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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

धन के आवंटन की गति तीव्र परन्तु कार्यों में धीमापन बरकरार

  • 21 Feb 2017
  • 8 min read

पृष्ठभूमि

देश की सबसे पवित्र नदियों में प्रमुख गंगा नदी की सफाई के संबंध में प्रकट की गई असमर्थता के कारण फरवरी माह के आरम्भ में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal) द्वारा भारी रोष प्रकट किया गया है| इस घटना के उपरांत जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनर्निर्माण मंत्री उमा भारती ने यह घोषणा की कि गंगा नदी को स्वच्छ करने की प्रक्रिया के विस्तार हेतु बहुत जल्द सचिवों की एक समिति का गठन किया जाएगा|

  • विदित हो कि गंगा बेसिन देश का सबसे बड़ा नदी बेसिन है जो कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जल की आपूर्ति करता है|

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि दिल्ली के एक अधिवक्ता एम.सी मेहता द्वारा वर्ष 1985 में सर्वोच्च न्यायालय में नदी की सफाई के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई थी| जिसके कुछ माह पश्चात् ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी के द्वारा प्रथम ‘गंगा एक्शन प्लान’ लागू कर दिया गया|
  • वर्ष 1985 से लेकर वर्तमान समय तक दो एक्शन प्लान पूर्ण हो चुके हैं तथा इन पर अरबों रुपए भी खर्च किये जा चुके हैं परन्तु इन समस्त क्रियाकलापों के बावजूद भी नदी की स्थिति में कोई सुधर नहीं हुआ|
  • विदित हो कि हिंदुओं की पवित्र नदी होने के साथ-साथ यह देश की तकरीबन 40% आबादी की जीवनरेखा भी है| अत: ऐसी स्थिति में यह और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इस नदी की साफ़-सफाई के विषय में विशेष प्रबंध किये जाएँ|

नमामि गंगे कार्यक्रम

  • विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के प्रथम वर्ष में ही ‘नमामि गंगे’ नामक एक कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी| ध्यातव्य है कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2020 तक की पाँच वर्षों की अवधि के लिये बजट में 20,000 करोड़ रुपए के आवंटन का प्रावधान किया गया|
  • इस कार्यक्रम के तहत आवंटित धनराशि को वर्ष 1985 से आरंभ हुई गंगा के पुनर्निर्माण संबंधी परियोजनाओं पर खर्च किये जाने की योजना है|
  • हालाँकि, नरेन्द्र मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने के उपरांत अब यह साफ हो गया है कि नदी की सफाई संबंधी कार्यों के सन्दर्भ में धन का अभाव कभी भी बाधा नहीं रही है|
  • पिछले वर्ष प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से सूचना के अधिकार नियम के तहत दिये गए एक प्रत्युत्तर में यह बात सामने आई कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रथम दो वर्षों में गंगा की सफाई के लिये आवंटित 3,700 करोड़ रुपए की धनराशि के तकरीबन 20 % धन का अभी तक कोई उपयोग ही नहीं किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (National Ganga River Basin Authority) को ‘नमामि गंगे परियोजना’ की सम्पूर्ण योजना, इसके क्रियान्वयन तथा निगरानी आदि का कार्य सौंपा गया था|
  • कुछ समय बाद इस प्राधिकरण को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से जल संसाधन मंत्रालय (जिसका नाम बदलकर जल संसाधन,नदी विकास और गंगा पुनर्निर्माण मंत्रालय कर दिया गया है) को हस्तांतरित कर दिया गया| 
  • इसके पश्चात् ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ का नाम बदलकर ‘गंगा नदी पुनर्निर्माण, संरक्षण एवं प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय परिषद [National council for river ganga (rejuvenation, protection and management)] अथवा एनसीआरजी (NCRG) कर दिया गया|

अन्य पक्ष

  • वस्तुतः इसके उपरांत वर्ष 2016 में एक सशक्त कार्य बल का गठन भी किया गया| एक अन्य नई समिति का गठन भी इस कार्य बल के संरक्षण हेतु किया जा चुका है|
  • गौरतलब है कि केंद्र द्वारा न्यायालय में दाखिल किये गए दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 1985 में गंगा को प्रभावित करने वाले अत्यंत प्रदूषित उद्योगों (Grossly polluting industries) की संख्या 764 थीं| यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2017 में भी सरकारी अधिकारियों द्वारा अत्यंत प्रदूषित उद्योगों की संख्या 764 ही बताई गई हैं|
  • हालाँकि, गंगा तथा उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण फ़ैलाने वाली बड़ी नालियों (major drains) की संभावित संख्या के संबंध में अभी तक अस्पष्टता बनी हुई है|
  • यद्यपि ‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central pollution control board-CPCB) द्वारा यह संख्या मात्र तीस ही बताई गई थी|
  • हालाँकि, उत्तर प्रदेश प्रदूषण निवारण निकाय द्वारा किये गए दावे के अनुसार, कम से कम 150 नालियाँ (Drains)प्रत्यक्षतः गंगा और इसकी सहायक नदियों से जुडी हुई हैं|
  • केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक ऐसी एजेंसी है जिसे जल की गुणवत्ता की निगरानी का कार्य सौंपा गया है|
  • ध्यातव्य है कि ‘स्वच्छ गंगा कार्यक्रम’ के एक भाग के रूप में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में मलजल शोधन संयंत्र और नेटवर्कों को स्थापित करने के संबंध में सीबीआई को जाँच के आदेश भी दिये गए है|

निष्कर्ष

हालाँकि इस कार्यक्रम के खराब क्रियान्वयन के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य समन्वय के अभाव को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है| जिसका प्रमुख कारण यह है कि देश की नियामक व्यवस्था सशक्त नहीं है| हालाँकि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2020 तक गंगा नदी को स्वच्छ बनाने का वादा किया गया है| ऐसे में देखना यह होगा कि इस दिशा में सकारात्मक परिणाम हेतु भारत सरकार और क्या निर्णय करती है| यह और बात है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ जल संसाधन मंत्री द्वारा भी वर्ष 2018 तक के लिये इस अति महत्त्वाकांक्षी उद्देश्य की समयसीमा तय की गई है|

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