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एडिटोरियल

  • 26 Apr, 2024
  • 34 min read
शासन व्यवस्था

स्वच्छ भारत मिशन की यथार्थता

यह एडिटोरियल 25/04/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The reality of the Swacch Bharat Mission” लेख पर आधारित है। इसमें ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है और राज्य स्वामित्व वाली पहल के रूप में इसकी स्थिति पर बल दिया गया है। लेख में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और जातिगत भेदभाव को बनाए रखने में इसकी कथित भूमिका जैसे विषयों में इस योजना के समक्ष विद्यमान कुछ चुनौतियों की भी चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण, खुले में शौच मुक्त स्थिति, गोबर धन, स्वच्छ विद्यालय अभियान, स्वच्छता ऐप, कचरा मुक्त शहर (GFC)-स्टार रेटिंग, सतत् विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र, गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो एग्रो रिसोर्सेस (GOBAR-DHAN)।

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे और चुनौतियाँ।

वर्ष 2022 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (Environment Performance Index- EPI) में भारत को 180 देशों की सूची में निचले स्थान पर रखा गया। EPI जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र जीवन-शक्ति के मानदंड पर विश्व के देशों की रैंकिंग करता है। यह वायु गुणवत्ता, पेयजल और स्वच्छता जैसी 11 विषय श्रेणियों में 40 प्रदर्शन संकेतकों की माप करता है।

पिछले 10 वर्षों में सरकार ने पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं विकास के कई अभियान शुरू किये हैं। इनमें स्वच्छ भारत मिशन (SBM), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शामिल हैं।

SBM का उद्देश्य ‘वॉश’ (WASH- Water, Sanitation, and Health) के मुद्दे को संबोधित करना है। इसी तरह, स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM) से छोटे शहरों/क़स्बों की स्वच्छ ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की अपेक्षा है। हालाँकि, वायु और जल प्रदूषण सहित अन्य विभिन्न कारणों से जनसंख्या की संवेदनशीलता/भेद्यता में वृद्धि देखी गई है।

स्वच्छ भारत मिशन (SBM):

  • परिचय
    • यह एक वृहत जन आंदोलन है जिसका लक्ष्य वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत का निर्माण करना था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सदैव स्वच्छता पर बल देते थे क्योंकि स्वच्छता से स्वस्थ और समृद्ध जीवन की राह खुलती है।
    • इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 (गांधी जयंती) के अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन की नींव रखी। यह मिशन सभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को दायरे में लेता है।
      • इस मिशन के शहरी घटक का क्रियान्वयन आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा और ग्रामीण घटक का क्रियान्वयन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी:
    • चरण 1:
      • कार्यक्रम में खुले में शौच (open defecation) का उन्मूलन करना, गंदे शौचालयों को फ्लश शौचालयों में बदलना, हाथ से मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ स्वच्छता अभ्यासों के संबंध में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना शामिल है।
      • मिशन 1.04 करोड़ घरों को कवर करने, 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय एवं 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय प्रदान करने और प्रत्येक शहर में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा का निर्माण करने का लक्ष्य रखता है।
        • कार्यक्रम के तहत, ऐसे आवासीय क्षेत्रों में सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया जाना है जहाँ व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण करना कठिन है।
        • पर्यटन स्थलों, बाज़ारों, बस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों आदि निर्दिष्ट स्थानों पर भी सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया जाना है। कार्यक्रम को 4,401 शहरों में पाँच वर्ष की अवधि में लागू किया जाना था।
      • सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के लिये अपेक्षित सहायता के रूप में केंद्र सरकार द्वारा सामुदायिक शौचालय के निर्माण की लागत का 40% तक व्यवहार्यता अंतराल वित्तपोषण (VGF)/एकमुश्त अनुदान के रूप में प्रदान किया जाएगा। SBM दिशानिर्देशों के अनुसार, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश उक्त घटक के लिये अतिरिक्त 13.33% प्रदान करेंगे।
      • पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष श्रेणी के राज्यों को केवल 4% योगदान देना होगा। धन की व्यवस्था शहरी स्थानीय निकाय द्वारा नवोन्मेषी तंत्रों के माध्यम से करनी होगी। सामुदायिक शौचालय की प्रति सीट अनुमानित लागत 65,000 रुपए है।
    • चरण 2:
      • SBM-U 2.0 में सभी शहरों को ‘कूड़ा मुक्त’ बनाने और ‘अमृत’ (AMRUT) के अंतर्गत शामिल शहरों के अलावा अन्य सभी शहरों में गंदले जल (grey and black water) प्रबंधन को सुनिश्चित करने, सभी शहरी स्थानीय निकायों को ODF+ में परिणत करने तथा 1 लाख से कम आबादी वाले शहरों को ODF++ में परिणत करने की परिकल्पना की गई है, ताकि शहरी क्षेत्रों में सुरक्षित स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
        • मिशन ठोस अपशिष्टों के स्रोत पर पृथक्करण, 3Rs (reduce, reuse, recycle) के सिद्धांतों के उपयोग, सभी प्रकार के नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और प्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये पुराने डंपसाइटों के उपचार पर ध्यान केंद्रित करता है। वर्ष 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिये SBM-U 2.0 का परिव्यय लगभग 1.41 लाख करोड़ रुपए है।
      • यह स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) का ही विस्तार है जहाँ सभी वैधानिक क़स्बों में वित्तपोषण एवं कार्यान्वयन के लिये निम्नलिखित घटक शामिल हैं:
        • सतत स्वच्छता (शौचालय का निर्माण)
        • 1 लाख से कम आबादी वाले सभी ULBs में मल कीचड़ प्रबंधन सहित अपशिष्ट जल उपचार (यह SBM-U 2.0 में जोड़ा गया एक नया घटक है)
        • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
        • सूचना, शिक्षा एवं संचार
        • क्षमता निर्माण।

