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एडिटोरियल

  • 29 Jan, 2022
  • 10 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था और अनौपचारिकता

यह एडिटोरियल 28/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s Economy and the Challenge Of Informality” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र की व्यापकता और इस क्षेत्र के औपचारिकरण से संबद्ध चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST), वित्तीय लेनदेन के डिजिटलीकरण और ई-श्रम (E-Shram) जैसे सरकारी पोर्टलों पर अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के नामांकन जैसे कदमों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने के कई प्रयास किये हैं।

औपचारिकरण (Formalization) के इन सुविचारित प्रयासों के बावजूद भारत के लिये अनौपचारिकरण की चुनौती बनी हुई है। कोरोना वायरस महामारी ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है।

रोज़गार सुरक्षा का अभाव, सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव, कर चोरी—ये सभी विषय अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) के तीव्र लेकिन संवहनीय गति से औपचारिकरण की आवश्यकता की ओर इंगित करते हैं। अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण में नीतिगत हस्तक्षेप, वित्तीय सहायता, शिक्षा और कौशल विकास की प्रमुख भूमिका होती है।

अनौपचारिक क्षेत्र और औपचारिकरण

  • भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: एक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था उन उद्यमों का प्रतिनिधित्व करती है जो पंजीकृत नहीं होते और जहाँ नियोक्ता कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते।
    • भारत सहित विकासशील विश्व के कई भागों में अनौपचारिकता में अत्यंत धीमी गति से कमी आई है, जो गरीबी और बेरोज़गारी के रूप में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
    • पिछले दो दशकों में तेज़ आर्थिक विकास के बावजूद भारत में 90% श्रमिक अनौपचारिक रूप से ही नियोजित बने रहे हैं, जबकि वे सकल घरेलू उत्पाद के लगभग आधे भाग का उत्पादन करते हैं।
    • आधिकारिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labor Force Survey) के आँकड़ों से पता चलता है कि 75% अनौपचारिक कामगार स्व-नियोजित और आकस्मिक वेतन भोगी हैं जिनकी औसत आय नियमित वेतनभोगी कामगारों की तुलना में कम है।
      • भारत की आधिकारिक परिभाषा (जहाँ EPF जैसे कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने वाली नौकरी को औपचारिक नौकरी माना गया है) के साथ ILO की व्यापक रूप से सहमत परिभाषा को संयुक्त करें तो भारत में औपचारिक श्रमिकों की हिस्सेदारी केवल 9.7% (47.5 मिलियन) है।
  • औपचारिक-अनौपचारिक लिंकेज: भारत में राजकोषीय परिप्रेक्ष्य 1980 के दशक के मध्य में शुरू किये गए कर सुधारों तक सीमित है।
    • आरंभ में रोज़गार को बढ़ावा देने के प्रयास में भारत सरकार ने श्रम गहन विनिर्माण में संलग्न छोटे उद्यमों को राजकोषीय रियायतें प्रदान कर और लाइसेंस के माध्यम से बड़े उद्योगों को विनियमित कर संरक्षित किया।
    • हालाँकि इस तरह के उपायों के कारण कई श्रम प्रधान उद्योग अनौपचारिक/असंगठित क्षेत्रों में विभाजित हो गए।

औपचारिकरण की आवश्यकता:

  • औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र की तुलना में अधिक उत्पादक हैं और औपचारिक श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच रखते हैं।
  • कुल रोज़गार में अनौपचारिक रोज़गार के एक उच्च अंश की उपस्थिति पर्याप्त वृद्धि की कमी या अल्प-विकास की निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है।
  • ‘ऑक्सफैम’ की नवीनतम वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में अपनी नौकरी गंवाने वाले कुल 122 मिलियन लोगों में से 75% अनौपचारिक क्षेत्र से संलग्न थे। यह कमज़ोर अनौपचारिक क्षेत्र को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता को प्रकट करता है।
  • चूँकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कारोबार प्रत्यक्ष रूप से विनियमित नहीं होते हैं, वे आम तौर पर नियामक ढाँचे से आय और व्यय छुपाकर एक या अधिक कर की अदायगी से बचते हैं।
    • यह सरकार के लिये चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे से बाहर रह जाता है।

