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ई.वी.एम. की प्रामाणिकता पर प्रश्न

  • 25 May 2017
  • 12 min read

संदर्भ
पिछले कुछ समय से आए दिन राजनीतिक दल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) की प्रामाणिकता पर सवाल उठा रहे हैं।  वैसे देखा जाए तो यह घटना चुनाव में हार-जीत को लेकर विभिन्न दलों के बीच चलने वाले आरोप-प्रत्यारोप का ही रूप है, और इस संदर्भ में अगर चुनाव की भूमिका की बात करें तो अब तक एसा देखा गया है कि आयोग खुद को इन घटनाओं से दूर ही रखता है।  लेकिन यहाँ मामला सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कुछ राजनीतिक दल मज़बूत तर्कों के आधार पर  ई.वी.एम. की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

चूँकि, हमारे यहाँ चुनावों को सम्पन्न कराने का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व निर्वाचन आयोग का होता है, साथ ही चुनाव् प्रक्रिया में प्रयोग होने वाली सम्पूर्ण व्यवस्था का प्रबन्धन भी आयोग ही करता है।  ऐसे में, अगर कोइ राजनीतिक दल ई.वी.एम. को लेकर गंभीर आरोप लगाता है तो यह चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली एवं प्रबंधन पर ही सवालिया निशाँ लगाना होगा।  यही कारन है कि इस मुद्दे को लेकर आयोग एकदम गंभीर हो गया है।  आयोग ने, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव वाले पाँच राज्यों के चुनाव अधिकारियों को किसी भी समय जाँच हेतु मँगाए जाने पर ई.वी.एम. को भेजने के लिये  तैयार रहने के लिये कहा है।  दरअसल, आयोग ने ई.वी.एम. के साथ छेड़छाड़ संबंधी आरोपों को साबित करने के लिये राजनीतिक दलों को एक खुली चुनौती दी है।  

 इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी

  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पाँच-मीटर केबल द्वारा जुड़ी दो यूनिटों (एक कंट्रोल यूनिट एवं दूसरी बैलेटिंग यूनिट) से बनी होती है। जहाँ कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास होती है, वहीं बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखी होती है। बैलेट पेपर जारी करने की बजाय कंट्रोल यूनिट का प्रभारी मतदान अधिकारी बैलेट बटन को दबाएगा। यह मतदाता को बैलेटिंग यूनिट पर अपनी पसंद के अभ्यर्थी एवं प्रतीक के सामने नीले बटन को दबाकर अपना मत डालने के लिये सक्षम बनाएगा।
  • वर्ष 1989-90 में विनिर्मित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को  प्रयोगात्मक आधार पर पहली बार नवम्बर 1998 में आयोजित 16 विधानसभाओं के साधारण निर्वाचन में इस्तेमाल किया गया था। इन 16 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के 5-5 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के 6 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र शामिल थे।
  • ई.वी.एम. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलुरु एवं इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा विनिर्मित 6 वोल्ट की साधारण बैटरी पर चलती है। अत: ई.वी.एम. का ऐसे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है जहाँ पर बिजली कनेक्शन की सुविधा नहीं है।
  • ई.वी.एम. में अधिकतम 3840 मत दर्ज किये जा सकते हैं। जैसा कि सामान्य तौर पर होता है, एक मतदान केन्द्र में मतदाताओं की कुल संख्याह 15,00 से अधिक नहीं होगी, फिर भी ई.वी.एम. की क्षमता पर्याप्त से अधिक है।
  • ध्यातव्य है कि एक ई.वी.एम. अधिकतम 64 उम्मीदवारों के लिये काम कर सकती है। साथ ही, एक बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवारों के लिये प्रावधान है। यदि उम्मीदवारों की कुल संख्या 16 से अधिक हो जाती है तो पहली बैलेटिंग यूनिट के साथ-साथ एक दूसरी बैलटिंग यूनिट जोड़ी जा सकती है। इसी प्रकार, यदि उम्मीदवारों  की कुल संख्या 32 से अधिक हो तो एक तीसरी बैलेटिंग यूनिट जोड़ी जा सकती है, और यदि उम्मीदवारों  की कुल संख्या 48 से अधिक हो तो एक चौथी यूनिट अधिकतम 64 उम्मीदवारों  के लिये काम करने हेतु जोड़ी जा सकती है।
  • यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक हो जाए तो ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में ई.वी.एम. का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में मतपेटी एवं मत पत्र के माध्यम से किये जाने वाले मतदान की पारंपरिक प्रणाली को अपनाना पड़ेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें ढेरों बैठकें करने, प्रोटोटाइपों की परीक्षण-जाँच करने एवं व्याजक फील्ड ट्रायलों के बाद दो लोक उपक्रमों अर्थात भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलुरु  एवं इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया, हैदराबाद के सहयोग से निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार एवं डिज़ाइन की गई हैं। अब, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें उपर्युक्त दो उपक्रमों द्वारा विनिर्मित की जाती हैं।
  • कंट्रोल यूनिट  की मेमोरी में  परिणाम 10 वर्ष और उससे भी अधिक समय तक सुरक्षित रहता है।

