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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 02 Jun, 2023
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि

चावल की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में देर से बारिश और मज़दूरों की कमी से निपटने हेतु किसान प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि को अपना रहे हैं।

प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि (Direct-Seeding Method):

  • परिचय: 
    • डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR), जिसे 'ब्रॉडकास्टिंग सीड तकनीक' के रूप में भी जाना जाता है, धान बीजारोपण की एक जल बचत विधि है।
    • इस विधि में बीजों का प्रत्यक्ष रूप से खेतों में बीजारोपण किया जाता है, जिससे नर्सरी तैयार करने एवं रोपाई की आवश्यकता नहीं होती है।
  • लाभ:
    • श्रम में कमी:  
      • ड्रम सीडर के उपयोग से एक एकड़ में बीजारोपण हेतु केवल दो मज़दूरों की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक तरीकों में 25-30 मज़दूरों की आवश्यकता होती है।
        • इससे श्रम लागत में काफी कमी आती है, साथ ही किसानों पर बोझ कम होता है।
    • समय और संसाधन की बचत:
      • नर्सरी की आवश्यकता को समाप्त करके किसान फसल चक्र में लगभग 30 दिन की बचत कर सकते हैं।
        • इससे उन्हें रबी सीज़न जल्दी शुरू करने और कटाई के दौरान बेमौसम बारिश से बचने में मदद मिलती है।
    • जल संरक्षण:
      • प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि जल की आवश्यकता को लगभग 15% कम कर देती है क्योंकि जल जमाव एक महीने के बाद ही होने लगता है। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से लाभकारी है जहाँ वर्षा में देरी होती है।
    • उपज में वृद्धि:
      • अनुसंधान परीक्षणों और किसानों के क्षेत्र सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार,  इस तकनीक से धानरोपण की पारंपरिक विधि (जलमग्न खेतों में पहले बीज तैयार करना फिर उनका रोपण अन्य स्थान पर करना) की तुलना में प्रति एकड़ एक से दो क्विंटल अधिक पैदावार हो रही है।
  • चुनौतियाँ
    • खरपतवार में वृद्धि:  
      • खरपतवारों की वृद्धि एक चुनौती बन जाती है क्योंकि बीजों को सीधे खेतों में बोया जाता है।
    • चरम जलवायु:  
      • उच्च तापमान और कम वर्षा बीज के अंकुरण और फसल की वृद्धि को प्रभावित कर सकती है।
    • परिचालन संबंधी चुनौतियाँ:  
      • सूखी या बंद नहरें, अनियमित विद्युत आपूर्ति, खरपतवार नियंत्रण तथा कीट प्रबंधन जैसे मुद्दे परिचालन में चुनौती उत्पन्न करते हैं।
  • सफल कार्यान्वयन: 
    • प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि ने पंजाब, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित विभिन्न क्षेत्रों में लोकप्रियता प्राप्त की है। 
    • केवल आंध्र प्रदेश में एक NGO ने लगभग 4,000 हेक्टेयर में इस पद्धति को लागू किया है जिसके परिणामस्वरूप सार्थक लागत बचत हुई है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कृषि में शून्य-जुताई (Zero-Tillage) का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)

