दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

गौ रक्षा एवं मॉब लिंचिंग

  • 01 Mar 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वे राज्य जिन्होंने ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून पारित किये हैं, हरियाणा मॉब लिंचिंग, मॉब लिंचिंग के खिलाफ प्रावधान। 

मेन्स के लिये:

मॉब लिंचिंग के कारण और इसे दूर करने हेतु किये गए उपाय। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हरियाणा में गौ रक्षकों द्वारा गायों का अवैध परिवहन, तस्करी और वध के संदेह में दो लोगों की हत्या कर जलाए जाने की घटना मॉब लिंचिंग के मुद्दे को उजागर करती है।

मॉब लिंचिंग: 

  • मॉब लिंचिंग लोगों के एक बड़े समूह द्वारा लक्षित हिंसा को संदर्भित करती है जिसमें मानव शरीर या संपत्ति के खिलाफ अपराध शामिल हैं, फिर वह चाहे सार्वजनिक हो या निजी। 
  • भीड़ पूर्वग्रही धारणा से प्रेरित हो तथाकथित व्यक्ति को दंडित करती है, भले ही यह अवैध हो और इस तरह कानूनी नियमों और प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए कानून को अपने हाथ में लेती है।

गौ रक्षा: गौ रक्षा के नाम पर लिंचिंग राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिये एक गंभीर खतरा है। सिर्फ गौमांस के संदेह में लोगों की हत्या गौ रक्षकों की असहिष्णुता को दर्शाती है। 

मॉब लिंचिंग का कारण:

  • पूर्वाग्रह: 
    • मॉब लिंचिंग एक घृणित अपराध है जो विभिन्न जातियों, वर्गों और धर्मों के बीच पक्षपात या पूर्वाग्रहों के कारण बढ़ रहा है।
  • गौ रक्षा को लेकर सतर्कता: 
    • हिंदू धर्म में गायों को पूजनीय मानने के साथ ही उनकी पूजा की जाती है। यह कभी-कभी गौ-रक्षा के प्रति सतर्कता को बढ़ावा देता है।
    • अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यकों की यह धारणा है कि अल्पसंख्यक गाय के मांस का नियमित सेवन करते हैं।
  • त्वरित न्याय का अभाव: 
    • लोग क्यों कानून को अपने हाथ में लेते हैं और उन्हें परिणामों का डर नहीं होता, इसका प्राथमिक कारण यह है कि न्याय प्रदान करने वाले अधिकारी अक्षम हैं। 
  • पुलिस प्रशासन की अक्षमता: 
    • इसका कारण है अप्रभावी जाँच और कानूनी प्रक्रिया में विश्वास की कमी जो लोगों को कानून को अपने हाथ में लेने हेतु प्रोत्साहित करती है।

मॉब लिंचिंग से जुड़े मुद्दे: 

  • मॉब लिंचिंग मानव गरिमा का उल्लंघन है, यह संविधान का अनुच्छेद 21 और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का घोर उल्लंघन है।
  • इस प्रकार की घटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जो समानता की गारंटी देते हैं और भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं।
  • हालाँकि इस प्रकार की घटना को लेकर देश के कानून में कोई भी प्रावधान नहीं है और इसलिये इसे केवल हत्या के रूप में चिह्नित किया गया है क्योंकि इसे अभी तक भारतीय दंड संहिता के तहत शामिल नहीं किया गया है। 

सरकार के कदम: 

  • निवारक उपाय:
    • जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ मामले में लिंचिंग और भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने के लिये कई निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किये थे।
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग को 'भीड़तंत्र का घृणित कार्य' बताया था।
  • विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट:
    • मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिये राज्यों को हर ज़िले में एक विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
  • विशेष कार्य बल:
    • न्यायालय ने मॉब लिंचिंग की संभावनाओं को जन्म देने वाले नफरती भाषणों, भड़काऊ बयानों और फर्ज़ी खबरों को फैलाने वाले लोगों के विषय में खुफिया रिपोर्ट हासिल करने के उद्देश्य से एक विशेष कार्य बल के गठन पर भी विचार किया था।
  • पीड़ित के लिये मुआवज़ा योजनाएँ:
    • पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिये पीड़ित मुआवज़ा योजनाएँ बनाने के भी निर्देश दिये गए।
    • जुलाई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और कई राज्यों को नोटिस जारी कर उन्हें उपायों को लागू करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे मे सूचित करने और अनुपालन रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया।
    • अब तक केवल तीन राज्यों मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून निर्धारित किये हैं।
      • झारखंड विधानसभा द्वारा भीड़ हिंसा की रोकथाम एवं मॉब लिंचिंग बिल पारित किया गया, जिसे हाल ही में कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिये राज्यपाल द्वारा वापस ले लिया गया है।

आगे की राह  

  • भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मॉब लिंचिंग के लिये कोई स्थान नहीं है। लोकतांत्रिक होने के नाते स्वयं पर गर्व करने वाले देश के लिये यह ज़रूरी है कि भीड़ हिंसा को खत्म किया जाए। 
  • एक निराशाजनक स्थिति के रूप में भीड़ हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता और वैधानिक दंड के परे पुलिस द्वारा अतिरिक्त न्यायिक दंड की सार्वजनिक स्वीकृति का प्रायः उल्टा असर होता है। अतः इस समाजिक-न्यायिक दुष्चक्र को रोकने के लिये कानूनी प्रक्रिया के प्रति जनता का विश्वास प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
  • केंद्र और देश के अन्य सभी राज्यों को भी मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों की तरह इन मामलों से निपटने हेतु व्यापक कानून लागू करने के लिये तत्पर रहना चाहिये। 
  • भ्रामक खबरों और अभद्र भाषा के प्रसार को रोकने के लिये भी उपाय किये जाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow