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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन द्वारा अपने प्रभुत्त्व विस्तार हेतु गैर-सैन्य रणनीति का प्रयोग

  • 03 Sep 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

डीओडी चीन सैन्य शक्ति रिपोर्ट-2020, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक शांति और चीन सैन्य शक्ति में वृद्धि, चीन-अमेरिका विवाद, हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित मुद्दे   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस के रक्षा विभाग से प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट में चीन द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और अपने प्रभुत्त्व विस्तार हेतु सैन्य अड्डों के विस्तार तथा गैर-सैन्य रणनीतियों के प्रयोग की बात कही गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा जारी ‘डीओडी चीन सैन्य शक्ति रिपोर्ट-2020’ (DOD China Military Power Report-2020) के अनुसार, चीनी नेताओं द्वारा चीन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये सशस्त्र संघर्ष जैसी रणनीति का उपयोग किया जाता है। 
    • रिपोर्ट में इस संदर्भ में  भारत और भूटान सीमा पर चीन के विवाद का उदाहरण दिया गया है।  
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी सैन्य शक्ति के प्रभाव को अधिक दूरी तक स्थापित करने के लिये देश के बाहर मज़बूत सैन्य अड्डों को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। 
  •  इस रिपोर्ट में कई सैन्य आधुनिकीकरण क्षेत्रों में चीनी सेना को अमेरिकी सेना के बराबर (कम-से-कम) ही उन्नत बताया गया है, जिसमें जहाज़ निर्माण (Shipbuilding), भूमि आधारित पारंपरिक बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइल तथा एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली आदि शामिल हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी पहल/उपक्रमों की आलोचनाओं को नियंत्रित करने के लिये बहुपक्षीय संगठनों का भी उपयोग करता है।

 गैर-युद्ध सैन्य गतिविधियों का प्रयोग:  

  • इस रिपोर्ट में गैर-युद्ध सैन्य गतिविधियों (Non War Military Activities- NWMA) को चीनी सेना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले दो प्रकार (दूसरा युद्ध) के सैन्य अभियानों का हिस्सा बताया गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार,  NWMA के तहत विशेष तौर पर ऐसी गतिविधियों/ऑपरेशन को शामिल किया जा सकता है जिसमें चीनी सेना अपने देश की संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु दूसरे देशों या इकाइयों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष से नीचे रहते हुए धमकियों या हिंसा का प्रयोग करती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों तथा अन्य देशों के साथ ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है।
  • चीन द्वारा ऐसी रणनीति के प्रयोग का उदाहरण दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में अपने क्षेत्रीय और समुद्री दावों के साथ-साथ भारत और भूटान के साथ चीन की सीमा पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 
  • रिपोर्ट में वर्ष 2009 में अमेरिका के निगरानी जहाज़ ‘यूएसएनएस इंपेकेबल’ (USNS Impeccable) के साथ गतिरोध और वर्ष 2012 के ‘स्कारबोरो रीफ गतिरोध’ (Scarborough Reef standoff) में  ‘पीपुल्स आर्म्ड फोर्सेस मैरीटाइम मिलिशिया’ (People’s Armed Forces Maritime Militia- PAFMM)  की भूमिका को रेखांकित किया गया है। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीनी सेना का विस्तार:

  • रिपोर्ट में इस बात की भी संभावना व्यक्त की गई है कि  चीन अपनी थल , वायु और नौसैनिक सेनाओं को अतिरिक्त सैन्य रसद सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये ‘जिबूती’ (Djibouti) के अतिरिक्त अन्य नये विदेशी सैन्य अड्डों की स्थापना की योजना बना रहा है।   
  • चीन द्वारा सैन्य अड्डे की स्थापना हेतु म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशेल्स, तंजानिया, अंगोला और ताजिकिस्तान जैसे देशों के चुनाव की संभावना व्यक्त की गई है।

विकास योजनाओं और आर्थिक प्रभाव का प्रयोग:

