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सामाजिक न्याय

इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना

  • 24 May 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) , शहरी स्थानीय निकाय।

मेन्स के लिये:

इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना और इसके घटक, शहरी क्षेत्रों के लिये सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों? 

राजस्थान सरकार ने अपनी बहुप्रचारित इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत शामिल रोज़गारों के बारे में विवरण जारी किया है।

  • राजस्थान सरकार ने अपने बजट भाषण में ग्रामीण क्षेत्रों के लिये मनरेगा की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों के लिए रोज़गार योजना की घोषणा की थी।
  • मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध कराता है, जबकि इसके अंतर्गत फुटपाथ विक्रेताओं के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में ढाबों और रेस्तराँ में काम करने वालों के लिये कोई प्रावधान नहीं था।

योजना:

  • परिचय: 
    • योजना के अंतर्गत शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को प्रतिवर्ष 100 दिन का रोज़गार प्रदान किया जाएगा।
    • "सामान्य प्रकृति" के श्रम कार्य के लिये सामग्री की लागत और भुगतान का अनुपात 25:75 के अनुपात में होगा, जबकि विशेष कार्यों के लिये यह अनुपात 75:25 होगा।
    • इसके अंतर्गत अधिक-से-अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया जा रहा है।
    • दूसरी ओर, संपत्ति के निर्माण के लिये एक उच्च भौतिक घटक की आवश्यकता होगी, अतः  'विशेष कार्यों' के अंतर्गत यह अनुपात 75:25 है।
  • पात्रता:
    • शहरी निकाय सीमा के भीतर रहने वाले सभी 18 से 60 वर्ष की आयु के लोग योजना के लिये पात्र हैं और विशेष परिस्थितियों जैसे कि महामारी या आपदा में प्रवासी मज़दूरों को शामिल किया जा सकता है।
  • घटक:
    • पर्यावरण संरक्षण:
      • सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण, पार्कों का रखरखाव, फुटपाथ और डिवाइडर पर पौधों की सिंचाई, शहरी स्थानीय निकायों (ULBs), वन, बागवानी एवं कृषि विभागों के तहत नर्सरी तैयार करना।
    • जल संरक्षण: 
      • तालाबों, झीलों, बावड़ियों आदि की सफाई और सुधार के लिये वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण, मरम्मत तथा सफाई व जल स्रोतों की बहाली का कार्य कोई भी कर सकता है।
    • स्वच्छता और स्वास्थ्य-रक्षा से संबंधित कार्य: 
      • इसमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, श्रम कार्य, जिसमें घर-घर कचरा संग्रहण और पृथक्करण, डंपिंग स्थलों पर कचरे को अलग करना, सार्वजनिक/सामुदायिक शौचालयों की सफाई तथा रखरखाव, नाले/नाली की सफाई के साथ-साथ निर्माण एवं विध्वंस से उत्पन्न कचरे को हटाने से संबंधित कार्य शामिल हैं।
    • संपत्ति के विरूपण से संबंधित कार्य:
      • इसमें अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ अवैध बोर्ड/होर्डिंग/बैनर आदि को हटाने के लिये श्रम कार्य, साथ ही डिवाइडर, रेलिंग, दीवारों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित पेंटिंग शामिल है।
    • अभिसरण:
      • इस योजना के तहत उन लोगों को अन्य केंद्र या राज्य स्तर की योजनाओं में नियोजित किया जा सकता है जिनके पास पहले से ही भौतिक घटक है और श्रम कार्य की आवश्यकता होती है।
    • सेवा: 
      • इसमें गोशालाओं में श्रम कार्य एवं नागरिक निकायों के कार्यालयों में 'मल्टीटास्क सेवाएंँ', रिकॉर्ड कीपिंग आदि शामिल हैं। साथ ही विरासत संरक्षण से संबंधित कार्य भी शामिल हैं।
      • विविध कार्य, जैसे कि सुरक्षा/बाड़ लगाना/चारदीवारी/नगरीय निकायों और सार्वजनिक भूमि की सुरक्षा से संबंधित कार्य, शहरी निकाय की सीमा के भीतर पार्किंग स्थलों का विकास व प्रबंधन, आवारा पशुओं को पकड़ना तथा उनका प्रबंधन करना आदि।

