दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स



विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में बायोरेमेडिएशन

  • 04 Dec 2025
  • 77 min read

प्रिलिम्स के लिये: बायोरेमेडिएशन, जैव प्रौद्योगिकी, सिंथेटिक बायोलॉजी, बायोसेंसिंग

मेन्स के लिये: बायोरेमेडिएशन की आवश्यकता, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत बायोरेमेडिएशन पर पुनर्विचार कर रहा है, क्योंकि सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, कीटनाशक, प्लास्टिक और तेल फैलाव से होने वाला प्रदूषण देश की मृदा, जल तथा वायु पर निरंतर दबाव डाल रहा है। पारंपरिक सफाई तकनीकें महॅंगी और अस्थिर साबित होने के कारण, बायोरेमेडिएशन एक आशाजनक तथा विज्ञान-संलग्न विकल्प के रूप में उभर रहा है।

बायोरेमेडिएशन क्या है?

  • परिचय: बायोरेमेडिएशन जीवित जीवों (बैक्टीरिया, कवक, शैवाल या पौधे) का उपयोग करके विषैले प्रदूषकों को अपघटित करने या निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया है।
    • ये जीव तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक और भारी धातुओं जैसे संदूषकों को जल, कार्बन डाइऑक्साइड या कार्बनिक अम्ल जैसे हानिरहित उत्पादों में परिवर्तित कर देते हैं।
    • यह रासायनिक या यांत्रिक सफाई तकनीकों की तुलना में एक लागत-प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल विधि है।
  • प्रकार:
    • इन सीटू बायोरेमेडिएशन (In situ bioremediation): उपचार सीधे संदूषित स्थल पर किया जाता है।
      • उदाहरण: समुद्र में तेल फैलने पर तेल को विघटित करने वाले बैक्टीरिया प्रविष्ट कराए जाते हैं। 
    • एक्स सीटू बायोरेमेडिएशन (Ex situ bioremediation): संदूषित मृदा या जल को निकाला या पंप किया जाता है, नियंत्रित स्थान पर उपचारित किया जाता है और सफाई के बाद पुनः उसी स्थान पर रखा जाता है।
  • बायोरेमेडिएशन में प्रगति: आधुनिक बायोरेमेडिएशन पारंपरिक माइक्रोबायोलॉजी को जैव प्रौद्योगिकी और सिंथेटिक बायोलॉजी के साथ जोड़ता है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सूक्ष्मजीव अब प्लास्टिक और तेल अवशेष जैसे सघन रसायनों को विघटित करने के लिये डिज़ाइन किये जा रहे हैं।
    • सिंथेटिक बायोलॉजी ‘बायोसेंसिंग’ जीवों को सक्षम बनाती है, जो विषाक्त पदार्थों का पता लगाते ही रंग बदलते हैं, जिससे प्रारंभिक संदूषण चेतावनी मिलती है।
    • नई जैव प्रौद्योगिकियाँ उपयोगी जैव अणुओं की पहचान करने और उन्हें नियंत्रित परिस्थितियों में पुन: उत्पन्न करने में सहायता करती हैं, जिससे उनका उपयोग सीवेज संयंत्रों या कृषि क्षेत्रों जैसे स्थानों में किया जा सकता है।
    • नैनोमटेरियल्स और माइक्रोब–नैनोकॉम्पोजिट सिस्टम प्रदूषकों के त्वरित निष्कर्षण में उपयोगी साबित होते हैं।
  • भारत में बायोरेमेडिएशन की स्थिति: भारत में बायोरेमेडिएशन का विस्तार हो रहा है, लेकिन यह अधिकांशतः पायलट चरणों में ही है।
    • जीव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) अपने स्वच्छ प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के माध्यम से परियोजनाओं का समर्थन करता है।
    • IIT ने तेल फैलाव के लिये कॉटन-आधारित नैनोकॉम्पोजिट विकसित किये हैं और प्रदूषण-अपघटनकारी बैक्टीरिया की पहचान की है।
    • इकोनिर्मल बायोटेक (Econirmal Biotech) जैसी स्टार्टअप अब मृदा और अपशिष्ट जल उपचार के लिये सूक्ष्मजीवों के फॉर्मूले प्रदान कर रही हैं।

Bioremediation

भारत को बायोरेमेडिएशन की आवश्यकता क्यों है?