औपचारिकरण की चुनौतियाँ

  • निस्संदेह, करदाताओं की संख्या को बढ़ाना और कर चोरी को कम करना आवश्यक है। हालाँकि वैश्विक अनुभव बताते हैं कि कानूनी और नियामक बाधाएँ औपचारिकरण के मार्ग की सर्वप्रमुख बाधाएँ हैं।
  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा हाल ही में जारी ‘इकोरैप’ (Ecowrap) रिपोर्ट से पता चलता है कि समग्र अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2017-18 में 52% से घटकर वर्तमान में 15-20% रह गई है।
    • हालाँकि ये निष्कर्ष अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक क्षेत्र में एक निरंतर संरचनात्मक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, बल्कि वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में लागू गंभीर लॉकडाउन के अस्थायी परिणाम को प्रकट करते हैं।
  • कानूनी और नियामक बाधाओं को दूर कर अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिकता के दायरे में लाने पर लक्षित नीतिगत प्रयास प्रशंसनीय हैं।
    • हालाँकि ये पहल इस बात को समझने में विफल हैं कि अनौपचारिक इकाइयों और उनके श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा अनिवार्य रूप से छोटे उत्पादकों (स्व-रोज़गार में संलग्न और आकस्मिक श्रमिक) का है जो न्यूनतम संसाधनों से अपना निर्वाह कर रहे हैं। इसलिये, इन प्रयासों के सीमित परिणाम ही प्राप्त होंगे।
  • ई-श्रम पोर्टल पर श्रमिकों का पंजीकरण नौकरियों के औपचारिकरण का कोई संकेतक नहीं होगा जब तक कि श्रमिक पोर्टल पर सूचीबद्ध सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।
    • आधिकारिक रिकॉर्ड में डिजिटलीकरण और पंजीकरण बढ़ाना किसी भी उद्यम को औपचारिक रूप में वर्गीकृत करने के लिये न तो आवश्यक शर्त है और न ही इसे पर्याप्त माना जा सकता है।

आगे की राह

  • सरल नियामक ढाँचा: अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिक क्षेत्र में ट्रांज़ीशन तभी हो सकता है जब अनौपचारिक क्षेत्र को नियामक अनुपालन के बोझ से राहत दी जाए और उसे आधुनिक, डिजिटल औपचारिक प्रणाली के साथ समायोजित होने के लिये पर्याप्त समय दिया जाए।
    • माना जाता है कि पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाने, व्यापार संचालन नियमों को आसान बनाने और औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के सुरक्षा मानकों को नीचे लाने से अनौपचारिक उद्यमों और उनके श्रमिकों को औपचारिकता के दायरे में लाया जा सकेगा।
  • शिक्षा, निवेश और कौशल: अनौपचारिकता का निरंतर प्रभुत्व अल्प-विकास की स्थिति को प्रकट करता है। अर्थव्यवस्था का औपचारिकरण होगा और राष्ट्र विकास के मार्ग पर बढ़ेगा जब अनौपचारिक उद्यम अधिक पूंजी निवेश एवं शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ अधिक उत्पादक बनेंगे और जब श्रमिकों को कौशल प्रदान किया जाएगा।
  • MSMEs को सुदृढ़ करना: अनौपचारिक कार्यबल का लगभग 40% MSMEs में संलग्न है। इसलिये, यह स्वाभाविक है कि MSMEs के सुदृढ़ होने से आर्थिक सुधार, रोज़गार सृजन और अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण के परिणाम प्राप्त होंगे।
  • औपचारिकरण के लिये वित्तीय सहायता: छोटे उद्योगों को अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करने के लिये वित्तीय सहायता देना उन्हें संगठित क्षेत्र में लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
  • मुद्रा ऋण (MUDRA loans) और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी योजनाएँ युवाओं को संगठित क्षेत्र में अपनी जगह बनाने में मदद कर रही हैं।

अभ्यास प्रश्न: अनौपचारिक क्षेत्र के औपचारिकरण की आवश्यकता और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से औपचारिक अर्थव्यवस्था में एक सहज संरचनात्मक रूपांतरण के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा कीजिये।


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