Implementation_of_SBM

  • स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण:
    • चरण 1:
      • ‘निर्मल भारत अभियान’ को स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के रूप में पुनर्गठित किया गया है। SBM-G को भारत में स्वच्छता सुनिश्चित करने और इसे पाँच वर्षों में खुले में शौच मुक्त (Open Defecation Free- ODF) बनाने के लिये 2 अक्टूबर 2014 को लॉन्च किया गया था।
        • इसका उद्देश्य ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के स्तर में सुधार करना और ग्राम पंचायतों को खुले में शौच मुक्त (ODF), साफ एवं स्वच्छ बनाना है।
      • व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (Individual Household Latrines- IHHL) के निर्माण के लिये मिशन के तहत प्रदान किया गया प्रोत्साहन गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के सभी परिवारों और गरीबी रेखा से ऊपर (APL) के निम्नलिखित श्रेणी के परिवारों के लिये उपलब्ध है: अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु एवं सीमांत किसान, भूमिहीन श्रमिक जिनके पास आवास है, दिव्यांगजन और वे परिवार जहाँ महिलाएँ मुखिया की भूमिका रखती हैं।
      • SBM-G के तहत BPL और निर्दिष्ट श्रेणी के APL परिवारों के लिये प्रदान की जाने वाली प्रोत्साहन राशि IHHL की एक इकाई के निर्माण और जल उपलब्धता (हाथ धोने और सफाई के लिये जल भंडारण सहित) के लिये 12,000 रुपए तक थी। 
        • IHHL के लिये इस प्रोत्साहन राशि में केंद्रीय हिस्सेदारी 9,000 रुपए (75%) और राज्य की हिस्सेदारी 3,000 रुपए थी।
        • पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये केंद्रीय हिस्सेदारी 10,800 रुपए और राज्य की हिस्सेदारी 1,200 रुपए थी (90% :10% के अनुपात में)। स्वामित्व को बढ़ावा देने के लिये लाभार्थी को अपने IHHL के निर्माण में अतिरिक्त योगदान देने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
    • चरण 2:
      • वर्ष 2014 से 2019 तक पिछले पाँच वर्षों में समयबद्ध तरीके से ODF भारत की अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त करने के बाद कार्यक्रम के तहत प्राप्त लाभ को बनाए रखने के लिये स्वच्छता और व्यवहार परिवर्तन अभियान पर कार्य जारी रखना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी पीछे न छूटे तथा गाँवों में संपूर्ण स्वच्छता प्राप्त हो।
        • फ़रवरी 2020 में SBM-G के चरण 2 को 1,40,881 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ मंज़ूरी दी गई जहाँ ODF स्थिति और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) की संवहनीयता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
        • SBM-G के चरण 2 को वित्तपोषण के विभिन्न क्षेत्रों और केंद्र एवं राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं के बीच अभिसरण के एक नए मॉडल के रूप में विकसित करने के लिये योजनाबद्ध किया गया है। इस कार्यक्रम को वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक मिशन मोड में लागू किया जाएगा।
  • SBM के विभिन्न घटक:
    • स्वच्छ विद्यालय अभियान:
      • शिक्षा मंत्रालय ने SBM के तहत स्वच्छ विद्यालय अभियान लॉन्च किया है जहाँ एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी विद्यालयों में बालकों एवं बालिकाओं के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।
      • कार्यक्रम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के प्रत्येक विद्यालय में आवश्यक हस्तक्षेपों का एक समूह होना चाहिये जो एक बेहतर जल, स्वच्छता एवं साफ-सफाई कार्यक्रम के तकनीकी एवं मानव विकास दोनों पहलुओं से संबंधित हो।
      • मंत्रालय अन्य बातों के साथ-साथ सर्व शिक्षा अभियान (SSA) और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) के तहत विद्यालयों में बालकों एवं बालिकाओं को शौचालय प्रदान करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय स्वच्छता कोष:
      • ‘स्वच्छ भारत’ के उद्देश्य की प्राप्ति के लिये व्यक्तिगत परोपकारी योगदान और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) वित्त को सुगम बनाने एवं चैनलाइज़ करने के लिये स्वच्छ भारत कोष (SBK) का गठन किया गया है।
      • इस कोष का उपयोग ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में (विद्यालयों सहित) स्वच्छता के स्तर में सुधार के लिये किया जाएगा। कोष से प्राप्त आवंटन का उपयोग ऐसी गतिविधियों के लिये विभागीय संसाधनों की पूर्ति एवं पूरकता के लिये किया जाएगा।
        • व्यक्तियों और कॉर्पोरेट से योगदान को प्रोत्साहित करने के लिये, जहाँ भी संभव हो वहाँ कर छूट प्रदान करने के उपायों पर विचार किया जा रहा है।
    • GOBAR-DHAN/गोबर-धन:

SBM के कार्यान्वयन में किन विभिन्न मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है?

  • स्वच्छता कार्य के संबंध में बनी रहीं पारंपरिक मान्यताएँ:
    • भारत में स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन का कार्य जातियों से संबद्ध रहा है। ऐतिहासिक रूप से, अधीनस्थ जातियों को साफ-सफाई कार्य करने के लिये विवश किया गया है। SBM ने यह आख्यान गढ़ने की कोशिश की कि स्वच्छता हर किसी का कार्य है, लेकिन इसने अंततः उन्हीं पुराने जातिगत अभ्यासों को बनाए रखा है।
      • SBM कथित रूप से सफल परियोजना है; क्योंकि किसी भी विपक्षी दल या समुदाय ने इस पर आपत्ति नहीं जताई है। जबकि संपूर्ण परियोजना राज्य एजेंसियों द्वारा शासित और उनकी निगरानी के अधीन है, इसका डिज़ाइन यह स्पष्ट करता है कि बड़ी पूंजी-गहन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाता है। हालाँकि, अभी भी पुरानी प्रथाएँ ही सुर्खियों में बनी हुई हैं।
  • शौचालयों तक सार्वभौमिक पहुँच का अभाव:
    • केंद्र सरकार का दावा है कि भारत खुले में शौच से मुक्त है, लेकिन वस्तविकता अलग है। वर्ष 2020 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट ने इस विषय में SBM की सफलता पर सरकार के दावों पर कई प्रश्न उठाए। इससे इस योजना के तहत शौचालय निर्माण की खराब गुणवत्ता को भी इंगित किया।
      • शहरीकरण से जुड़े कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि कुछ महानगरों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले समुदायों के पास अभी भी सार्वजनिक शौचालयों तक पहुँच नहीं है। यहाँ तक कि ग्रामीण भारत में भी शौचालय निर्माण को अपशिष्ट निपटान से जोड़ा नहीं गया है।
      • परि-शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न मल-मूत्र कीचड़ को पर्यावरण में फेंक दिया जाता है। सेप्टिक टैंकों को मैनुअल स्कैवेंजर द्वारा साफ किया जाता है और कीचड़ को विभिन्न जल प्रणालियों में बहा दिया जाता है।