  • गंभीर प्रदूषण: तीव्र औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण गंगा और यमुना जैसी नदियाँ निरंतर प्रदूषित हो रही हैं, जो प्रतिदिन हज़ारों लीटर अप्रशोधित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषित होती हैं।
  • विभिन्न प्रकार के संदूषक: व्यापक तेल रिसाव, कीटनाशक अवशेष और भारी धातु प्रदूषण पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं, भूजल को प्रदूषित करते हैं तथा दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाते हैं।
  • पारंपरिक सफाई की सीमाएँ: यांत्रिक और रासायनिक सफाई महॅंगी, ऊर्जा-सघन और प्राय: द्वितीयक प्रदूषण उत्पन्न करती है।
    • बायोरेमेडिएशन एक लागत-प्रभावी, स्थायी और विकेंद्रीकृत समाधान प्रदान करता है, जो एक ऐसे देश में महत्त्वपूर्ण है जहाँ पर्यावरणीय पुनर्स्थापन हेतु संसाधन सीमित हैं।
  • भारत की समृद्ध जैवविविधता का लाभ: देशीय सूक्ष्मजीव प्रजातियाँ, जो उच्च तापमान, लवणता, अम्लता और विविध पारिस्थितिक परिस्थितियों के अनुकूल हैं, निरंतर विदेशी प्रजातियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं तथा पुनर्प्राप्ति की दक्षता बढ़ाती हैं।
  • बड़े पैमाने पर प्रदूषण के लिये उपयुक्त: भारत में संदूषित क्षेत्रों का विस्तार है, जैसे कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा पहचाने गए 300 से अधिक प्रदूषित नदी खंड, जहाँ जैविक सफाई पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक व्यवहार्य है।
  • भारत की तकनीकी कमियाँ: बड़े पैमाने पर इसे अपनाना तकनीकी सीमाओं जैसे स्थल-विशेष सूक्ष्मजीव ज्ञान की कमी और जटिल प्रकार के प्रदूषक, साथ ही एकरूप राष्ट्रीय मानकों के अभाव जैसी नियामक चुनौतियों के कारण बाधित होता है।

बायोरेमेडिएशन में अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ

  • जापान: अपने शहरी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति के तहत सूक्ष्मजीव-आधारित और पौध-आधारित प्रणालियों का उपयोग करता है।
  • यूरोपीय संघ: तेल फैलाव की सफाई और खनन-प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के लिये अंतर-देशीय बायोरेमेडिएशन परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
  • चीन: अपनी मृदा प्रदूषण नियंत्रण कानूनों के तहत बायोरेमेडिएशन को प्राथमिकता देता है और संदूषित औद्योगिक स्थलों को पुनर्स्थापित करने के लिये आनुवंशिक रूप से उन्नत बैक्टीरिया का उपयोग करता है।

भारत के लिये बायोरेमेडिएशन के अवसर और जोखिम क्या हैं?

              अवसर

                  जोखिम

प्रदूषित नदियों, झीलों और दलदलों को पुनर्स्थापित करने में मदद करता है।

जैविक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के उत्सर्जन से अनपेक्षित पारिस्थितिक प्रभाव पड़ सकते हैं।

प्रदूषित भूमि और औद्योगिक स्थलों की पुनःउपयोग की सुविधा प्रदान करता है।

अपर्याप्त परीक्षण या कमज़ोर रोकथाम प्रदूषण की समस्याओं को और बढ़ा सकता है।

बायोटेक्नोलॉजी, पर्यावरण परामर्श और अपशिष्ट प्रबंधन में रोज़गार सृजित करता है।

सार्वजनिक जागरूकता की कमी नए तकनीकों के प्रतिरोध या दुरुपयोग का कारण बन सकती है।

स्वच्छ भारत, नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम जैसी राष्ट्रीय पहलों का समर्थन करता है, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिक पुनर्स्थापन सुनिश्चित होता है।

कमज़ोर निगरानी प्रणाली और मज़बूत जैव-सुरक्षा दिशा-निर्देशों तथा प्रमाणन प्रणालियों की अनुपस्थिति सुरक्षा और प्रभावकारिता को सीमित कर सकती है।

भारत, बायोरिमेडिएशन को प्रभावी ढंग से कैसे बढ़ा सकता है?