  1. पिछली फसल के अवशेषाें को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है। 
  2. चावल की नई पौध की नर्सरी बनाए बिना धान के बीजाें का नम मृदा में सीधे रोपण संभव है। 
  3. मृदा में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • शून्य जुताई (ज़ीरो टिलेज) वह प्रक्रिया है जहाँ बीज को बिना पूर्व तैयारी और बिना मिट्टी तैयार किये तथा जहांँ पिछली फसल के अवशेष मौजूद होते हैं, वहाँ ड्रिलर्स के माध्यम से बोया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार, यदि किसान अपने फसल अवशेषों को जलाना बंद कर दें तथा इसके बजाय शून्य जुताई खेती की अवधारणा को अपनाएंँ तो उत्तर भारत में किसान न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं, बल्कि अपनी मृदा की उत्पादकता में भी सुधार कर सकते हैं और अधिक लाभ कमा सकते हैं। ज़ीरो टिलेज के तहत बिना जुताई वाली मिट्टी में गेहूंँ की सीधी बुवाई तथा चावल के अवशेषों को छोड़ देना बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। इसने जल, श्रम व कृषि रसायनों के उपयोग में कमी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी एवं मृदा स्वास्थ्य व फसल की उपज में सुधार किया, इस तरह किसानों तथा समाज दोनों को बड़े पैमाने पर लाभ हुआ। अत: कथन 1 सही है।
  • धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) जिसे 'बीज बिखेरना तकनीक (Broadcasting Seed Technique)' के रूप में भी जाना जाता है, धान की बुवाई की एक जल बचत विधि है। इस विधि में बीजों को सीधे खेतों में ड्रिल किया जाता है। नर्सरी से जलभराव वाले खेतों में धान की रोपाई की पारंपरिक जल-गहन विधि के विपरीत यह विधि भूजल की बचत करती है। इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी शामिल नहीं है। 
  • किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना होता है और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती है। यह पाया गया है कि 1 किलो धान के उत्पादन के लिये 5000 लीटर तक पानी का उपयोग किया जाता है। हालांँकि पानी की बढ़ती कमी की स्थिति में न्यूनतम या शून्य जुताई के साथ DSR श्रम की बचत कर इस तकनीक के लाभों को और बढ़ाया जा सकता है। अत: कथन 2 सही है।
  • बिना जुताई वाली मृदा, जुताई वाली मृदा से आंशिक रूप में ठंडी होती है क्योंकि पौधे के अवशेषों की एक परत सतह पर मौज़ूद होती है। मिट्टी में कार्बन जमा हो जाता है तथा इसकी गुणवत्ता में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम होता है। अत: कथन 3 सही है। 

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: बिज़नेसलाइन


प्रारंभिक परीक्षा

पुराना किला का उत्खनन

दिल्ली स्थित पुराना किला में हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की गई उत्खनन कार्यवाही से 2,500 वर्षों से अधिक पुराने इतिहास का पता चला है। इस उत्खनन का उद्देश्य स्थल के पूर्ण कालक्रम को स्थापित करना है। 

  • यहाँ विभिन्न ऐतिहासिक काल की कलाकृतियों की खोज की गई है जिसमें पूर्व-मौर्य, मौर्य, सुंग, कुषाण, गुप्त, राजपूत, सल्तनत और मुगल सहित 9 सांस्कृतिक स्तरों का पता चला है।
  • इस योजना का लक्ष्य कलाकृतियों को किले में एक ओपन एयर साइट संग्रहालय में प्रदर्शित करना है। 

उत्खनन के निष्कर्ष: 

  • चित्रित धूसर बर्तनों के टुकड़े: 
    • इन मृदभांडों (मिट्टी के बर्तनों) के टुकड़े आमतौर पर 1200 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व की अवधि के हैं, जो पूर्व मौर्य युग में मानव बस्तियों के अस्तित्व का संकेत देते हैं।
  • वैकुंठ विष्णु मूर्तिकला:
    • खुदाई के दौरान राजपूत काल से संबंधित वैकुंठ विष्णु की 900 वर्ष पुरानी एक मूर्ति की खोज की गई।
  • टेराकोटा पट्टिका:
    • इस स्थल पर देवी गजलक्ष्मी की एक टेराकोटा पट्टिका मिली है, जो गुप्त काल की है।
  • टेराकोटा रिंग वेल:
    • मौर्य काल के 2,500 वर्ष पुराने कुएँ के अवशेषों का पता चला था।
  • शुंग-कुषाण काल का परिसर:
    • खुदाई में सुंग-कुशान काल के एक अच्छी तरह से परिभाषित फोर-रूम परिसर का पता चला, जो लगभग 2,300 वर्ष पुराना है।
  • सिक्के, मुहरें और ताँबे की कलाकृतियाँ:  
    • साइट पर 136 से अधिक सिक्के, 35 मुहरें और सीलिंग तथा अन्य ताँबे की कलाकृतियों की खोज की गई। ये निष्कर्ष व्यापार गतिविधियों के केंद्र के रूप में साइट के महत्त्व को इंगित करते हैं।

पुराना किला:

