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एडिटोरियल

  • 18 Oct, 2021
  • 16 min read
भारतीय समाज

सोशल मीडिया और युवा

यह एडिटोरियल 14/10/2021 को 'इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘How do we protect youth in the Digital Age?’’ लेख पर आधारित है। इसमें सोशल मीडिया मंचों के दुष्प्रभावों से युवाओं की रक्षा के लिये इन्हें विनियमित किये जाने की आवश्यकता पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में, इंस्टाग्राम और इसकी पैरेंट कंपनी फेसबुक को तब सार्वजनिक रोष का सामना करना पड़ा, जब कुछ रिपोर्टों में बताया गया कि उनके उपयोग का युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। फेसबुक के ‘व्हिसल ब्लोअर’ फ्रांसेस हौगेन (Frances Haugen) ने भी यह खुलासा किया कि बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की तुलना में लाभ को उच्च प्राथमिकता दी जाती है। इसने युवाओं पर ऐसे सोशल मीडिया ऐप्स और वेबसाइटों के प्रभाव को उजागर किया है।

सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव

  • संपर्क और संबंध: फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच किशोरों और युवा वयस्कों को अपनेपन और स्वीकृति की एक भावना प्रदान करते हैं। यह बात LGBTQ जैसे समूहों के लिये विशेष रूप से सत्य है, जो अलग-थलग या हाशिये पर मौजूद हैं।    
    • कोरोना महामारी के दौरान इसका चौतरफा प्रभाव स्पष्ट तौर पर नज़र आया जब इसने ‘आइसोलेशन’ में रह रहे लोगों और प्रियजनों को आपस में जोड़े रखा। 
  • सकारात्मक प्रेरणा: सोशल नेटवर्क ’सहकर्मी प्रेरणा’ (Peer Motivation) का सृजन कर सकते हैं और युवाओं को नई एवं स्वस्थ आदतें विकसित करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। किशोर ऑनलाइन माध्यम से अपने लिये सकारात्मक रोल मॉडल भी ढूँढ सकते हैं।     
  • पहचान का निर्माण: किशोरावस्था ऐसा समय होता है जब युवा अपनी पहचान को संपुष्ट करने और समाज में अपना स्थान पाने का प्रयास कर रहे होते हैं। सोशल मीडिया किशोरों को अपनी विशिष्ट पहचान विकास हेतु एक मंच प्रदान करता है।
    • एक अध्ययन से पता चला है कि जो युवा सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते हैं, वे ‘बेहतर प्रगति’ (Well-Being) का अनुभव करते हैं। 
  • अनुसंधान: मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और शोधकर्त्ता सोशल मीडिया का उपयोग प्रायः डेटा एकत्र करने के लिये करते हैं, जो उनके अनुसंधान में योगदान करता है। इसके अलावा, थेरेपिस्ट एवं अन्य पेशेवर लोग ऑनलाइन समुदायों के अंदर परस्पर नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं, जिससे उनके ज्ञान और पहुँच का विस्तार हो सकता है।       
  • अभिव्यक्ति प्रदान करना: सोशल मीडिया ने किशोरों को एक-दूसरे के पक्ष में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है। सशक्त भावों, विचारों या ऊर्जा की अभिव्यक्ति और सदुपयोग से यह बेहद सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।    
  • गेटवे टू टैलेंट: सोशल मीडिया आउटलेट छात्रों को अपनी रचनात्मकता और  विचारों को तटस्थ दर्शकों के साथ साझा करने और एक ईमानदार प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं। प्राप्त प्रतिक्रिया उनके लिये अपने कौशल को बेहतर ढंग से आकार देने की मार्गदर्शक बन सकती हैं, यदि वे उस कौशल को पेशेवर रूप से आगे बढ़ाना चाहते हैं।     
    • उदाहरण के लिये, कोई फोटोग्राफर या वीडियोग्राफर अपने शॉट्स को इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर शुरुआत करता है। कई युवा पहले से ही इसमें अपना कॅरियर बना रहे हैं।  
  • रचनात्मकता को बढ़ावा: सोशल मीडिया युवाओं को उनके आत्मविश्वास और रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह युवाओं को विचारों की और संभावनाओं की दुनिया से जोड़ता है। ये मंच छात्रों को अपने मित्रों और अपने सामान्य दर्शकों के साथ जुड़ने के मामले में अपने रचनात्मक कौशल का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।   
  • डिजिटल सक्रियता और सामाजिक परिवर्तन: सोशल मीडिया समुदाय के अंदर प्रभाव उत्पन्न करने का एक माध्यम बन सकता है। यह उन्हें न केवल अपने समुदाय के अंदर बल्कि पूरे विश्व में आवश्यक विषयों से अवगत कराता है। ’ग्रेटा थनबर्ग’ युवा सक्रियता की ऐसी ही एक उदाहरण है।

सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव

  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ: कई अध्ययनों में सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच घनिष्ठ संबंध पाया गया है। एक अध्ययन के अनुसार, मध्यम से गंभीर अवसाद लक्षण वाले युवाओं में सोशल मीडिया का उपयोग करने की संभावना लगभग दोगुनी थी। सोशल मीडिया पर किशोर अपना अधिकांश समय अपने साथियों के जीवन और तस्वीरों को देखने में बिताते हैं। यह एक निरंतर तुलनात्मकता की ओर ले जाता है, जो आत्म-सम्मान और ‘बॉडी इमेज’ को नुकसान पहुँचा सकता है और किशोरों में अवसाद एवं चिंता की वृद्धि कर सकता है।      
  • शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएँ: सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप स्वास्थ्यप्रद, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों पर कम समय व्यय किया जाता है। सोशल मीडिया फीड्स को स्क्रॉल करते रहने की आदत—जिसे ‘वैम्पिंग’ (Vamping) कहा जाता है, के कारण नींद की कमी की समस्या उत्पन्न होती है।    
  • सामाजिक संबंध: किशोरावस्था सामाजिक कौशल विकसित करने का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है। लेकिन, चूँकि किशोर अपने दोस्तों के साथ आमने-सामने कम समय बिताते हैं, इसलिये उनके पास इस कौशल के अभ्यास के कम अवसर होते हैं। 
  • ‘टेक एडिक्शन’: वैज्ञानिकों ने पाया है कि किशोरों द्वारा सोशल मीडिया का अति प्रयोग उसी प्रकार के उत्तेजना पैटर्न का सृजन करता है जैसा अन्य एडिक्शन व्यवहारों से उत्पन्न होता है।   
  • पूर्वाग्रहों की पुन:पुष्टि: सोशल मीडिया दूसरों के बारे में उनके पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों की पुन:पुष्टि का अवसर प्रदान करता है। समान विचारधारा वाले लोगों से ऑनलाइन मिलने से इन प्रवृत्तियों की वृद्धि होती है क्योंकि उनमें समुदाय की भावना का विकास होता है। उदाहरण: फ्लैट अर्थ सोसाइटी।    
  • साइबरबुलिइंग या ट्रोलिंग: इसने गंभीर समस्याएँ पैदा की हैं और यहाँ तक ​​कि किशोरों के बीच आत्महत्या के मामलों को भी जन्म दिया है। इसके अलावा, साइबरबुलिइंग जैसे कृत्य में संलग्न किशोर मादक पदार्थों के सेवन, आक्रामकता और आपराधिक कृत्य में संलग्न होने के प्रति भी संवेदनशील होते हैं।  
    • ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न और शोषण: संयुक्त राज्य अमेरिका में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल सभी अमेरिकी बच्चों में से लगभग आधे ने संकेत दिया कि उन्हें ऑनलाइन रहते हुए असहज महसूस कराया गया, उन्हें धमकाया गया या उनसे यौन प्रकृति का संवाद किया गया। एक अन्य अध्ययन में, यह पाया गया कि ऑनलाइन यौन शोषण के शिकार लोगों में से 50 प्रतिशत से अधिक 12 से 15 वर्ष की आयु के बीच के थे।       