Non_Functional_Lavatories

  • लोगों की संलग्नता के विकल्प के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं होना:
    • SBM के माध्यम से सरकार जो एक कार्य करना चाहती थी, वह था अपशिष्ट प्रबंधन में लोगों की संलग्नता को कम कर इसके बदले बड़ी, पूंजी-गहन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना। लेकिन ये प्रौद्योगिकी सुविधाएँ अपने समर्थकों के वादों पर खरी नहीं उतर सकी हैं, जिससे शहर-दर-शहर इन्हें दुरुस्त करने के लिये संसाधनों की और बुरी तरह से प्रबंधित अपशिष्ट से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संकट पर प्रतिक्रिया की मांग कर रहे हैं।
      • उदाहरण के लिये शहरों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को देखा जा सकता है। अधिकांश शहरों में केंद्र सरकार ठोस अपशिष्ट से निपटने के लिये तकनीकी समाधानों का उपयोग कर रही है। इनमें से कुछ समाधान अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र और जैविक मिथेनीकरण के रूप में हैं । लेकिन किसी भी मामले में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई है।
        • इस परिदृश्य में सरकारों ने अधिकांश कार्य निजी एजेंसियों को आउटसोर्स कर दिया है जिन्होंने अपशिष्ट प्रबंधन लिये उन्हीं पारंपरिक अधीनस्थ जाति समुदायों को नियोजित किया है।
  • स्वच्छता को लाभ की इकाई बनाना:
    • शहर की सरकारों से सड़क सफाई मशीनों (जिनका मूल्य 1 करोड़ रुपए तक है) सहित अधिक मशीनों, जियो-टैगिंग के साथ अपशिष्ट को एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाने के लिये अधिक वाहन आदि की खरीद के लिये कहा जा रहा है। ऐसी योजनाओं के लिये शहर सरकारों को धन उपलब्ध कराया जाता है। हालाँकि, यह समस्त कार्य शहरी डोमेन में प्रवेश कर रहे बड़े ठेकेदारों को सौंपा जा रहा है जो साफ-सफाई के कार्य को लाभ के धंधे में बदल रहे हैं।
      • इन ठेकेदारों द्वारा नियोजित अधिकांश श्रमिक दलित हैं। इस प्रकार, राज्य के पूर्ण स्वामित्व वाली एक योजना सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और निरंतर जातिगत भेदभाव के लिये एक साधन बन गई है।
  • स्वच्छता निरीक्षकों की कमी:
    • मार्च 2024 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय को शहरी विकास विभाग ने बताया कि शिमला नगर निगम (जिसमें 34 वार्ड शामिल हैं) में केवल पाँच स्वच्छता निरीक्षक मौजूद हैं। ऐसे और अधिक निरीक्षकों की भर्ती करने के बजाय उनके सेवानिवृत्त होने के बाद इस कैडर को भंग करने की तैयारी है।
      • जिस राज्य में 50 से अधिक नगर निकाय हैं, वहाँ केवल 20 स्वच्छता निरीक्षक मौजूद हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ नगर निकायों में कोई स्वच्छता निरीक्षक मौजूद नहीं है।
  • जल आपूर्ति का अभाव:
    • शौचालय के लिये बुनियादी ढाँचे महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये अकेले ही रोगजनकों के मल-मौखिक संचरण को रोकने के लिये पूर्व-आवश्यकता के रूप में काम नहीं आ सकते। ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आपूर्ति की कमी एक प्रमुख मुद्दा है, जहाँ केवल 42.5% घरों में शौचालय में उपयोग के लिये जल तक पहुँच है, जिससे शौचालय के गैर-उपयोग की दर बढ़ जाती है।
      • अनुपयुक्त मल-गाद प्रबंधन, अनुपयुक्त शौचालय प्रौद्योगिकी और अपर्याप्त मानव संसाधन की स्थिति भी बनी हुई है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज की प्राप्ति को कठिन बनाती है।
  • बच्चों में खुले में शौच की आदत:
    • आँकड़े से पता चलता है कि वर्ष 2015 से 2019 तक खुले में शौच में 12% की कमी आई है, जिसका अर्थ यह है कि ग्रामीण आबादी का लगभग आधा हिस्सा अभी भी खुले में शौच करता है। खुले में शौच करना ग्रामीण भारत में पारंपरिक व्यवहार है और लोग इसे स्वस्थ, स्वच्छ और कभी-कभी ‘धार्मिक रूप से स्वीकार्य’ मानते हैं।
      • खुले में शौच का यह मुद्दा चिंता का विषय है क्योंकि सरकारी अध्ययनों से पता चलता है कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों का एक बड़ा अनुपात अन्य आयु समूहों की तुलना में खुले में शौच का अधिक उपयोग करता है।
  • समृद्ध राज्यों की चुनौतियाँ:
    • प्रगति के बावजूद, समृद्ध राज्यों ने आर्थिक रूप से गरीब राज्यों की तुलना में शौचालय के उपयोग में मिश्रित प्रदर्शन और कम लाभ ही दिखाया है, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में अनुरूप रणनीतियों की आवश्यकता को उजागर करता है।
    • तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे राज्यों ने आर्थिक रूप से वंचित राज्यों की तुलना में नियमित शौचालय के उपयोग में कम प्रगति दिखाई है, जो दर्शाता है कि कार्यक्रम का सभी राज्यों में समान प्रभाव नहीं रहा है।