  • पुराना किला मुगल युग से संबंधित सबसे पुराने किलों में से एक है और इस स्थल की पहचान इंद्रप्रस्थ (पांडवों की राजधानी) की प्राचीन बस्ती के रूप में की जाती है।
  • पुराना किला के विशाल प्रवेश द्वार और दीवारों का निर्माण हुमायूँ ने 16वीं शताब्दी में किया था तथा नई राजधानी दीनपनाह की नींव रखी गई थी।
  • इस काम को शेरशाह सूरी ने आगे बढ़ाया, जिसने हुमायूँ को विस्थापित किया।
  • किले के अंदर के प्रमुख आकर्षण शेरशाह सूरी की किला-ए-कुहना मस्जिद, शेर मंडल (एक मीनार जो पारंपरिक रूप से हुमायूँ की मृत्यु से संबंधित है), एक बावड़ी और व्यापक प्राचीर के अवशेष हैं इसमें तीन द्वार हैं। 
  • इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की अनूठी विशेषताएँ जैसे- घोड़े की नाल के आकार के मेहराब, ब्रैकेटेड ओपनिंग्स, संगमरमर की जड़ाई, नक्काशी आदि संरचना में प्रमुख हैं।
    • मस्जिद में एक शिलालेख है, जिसमें कहा गया है 'जब तक इस धरती पर लोग हैं तब तक इस भवन में बार-बार आना चाहिये और लोग इसमें खुश रहेंगे’।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 जून, 2023

डेक्कन क्वीन ट्रेन 

डेक्कन क्वीन ट्रेन ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती है। यह ट्रेन सेवा 1 जून, 1930 को शुरू की गई तथा बाद में मध्य रेलवे के रूप में जाना गया। अपने 92 वर्ष के इतिहास के दौरान ट्रेन परिवहन के साधन से एक ऐसी संस्था में बदल गई है जो यात्रियों की पीढ़ियों को जोड़ती है। इन वर्षों में इस क्षेत्र में अनेक प्रकार की प्रगति देखी गई जैसे कि एक डाइनिंग कार की शुरुआत, रोलर बियरिंग कोच और ऑक्सफोर्ड ब्लू कलर स्कीम को अपनाना। इसने भारत की पहली सुपरफास्ट, लंबी दूरी की इलेक्ट्रिक-चालित, वेस्टिबुल ट्रेन के रूप में रिकॉर्ड स्थापित किया। इस ट्रेन में एक समर्पित महिला कार भी थी। वर्तमान में डेक्कन क्वीन पुणे और मुंबई के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिये समयबद्धता और लोकप्रियता के चलते प्रसिद्ध है।

कच्चे तेल के अपशिष्ट जल की बहाली के लिये हरित उपाय 

इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी (IASST), गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने कच्चे तेल के अन्वेषण और प्रसंस्करण के दौरान निर्मुक्त होने वाले उपोत्पाद जल के निपटान से उत्पन्न होने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। उपोत्पाद के रूप में निकले हुए जल में हानिकारक घटक और रसायन होते हैं जो नदियों एवं नालों में बहाए जाने पर जल की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं और जलीय जीवन को क्षति पहुँचा सकते हैं। अनेक प्रयोगों तथा अध्ययनों के माध्यम से IASST के शोधकर्त्ताओं ने पौध आधारित बायोमैटेरियल, बायोसर्फैक्टेंट (रोगाणुओं के द्वितीयक मेटाबोलाइट्स) और NPK उर्वरक का मिश्रण तैयार किया है। इस नवोन्मेषी मिश्रण में कम समय-सीमा के भीतर उपोत्पाद के रूप में निकले हुए जल को पहले जैसा किया जा सकता है। टीम ने इस विकास कार्य पर एक भारतीय पेटेंट दायर किया है। यह "अद्भुत मिश्रण" न केवल जल के बहाव से पर्यावरण प्रदूषण को रोकता है बल्कि उपचारित जल को विभिन्न प्रयोजनों के लिये पुन: उपयोगी बनाता है। इस दृष्टिकोण का उपयोग करके जल के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है जिससे एक सतत् भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। इसके अलावा उपचारित जल फसल उत्पादन को बढ़ाकर तथा बढ़ती वैश्विक खाद्य मांग को पूरा करके हरित क्रांति में योगदान दे सकता है।