आगे की राह

  • एक समर्पित सोशल मीडिया नीति: युवाओं को उपभोक्ताओं या भविष्य के उपभोक्ताओं के रूप में लक्षित नहीं करने के लिये उत्तरदायित्त्व का सृजन कर सोशल मीडिया को विनियमित करने के लिये एक समग्र नीति अपनाई जानी चाहिये। यह एल्गोरिदम को युवाओं के बजाय वयस्कों के प्रति अधिक अनुकूल बनाएगा।        
  • अनुपयुक्त सामग्री के लिये सुरक्षा उपाय: सोशल मीडिया मंचों को कुछ ऐसी सामग्री की अनुशंसा करने या उसका प्रसार करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये जिसमें यौन, हिंसक या अन्य वयस्क सामग्री (जुआ या अन्य खतरनाक, अपमानजनक, शोषणकारी, या पूरी तरह से व्यावसायिक सामग्री सहित) शामिल हैं।   
    • नैतिक रूपरेखा के मानक: ये मानक तकनीकी कंपनियों के लिये ‘डिजिटल डिस्ट्रैकशन’ (Digital Distraction) को रोकने, टालने एवं हतोत्साहित करने तथा नैतिक ह्यूमन लर्निंग को प्राथमिकता देने के सिद्धांत निर्धारित करेंगे।   
  • डिजिटल साक्षरता: यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत में विद्यमान ’डिजिटल डिवाइड’ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाए, विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में। युवाओं की सुरक्षा के नाम पर नीतिगत निर्णय का परिणाम यह नहीं होना चाहिये कि वंचित पृष्ठभूमि के युवा भविष्य के अवसरों से हाथ धो बैठें।    
  • शासन और विनियमन: कंटेंट, डेटा स्थानीयकरण, थर्ड पार्टी डिजिटल ऑडिट, सशक्त डेटा संरक्षण कानून आदि के लिये इन मंचों के अधिक उत्तरदायित्व हेतु सरकारी विनियमन भी आवश्यक है।     
  • सोशल मीडिया मंचों की भूमिका: ’ऑटो-प्ले’ सेशन, पुश अलर्ट जैसे कुछ फीचर्स पर प्रतिबंध लगाना और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण ऐसे उत्पादों का सृजन करना जो युवाओं को लक्षित न करें।   
  • सामाजिक एजेंसियों की भूमिका: सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने, सदुपयोगी बनाने और सीमित करने के लिये माता-पिता, शैक्षणिक संस्थानों और समाज को समग्र रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। पैरेंटल कंट्रोल फीचर के उपयोग, स्क्रीन टाइम को सीमित करने, बच्चों के साथ लगातार संवाद करने और बाह्य गतिविधियों को बढ़ावा देकर इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है।  

निष्कर्ष

युवाओं पर डिजिटल तकनीक के प्रभाव का मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये प्रभाव उनके वयस्क व्यवहार और भविष्य के समाजों के व्यवहार को आकार प्रदान करेंगे। यह जानना दिलचस्प होगा कि बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स जैसे तकनीकी क्षेत्र के दिग्गजों ने अपने बच्चों की प्रौद्योगिकी तक पहुँच को गंभीरता से नियंत्रित रखा था।    

सभी प्रौद्योगिकियों के स्पष्ट लाभ और संभावित हानिकारक प्रभाव होते हैं। जैसा कि जीवन के अधिकांश विषयों पर लागू होता है, सोशल मीडिया के उपयोग में भी अति से बचने और उसका संतुलित उपयोग करने में ही समस्या का समाधान निहित हो सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: 'सोशल मीडिया वर्तमान समय में एक दोधारी तलवार है।' सोशल मीडिया मंचों के दुष्प्रभावों से युवाओं की रक्षा के लिये इन्हें विनियमित किये जाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।


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