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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतरिक्ष में भारत की चीन को चुनौती

  • 21 Feb 2017
  • 6 min read

पृष्ठभूमि

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization - ISRO) ने एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करके नया इतिहास रचा है| ध्यातव्य है कि अभी तक किसी अंतिरक्ष अभियान के अंतर्गत इतने उपग्रह एक साथ नहीं छोड़े गए हैं| हालाँकि, इससे पहले वर्ष 2014 में रूस द्वारा एक अभियान के तहत 37 उपग्रहों को एक साथ छोड़ा गया था| यही कारण है कि चीन द्वारा भारत के इस सफलतम प्रयास का बारीकी से विश्लेषण किया जा रहा है| 

प्रमुख बिंदु

  • 20 फरवरी को ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में इस बात की ओर इशारा किया गया है कि अंतरिक्ष में भारत की यह सफलता चीन के वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग के लिये एक चुनौती है| यदि समय रहते चीन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो संभवतः बहुत ज़ल्द भारत इस दिशा में चीन से आगे निकल जाएगा|
  • इस लेख के अंतर्गत इस बात को भी इंगित किया गया है कि अंतरिक्ष उद्योग में चीन की सबसे बड़ी बाधा इस उद्योग के लिये आवश्यक उपकरणों तक पहुँच सुनिश्चित करना है| ध्यातव्य है कि अंतिरक्ष उपकरणों के सन्दर्भ में चीन लगभग पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर है| 
  • यदि चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत से आगे जाना चाहता है तो सर्वप्रथम उसे अंतिरक्ष उद्योग के लिये स्वतंत्र अनुसंधान कार्य करने के साथ-साथ स्वदेश निर्मित उपकरणों के सन्दर्भ में भी अपनी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना होगा| 

कम- लागत का लाभ

  • ध्यातव्य है कि इसरो द्वारा छोड़े गए इन 104 उपग्रहों में से तकरीबन 96 उपग्रह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के हैं| इसके अतिरिक्त इसके अंतर्गत मात्र 3 उपग्रह भारत के हैं, जबकि शेष सभी उपग्रह इज़राइल, क्ज़ाख्स्तान, नीदरलैंड तथा स्विट्ज़रलैंड के हैं|
  • गौरतलब है कि उक्त लेख के अंतर्गत इस बात को विशेष रुप से उल्लेखित किया गया है कि अंतिरक्ष के क्षेत्र में दक्षिण एशियाई देशों की सफलता का मुख्य कारण यहाँ लगने वाली कम लागत है| जो कि चीन के लिये एक बहुत बड़ी चुनौती है|
  • उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने दुनिया भर के तकरीबन 21 देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है, इन उपग्रहों में गूगल तथा एयरबस जैसी बड़ी कंपनियों के उपग्रह भी शामिल हैं|
  • वस्तुतः इस क्षेत्र में भारत की सफलता का एक बड़ा कारण किसी अन्य देश की तुलना में (उदाहरण के तौर पर अमेरिका) भारत से कोई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाने में आने वाली कम लागत है| यह लागत तकरीबन 60-65 फीसदी कम होती है| मोटे तौर पर महज़ एक तिहाई खर्च में भारत किसी भी देश का उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम है| 
  • वस्तुतः भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम के अलावा कम लागत की मुख्य वज़ह इसरो का सरकारी तंत्र के अधीन होना है| हालाँकि इस सन्दर्भ में भारत को चीन से बराबर की प्रतिस्पर्द्धा मिल रही है|  
  • ध्यातव्य है कि चीन अपने अंतरिक्ष अभियान पर भारत की तुलना में ढाई गुना अधिक पैसा खर्च करता है| यही कारण है कि उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की उसकी क्षमता भी भारत से चार गुना अधिक है|
  • मौजूदा स्थिति में भारत प्रत्येक वर्ष तकरीबन पाँच उपग्रह अभियान लॉन्च करने की क्षमता रखता हैं| जबकि चीन की क्षमता 20 अभियान लॉन्च करने की है| बावजूद इसके इन दोनों देशों के मध्य होड़ चर्चा का विषय बनी हुई है|

भारत की प्रगति

  • इसके साथ-साथ भारत के हथियार सौदागरों द्वारा भी विदेशी रक्षा बाज़ार का अधिक से अधिक उपयोग किया जा रहा है| उदाहरण के लिये, स्वदेश निर्मित अस्त्र मिसाइल (हवा से हवा में मार करने में सक्षम), पिनाक मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर (Pinaka multi-barrel rocket launcher) तथा रुस्तम यूएवी (Rustom UAV) विदेशी ग्राहकों के मध्य बहुत प्रचलित अस्त्र हैं|
  • इतना ही नहीं पिछले कुछ समय में भारत ने विमान तथा पोत प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में भी काफी प्रगति की है| बहुत ज़ल्द भारत 21 मिलियन डॉलर की कीमत के हल्के टारपीडो (light torpedo) का निर्यात करने जा रहा है| इसके साथ-साथ यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में भी तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है|
  • इसके अतिरिक्त भारतीय रक्षा विभाग के द्वारा अमेरिकी नौसेना के साथ पोतों की मरम्मत तथा सेवाओं के आदान-प्रदान के संबंध में भी कुछ समझौते किये गए हैं|
  • इसके साथ-साथ भारत तथा अमेरिका के मध्य ज़मीन से हवा में मार करने में सक्षम स्टिगर मिसाइल (Stinger ground-to-air missile) के उपकरणों के साझा निर्माण के संबंध में भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं|
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