प्रदान करती हैं। 
    • दिया गया ऋण मुख्य रूप से फसल वित्त (मौसमी कृषि कार्यों) और मध्यम अवधि ऋण के रूप में पहचाने जाने योग्य उद्देश्यों जैसे कि कुओं की खुदाई, पंप सेटों की स्थापना आदि तक सीमित है। 
  • बकाया: 
    • PACS के लिये अधिक बकाया एक बड़ी समस्या बन गई है।  
    • वे ऋण योग्य निधियों के संचलन पर अंकुश लगाती हैं, उधार लेने के साथ-साथ समाजों की उधार शक्ति को कम करती हैं तथा डिफाल्टर लेनदारों की समाज में छवि खराब करती हैं। 
    • बड़े ज़मींदार सस्ते सहकारी ऋणों को हथियाने और समय पर अपने ऋणों का भुगतान न करने में गाँवों में अपनी अपेक्षाकृत मज़बूत स्थिति का अनुचित लाभ उठाते हैं। 

आगे की राह 

  • इन एक सदी से भी अधिक पुराने संस्थानों को एक और नीतिगत प्रोत्साहन की आवश्यकता है, ताकि भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत के साथ-साथ वोकल फॉर लोकल के दृष्टिकोण में एक प्रमुख स्थान बना सकें, उनमें आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के निर्माण की क्षमता है। 
  • यदि पुनर्गठन और संबंधित उपायों के माध्यम से उन्हें मज़बूत और व्यवहार्य इकाइयों में परिवर्तित किया जाता है तो संसाधन-जुटाने में PACS की क्षमता में काफी सुधार होगा। फिर वे उच्च वित्तपोषण एजेंसियों की तुलना में जमा और ऋण दोनों को आकर्षित करने में अधिक सक्षम होंगी। 

स्रोत: द हिंदू

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