शहरी क्षेत्रों के लिये सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता:

  • अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदानकर्त्ता: शहरी क्षेत्र देश की विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। अधिकांश देशों की तरह भारत के शहरी क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं।
    • भारतीय शहर आर्थिक उत्पादन में लगभग दो-तिहाई का योगदान करते हैं, जनसंख्या के एक बढ़ते हिस्से की मेज़बानी करते हैं और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मुख्य प्राप्तकर्त्ता हैं। वे नवाचार तथा प्रौद्योगिकी के प्रवर्तक भी हैं।   
  • व्यवसायों के लिये आकर्षण का केंद्र: 
    • शहर आर्थिक गतिविधियों की व्यापक विविधता के लिये एक सामूहिक आकर्षण केंद्र की स्थिति भी रखते हैं।  
    • अनुमापी और संकुलन लाभों (शैक्षिक सुविधाओं की आपूर्ति, आपूर्तिकर्त्ताओं की उपस्थिति आदि) के परिणामस्वरूप शहर व्यवसाय एवं लोगों को अधिक आकर्षित करते हैं।
  • सामाजिक पूंजी का केंद्र: 
    • शहर सामाजिक पूंजी का केंद्र होते हैं। वे सांस्कृतिक या सामाजिक रूप से विविधतापूर्ण समूहों के ‘मिलन बिंदु’ या भिन्न-भिन्न विचारों पर चर्चा का केंद्र होने की स्थिति भी रखते हैं। 
  • शक्ति के केंद्र:   
    • शहर निरंतर विस्तार करने वाले शक्ति के केंद्र होते हैं,जो कस्बों और गाँवों की कीमत पर अपनी स्थिति को सुदृढ़ करते हैं।

शहरी रोज़गार योजनाओं का महत्त्व:

  • ग्रामीण गरीबों के आजीविका आधार को मज़बूत करके सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करता है।
  • यह शहरी निवासियों को काम करने का वैधानिक अधिकार देता है और इस तरह संविधान के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) को सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण- मध्य प्रदेश में नई राज्य सरकार ने "युवा स्वाभिमान योजना" शुरू की है
  • यह शहरी युवाओं के बीच कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार प्रदान करता है और बेरोज़गारी की चिंताओं को दूर करता है।
  • इस तरह के कार्यक्रम कस्बों में बहुत ज़रूरी सार्वजनिक निवेश ला सकते हैं, जो बदले में स्थानीय मांग को बढ़ावा दे सकते हैं, शहरी बुनियादी ढांँचे और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, अर्बन कॉमन्स को बहाल कर सकते हैं, शहरी युवाओं को प्रशिक्षित कर सकते हैं तथा यूएलबी की क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं।

सरकार द्वारा की गईं अन्य पहलें: 

आगे की राह:

  • शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा तक पहुंँच प्रदान करने की आवश्यकता है
  • मौजूदा वित्तीय क्षेत्र में शहरी आजीविका योजना शुरू की जा सकती है।
    • संघ और राज्य मिलकर संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं तथा शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बना सकते हैं।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित किये जाने से शहरी क्षेत्रों में पलायन नहीं होगा क्योंकि शहरी क्षेत्रों में रहने की उच्च लागत का ऑफसेट प्रभाव पड़ता है।
  • परिसंपत्ति निर्माण से सेवा वितरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसे परिसंपत्ति निर्माण या मज़दूरी-सामग्री अनुपात तक सीमित करना शहरी परिस्थिति में उपानुकूलतम ( Suboptimal) हो सकता है।
    • नगरपालिका सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान दिया ज़ाना चाहिये।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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