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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

अर्थ ओवरशूट डे, 2021

  • 29 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर,फुटप्रिंट,पारिस्थितिक पदचिह्न 

मेन्स के लिये:

अर्थ ओवरशूट डे से संबंधित वैश्विक पहल

चर्चा में क्यों?   

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार, मानव प्रजाति  ने  पुन: उन सभी जैविक संसाधनों का उपयोग 29 जुलाई, 2021 तक कर लिया है जो पृथ्वी पर संपूर्ण वर्ष के लिये निर्धारित किये गए हैं।

  • मानव प्रजाति वर्तमान में पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा उत्पादित 74% अधिक जैविक संसाधनों का उपयोग करती है, जिसका अर्थ है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का 1.75 गुना अधिक तेज़ी से प्रयोग कर रहे हैं।
  • अर्थ ओवरशूट दिवस से लेकर वर्ष के अंत तक मानव प्रजाति पारिस्थितिक घाटे की स्थिति में रहती है।

Earth-Overshoot-Day

प्रमुख बिंदु

  • यह दिन उस तारीख को चिह्नित करता है जब किसी दिये गए वर्ष में पारिस्थितिक संसाधनों (उदाहरण के लिये मछली और जंगल) तथा सेवाओं के संदर्भ में मानव प्रजाति की मांग उसी वर्ष के दौरान पृथ्वी पर पुनः उत्पादन किये जा सकने वाले संसाधनों की मात्रा से अधिक होती है।
  • अर्थ ओवरशूट डे की अवधारणा पहली बार यूके थिंक टैंक न्यू इकोनॉमिक्स फाउंडेशन के एंड्रयू सिम्स द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जिसने वर्ष 2006 में ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के साथ मिलकर  पहला ग्लोबल अर्थ ओवरशूट डे अभियान को शुरू किया था।
    • ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क वर्ष 2003 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय  गैर-लाभकारी संगठन है। इसकी प्रमुख रणनीति मज़बूत पारिस्थितिक पदचिह्न डेटा उपलब्ध कराना है।
    • पारिस्थितिक पदचिह्न एक मीट्रिक है जो प्रकृति की पुन: उत्पन्न करने की क्षमता के विरुद्ध प्रकृति पर मानव मांग की व्यापक रूप से तुलना करता  है।
  • अर्थ ओवरशूट डे की गणना ग्रह की जैव क्षमता (उस वर्ष पृथ्वी द्वारा उत्पन्न पारिस्थितिक संसाधनों की मात्रा) को  मनुष्यों के पारिस्थितिक पदचिह्न (उस वर्ष के लिये मानवता की मांग) से विभाजित करके तथा 365 से गुणा करके, एक वर्ष में दिनों की संख्या की गणना द्वारा की जाती है:
    • (पृथ्वी की जैव क्षमता/मानवता का पारिस्थितिक पदचिह्न) x 365 = अर्थ ओवरशूट डे

कारण:

  • इस वर्ष ओवरशूट डे की वापसी का प्रमुख कारण वर्ष 2020 के दौरान वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट में 6.6% की वृद्धि थी।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा पर लोगों की गतिविधियों के प्रभाव की एक माप है और इसे टन में उत्पादित CO2 उत्सर्जन के भार के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • अमेज़न वर्षावनों की कटाई में वृद्धि के कारण 'वैश्विक वन जैव क्षमता' में भी 0.5% की कमी आई थी।
    • अकेले ब्राज़ील जो कि अमेज़न वर्षावनों का सबसे बड़ा क्षेत्र है, में लगभग 1.1 मिलियन हेक्टेयर वर्षावन समाप्त हो गए।

पूर्वानुमान:

  • वर्ष 2021 में वनों की कटाई में साल-दर-साल 43% की वृद्धि होगी।
  • इस वर्ष परिवहन के कारण होने वाला कार्बन फुटप्रिंट महामारी पूर्व स्तरों की तुलना में कम होगा।
    • सड़क परिवहन और घरेलू हवाई यात्रा से होने वाला CO2 उत्सर्जन वर्ष 2019 के स्तर से 5% कम होगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन के कारण CO2 उत्सर्जन वर्ष 2019 के स्तर से 33% कम होगा।
  • लेकिन अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कोविड-19 के प्रभाव से उबरने की कोशिश के चलते वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन पिछले वर्ष की तुलना में 4.8% बढ़ जाएगा
  • वैश्विक रूप से कोयले का उपयोग कुल कार्बन फुटप्रिंट का 40% होने का अनुमान है।

सुझाव:

  • यदि विश्व ओवरशूट डे (World Overshoot Day) की तारीख को पीछे किया जाए तो सामान्य रूप से व्यवसाय का परिदृश्य काम नहीं करेगा।
  • कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे कि भोजन की बर्बादी को कम करना, भवनों के लिये वाणिज्यिक प्रौद्योगिकियाँ, औद्योगिक प्रक्रियाएँ और बिजली उत्पादन तथा परिवहन में कटौती करना।

संबंधित वैश्विक पहल:

  • कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP):
    • लगभग तीन दशकों से संयुक्त राष्ट्र (UN) COP नामक वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन के लिये पृथ्वी पर लगभग हर देश को साथ लाने का काम कर रहा है।
    • तब से जलवायु परिवर्तन एक मामूली मुद्दे से वैश्विक प्राथमिकता बन गया है।
    • इस वर्ष यह 26वाँ वार्षिक शिखर सम्मेलन होगा जिसे COP26 नाम दिया जाएगा जिसका आयोजन UK के ग्लासगो में होगा।
  • पेरिस समझौता:
    • यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे दिसंबर 2015 में पेरिस में हुए COP21 में 196 पार्टियों द्वारा अपनाया गया था और नवंबर 2016 में लागू हुआ था।
    • इसका लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।

कुछ भारतीय पहल:

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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