SBM की प्रभावशीलता में सुधार के विभिन्न उपाय:

  • कमज़ोर/भेद्य वर्गों पर ध्यान केंद्रित करना:
    • हालाँकि भारत ने स्वच्छता कवरेज में पर्याप्त प्रगति की है, लेकिन समाज के वंचित वर्गों, जैसे महिला प्रधान परिवार, भूमिहीन लोग, प्रवासी मज़दूर और दिव्यांगजनों से संबंधित कुछ व्यक्तियों, परिवारों और समुदाय के पास अभी भी अपने घरों में शौचालय मौजूद नहीं हैं या मौजूदा शौचालय उपयोग-योग्य नहीं हैं।
      • मानव अधिकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों दृष्टिकोणों से इस वंचित आबादी का समर्थन करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हाशिए पर स्थित वर्ग पहले से ही बुनियादी सेवाओं तक पहुँच से वंचित हैं और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के साथ एकीकरण:
    • शैक्षणिक संस्थानों, बाल देखभाल केंद्रों, अस्पतालों एवं अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों को स्वच्छता अभ्यासों में और प्रगति की आवश्यकता है। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और सरकारी विभागों में स्वच्छता कवरेज के अलग-अलग आँकड़े को दीर्घावधिक एवं व्यवहार्य विकल्प बनाने के लिये नवाचार की आवश्यकता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
  • उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देना:
    • सतत् विकास लक्ष्य 6 (SDG 6), यानी वर्ष 2030 तक “सभी के लिये जल एवं स्वच्छता तक पहुँच सुनिश्चित करना” की प्राप्ति के लिये कई कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है। विविधता, संस्कृति और आबादी में भारत जैसे वृहत देश के लिये, जहाँ कुल आबादी की 60% ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, केवल शौचालय तक पहुँच से ही स्वच्छ एवं सुरक्षित स्वच्छता अभ्यासों को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 1986 में शुरू किये गए भारत के पहले स्वच्छता कार्यक्रम ‘केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम’ से सबक प्राप्त हुआ कि केवल शौचालय निर्माण से शौचालय का उपयोग शुरू नहीं हो जाता।
      • यह कार्यक्रम घरेलू शौचालयों के निर्माण और पोर-फ्लश शौचालयों को बढ़ावा देने पर केंद्रित था। हालाँकि इस कार्यक्रम में शौचालय के उपयोग के प्रति व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया, जिसके कारण यह विफल हो गया। इसलिये, व्यवहारिक रूप से सुदृढ़ अभ्यासों को बढ़ावा देना एक तत्काल आवश्यकता है।
  • समग्र पथ का अनुसरण:
    • SBM को राजनीतिक समर्थन का लाभ उठाकर, ई-बैंकिंग के माध्यम से घरों को सीधे सब्सिडी का भुगतान कर, तकनीकी मंच के माध्यम से निगरानी प्रणाली को सुदृढ़ कर और कार्यक्रम की सफलता को प्रचारित कर इन मुद्दों को हल करना सीखना होगा।
      • इसे महात्मा गांधी के 150 वें जन्मदिन (2 अक्टूबर, 2019) तक ODF के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सूचना, शिक्षा एवं संचार अभियानों के माध्यम से और सभी घरों में व्यक्तिगत शौचालय सुविधाएँ प्रदान करने के रूप में उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करना था।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सीवर अवसंरचना में सुधार:
    • स्वच्छ भारत अभियान के कार्यान्वयन के संबंध में उचित सीवेज तंत्र की अनुपस्थिति एक गंभीर चुनौती सिद्ध हुई। जबकि एक बड़ी आबादी शौच के लिये बाहर जाती थी, क्षेत्रों में उत्पन्न सीवेज के उपचार के लिये कार्यशील सीवेज प्रणाली का अभाव था।
      • ऐसे में शौचालय बनाने से पहले सरकार को इस समस्या का समाधान भी करना होगा। गाँवों और ग्रामीण क्षेत्रों को भी सरकार के अमृत कार्यक्रम में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • सुदृढ़ अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली:
    • शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने और लैंडफिल के भर जाने से, शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन को फिर से शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि अपशिष्ट को पूरी तरह से संसाधित किया जाए और इसे लैंडफिल में न डाला जाए।
