शासन व्यवस्था
भारत की कल्याणकारी योजनाओं का सशक्तीकरण
यह एडिटोरियल 06/08/2025 को द हिंदू में प्रकाशित ""The Technocratic Calculus of India’s Welfare State," पर आधारित है। इसमें आधार और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के साथ डेटा-संचालित कल्याणकारी व्यवस्था की ओर भारत के बदलाव पर चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य दक्षता एवं कवरेज में सुधार लाना है। यह कल्याणकारी व्यवस्था से जुड़ी चिंताओं को भी उजागर करता है और एक अधिक समावेशी कल्याणकारी कार्यढाँचे की आवश्यकता पर बल देता है।
प्रिलिम्स के लिये: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), AB-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली
मेन्स के लिये: भारत में कल्याणकारी व्यवस्था: संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत का सामाजिक सुरक्षा कवरेज वर्ष 2021 में 24.4% से दोगुना होकर वर्ष 2024 में 48.8% हो गया है, जो कल्याणकारी योजनाओं की पहुँच बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति दर्शाता है। भारत की कल्याणकारी व्यवस्था तेज़ी से डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपना रही है, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) से दक्षता में सुधार हो रहा है। इस प्रगति के बावजूद, सामाजिक क्षेत्र में खर्च में गिरावट और पारदर्शिता व जवाबदेही तंत्र में कमी जैसी चिंताएँ बनी हुई हैं। ये मुद्दे एक अधिक समावेशी और लोकतांत्रिक कल्याण कार्यढाँचे की आवश्यकता को उजागर करते हैं जो निष्पक्षता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करे।
भारत में प्रमुख कल्याणकारी कार्यक्रमों की उपलब्धियाँ क्या हैं?
- गरीबी उन्मूलन और रोज़गार कार्यक्रम:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक पंजीकृत वयस्क ग्रामीण परिवारों को कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत मज़दूरी वाला रोज़गार प्रदान करता है।
- संबर 2024 में इस प्रमुख योजना के अंतर्गत कार्य की माँग वर्ष 2023 की इसी अवधि की तुलना में 8.3% अधिक थी।
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): इसका उद्देश्य देश भर के ग्रामीण गरीब परिवारों के लिये विविध आजीविकाओं को बढ़ावा देकर और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच प्रदान करके ग्रामीण गरीबी को समाप्त करना है।
- फरवरी 2025 तक, 10.05 करोड़ ग्रामीण महिला परिवारों को 90.90 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों (SHG) में संगठित किया जा चुका है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 द्वारा शासित, किफायती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराकर खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिये स्थापित एक भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली।
- वर्ष 2023 तक, देश भर में 80.10 करोड़ लाभार्थी PDS का लाभ उठा रहे हैं।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक पंजीकृत वयस्क ग्रामीण परिवारों को कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत मज़दूरी वाला रोज़गार प्रदान करता है।
- स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पहल:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): इसका उद्देश्य कमज़ोर और वंचित आबादी पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुलभ, किफायती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
- वित्त वर्ष 2021-24 के दौरान, NHM ने 12 लाख से अधिक अतिरिक्त स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल किया।
- इसके अतिरिक्त, 1.56 लाख Ni-kshay मित्र स्वयंसेवकों ने प्रधानमंत्री TB मुक्त भारत अभियान के तहत 9.4 लाख से अधिक TB रोगियों की सहायता की, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार हुआ।
- एबी-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY): यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य कवरेज योजना है, जो भारत की लगभग 45% आबादी को कवर करती है।
- वर्ष 2024 तक, 35.4 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड जारी किये जा चुके हैं, जिससे लाखों परिवारों को स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त हुआ है।
