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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वर्तमान समय में BRICS

  • 02 Sep 2021
  • 15 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 01/09/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘It's time to build BRICS better’’ लेख पर आधारित है। इसमें ब्रिक्स (BRICS) की सफलता और इस समूह के भविष्य के संबंध में चर्चा की गई है।

13वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS summit), 2021 भारत की अध्यक्षता में डिजिटल प्रारूप में आयोजित किया जाने वाला है। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस बहुपक्षीय समूह की अध्यक्षता बारी-बारी से पाँचों सदस्य देशों द्वारा की जाती है। भारत ने पूर्व में वर्ष 2012 और 2016 में इसकी अध्यक्षता की थी।   

यह समूह एक सीमा तक सफल रहा है लेकिन वर्तमान में यह कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह उपयुक्त समय है कि इन चुनौतियों की पहचान की जाए और भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाया जाए।

ब्रिक्स का महत्त्व

  • पाँच बड़े देशों का समूह: वर्ष 2006 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन (Brazil, Russia, India and China- BRIC) के विदेश मंत्रियों की एक बैठक द्वारा इस समूह की शुरूआत हुई और वर्ष 2009 से नियमित रूप से आयोजित शिखर सम्मेलनों से सृजित राजनीतिक तालमेल के साथ वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका के प्रवेश से BRIC BRICS (Brazil, Russia, India, China and South Africa- BRICS) में रूपांतरित हो गया।  
    • ब्रिक्स का महत्त्व स्वयंसिद्ध है: यह विश्व की आबादी के 42%, भूमि क्षेत्र के 30%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 24% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के 16% का प्रतिनिधित्व करता है।   
  • उत्तर और दक्षिण के बीच का सेतु: इस समूह की यात्रा पर्याप्त उत्पादक रहा है। इसने वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के बीच एक सेतु (a bridge between the Global North and Global South) के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है। 
  • साझा वैश्विक परिप्रेक्ष्य: BRICS ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया ताकि वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते हुए बाज़ारों की बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें। 
  • विकास सहयोग: इसने वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला पर एक साझा दृष्टिकोण का विकास किया है; न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना की है; आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (Contingency Reserve Arrangement) के रूप में एक वित्तीय स्थिरता नेट का निर्माण किया है; और एक ‘वैक्सीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट वर्चुअल सेंटर’ (Vaccine Research and Development Virtual Center) स्थापित करने की राह पर अग्रसर है।

ब्रिक्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त: समूह के समक्ष संघर्ष की कई स्थितियाँ मौजूद रही हैं। जैसे, पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता से भारत-चीन संबंध पिछले कई दशकों में अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है।  
    • पश्चिम के साथ चीन और रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका में व्याप्त गंभीर आंतरिक चुनौतियाँ जैसी वास्तविकताओं का सामना भी यह समूह कर रहा है।
    • इधर दूसरी ओर कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर चीन की छवि खराब हुई है। इस पृष्ठभूमि में ब्रिक्स की प्रासंगिकता संदेहास्पद बनी है।
  • विषम जातीयता (Heterogeneity): आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विषम जातीयता (सदस्य देशों की परिवर्तनशील/भिन्न प्रकृति), जहाँ देशों के अपने अलग-अलग हित हैं, से समूह की व्यवहार्यता को खतरा पहुँच रहा है।   
  • चीन-केंद्रित समूह: ब्रिक्स समूह के सभी देश चीन के साथ एक-दूसरे की तुलना में अधिक व्यापार करते हैं, इसलिये इसे चीन के हित को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में दोषी ठहराया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य साझेदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है। 
  • शासन के लिये वैश्विक मॉडल: वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीच, ब्रिक्स के लिये एक प्रमुख चुनौती शासन के एक नए वैश्विक मॉडल का विकास करना है जो एकध्रुवीय नहीं हो, बल्कि समावेशी और रचनात्मक हो।  
    • लक्ष्य यह होना चाहिये कि प्रकट हो रहे वैश्वीकरण के नकारात्मक परिदृश्य से बचा जाए और विश्व की एकल वित्तीय तथा आर्थिक सातत्य को विकृत किये या तोड़े बिना वैश्विक उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक जटिल विलय शुरू किया जाए।
  • घटती प्रभावकारिता: पाँच शक्तियों का यह गठबंधन सफल रहा है, लेकिन एक सीमा तक ही। चीन के वृहत आर्थिक विकास ने ब्रिक्स के अंदर एक गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। इसके अलावा, समूह ने वैश्विक दक्षिण की सहायता के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किया है, ताकि अपने एजेंडे के लिये उनका इष्टतम समर्थन हासिल कर सके।

