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डेली न्यूज़


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इस्लामिक सहयोग संगठन

  • 11 Jun 2022
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:  

इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद। 

मेन्स के लिये:  

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, एक संगठन के रूप में ओआईसी के साथ भारत का संबंध। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने पैगंबर मुहम्मद पर दो भारतीयों द्वारा की गई टिप्पणियों की आलोचना की। 

  • विदेश मंत्रालय ने OIC की टिप्पणियों को खारिज करते हुए कहा कि नागरिकों द्वारा व्यक्त किये गए विचार भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। 
  • इससे पहले भारत ने कर्नाटक हिजाब विवाद के बीच सांप्रदायिक सोच रखने के लिये OIC की आलोचना की थी। 

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC): 

  • परिचय: 
    • यह संगठन दुनिया भर में मुस्लिम जगत की सामूहिकता का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • इसका गठन सितंबर 1969 में मोरक्को के रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के दौरान किया गया था, जिसका लक्ष्य वर्ष 1969 में एक 28 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई द्वारा येरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद में आगजनी की घटना के बाद इस्लामिक मूल्यों को सुरक्षा प्रदान करना था। 
  • सदस्य: 
    • इसके सदस्य देशों की संख्या 57 है। 
  • उद्देश्य: 
    • OIC सदस्य राज्यों के बीच एकजुटता स्थापित करना 
    • कब्ज़े वाले किसी भी सदस्य राज्य की पूर्ण संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बहाली का समर्थन करना। 
    • इस्लाम का संरक्षण करना, इसकी रक्षा करना तथा इसकी निंदा का विरोध करना। 
    • मुस्लिम समाजों में बढ़ते असंतोष को रोकना और यह सुनिश्चित करने के लिये काम करना कि सदस्य राज्य संयुक्त राष्ट्र महासभा, मानवाधिकार परिषद और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एकजुट रहें। 
  • मुख्यालय: जेद्दाह (सऊदी अरब) 
    • संगठन ने विवादित शहर यरूशलेम के 'मुक्त' होने के बाद स्थायी रूप से अपने मुख्यालय को पूर्वी येरुशलम में स्थानांतरित करने की योजना बनाई है। 
    • इसके अलावा यह 'युद्ध अपराधों' और अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के लिये इज़रायल को ज़िम्मेदार ठहराता है। 
  • OIC चार्टर: 
    • संगठन एक चार्टर का पालन करता है जो इसके उद्देश्यों, सिद्धांतों और संचालन तंत्र को निर्धारित करता है। 
    • इसे पहली बार 1972 में अपनाया गया, विकासशील देशों की उभरती परिस्थितियों के अनुरूप चार्टर को कई बार संशोधित किया गया है। 
    • वर्तमान चार्टर मार्च 2008 में सेनेगल के डकार में अपनाया गया था। 
    • इसमें निहित है कि सभी सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के लिये खुद को प्रतिबद्ध करने के साथ-साथ इस्लामी शिक्षाओं और मूल्यों से निर्देशित और प्रेरित किया जाए। 

OIC

OIC की कार्य-प्रणाली: 