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP): इसका उद्देश्य BPL परिवारों से संबंधित प्राथमिक आय अर्जन करने वाले की मृत्यु पर वृद्ध जनों, विधवाओं, दिव्यांग जनों और शोक संतप्त परिवारों को सहायता प्रदान करना है।
- वर्ष 2024 तक, NSAP ने 3.09 करोड़ BPL लाभार्थियों को सेवा प्रदान की है।
- POSHAN अभियान: इसका उद्देश्य किशोरियों, गर्भवती महिलाओं, दुग्धपान कराने वाली माताओं एवं बच्चों (0-6 वर्ष) की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को लक्षित और एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से पूरा करना है।
- NFHS-5 के अनुसार, NFHS-4 की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के पोषण संकेतकों में सुधार हुआ है।
- शिशु वृद्धि रोधन दर 38.4% से घटकर 35.5% हो गया है, कुपोषण 21.0% से घटकर 19.3% हो गया है और अल्प भार का प्रचलन 35.8% से घटकर 32.1% हो गया है।
- NFHS-5 के अनुसार, NFHS-4 की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के पोषण संकेतकों में सुधार हुआ है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): इसका उद्देश्य कमज़ोर और वंचित आबादी पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुलभ, किफायती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
- शिक्षा और कौशल विकास योजनाएँ:
- सर्व शिक्षा अभियान (SSA): सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा पर केंद्रित।
- सर्व शिक्षा अभियान के कार्यान्वयन के दौरान, प्राथमिक विद्यालयों में कुल नामांकन सत्र 2009-10 में 18.79 करोड़ बच्चों से बढ़कर सत्र 2015-16 में 19.67 करोड़ बच्चों तक पहुँच गया है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): इसका उद्देश्य युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये निःशुल्क, अल्पकालिक, गुणवत्ता-सुनिश्चित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
- वर्ष 2015 से, इस योजना ने 30 जून, 2024 तक 1.48 करोड़ उम्मीदवारों को प्रशिक्षित/उन्मुख किया है।
- PM-विद्यालक्ष्मी योजना: यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप है और इसका उद्देश्य छात्रों को बिना किसी गारंटी के ऋण प्रदान करना है।
- PM e-VIDYA: एक व्यापक पहल जो डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकीकृत करती है ताकि शिक्षा तक बहु-विध पहुँच संभव हो सके।
- इससे देश भर के लगभग 25 करोड़ स्कूली बच्चों को लाभ होगा।
- सर्व शिक्षा अभियान (SSA): सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा पर केंद्रित।
- महिला एवं बाल कल्याण कार्यक्रम:
- सुकन्या समृद्धि योजना: इसका उद्देश्य शिक्षा और सशक्तीकरण पर केंद्रित बैंक खातों के माध्यम से बालिकाओं के भविष्य के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।
- नवंबर 2024 तक, 4.1 करोड़ से अधिक सुकन्या समृद्धि खाते खोले जा चुके हैं।
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP) अभियान: घटते बाल लैंगिक अनुपात (CSR) को दूर करने, लिंग-भेदभावपूर्ण, लिंग-चयनात्मक उन्मूलन को रोकने तथा बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया।
- NFHS-5 के अनुसार, देश में जनसंख्या का लैंगिक अनुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएँ) 1,020 अनुमानित किया गया था।
- माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात (GER) सत्र 2014-15 में 75.51% से बढ़कर सत्र 2023-24 में 78% हो गया है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: यह पात्र गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ प्रदान करती है।
- वर्ष 2022 तक, इस योजना के अंतर्गत 3.11 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को नामांकित किया जा चुका है।
- सुकन्या समृद्धि योजना: इसका उद्देश्य शिक्षा और सशक्तीकरण पर केंद्रित बैंक खातों के माध्यम से बालिकाओं के भविष्य के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।
- वित्तीय और डिजिटल समावेशन:
- जन धन योजना: एक वित्तीय समावेशन कार्यक्रम जिसका उद्देश्य किफायती तरीके से वित्तीय सेवाओं, जैसे कि बुनियादी बचत और जमा खाते, प्रेषण, ऋण, बीमा, पेंशन, तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, मार्च 2015 में 14.7 करोड़ खातों से बढ़कर मार्च 2024 तक 52 करोड़ खाते हो गए हैं।
