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जैव विविधता और पर्यावरण

वनाग्नि: एक गंभीर चिंता

  • 07 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के कई राज्यों और वन्यजीव अभयारण्यों में वर्ष 2021 के आगमन के बाद से ही वनाग्नि की घटनाएँ देखी जा रही है।

प्रमुख बिंदु

वनाग्नि: 

  • इसे बुशफायर (Bushfire) या जंगल की आग भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।
  • वनाग्नि को कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना जैसी मानवीय गतिविधियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।
  • उच्च तापमान, हवा की गति और दिशा तथा मिट्टी एवं वातावरण में नमी आदि कारक वनाग्नि को और अधिक भीषण रूप धारण करने में मदद करते हैं।

वर्ष 2021 में वनाग्नि के उदाहरण:

  • जनवरी में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू घाटी) और नगालैंड-मणिपुर सीमा (जुकू घाटी) क्षेत्र में लंबे समय तक वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।
  • ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क में फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत के दौरान आग की एक बड़ी घटना घटित हुई।
  • हाल ही में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिज़र्व और गुजरात में एशियाई शेरों तथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अभयारण्यों में भी वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।

भारत के जंगलों की वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता:

  • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI), देहरादून द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report), 2019 के अनुसार, वर्ष 2019 तक देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 21.67% (7,12,249 वर्ग किमी.) भाग की वन के रूप में पहचान की गई है।
    • इसमें वनस्पति कवरेज कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.89% (95,027 वर्ग किमी.) है।
  • पिछली आग की घटनाओं और रिकॉर्डों के आधार पर यह पाया गया कि पूर्वोत्तर तथा मध्य भारत के जंगल वनाग्नि के प्रति ज़्यादा सुभेद्य हैं।
    • वनाग्नि से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जंगलों के रूप में असम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जंगलों की पहचान गई।
  • अत्यधिक प्रवण श्रेणी के अंतर्गत बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
  • MoEFCC की वर्ष 2020-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य ओडिशा के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़ और तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के वन क्षेत्र अत्यंत संभावित ’वन फायर हॉटस्पॉट’ में बदल रहे हैं।
  • अत्यधिक प्रवण ’और‘ मध्यम प्रवण ’श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र कुल वन क्षेत्र का लगभग 26.2% हैं जो 1,72,374 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।

fire-prone

वनाग्नि के कारण:

  • वन की आग के कई प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन भारत में इसका प्रमुख कारण मानव गतिविधियाँ हैं।
    • कई अध्ययन विश्व स्तर पर आग के बढ़ते मामलों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं, विशेष रूप से ब्राज़ील (अमेज़न) और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग को।
    • वनाग्नि की लंबी अवधि, बढ़ती तीव्रता, उच्च आवृत्ति आदि को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।
  • भारत में मार्च और अप्रैल के दौरान वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ घटित होती हैं क्योंकि यहाँ के जंगलों में इस समय सूखी लकडियाँ, पत्तियाँ, घास और खरपतवार जैसे आग को बढ़ावा देने वाले पदार्थ मौजूद होते हैं।
  • इसके लिये उत्तराखंड में मिट्टी की नमी में कमी भी एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा रहा है। लगातार दो मॉनसून सीज़न ( वर्ष 2019 और 2020) में क्रमशः 18% और 20% तक औसत से कम वर्षा हुई है।
  • वनों की अधिकांश आग मानव निर्मित होती हैं, कभी-कभी तो जान-बूझकर भी आग लगाई जाती है। उदाहरण के लिये ओडिशा में सिमलीपाल के जंगल में पिछले महीने भीषण आग की घटना देखी गई थी, जिसका कारण यह था कि यहाँ के स्थानीय लोगों ने महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिये ज़मीन साफ करने हेतु सूखी पत्तियों में आग लगा दी और यह आग जंगल में फैल गई।

वनाग्नि का प्रभाव:

  • वनाग्नि से वन आवरण, मिट्टी की उर्वरता, पौधों के विकास, जीवों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • आग कई हेक्टेयर जंगल को नष्ट कर देती है और राख को पीछे छोड़ देती है, जिससे यह क्षेत्र वनस्पति विकास के लिये प्रतिकूल हो जाता है।
  • आग जानवरों के आवास को नष्ट कर देती है।
    • मिट्टी की संरचना में परिवर्तन के साथ इसकी गुणवत्ता घट जाती है।
    • मिट्टी की नमी और उर्वरता भी प्रभावित होती है।
    • वनों का आकार सिकुड़ सकता है।
    • आग से बचे हुए पेड़ अक्सर अस्त-व्यस्त रहते हैं और इनका विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।

वनों का महत्त्व:

  • वन जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • वन कार्बन सिंक के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
    • एक पूर्ण विकसित वन किसी भी अन्य स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना में अधिक कार्बन का संचय करता है।
  • भारत में वनों के निकट बसे लगभग 1.70 लाख गाँवों (वर्ष 2011 की जनगणना) में कई करोड़ लोगों की आजीविका ईंधन, बाँस, चारा आदि के लिये इन पर निर्भर है।

वनाग्नि को कम करने के प्रयास:

  • FSI ने वर्ष 2004 के बाद से सही समय पर जंगल की आग की निगरानी के लिये फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम (Forest Fire Alert System) विकसित किया।
    • इस सिस्टम का जनवरी 2019 में उन्नत संस्करण लॉन्च किया गया जो अब नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारियों का उपयोग करता है।
  • वनाग्नि को कम करने के प्रयासों में शामिल अन्य योजनाएँ हैं- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018 और वनाग्नि निवारण तथा प्रबंधन योजना

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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