  • सदस्यता: 
    • मुस्लिम बाहुल्य संयुक्त राष्ट्र के सदस्य इस संगठन में शामिल हो सकते हैं। 
    • OIC की विदेश मंत्रियों की परिषद में पूर्ण सहमति के साथ सदस्यता की पुष्टि की जाती है। 
    • पर्यवेक्षक का दर्ज़ा प्राप्त करने के लिये भी समान प्रावधान लागू होते हैं। 
  • निर्णय प्रक्रिया: 
    • संगठन में सभी निर्णय लेने के लिये दो-तिहाई सदस्य देशों की उपस्थिति और पूर्ण सहमति के साथ परिभाषित गणपूर्ति की आवश्यकता होती है।  
    • यदि आम सहमति नहीं बन पाती है, तो निर्णय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा किया जाता है। 
    • विदेश मंत्रियों की परिषद मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था है और OIC की सामान्य नीतियों को कैसे लागू किया जाए, इस पर निर्णय लेने के लिये वार्षिक बैठक होती है। 
      • ये सामान्य हित के मामलों पर निर्णय और संकल्प लेते हैं, उनकी प्रगति की समीक्षा करते हैं, कार्यक्रमों व उनके बजट पर विचार ंकरने के साथ ही उनका अनुमोदन करते हैं, सदस्य राज्यों कि समस्या वाले विशिष्ट मुद्दों पर विचार करते हैं तथा एक नया अंग या समिति स्थापित करने की सिफारिश करते हैं। 
  • वित्त: 
    • OIC को सदस्य देशों द्वारा उनकी राष्ट्रीय आय के अनुपात में वित्तपोषित किया जाता है। 
      • किसी सदस्य के मतदान के अधिकार तब निलंबित कर दिये जाते हैं जब उनका बकाया पिछले दो वर्षों के लिये उनके द्वारा देय योगदान की राशि के बराबर या उससे अधिक हों 
      • सदस्य को वोट देने की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब विदेश मंत्रियों की परिषद संतुष्ट हो कि यह विफलता सदस्यों के नियंत्रण से परे स्थितियों के कारण है। 
  • इस्लामिक शिखर सम्मेलन: 
    • यह राजाओं और देश के प्रमुखों द्वारा गठित है जिनके पास संगठन से संबंधित सर्वोच्च अधिकार हैं। 
    • प्रत्येक तीन वर्ष में यह संगठन विचार-विमर्श करता है, नीतिगत निर्णय लेता है, संगठन से संबंधित मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करता है और सदस्य देशों से संबंधित महत्तवपूर्ण मुद्दों पर विचार करता है। 
  • विदेश मंत्रियों की परिषद: 
    • विदेश मंत्रियों की परिषद मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था है और OIC की सामान्य नीतियों को कैसे लागू किया जाए, इस पर निर्णय लेने के लिये वार्षिक बैठक करती है। 
      • वे सामान्य हित के मामलों पर निर्णय एवं संकल्प लेते हैं, उनकी प्रगति की समीक्षा करते हैं, कार्यक्रमों तथा उनके बजट पर विचार व अनुमोदन करते हैं, सदस्य राज्यों को परेशान करने वाले विशिष्ट मुद्दों पर विचार करते हैं और किसी नए अंग या समिति की स्थापना की सिफारिश करते हैं। 
  • स्थायी समितियाँ: 
    • OIC के पास सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों, आर्थिक एवं वाणिज्यिक मामलों, वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहल और येरुशलम के लिये सहयोग हेतु स्थायी समितियाँ भी हैं। 

OIC की आलोचना: 

  • मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्राथमिकता: 
    • OIC 'विंडो ड्रेसिंग' के लिये एक आधार बन गया है, जो अपने सदस्य राज्यों के लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की बजाय फिलिस्तीन या म्यांँमार जैसे देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों के मामले में अधिक रुचि रखता है। 
  • मानवाधिकार उल्लंघनों की जांँच करने में अक्षम: 
    • मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांँच करने या हस्ताक्षरित संधियों और घोषणाओं के माध्यम से अपने निर्णयों को लागू करने के लिये निकाय के पास शक्ति एवं संसाधनों की कमी है। 
  • कुरान के मूल्यों के आसपास केंद्रित: 
    • संगठन उन्हीं विवादों की मध्यस्थता तक सीमित है जहांँ दोनों पक्ष मुस्लिम हैं। 
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि संगठन कुरान के मूल्यों के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो इसे एक योग्य मध्यस्थ बनाता है। 
  • सहकारी उद्यम स्थापित करने में विफल: 
    • OIC अपने सदस्यों के बीच एक सहकारी उद्यम स्थापित करने में विफल रहा है, जो या तो पूंजी-समृद्ध एवं श्रम की कमी वाले देश या श्रम-समृद्ध और पूंजी दुर्लभ वाले देश हैं। 
    • यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति या आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता के रूप में विकसित नहीं हो सका है। 