- डिजिटल इंडिया: डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को सुदृढ़ करके, सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी सुनिश्चित करके और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देकर भारत को एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज एवं ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिये शुरू किया गया।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती कनेक्टिविटी के साथ, भारत में इंटरनेट की पहुँच वर्ष 2014 में 25 करोड़ उपयोगकर्त्ताओं से बढ़कर वर्ष 2023 तक 97 करोड़ से अधिक हो गई।
- जन धन योजना: एक वित्तीय समावेशन कार्यक्रम जिसका उद्देश्य किफायती तरीके से वित्तीय सेवाओं, जैसे कि बुनियादी बचत और जमा खाते, प्रेषण, ऋण, बीमा, पेंशन, तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- जनजातीय एवं विशेष योग्यजन कल्याण:
- प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय महाअभियान (PM-JANMAN): दिव्यांगजनों (PVTG) के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिये शुरू किया गया।
- बजट सत्र 2025-26 में दिव्यांगजनों के लिये स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आजीविका को बेहतर बनाने हेतु योजना का आवंटन दोगुना करके 300 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
- धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DA- JGUA): जनजातीय क्षेत्रों में समावेशी और सतत् विकास को गति देने हेतु एक परिवर्तनकारी पहल।
- इसने 63,843 गाँवों को कवर किया है, जिससे 5 करोड़ से अधिक जनजातीय नागरिक लाभान्वित हुए हैं।
- सुगम्य भारत अभियान: दिव्यांगजनों के लिये सुलभ बुनियादी अवसंरचना, डिजिटल स्थान और सेवाएँ बनाने पर केंद्रित है
- प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय महाअभियान (PM-JANMAN): दिव्यांगजनों (PVTG) के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिये शुरू किया गया।
भारत के कल्याणकारी योजनाओं की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- बढ़ती असमानता और अपर्याप्त कवरेज: भारत की विकास यात्रा में बढ़ती असमानता देखी गई है। समग्र आर्थिक विकास के बावजूद, लाभ समान रूप से वितरित नहीं हुए हैं, जिससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी और हाशिये पर है।
- भारत आय समानता के मामले में 25.5 के गिनी स्कोर के साथ विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है, फिर भी देश की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की 40.1% संपत्ति है।
- इसके अलावा, NITI आयोग की एक रिपोर्ट में लगभग 40 करोड़ ऐसे लोगों की पहचान की गई है जो स्वास्थ्य के लिये किसी भी प्रकार की वित्तीय सुरक्षा के दायरे में नहीं आते हैं।
- भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में है, फिर भी अधिकांश सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ औपचारिक रोज़गार के लिये डिज़ाइन की गई हैं, जिससे एक बड़ी आबादी कल्याणकारी दायरे से बाहर रह जाती है।
- प्रशासनिक और कार्यान्वयन चुनौतियाँ: कई कल्याणकारी कार्यक्रम, विशेष रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली, वितरण नेटवर्क में भ्रष्टाचार और लीकेज से प्रभावित हैं। इन अक्षमताओं ने कल्याणकारी योजनाओं की प्रभावशीलता को कम कर दिया है, जिससे वे इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पा रही हैं।
- भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से आपूर्ति किये जाने वाले लगभग 28% अनाज इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाते हैं।
- आयुष्मान भारत योजना पर CAG की रिपोर्ट में अमान्य मोबाइल नंबर और संभावित धोखाधड़ी सहित अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। इसने यह भी उजागर किया है कि कुछ मामलों में, जिन रोगियों को पहले ‘मृत’ दिखाया गया था, वे भी योजना के तहत उपचार प्राप्त करते रहे।
- ICDS और मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) जैसी पहलों को मुख्यतः अकुशल कार्यान्वयन के कारण लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। हालाँकि कुछ सुधार हुआ है, लेकिन इन मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) बना हुआ है।
