लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक उदारीकरण के 30 वर्ष

  • 28 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट, आर्थिक उदारीकरण, भुगतान संतुलन, राजकोषीय घाटा

मेन्स के लिये:

तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में आर्थिक उदारीकरण सुधारों की आवश्यकता एवं वर्तमान परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक उदारीकरण सुधारों की 30वीं वर्षगाँठ पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की वृहद्-आर्थिक स्थिरता पर चिंता व्यक्त की।

  • उनके अनुसार, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न मौजूदा आर्थिक संकट वर्ष 1991 के आर्थिक संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है और राष्ट्र को सभी भारतीयों के लिये एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने हेतु प्राथमिकता के क्षेत्रों को पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी।

प्रमुख बिंदु

1991 का संकट और सुधार:

  • 1991 का संकट: वर्ष 1990-91 में भारत को गंभीर भुगतान संतुलन (BOP) संकट का सामना करना पड़ा, जहाँ उसका विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 दिनों के आयात के वित्तपोषण हेतु पर्याप्त था। साथ ही अन्य कई कारक भी थे जो BOP संकट का कारण बने:
    • राजकोषीय घाटा: वर्ष 1990-91 के दौरान राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8.4% था।
    • खाड़ी युद्ध-I: वर्ष 1990-91 में कुवैत पर इराक के आक्रमण के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि से स्थिति विकट हो गई थी।
    • कीमतों में वृद्धि: मुद्रा आपूर्ति में तेज़ी से वृद्धि और देश की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मुद्रास्फीति दर 6.7% से बढ़कर 16.7% हो गई।
  • 1991 के सुधारों की प्रकृति और दायरा: वर्ष 1991 में वृहद्-आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिये भारत ने एक नई आर्थिक नीति शुरू की, जो एलपीजी या उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण मॉडल पर आधारित थी।
    • तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह वर्ष 1991 के ऐतिहासिक उदारीकरण के प्रमुख वास्तुकार थे।
    • LPG मॉडल के तहत व्यापक सुधारों में शामिल हैं:
      • औद्योगिक नीति का उदारीकरण: औद्योगिक लाइसेंस परमिट राज का उन्मूलन, आयात शुल्क में कमी आदि।
      • निजीकरण की शुरुआत: बाज़ारों का विनियमन, बैंकिंग सुधार आदि।
      • वैश्वीकरण: विनिमय दर में सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और व्यापार नीतियों को उदार बनाना, अनिवार्य परिवर्तनीयता संबंधी कारण को हटाना आदि।
    • वर्ष 1991 से 2011 तक देखी गई उच्च आर्थिक वृद्धि और वर्ष 2005 से 2015 तक गरीबी में पर्याप्त कमी के लिये इन सुधारों को श्रेय दिया जाता है तथा उनकी सराहना की जाती है।

10-Reforms

वर्ष 2021 का संकट:

  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट (World Economic Outlook Report), 2021 में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2021 में 12.5% और वर्ष 2022 में 6.9% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
    • हालाँकि महामारी के कारण अनौपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और दशकों की गिरावट के बाद गरीबी बढ़ रही है।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्र पिछड़ गए हैं जिनमें पुनः सुधार करने में हमारी आर्थिक प्रगति असमर्थ साबित हो रही है।
    • महामारी के दौरान बहुत से लोगों की जान चली गई, साथ ही कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी जो कि काफी दुखद अनुभव रहा।
  • इंस्पेक्टर राज (Inspector Raj) ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिये नीति के माध्यम से वापसी करने के लिये तैयार है।
  • भारत, राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से अत्यधिक उधार लेने या धन (लाभांश के रूप में) निकालने जैसी स्थित में पहुँच गया है।
  • प्रवासी श्रम संकट ने विकास मॉडल में रुकावट डाल दी है।
  • भारतीय विदेश व्यापार नीति फिर से व्यापार उदारीकरण पर संदेह कर रही है, क्योंकि भारत पहले ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से बाहर निकलने का फैसला कर चुका है।

आगे की राह

  • वर्ष 1991 के सुधारों ने अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने में मदद की। यह समय नए सुधार एजेंडे की रूपरेखा तैयार करने का है जो न केवल जीडीपी को पूर्व-संकट के स्तर पर वापस लाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि विकास दर महामारी में प्रवेश करने के समय की तुलना में अधिक हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2