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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सिंथेटिक बायोलॉजी

  • 18 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सिंथेटिक बायोलॉजी, सिंथेटिक बायोलॉजी के अनुप्रयोग, विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक नवाचार और खोज, बौद्धिक संपदा अधिकार, सिंथेटिक जीव विज्ञान पर राष्ट्रीय नीति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सिंथेटिक बायोलॉजी पर एक मसौदा दूरदर्शिता पत्र जारी किया।

  • सिंथेटिक जीव विज्ञान में ऊर्जा, कृषि और जैव ईंधन के विविध अनुप्रयोग होते हैं। इस प्रकार हमेशा खुले वातावरण में घटकों के निकलने का एक कथित खतरा रहता है।
  • इसलिये यह दस्तावेज़ एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता पर ज़ोर देता है जो इस मुद्दे पर भारत के रुख को मज़बूत कर सके।

सिंथेटिक बायोलॉजी:

  • 'सिंथेटिक बायोलॉजी' शब्द का इस्तेमाल पहली बार ‘बारबरा होबोमिन’ ने वर्ष 1980 में बैक्टीरिया का वर्णन करने के लिये किया था, जिन्हें पुनः संयोजक डीएनए तकनीक का उपयोग करके आनुवंशिक रूप से निर्मित किया गया था।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी, अप्राकृतिक जीवों या कार्बनिक अणुओं के निर्माण के लिये आनुवंशिक अनुक्रमण, संपादन और संशोधन प्रक्रिया का उपयोग करने संबंधी विज्ञान को संदर्भित करता है जो जीवित प्रणालियों में कार्य कर सकते हैं।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी वैज्ञानिकों को स्क्रैच से डीएनए के नए अनुक्रमों को डिज़ाइन और संश्लेषित करने में सक्षम बनाती है।
  • इस शब्द का प्रयोग अप्राकृतिक कार्बनिक अणुओं के संश्लेषण का वर्णन करने के लिये किया गया था जो जीवित प्रणालियों में कार्य करते हैं।
    • इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक रूप से 'जीवन को नया स्वरूप देने' के प्रयासों के संदर्भ में किया गया है।

Synthetic-biology

सिंथेटिक बायोलॉजी के अनुप्रयोग:

  • मानकीकृत जैविक भाग: मानकीकृत जीनोमिक भागों की पहचान और उन्हें वर्गीकृत करना जिनका उपयोग नई जैविक प्रणालियों के निर्माण के लिये किया जा सकता है।
  • एप्लाइड प्रोटीन डिज़ाइन: मौजूदा जैविक भागों को फिर से डिज़ाइन करना और नई प्रक्रियाओं के लिये प्राकृतिक प्रोटीन के समूह का विस्तार करना।
    • उदाहरण के लिये बीटा-कैरोटीन (आमतौर पर गाजर से जुड़ा एक पोषक तत्व) का उत्पादन करने के लिये संशोधित चावल, जो विटामिन A की कमी को रोकता है।
  • प्राकृतिक उत्पाद संश्लेषण: प्राकृतिक उत्पादों के जटिल उत्पादन हेतु सभी आवश्यक एंज़ाइमों और जैविक कार्यों को करने के लिये निर्माणकारी रोगाणु।
    • उदाहरण के लिये पानी, मिट्टी और हवा से प्रदूषकों को साफ करने के लिये बायोरेमेडिएशन (पर्यावरणीय दूषित पदार्थों के प्रदूषक को कम करने हेतु जीवित सूक्ष्मजीवों का उपयोग) हेतु सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।
  • सिंथेटिक जीनोमिक्स- प्राकृतिक जीवाणु के लिये एक 'सामान्य' जीनोम का निर्माण और डिज़ाइन।
    • उदाहरण के लिये यीस्ट द्वारा गुलाब के तेल को पर्यावरण के अनुकूल और वास्तविक गुलाबों के स्थायी विकल्प के रूप में उत्पादित किया जाता है, जिसका उपयोग परफ्यूमर् में सुगंध के लिये करते हैं।

सिंथेटिक जीवविज्ञान के संभावित नकारात्मक प्रभाव:

  • नकारात्मक पर्यावरणीय दशाएँ: पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से निर्मित जीवमानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
    • इन प्रौद्योगिकियों का दुरुपयोग और अनपेक्षित परिणामों के लिये ज़िम्मेदार होने जैसी विफलता अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति का कारण बन सकती है।
  • डू-इट-योरसेल्फ बायोलॉजी: यह सिंथेटिक बायोलॉजी प्रयोगों में रुचि रखने वाले "नागरिक वैज्ञानिकों" का एक आंदोलन है जो पिछले दशक में एक अंतर्राष्ट्रीय घटना बन गई।
    • अक्सर क्षेत्र के बारे में बहुत कम ज्ञान के साथ उत्साही लोग जैव प्रौद्योगिकी में क्रैश कोर्स करने और व्यावहारिक प्रयोग के लिये अस्थायी प्रयोगशालाओं में  कार्य करते हैं।
  • नैतिक चिंताएँ: सिंथेटिक जीव विज्ञान से संबंधित कई नैतिक प्रश्न जीनोम संपादन संबंधी नैतिक चर्चाओं के समान हैं जैसे:
    • क्या मनुष्य सिंथेटिक जीवविज्ञान तकनीकों के साथ जीवों को नया स्वरूप देकर नैतिक सीमाओं को पार कर रहे हैं?
    • यदि सिंथेटिक जीव विज्ञान नए उपचार और रोगों के इलाज की खोज करता है, तो समाज में किन लोगों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित होगी?

सिंथेटिक जीवविज्ञान से संबंधित शासन, नीति और नियामक पहलू:

आगे की राह 

  • भारत को अभी औपचारिक रूप से सिंथेटिक बायोलॉजी (नीति और नियामक दोनों) पर अपनी राष्ट्रीय रणनीति के साथ आगे आना बाकी है।
  • इस संदर्भ में भारत की नीति और नियामक ढांँचे जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है जिनमें शामिल हैं: 
    • इस बात को परिभाषित करना आवश्यक है कि सिंथेटिक जीवविज्ञान का गठन किस प्रकार से किया जाए।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के लिये किस तरह के अनुसंधान और विकास को प्राथमिकता दी जाएगी।
    • भविष्य के अनुसंधान हेतु निजी क्षेत्र के लिये मार्गदर्शन और बौद्धिक संपदा अधिकारों सहित प्रासंगिक नीति ढांँचे से संबंधित विचार क्या होंगे।
    • पर्यावरण और सामाजिक-अर्थशास्त्र से संबंधित मुद्दों पर विचार करते हुए भारत इस तकनीक के विकास और उपयोग को कैसे नियंत्रित करेगा।
  • राष्ट्रीय रणनीति बनाते समय भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों पर विचार करना चाहिये जो इस प्रकार हैं:
    • एहतियाती/निवारक सिद्धांत।
    • राज्य की संप्रभुता और सीमा पार से होने वाले नुकसान की रोकथाम।
    • राज्य की ज़िम्मेदारी और पर्यावरण प्रभाव आकलन।
    • सूचना तक पहुंँच, सार्वजनिक भागीदारी और न्याय तक पहुंँच का सिद्धांत।
    • लोगों के आत्मनिर्णय का अधिकार और पूर्व सूचित सहमति से मुक्ति।
    • सतत् विकास और अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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