- उदाहरण के लिये, मुंबई में, प्रवास और अपर्याप्त दस्तावेज़ीकरण के कारण 30,000 से 50,000 बच्चे ICDS सेवाओं से वंचित रह जाते हैं, जो पहुँच में अंतराल को उजागर करता है।
- दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने में योजनाओं की सीमाएँ: भारत का कल्याण कार्यढाँचा एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के बजाय अलग-थलग योजनाओं के इर्द-गिर्द बना है। ये योजनाएँ प्रायः अल्पकालिक सहायता प्रदान करती हैं, लेकिन नागरिकों के समक्ष आने वाली बहुआयामी चुनौतियों का दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करने में विफल रहती हैं।
- कई कल्याणकारी कार्यक्रमों ने अभाव के मूल कारणों का समाधान किये बिना तात्कालिक आवश्यकताओं (जैसे: भोजन, नकद अंतरण) पर ध्यान केंद्रित किया है। इसने स्थायी सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में सामाजिक कल्याण नीतियों की प्रभावशीलता को सीमित कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, जहाँ MGNREGS ग्रामीण परिवारों को अल्पकालिक रोज़गार और आय सहायता प्रदान करता है, वहीं यह दीर्घकालिक आजीविका सुरक्षा या सतत् विकास को सुनिश्चित नहीं करता है।
- साथ ही, जहाँ न्यूनतम समर्थन मूल्य का उद्देश्य किसानों की सुरक्षा करना है, वहीं इसने पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में धान-गेहूँ की एक ही खेती को प्रोत्साहित किया है। इसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर में कमी और सीमित फसल विविधीकरण जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
- कई कल्याणकारी कार्यक्रमों ने अभाव के मूल कारणों का समाधान किये बिना तात्कालिक आवश्यकताओं (जैसे: भोजन, नकद अंतरण) पर ध्यान केंद्रित किया है। इसने स्थायी सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में सामाजिक कल्याण नीतियों की प्रभावशीलता को सीमित कर दिया है।
- प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र का अभाव: केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली की स्थापना के बावजूद, राजनीतिक जवाबदेही का अभाव है।
- वर्ष 2022 और 2024 के दौरान, इसने 70 लाख से अधिक शिकायतों का सफलतापूर्वक समाधान किया। हालाँकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- यह एल्गोरिदम अलगाव स्थानीय अधिकारियों की समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान करने की क्षमता को सीमित करता है, जिससे कल्याणकारी कार्यक्रमों (विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये) की दक्षता और प्रभाव कम होता है।
- स्थानीय भागीदारी के बिना, कल्याणकारी योजनाएँ लाभार्थियों की ज़रूरतों से कटी रहती हैं।
- इसके अलावा, एक हालिया संसदीय समिति ने पाया है कि प्रायः ‘निपटान की गुणवत्ता’ के बजाय ‘निपटान की मात्रा’ पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- वर्ष 2022 और 2024 के दौरान, इसने 70 लाख से अधिक शिकायतों का सफलतापूर्वक समाधान किया। हालाँकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में डिजिटल बाधाएँ: आधार-लिंक्ड और DBT-आधारित कल्याणकारी योजनाओं पर बढ़ती निर्भरता ने विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समूहों के लिये, गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं।
- 45% भारतीय आबादी के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है, जिससे वे आवश्यक कल्याणकारी सेवाओं तक पहुँच नहीं पा रहे हैं।
- जुलाई 2025 में जारी संसदीय लोक लेखा समिति (PAC) की एक रिपोर्ट ने आधार बायोमेट्रिक सत्यापन की उच्च विफलता दर को एक गंभीर चिंता का विषय बताया।
- आधार प्रमाणीकरण विफलताएँ और डेटा बेमेल कई पात्र लाभार्थियों, विशेष रूप से किसानों और महिलाओं, को PM किसान जैसे प्रमुख कार्यक्रमों से वंचित कर देते हैं।
- डिजिटल निरक्षरता, विशेष रूप से महिलाओं एवं वृद्ध जनों में, सरकारी सेवाओं तक पहुँच को और सीमित करती है।
- इसके अलावा, आधार डेटा से जुड़ी गोपनीयता संबंधी चिंताओं के कारण विश्वास एवं पहुँच प्रभावित होती है, जिससे सीमांत समुदाय अपवर्जन के प्रति सुभेद्य हो जाते हैं।
- कल्याणकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को प्रभावित करने वाली बजटीय बाधाएँ: सामाजिक क्षेत्र के खर्च में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जो वर्ष 2014-2024 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के औसतन 21% से घटकर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 17% रह गया है।