      • मंत्रालय को उन सभी राज्यों में अपशिष्ट प्रसंस्करण को बढ़ाने के लिये कदम उठाना चाहिये जो पिछड़े हुए हैं और देश में 100% ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की प्राप्ति के लिये स्रोत पर पृथक्करण, प्राथमिक संग्रह, द्वितीयक भंडारण, परिवहन, द्वितीयक पृथक्करण, संसाधन पुनर्प्राप्ति, प्रसंस्करण, उपचार और ठोस अपशिष्ट के अंतिम निपटान पर बल देना चाहिये। 
  • शहरी स्थानीय निकायों को पूरकता प्रदान करना:
    • शहरी क्षेत्रों में बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने की रणनीतियों को गहन किया जाना चाहिये और इन योजनाओं के ज़मीनी कार्यान्वयन में सुधार के प्रयास किये जाने चाहिये। भारत में शहरी स्थानीय निकायों (जो अवसंरचना और क्षमता की गंभीर कमी रखते हैं) को शहरी क्षेत्रों के प्रबंधन में नागरिक भागीदारी बढ़ाने के लिये समर्थन प्रदान किया जाना चाहिये और उन्हें बेहतर संसाधनों एवं साधनों से सुसज्जित किया जाना चाहिये।
  • कर बोझ को संबोधित करना:
    • जबकि सरकार का ध्यान यह सुनिश्चित करने पर होना चाहिये कि देश में अधिकतम अपशिष्ट का प्रसंस्करण किया जाए, पुनर्चक्रण एवं खाद उद्योग पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के तहत बढ़ा हुआ कर बोझ इस वृहत मिशन के साथ संरेखित नहीं है।
      • पुनर्चक्रण योग्य वस्तुओं के लिये बढ़ा हुआ कर स्लैब पुनर्चक्रण क्षेत्र को पंगु बना रहा है। कंपोस्टिंग मशीनों पर पहले के 8% के मुकाबले अब 12% टैक्स लग रहा है। एक ओर जहाँ सरकार शहरी कंपोस्ट को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, वहीं 5% GST लगाने से इसके उत्पादन एवं प्रचार-प्रसार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसलिये, दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये GST दर को युक्तियुक्त बनाया जाना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण और एकीकरण:
    • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित मोबाइल ऐप, MIS, डैशबोर्ड APIs सहित विभिन्न ई-गवर्नेंस समाधानों को शामिल करने की आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य विभिन्न राज्यों में ODF+ की प्रगति को ट्रैक करना है।
    • SBM-G का ई-गवर्नेंस समाधान एक सुदृढ़, इंटरऑपरेबल, स्केलेबल, सुरक्षित एवं भूमिका-आधारित प्रणाली हो जो उपयोगकर्ता को मोबाइल ऐप का उपयोग कर भौगोलिक निर्देशांक के साथ ठोस एवं तरल की सभी संपत्तियों को दर्ज करने में सक्षम बनाए।

निष्कर्ष

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ने SBM के तहत देश भर में शौचालय की पहुँच बढ़ाकर SDG 6 की प्राप्ति की दिशा में तेज़ी से प्रगति की है। लेकिन इसके साथ ही भारत को पर्यावरण सुरक्षा और मल-मुख रोग के संचरण के ढाँचे के भीतर अपनी सफलता की संवीक्षा भी करनी चाहिये जो विशेष रूप से बच्चों को कुपोषण या समय-पूर्व मृत्यु से मुक्त बचपन बिताने में मदद कर सकती है। ऐसा करने से और SBM की चिह्नित जटिलताओं का समाधान करने से सभी के लिये सार्वभौमिक स्वच्छता प्राप्त करने और SDG लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करने के रूप में भारत और अन्य देशों को स्वच्छता के एजेंडों की पूर्ति करने की राह मिलेगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता अभ्यासों पर स्वच्छ भारत मिशन के प्रभाव की चर्चा कीजिये। इसके कार्यान्वयन में कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ मौजूद हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और विस्तृत मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  


मेन्स:

प्रश्न. "जल, सफाई और स्वच्छता आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" ‘वाश’ योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)


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