ई-सिगरेट-वापिंग की जटिलताएँ: भारत का दृष्टिकोण और चिंताएँ

भारत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2004 के तहत संशोधित नियमों पर ज़ोर देते हुए विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर तंबाकू विरोधी स्वास्थ्य संदेशों और चेतावनियों को बढ़ावा देने के लिये OTT प्लेटफाॅर्मों को निर्देशित किया है। हालाँकि नियमों में ई-सिगरेट या निकोटीन युक्त वेप्स शामिल नहीं हैं, जिन्हें स्वास्थ्य और सुरक्षा चिंताओं के कारण वर्ष 2019 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रतिबंध के बावजूद ये उपकरण कालाबाज़ारी के माध्यम से देश में प्रवेश कर रहे हैं, विशेष रूप से चीन से। ई-सिगरेट, जिसे इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के रूप में भी जाना जाता है और वेप्स इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जो एक तरल घोल (ई-तरल) को वाष्पीकृत करते हैं जिसमें निकोटीन, सुगंध तथा अन्य रसायन होते हैं। उन्हें तंबाकू को जलाए बिना पारंपरिक सिगरेट पीने के अनुभव का अनुकरण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। ई-सिगरेट और वेप धुएँ के बजाय वाष्प का उत्पादन करते हैं, जिसका उपयोगकर्ता द्वारा उपयोग किया जाता है।

और पढ़ें…विश्व तंबाकू निषेध दिवस

भारत के पश्चिमी घाट में निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादप: कृषि अनुप्रयोगों हेतु संभावित   

भारत का जैवविविधता हॉटस्पॉट, पश्चिमी घाट, निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादपों (डेसीकेशन टोलेरेंट वैस्कुलर प्लांट्स) की 62 प्रजातियों का घर है। निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादप (डेसीकेशन टोलेरेंट वैस्कुलर प्लांट्स- डीटी) अत्यधिक निर्जलीकरण का सामना करने में सक्षम हैं क्योंकि उनमें विद्यमान जल की मात्रा का 95% तक अपव्यय हो जाने के बाद भी वे जल के पुनरुपयोग से स्वयं को पुनर्जीवित कर लेते हैं। यह अनूठी क्षमता उन्हें ऐसे प्रतिकूल एवं शुष्क वातावरण में जीवित रहने में सक्षम बनाती है जिसमें अधिकांशतः अन्य पौधे जीवित ही नहीं रह सकते। हाल ही में हुए अध्ययन ने पश्चिमी घाटों में सहिष्णु संवहनी प्रजातियों की प्रचुरता पर प्रकाश डाला है, जो पहले से ज्ञात नौ प्रजातियों से भी अधिक है। अनुसंधान इन प्रजातियों की एक सूची प्रदान करता है, जिसमें 16 प्रजातियाँ भारतीय स्थानिक (इंडियन एंडेमिक) हैं और 12 पश्चिमी घाट के बाहरी हिस्सों के लिये विशिष्ट हैं। यह अध्ययन विशेष रूप से इन लचीले पौधों के लिये महत्त्वपूर्ण निवास स्थान के रूप में रॉक आउटक्रॉप्स (चट्टानी भू-भागों) में आंशिक रूप से घने वनों की पहचान करता है। डीटी पौधों की नौ प्रजातियों को नए रूप में अधिसूचित किया गया है, वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ट्राइपोगोन कैपिलेटस एक एपिफाइटिक डीटी एंजियोस्पर्म के प्रथम रिकॉर्ड का प्रतिनिधित्व करता है। सहिष्णु संवहनी पादपों का अध्ययन करके शोधकर्त्ता पश्चिमी घाट की जैवविविधता और पारिस्थितिकी में इन प्रजातियों के संरक्षण में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त निर्जलीकरण को सहन करने की उनकी क्षमता के पीछे के तंत्र को समझने से कम जल की आवश्यकता वाले शुष्क प्रतिरोधी फसलों को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यह अध्ययन कृषि अनुप्रयोगों के लिये विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में नई संभावनाओं को विकसित करता है।

और पढ़ें… पश्चिमी घाट


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