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एडिटोरियल

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

परमाणु ऊर्जा की संभावनाएँ

  • 15 Mar 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 12/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Shutdown This Misguided Energy Policy” पर आधारित है। इसमें भारत में परमाणु ऊर्जा को अपनाने के क्रम में आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

ऊर्जा प्रत्येक समाज या राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है क्योंकि यह विकास की सीढ़ी के साथ आगे बढ़ती है।

हाल के समय में विश्व को बिजली और ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा है। यद्यपि अलग-अलग देशों में इस संकट के कारण अलग-अलग रहे हैं फिर भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और व्यवहार्य विकल्पों की तलाश करने के लिये आवाज़ उठने लगी है।

इस संदर्भ में परमाणु ऊर्जा एक वृहत अवसर उपलब्ध करा सकती है। एक ओर यह वर्तमान में मनुष्य को ज्ञात ऊर्जा का सबसे सस्ता, हरित और सबसे सुरक्षित स्रोत हो सकती है तो दूसरी ओर यह मानव जाति के इतिहास की कुछ सबसे भीषण आपदाओं के लिये ज़िम्मेदार भी रही है।

परमाणु ऊर्जा के संबंध में भारत की प्रमुख पहल:

  • भारत ने बिजली उत्पादन के उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा के दोहन की संभावना का पता लगाने के लिये सचेत रूप से कदम आगे बढ़ाए हैं।
  • भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में दो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्त्वों यूरेनियम और थोरियम को परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने के निर्धारित उद्देश्यों के साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 को तैयार एवं कार्यान्वित किया गया।
  • दिसंबर 2021 में भारत सरकार ने संसद को बताया कि 10 स्वदेशी ‘दाबित भारी जल रिएक्टरों (Pressurised Heavy Water Reactors- PHWRs) का निर्माण किया जा रहा है जिन्हें फ्लीट मोड में स्थापित किया जाएगा, जबकि 28 अतिरिक्त रिएक्टरों के लिये सैद्धांतिक अनुमोदन प्रदान कर दिया गया है जिनमें से 24 रिएक्टर फ्राँस, अमेरिका और रूस से आयात किये जाएँगे।
  • हाल ही में केंद्र ने महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने के लिये सैद्धांतिक (प्रथम चरण) मंज़ूरी प्रदान की है।
    • जैतापुर संयंत्र विश्व का सबसे शक्तिशाली परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा। यहाँ 9.6 गीगावॉट की स्थापित क्षमता वाले छह अत्याधुनिक इवोल्यूशनरी पॉवर रिएक्टर (EPRs) होंगे जो निम्न-कार्बन वाली बिजली का उत्पादन करेंगे।
    • ये छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर (जिनमें प्रत्येक की क्षमता 1,650 मेगावाट होगी) फ्राँस के तकनीकी सहयोग से स्थापित किये जाएँगे।

परमाणु ऊर्जा क्यों?

  • थोरियम की उपलब्धता: भारत थोरियम की उपलब्धता के मामले में अग्रणी स्थान रखता है जिसे भविष्य का परमाणु ईंधन माना जाता है।
    • थोरियम की उपलब्धता के साथ भारत में ऐसा पहला राष्ट्र बनने की क्षमता है जो जीवाश्म ईंधन मुक्त राष्ट्र होने के सपने को साकार कर सकता है।
  • आयात बिलों में कटौती: परमाणु ऊर्जा उत्पादन से राष्ट्र को सालाना लगभग 100 बिलियन डॉलर की बचत होगी जिसे हम पेट्रोलियम और कोयले के आयात पर खर्च करते हैं।
  • स्थिर और विश्वसनीय स्रोत: विद्युत के सबसे हरित स्रोत निश्चित रूप से सौर एवं पवन हैं। लेकिन अपने सभी लाभों के बावजूद सौर एवं पवन ऊर्जा स्थिर नहीं हैं और मौसम एवं धूप की स्थिति पर अत्यधिक निर्भर हैं।
    • दूसरी ओर, परमाणु ऊर्जा अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति के साथ विश्वसनीय ऊर्जा का अपेक्षाकृत स्वच्छ, उच्च घनत्व वाला स्रोत प्रदान करती है।
  • सस्ता परिचालन/संचालन: कोयला अथवा गैस संयंत्रों की तुलना में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की परिचालन लागत कम होती है। अनुमान लगाया गया है कि रेडियोधर्मी ईंधन के प्रबंधन और परमाणु संयंत्रों के निपटान जैसी लागतों को जोड़कर भी यह लागत कोयला संयंत्र के 33 से 50% और गैस संयुक्त-चक्र संयंत्र के 20 से 25% के ही बराबर है।

