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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी अरब-ईरान संबंध

  • 16 Mar 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यमन में हौथी विद्रोही, इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद, मध्य पूर्वी देशों की भौगोलिक स्थिति, पश्चिम एशिया।

मेन्स के लिये:

सऊदी-ईरान संबंधों में भारत की भूमिका, भारत के हितों पर अन्य देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब ने आतंकवाद एवं ‘कैपिटल क्राइम’ (ऐसे अपराध जिनके लिये मृत्युदंड का प्रावधान है) के आरोपी सात यमनियों और एक सीरियाई नागरिक सहित 81 लोगों को सामूहिक रूप से फाँसी दी है। इसके कारण ईरान सरकार ने सऊदी अरब के साथ वार्ता स्थगित कर दी है।

  • दोनों देशों के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण राजनयिक संबंध रहे हैं।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों ईरान और सऊदी अरब, जिन्होंने वर्ष 2016 में राजनयिक संबंधों को समाप्त कर दिया था, ने यमन में युद्ध को समाप्त करने हेतु संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्त्व वाले प्रयासों के रूप में वर्ष 2021 में इराक द्वारा आयोजित सीधी वार्ता शुरू की। इराक में दोनों के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है।

Middle-East

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है?

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इजरायल

उत्तर: (b)

सऊदी-अरब ईरान संघर्ष की पृष्ठभूमि:

  • धार्मिक गुटबाज़ी: इन दोनों के बीच दशकों पुराना झगड़ा धार्मिक मतभेदों के कारण और गहरा गया है। इनमें से प्रत्येक देश इस्लाम की दो मुख्य शाखाओं में से एक का पालन करता है।
    • ईरान में बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम हैं, जबकि सऊदी अरब स्वयं को प्रमुख सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है।
  • इस्लामिक दुनिया का नेतृत्वकर्त्ता: ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब राजशाही और इस्लाम धर्म का जन्मस्थान है जो स्वयं को मुस्लिम-विश्व का नेतृत्वकर्त्ता समझता था।
    • हालाँकि इसे वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसने इस क्षेत्र में एक नए प्रकार के राज्य का निर्माण किया- एक तरह का क्रांतिकारी धर्मतंत्र, जिसका इस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे निर्यात करने का एक स्पष्ट लक्ष्य था।
  • क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान दो शक्तिशाली पड़ोसी हैं जो क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये संघर्षरत हैं।
    • इस विद्रोह ने अरब क्षेत्र के अतिरिक्त दुनिया भर में (2011 में अरब स्प्रिंग के बाद) राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी।
    • ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये इस उथल-पुथल का फायदा उठाया, विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन में आपसी संदेह को और बढ़ावा दिया।
    • इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका और इज़रायल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
  • छद्म युद्ध (Proxy War): प्रत्यक्ष रूप से ईरान और सऊदी अरब इस युद्ध को नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे इस क्षेत्र के आसपास कई छद्म युद्धों (ऐसा संघर्ष जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और रक्षक योद्धाओं का समर्थन करते हैं) में शामिल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये यमन में हूती विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमता प्राप्त करने के साथ इस क्षेत्र में और अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। सऊदी अरब द्वारा ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया जाता है।
  • प्रदर्शनकारियों द्वारा विद्रोह  2016: सऊदी अरब द्वारा शिया मुस्लिम धर्मगुरु शेख निम्र अल-निम्र  (Nimr al-Nimr) को फाँसी दिये जाने के बाद कई ईरानी प्रदर्शनकारियों ने ईरान में सऊदी राजनयिक मिशनों पर हमला किया।

संबंधों के सामान्यीकरण का संभावित प्रभाव:

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान: ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों में सुधार होने से इज़रायल और फिलिस्तीनी मुद्दे से निपटने में सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • तेल बाज़ार का स्थिरीकरण: ईरान और सऊदी अरब साझा हित में अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिये बाज़ार के महत्त्व को देखते हुए तेल की स्थिर कीमतों को साझा करते हैं।
    • संबंधों के सामान्यीकरण से सभी तेल उत्पादक देशों हेतु स्थिर राजस्व के साथ-साथ सऊदी अरब एवं ईरान दोनों के आर्थिक योजनाकारों के लिये अधिक पूर्वानुमान सुनिश्चित होगा।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन-सा खाड़ी सहयोग परिषद (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) सउदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)

आगे की राह

  • भारत की भूमिका: ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे राजनयिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों के स्थिर होने से भारत पर इसका मिश्रित प्रभाव पड़ेगा।
    • नकारात्मक पक्ष के रूप में तेल की ऊँची कीमतें भारत में व्यापार संतुलन को प्रभावित करेंगी।
    • इसके सकारात्मक पक्ष के रूप में  यह पूरे क्षेत्र में निवेश, कनेक्टिविटी परियोजनाओं को आसान बना सकता है।
  • ईरान से पारस्परिकता: ईरान को यमन में संघर्ष विराम का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके अपने राजनयिक प्रयासों की छाप छोड़ने की आवश्यकता है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील: यदि ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सामान्य बनाना है, तो ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर स्पष्टता सबसे महत्त्वपूर्ण है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्र. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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