 ई.वी.एम. से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य

  • भारत में ई.वी.एम. का पहली बार प्रयोग 1982 में केरल के परुर विधानसभा चुनाव में 50 मतदान केन्द्रों पर हुआ था। 
  • फरवरी 1990 में केंद्र सरकार ने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति गठित की और ई.वी.एम. के इस्तेमाल संबंधी विषय को विचार हेतु इस समिति के समक्ष भेजा।  

ई.वी.एम. की  प्रामाणिकता  पर प्रश्न क्यों ?
गौरतलब है कि समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने ई.वी.एम. की प्रामाणिकता  पर प्रश्न उठाए हैं, लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी द्वारा उठाए गए सवाल कुछ तकनीकी खामियों को रेखांकित करते हैं, जो इस प्रकार हैं:

  • प्रथम, ट्रोजन जैसे खतरनाक कंप्यूटर वायरस को ई.वी.एम. के सिस्टम में डालकर उसमें लगे चिप के साथ छेड़-छाड़ की जा सकती है अथवा उसके समूचे मदरबोर्ड (जिसके अंतर्गत चिप होता है) को ही बदला जा सकता है। 
  • दूसरा, बैलट एवं कण्ट्रोल यूनिट को जोड़ने वाले कम्युनिकेशन सिस्टम में छेड़-छाड़ करके भी ई.वी.एम. में गड़बड़ी की जा सकती है।     

चुनाव आयोग  द्वारा उठाए गए कदम 
उक्त समस्या के आलोक में चुनाव आयोग द्वारा समय–समय पर विभिन्न कदम उठाए जाते रहे हैं, साथ ही तकनीकी व प्रशासनिक आधार पर नवीन सुरक्षात्मक उपायों को भी आजमाया गया है ताकि ई.वी.एम. में छेड़छाड़ की समस्या से निजात पाई जा सके।  आयोग द्वारा उठाए गए कदम इस प्रकार हैं –

  • ई.वी.एम. के बटन को दबाने के साथ ही टाइम-स्टम्पिंग की व्यवस्था
  • दूसरी पीढ़ी के ई.वी.एम. में डायनामिक कोडिंग की व्यवस्था और तीसरी पीढ़ी के ई.वी.एम.  में स्वतः विश्लेषण की व्यवस्था (self diagnostic system)।  
  • एक सख्त प्रशासनिक प्रोटोकॉल जिसके तहत ई.वी.एम. के निर्माण के पश्चात् विभिन्न स्तरों पर जाँच अनिवार्य है।  साथ ही, ई.वी.एम. की आपूर्ति को रैंडम तरीके से भेजना, पूर्णतः सील स्ट्रोंग रूम  में रखना, साथ ही समय-समय पर चुनाव प्रक्रिया के छद्म अभ्यास को आयोजित करना। 
  • हाल ही में, चुनाव आयोग द्वारा वर्ष 2019 से वोटर वेरिफिकेशन पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) को  अखिल भारतीय  स्तर पर लागू करने की  घोषणा की गई है।  

वी.वी.पी.ए.टी. से जुड़े कुछ तथ्य

  • वी.वी.पी.ए.टी. चुनावी पारदर्शिता को बनाए रखने के लिये एक और उल्लेखनीय कदम है,जिसके माध्यम से मतदाता को अपने द्वारा डाले गए मत को उसी समय वेरीफाई करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है, वहीं  चुनाव बाद के समय में मशीन को सम्पूर्ण टेली (Total tallies) से कुल डाले गए मतों के मिलान करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है। 
  • फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने ई.वी.एम. मशीनों में गड़बड़ी और ई.वी.एम. में वी.वी.पी.ए.टी इनस्टॉल  करने की मांग करने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी की याचिकाओं पर सुनवाई को ग्रीष्मावकाश के बाद के लिये रोक दिया गया है, तथापि कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश अवश्य दिया है । 
  • गौरतलब है कि बहुजन समाजवादी पार्टी ने अपनी याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने तो वर्ष 2013 में ही वी.वी.पी.ए.टी. इंस्टॉल करने का आदेश दिया था, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग को पेपर ट्रेल वाले ई.वी.ए.म के लिये फंड नहीं देती है। पार्टी द्वारा दायर याचिका में चुनाव में ई.वी.एम. का प्रयोग करने के संबंध में जनप्रतिधिनित्व कानून की धारा 61 (1)के तहत दिये गए प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।  

निष्कर्ष 
चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों से आलोचकों का एक वर्ग संतुष्ट नहीं है, वहीं चुनाव आयोग ने अपनी ठोस तकनीकी और प्रशासनिक तैयारियों को पुख्ता बताते हुए सभी राजनीतिक दलों को 3 जून को होने वाली खुली जाँच प्रक्रिया –HACKATHON में आने के लिये आमंत्रित किया है। 

राजनीति व राजनितिक दोषारोपण अपनी जगह हैं, लेकिन चुनावी व्यवस्था में मतदाता का विश्वास बहाल करने की दृष्टि से ई.वी.एम. की समयबद्ध तरीके से जाँच करते रहना अनिवार्य होगा। अतः 3 जून को होने वाला HACKATHON पारदर्शी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की तरफ बढाया जाने वाला एक ठोस कदम होगा, जहाँ राजनीतिक  दुर्भावना व संदेह का कोई स्थान नहीं होगा।

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