परमाणु ऊर्जा अपनाने से संबद्ध चुनौतियाँ

  • पूंजी गहन: परमाणु ऊर्जा संयंत्र पूंजी गहन हैं और हाल के परमाणु निर्माणों को बड़ी लागत का सामना करना पड़ा है। इसका एक हालिया उदाहरण दक्षिण कैरोलिना (यूएस) में वी.सी. समर परमाणु परियोजना है जहाँ लागत इतनी तेज़ी से बढ़ी कि 9 बिलियन डॉलर से अधिक के खर्च के बाद परियोजना को छोड़ दिया गया।
  • अपर्याप्त परमाणु स्थापित क्षमता: वर्ष 2008 में परमाणु ऊर्जा आयोग ने अनुमान लगाया था कि भारत में वर्ष 2050 तक 650GW स्थापित क्षमता होगी; वर्तमान स्थापित क्षमता मात्र 6.78 गीगावॉट है।
    • इस तरह के लक्ष्य इस उम्मीद पर आधारित थे कि भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के बाद भारत कई लाइट-वाटर रिएक्टरों का आयात करेगा। लेकिन इस समझौते के संपन्न होने के 13 साल बाद भी किसी नए परमाणु संयंत्र की स्थापना नहीं हुई है।
  • सार्वजनिक वित्तपोषण की कमी: परमाणु ऊर्जा को कभी भी ऐसी उदार सब्सिडी प्राप्त नहीं हुई जैसी अतीत में जीवाश्म ईंधन को प्राप्त हुई थी और वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त हो रही है।
    • सार्वजनिक वित्तपोषण के अभाव में परमाणु ऊर्जा के लिये भविष्य में प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा से मुकाबला करना कठिन होगा।
  • भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण और परमाणु ऊर्जा संयंत्र (NPP) के लिये स्थान का चयन भी देश में एक बड़ी समस्या है।
    • तमिलनाडु में कुडनकुलम और आंध्र प्रदेश में कोव्वाडा जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भूमि अधिग्रहण संबंधी चुनौतियों के कारण देरी का सामना करना पड़ा है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से परमाणु रिएक्टर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाएगा। विश्व में लगातार गर्म होते जा रहे ग्रीष्मकाल के दौरान पहले से ही कई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करने की स्थिति बनती रही है।
    • इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा संयंत्र अपने रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये आस-पास के जल स्रोतों पर निर्भर हैं, जबकि नदियों आदि के सूखने के साथ जल के उन स्रोतों की अब गारंटी नहीं है।
    • भविष्य में इस तरह की चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने की संभावना है।
  • अपर्याप्त पैमाने पर तैनाती: भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये यह उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता है क्योंकि इसे आवश्यक पैमाने पर तैनात नहीं किया जा सकता है।
  • परमाणु अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा का एक अन्य दुष्प्रभाव इससे उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्ट की मात्रा है। परमाणु अपशिष्ट का जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसे यह कैंसर के विकास का कारण बन सकता है या पशुओं तथा पौधों की कई पीढ़ियों के लिये आनुवंशिक समस्याएँ पैदा कर सकता है।
    • भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में भूमि का अभाव है और आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल सुविधा सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं है।

आगे की राह

  • परमाणु बिजली पर सब्सिडी: परमाणु रिएक्टरों से बिजली की लागत कम-से-कम 15 रुपए प्रति यूनिट होगी (पारेषण लागत को छोड़कर) जबकि सौर ऊर्जा के लिये हाल ही में न्यूनतम बोली 2.14 रुपए प्रति यूनिट और सौर-पवन हाइब्रिड परियोजनाओं के लिये 2.34 रुपए रही है।
    • यदि परमाणु बिजली को प्रतिस्पर्द्धी दर पर बेचा जाना है तो उसे भारत सरकार द्वारा बहुत अधिक सब्सिडी देनी होगी जो भारत के परमाणु ऊर्जा निगम के माध्यम से सभी परमाणु संयंत्रों का संचालन करती है।
  • पूर्व-परियोजना मुद्दों को संबोधित करना: सरकार को नई साइटों पर भूमि अधिग्रहण, विभिन्न मंत्रालयों (विशेष रूप से पर्यावरण मंत्रालय) से मंज़ूरी और समय पर विदेशी सहयोगियों को खोजने जैसी परियोजना-पूर्व गतिविधियों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करना चाहिये।
    • इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की पूंजीगत लागत को कम करने के लिये निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये।
  • सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना: सुरक्षा जो एक प्रमुख चिंता का विषय है, को प्राथमिकता के आधार पर संबोधित किया जाना चाहिये।
    • परमाणु दुर्घटना के भय से परमाणु ऊर्जा उत्पादन को पूरी तरह से समाप्त करना एक गलत कदम होगा।
      • यदि सुरक्षा के उच्चतम मानकों का पालन करते हुए परमाणु ऊर्जा उत्पन्न की जाती है तो भयावह दुर्घटनाओं की संभावना कम रहती है।
    • इस संबंध में जल्द-से-जल्द एक परमाणु सुरक्षा नियामक प्राधिकरण (Nuclear Safety Regulatory Authority) की स्थापना करना देश में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के लिये सहायक होगा।
  • तकनीकी सहायता: भारत में पुनर्प्रसंस्करण और संवर्द्धन क्षमता को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को भुक्तशेष ईंधन (Spent Fuel) का पूरी तरह से उपयोग करने और अपनी संवर्द्धन क्षमता बढ़ाने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत के पास दुर्लभ और अत्यंत महत्त्वपूर्ण ‘भविष्य का परमाणु ईंधन- थोरियम’ मौजूद है। इसे विश्व की ऊर्जा राजधानी के रूप में उभरने का अवसर नहीं खोना चाहिये क्योंकि इसके माध्यम से यह विश्व की सबसे बड़ी युवा शक्ति के साथ-साथ दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्था के रूप में भी उभर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत दुर्लभ और अत्यंत महत्त्वपूर्ण भविष्य के परमाणु ईंधन थोरियम से समृद्ध है। परमाणु दुर्घटना के भय से परमाणु ऊर्जा के उत्पादन को पूरी तरह से समाप्त करना एक गलत कदम होगा।’’ चर्चा कीजिये।

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