ब्रिक्स की प्राथमिकताएँ

  • बहुपक्षीयता का निर्माण: पहली प्राथमिकता यह हो कि संयुक्त राष्ट्रविश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर विश्व व्यापार संगठन और अब यहाँ तक ​​कि विश्व स्वास्थ्य संगठन तक—बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार को आगे बढ़ाया जाए।      
    • यह कोई नया लक्ष्य नहीं है। ब्रिक्स को इस दिशा में अब तक बहुत कम सफलता मिली है, हालाँकि बहुपक्षीयता को सुदृढ़ करना एक सशक्त बंधन के साथ-साथ एक प्रकाश-स्तंभ (beacon) के रूप में भी कार्य करेगा।
    • सुधार के लिये वैश्विक सर्वसम्मति की आवश्यकता है जो कि अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा और स्वास्थ्य, जीवन एवं आजीविका को कोविड-19 से लगे भारी आघात के वर्तमान परिदृश्य में शायद ही संभव है।
  • आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये संकल्प: आतंकवाद एक अंतर्राष्ट्रीय परिघटना है जो यूरोप, अफ्रीका, एशिया और विश्व के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर रहा है। अफगानिस्तान के मामले में दुखद घटनाओं की कड़ी ने इस व्यापक विषय पर तीव्रता से ध्यान केंद्रित करने में मदद की है और महज बयानबाजी एवं वास्तविक कार्रवाई के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता पर बल दिया है। 
    • इस संदर्भ में, ब्रिक्स आतंकवाद-रोधी कार्ययोजना (जिसमें कट्टरपंथीकरण, आतंकवादी वित्तपोषण और आतंकी समूहों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग से मुकाबले के लिये विशिष्ट उपायों पर विचार किया गया है) के निर्माण के साथ अपनी आतंकवाद-रोधी रणनीति को व्यावहारिक आकार देने का प्रयास कर रहा है। अपेक्षा है कि यह योजना आगामी शिखर सम्मेलन की एक प्रमुख उपलब्धि होगी और वस्तुस्थिति में कुछ परिवर्तन ला सकती है।  
  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के लिये प्रौद्योगिकीय और डिजिटल समाधानों को बढ़ावा देना।   
    • डिजिटल साधनों ने कोविड महामारी से बुरी तरह प्रभावित विश्व की मदद की है और भारत शासन में सुधार के लिये नए प्रौद्योगिकीय साधनों का उपयोग करने वाले अग्रणी देशों में शामिल है।
  • लोगों के बीच परस्पर सहयोग का विस्तार: यद्यपि लोगों के बीच परस्पर सहयोग (people-to-people cooperation) के विस्तार के लिये अभी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के पुनरुद्धार की प्रतीक्षा करनी होगी। डिजिटल माध्यमों के माध्यम से संवाद/वार्ता व्यक्तिगत बैठकों का पूर्ण विकल्प नहीं हो सकतीं।

आगे की राह 

  • समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन की केंद्रीयता के त्याग के साथ एक बेहतर आंतरिक संतुलन के निर्माण की आवश्यकता है, जो क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं के विविधीकरण और सशक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रबलित हो (जिसकी आवश्यकता महामारी के दौरान उजागर हुई है)।  
    • नीतिनिर्माता कृषि, आपदा प्रत्यास्थता (disaster resilience), डिजिटल स्वास्थ्य, पारंपरिक चिकित्सा और सीमा शुल्क संबंधी सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में इंट्रा-ब्रिक्स सहयोग (intra-BRICS cooperation) में वृद्धि को प्रोत्साहित करते रहे हैं।
  • ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में साझा हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों के समाधान के लिये एक मंच के निर्माण के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया था। 
    • अगले दशकों में ब्रिक्स के प्रासंगिक बने रहने के लिये, इसके प्रत्येक सदस्य को इस पहल के अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिये।
  • बहुपक्षीय विश्व के लिये प्रतिबद्धता: ब्रिक्स देशों को अपने दृष्टिकोण के पुनःव्यासमापन (Recalibration) और अपने आधारभूत लोकाचार के लिये फिर से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। ब्रिक्स को एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिये जो संप्रभु समानता और लोकतांत्रिक निर्णय लेने का अवसर देता हो। 
  • उन्हें NDB की सफलता से प्रेरित होना चाहिये और अन्य ब्रिक्स संस्थानों में निवेश करना चाहिये। ब्रिक्स के लिये OECD की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान प्रभाग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील विश्व के लिये अधिक अनुकूल होंगे। 
  • ब्रिक्स को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (Paris Agreement on climate change) और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (UN's sustainable development goals) के तहत घोषित अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिये ब्रिक्स-नेतृत्त्व वाले प्रयास पर विचार करना चाहिये। इसमें ब्रिक्स ऊर्जा गठबंधन (BRICS energy alliance) और एक ऊर्जा नीति संस्थान (energy policy institution) स्थापित करने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।  
  • ब्रिक्स देशों को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में संकट और संघर्ष के शांतिपूर्ण तथा राजनीतिक-राजनयिक समाधान के लिये भी प्रयास करना चाहिये।

निष्कर्ष

इस प्रकार, ब्रिक्स का भविष्य भारत, चीन और रूस के आंतरिक और बाह्य मुद्दों के समायोजन पर निर्भर करता है। भारत, चीन और रूस के बीच आपसी संवाद आगे बढ़ने के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण होगा।

अभ्यास प्रश्न: ब्रिक्स एक सीमा तक सफल रहा है, लेकिन अब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में, समूह की संवहनीयता को बनाए रखने के लिये उठाये जा सकने वाले कदमों की चर्चा कीजिये।

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