OIC के साथ भारत के संबंध: 

  • दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुस्लिम समुदाय वाले देश के रूप में भारत को वर्ष 1969 में रबात में संस्थापक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर अपमानजनक तरीके से भारत को बाहर कर दिया गया। 
  • भारत कई कारणों से अब तक इस संगठन से दूर रहा: 
    • भारत एक ऐसे संगठन में शामिल नहीं होना चाहता था जो धर्म के आधार पर गठित हो। 
    • साथ ही ज़ोखिम था कि सदस्य देशों के साथ व्यक्तिगत तौर पर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार से वह एक समूह के दबाव में आ जाएगा, खासकर कश्मीर जैसे मुद्दों पर। 
  • वर्ष 2018 में विदेश मंत्रियों के शिखर सम्मेलन के 45वें सत्र में मेज़बान बांग्लादेश ने सुझाव दिया कि भारत, जहाँ दुनिया के 10% से अधिक मुसलमान रहते हैं, को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिये, लेकिन पाकिस्तान द्वारा प्रस्ताव का विरोध किया गया। 
  • संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे शक्तिशाली सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के बाद भारत समूह के किसी भी बयान पर भरोसा करने के लिये आश्वस्त है। 
    • भारत ने लगातार इस बात को रेखांकित किया है कि जम्मू-कश्मीर "भारत का अभिन्न अंग है और यह भारत का आंतरिक मामला है" तथा इस मुद्दे पर OIC का कोई अधिकार नहीं है। 
  • वर्ष 2019 में भारत ने OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में "गेस्ट ऑफ ऑनर" के रूप में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की। 
    • इस पहले निमंत्रण को भारत के लिये एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया, विशेष रूप से ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ गया था। 

यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न: 

प्र. संयुक्त राष्ट्र महासभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022) 

  1. UN महासभा, गैर-सदस्य राज्यों को प्रेक्षक स्थिति प्रदान कर सकती है। 
  2. अंत:सरकारी संगठन UN महासभा में प्रेक्षक स्थिति पाने का प्रयत्न कर सकते हैं। 
  3. UN महासभा में स्थायी प्रेक्षक UN मुख्यालय में मिशन बनाए रख सकते हैं। 

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? 

(a) केवल 1 और 2 
(b)  केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d)  1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • संयुक्त राष्ट्र के गैर-सदस्य राज्य, जो एक या अधिक विशिष्ट एजेंसियों के सदस्य हैं, स्थायी पर्यवेक्षक के दर्जे के लिये आवेदन कर सकते हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा गैर-सदस्य राज्यों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अन्य संस्थाओं को स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा दे सकती है। अतः कथन 1 और 2 सही हैं। 
  • एक स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा विशुद्ध रूप से अभ्यास पर आधारित होता है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर में इसके लिये कोई प्रावधान नहीं है। 
  • इस प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1946 में हुई, जब महासचिव ने संयुक्त राष्ट्र में एक स्थायी पर्यवेक्षक के रूप में स्विस सरकार के पद को स्वीकार किया। 
  • धीरे-धीरे कुछ राज्यों द्वारा पर्यवेक्षकों को आगे रखा गया जो बाद में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बन गए इनमें ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, इटली और जापान शामिल थे। 10 सितंबर, 2002 को स्विट्ज़रलैंड संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना। 
  • स्थायी पर्यवेक्षकों के पास अधिकांश बैठकों और प्रासंगिक दस्तावेज़ों तक निशुल्क पहुँच होती है। 
  • कई क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी महासभा के कार्य और वार्षिक सत्रों में पर्यवेक्षक रहे हैं। 
  • स्थायी पर्यवेक्षक संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में महासभा के सत्रों और कार्यों में भाग ले सकते हैं तथा मिशनों को जारी रख सकते हैं। अतः कथन 3 सही है। 

स्रोत: द हिंदू 

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