  • DBT, CPCB और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के सुझावों के साथ बायोरिमेडिएशन और बायोमाइनिंग प्रोटोकॉल तथा सूक्ष्मजीव अनुप्रयोगों के लिये राष्ट्रीय दिशा-निर्देश विकसित करना।
    • बायोमाइनिंग वह प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण धातुओं को चट्टानी अयस्क या खदान के अपशिष्ट से निकालने के लिये सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।
  • विश्वविद्यालयों, उद्योगों और स्थानीय संस्थाओं को जोड़ते हुए क्षेत्रीय बायोरिमेडिएशन हब स्थापित करना।
  • DBT–BIRAC के माध्यम से स्टार्टअप और सामुदायिक परियोजनाओं का समर्थन करना।
  • जैव-संशोधित जीवों (GM जीव) के लिये जैव-सुरक्षा मानदंडों को मज़बूत करना, क्षेत्रीय स्तर के कर्मियों हेतु प्रमाणन और प्रशिक्षण का विस्तार करना, बायोसेंसर तथा डिजिटल डैशबोर्ड के माध्यम से वास्तविक समय निगरानी अपनाकर बायोरिमेडिएशन की प्रगति को ट्रैक करना।
  • सूक्ष्मजीव आधारित समाधानों के बारे में विश्वास और जागरूकता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक सहभागिता में सुधार करना।

निष्कर्ष

बायोरिमेडिएशन भारत को प्रदूषित पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्स्थापित करने का एक सतत और किफायती मार्ग प्रदान करता है, साथ ही यह SDG 6 (स्वच्छ जल) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) को भी समर्थन देता है। मज़बूत मानकों, कुशल मानव संसाधन और सार्वजनिक विश्वास के साथ यह दीर्घकालिक पर्यावरणीय पुनर्प्राप्ति का एक मुख्य स्तंभ बन सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  बायोरिमेडिएशन पारंपरिक तरीकों की तुलना में सुधार लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है। चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. बायोरेमेडिएशन क्या है?
बायोरिमेडिएशन जीवित जीवों (सूक्ष्मजीव, कवक, शैवाल, पौधे) का उपयोग करके प्रदूषकों जैसे तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक और भारी धातुओं को हानिरहित पदार्थों में तोड़ने या निष्क्रिय करने की प्रक्रिया है।

2. बायोरिमेडिएशन ‘नमामि गंगे’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों का समर्थन कैसे करता है?
बायोरिमेडिएशन नदी के स्वास्थ्य को बहाल करने हेतु ‘नमामि गंगे’ और स्वच्छ भारत के तहत किये जाने वाले बुनियादी ढाँचे के सुधारों के साथ-साथ सीवेज और जैविक प्रदूषण के लिये विकेंद्रीकृत, कम लागत वाला उपचार प्रदान करता है।

3. बायोरिमेडिएशन के मुख्य जोखिम क्या हैं?
जोखिमों में जैविक रूप से संशोधित जीवों से अनपेक्षित पारिस्थितिक प्रभाव, अपर्याप्त परीक्षण, कमज़ोर रोकथाम और कमज़ोर निगरानी शामिल है, जिसके लिये सख्त जैव-सुरक्षा दिशा-निर्देशों तथा प्रमाणन की आवश्यकता होती है।

सारांश 

  • बायोरिमेडिएशन प्रदूषकों को सुरक्षित रूप से तोड़ने के लिये सूक्ष्मजीवों और जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है और पारंपरिक सफाई विधियों की तुलना में यह एक सस्ता और पर्यावरण-मित्र विकल्प प्रदान करता है।
  • भारत को इसकी आवश्यकता इसलिये है क्योंकि नदियों, मिट्टी और भूजल में गंभीर प्रदूषण है, CPCB द्वारा 300 से अधिक प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की गई है और औद्योगिक अपशिष्ट लगातार बढ़ रहा है।
  • भारत के प्रयास DBT, IITs और स्टार्टअप्स के माध्यम से बढ़ रहे हैं। हालाँकि तकनीकी अंतर और राष्ट्रीय मानकों की कमी के कारण अपनाने की गति धीमी है।
  • बायोरिमेडिएशन को बढ़ाने और स्वच्छ भारत तथा ‘नमामि गंगे’ जैसी अभियानों का समर्थन करने के लिये मज़बूत जैव-सुरक्षा नियम, क्षेत्रीय हब तथा सार्वजनिक जागरूकता आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रीलिम्स

प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं ? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है। 
  2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज और पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है। 
  3. जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1 

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3 

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

close
Share Page
images-2
images-2