  • रिपोर्ट के अनुसार, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ (Belt and Road’ initiative- BRI) के माध्यम से अन्य देशों में भी (चीन के अतिरिक्त) चीन की सैन्य पहुँच का विस्तार होगा।
    • रिपोर्ट के अनुसार, चीन कई अन्य मामलों में दूसरे देशों का समर्थन प्राप्त करने के लिये BRI और अन्य परियोजनाओं से उन देशों पर प्राप्त अपने आर्थिक प्रभाव का उपयोग करता है।  उदाहरण के लिये-उइगर मुस्लिमों (Uighur Muslim) के संदर्भ में कई मुस्लिम और गैर-मुस्लिम देशों ने चीन सरकार की हिंसक कार्रवाई को अनदेखा किया है।
  • साथ ही चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल देशों में भी अपने घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम 'बाइडू' (BeiDou) के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है

बहुपक्षीय संगठनों का प्रयोग:  

  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का प्रयोग अपने राजनीतिक प्रभाव को मज़बूत और नए अवसरों को उत्पन्न करने, अपने विकास के हितों को आगे करने तथा ऐसे रणनीतिक संदेशों को बढ़ावा देने के लिये करता है जो इसे एक जिम्मेदार विश्व स्तरीय राष्ट्र के रूप में चित्रित करते हैं।
  • इस संदर्भ में रिपोर्ट में ‘ब्रिक्स’ (BRICS) और ‘शंघाई सहयोग संगठन’ ( Shanghai Cooperation Organization- SCO) का उदाहरण दिया गया है।  

भारत चीन विवाद:  

  •  इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 के दौरान भारत-चीन सीमा पर विवादित क्षेत्र में द्विपक्षीय सैन्य गतिविधियों  का जिक्र है जिसमें दोनों देशों ने तनाव को बढ़ने से रोके रखा।
    • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 की गतिवधियों की चर्चा की गई है अतः इसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के हालिया तनाव को शामिल नहीं किया गया है।

निष्कर्ष:   

  • यह रिपोर्ट हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में चीन की बढ़ती आक्रामकता से जुड़े तथ्य प्रस्तुत करती है
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन की गैर-सैन्य गतिविधियों के तहत दक्षिण चीन सागर में इंडोनेशिया और फिलीपींस सहित अन्य आसियान (ASEAN) देशों की समुद्री सीमा के साथ प्रशांत महासागर में इक्वाडोर के समुद्री क्षेत्र में चीनी मछुआरों की सक्रियता में वृद्धि देखने को मिली है।
  • इसके साथ ही चीन BRI परियोजना के साथ अन्य विकास योजनाओं के लिये भी कई देशों को ऋण उपलब्ध करा कर वहाँ की स्थानीय राजनीति में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाया है या कई मामलों में परियोजनाओं को अपने नियंत्रण में ले लिया है, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन विवाद के साथ भूटान सीमा पर चीन का हस्तक्षेप क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को दर्शाता है।   

आगे की राह:

  • हिंद-महासागर क्षेत्र के साथ ही विश्व के अन्य हिस्सों में चीन की बढ़ती सैन्य और गैर-सैन्य गतिविधियाँ क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति एवं स्थिरता की स्थापना के संदर्भ में एक बड़ी चिंता का विषय है।
  • दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को नियंत्रित करने के लिये क्षेत्र के देशों को साथ मिलकर सहयोग बढ़ाना चाहिये तथा ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS), 1982 के तहत सभी देशों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • हिंद महासागर में चीन के हस्तक्षेप को नियंत्रित करने के लिये भारत को अमेरिका, रूस ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के सहयोग से अपनी नौसैनिक गतिविधियों में वृद्धि करनी चाहिये।
  • हाल के वर्षों में चीन द्वारा सैन्य हथियारों के विकास को नियंत्रित करने के लिये चीन को ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ (Strategic Arms Reduction Treaty-START) जैसी शस्त्र नियंत्रण संधि में शामिल किया जाना चाहिये, साथ ही वैश्विक शांति और स्थिरता को बनाए रखने के लिये चीन को भी इस पहल में अपना सहयोग देना चाहिये।  

स्रोत:  द हिंदू

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