- अल्पसंख्यक मामले, श्रम एवं रोज़गार, पोषण और सामाजिक सुरक्षा सहित महत्त्वपूर्ण कल्याण क्षेत्रों में बजटीय आवंटन में भारी कमी आई है, जो कोविड-पूर्व अवधि के कुल व्यय के 11% से घटकर कोविड-पश्चात केवल 3% रह गया है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में, कुल व्यय में सामाजिक क्षेत्र की हिस्सेदारी घटकर 17% रह गई, जो पिछले दशक में सबसे कम है।
- वित्त पोषण में इस कमी के कारण कल्याणकारी कार्यक्रमों, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में, के प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- अकुशल निगरानी, मूल्यांकन और प्रभाव आकलन: MGNREGA जैसी सामाजिक अंकेक्षण व्यवस्था होने के बावजूद, उनके क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण कमियाँ हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल छह ने ही ग्राम पंचायत स्तर पर MGNREGS के तहत किये गए 50% से अधिक कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण पूरा किया है।
- यह अकुशल निगरानी को दर्शाता है और यह आकलन करने की क्षमता में बाधा डालता है कि कल्याणकारी योजनाएँ लाभार्थियों तक प्रभावी ढंग से पहुँच रही हैं या नहीं तथा वांछित परिणाम प्राप्त कर रही हैं या नहीं।
- उचित मूल्यांकन और निरंतर प्रतिक्रिया के बिना, कई कल्याणकारी कार्यक्रम अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने में विफल रहते हैं, जिससे अक्षमताएँ और भ्रष्टाचार बना रहता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल छह ने ही ग्राम पंचायत स्तर पर MGNREGS के तहत किये गए 50% से अधिक कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण पूरा किया है।
भारत अपनी कल्याणकारी वितरण प्रणाली को किस प्रकार सुदृढ़ कर सकता है और समावेशिता सुनिश्चित कर सकता है?
- नागरिक-केंद्रित कल्याणकारी वितरण: संदर्भ-संवेदनशील कल्याणकारी कार्यक्रमों को डिज़ाइन करने में ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय शासन निकायों की भूमिका को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- MGNREGA या PM-KISAN जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये ग्राम-स्तरीय कल्याण समितियाँ स्थापित की जा सकती हैं, जो लाभार्थियों के साथ नियमित सर्वेक्षण और फीडबैक सत्र आयोजित करके यह आकलन कर सकें कि क्या कार्यक्रम लक्षित आबादी तक पहुँच रहे हैं तथा अपने वांछित परिणाम प्राप्त कर रहे हैं।
- अत्यधिक गरीबी पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक द्वारा सुझाए गए समुदाय-संचालित प्रभाव अंकेक्षण को संस्थागत बनाने से जवाबदेही बढ़ सकती है।
- राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और ग्राम पंचायत विकास योजना जैसे कार्यक्रम, केरल की कुदुम्बश्री पहल के साथ, आर्थिक अवसर प्रदान करके तथा समावेशिता को बढ़ावा देकर हाशिये पर रहने वाले समुदायों, विशेषकर महिलाओं को प्रभावी ढंग से सशक्त बनाते हैं।
- MGNREGA या PM-KISAN जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये ग्राम-स्तरीय कल्याण समितियाँ स्थापित की जा सकती हैं, जो लाभार्थियों के साथ नियमित सर्वेक्षण और फीडबैक सत्र आयोजित करके यह आकलन कर सकें कि क्या कार्यक्रम लक्षित आबादी तक पहुँच रहे हैं तथा अपने वांछित परिणाम प्राप्त कर रहे हैं।
- सामाजिक क्षेत्रों के लिये बजटीय आवंटन में सुधार: यह सुनिश्चित करने के लिये कि कल्याणकारी कार्यक्रम सीमांत समुदायों तक प्रभावी ढंग से पहुँच सकें, सामाजिक क्षेत्र के लिये आवंटन बढ़ाया जाना चाहिये।
- सभी नागरिकों, विशेषकर कमज़ोर वर्ग के लोगों को लाभ पहुँचाने वाली एक सुदृढ़ आर्थिक सुरक्षा प्रणाली के निर्माण हेतु स्वास्थ्य सेवा, पोषण और शिक्षा में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बजट आवंटन में वृद्धि के माध्यम से निवारक प्रणाली के साथ मिश्रित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और निवारक उपायों पर केंद्रित केरल की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली दर्शाती है कि कैसे स्वास्थ्य सेवा में निवेश समग्र कल्याण में उल्लेखनीय सुधार ला सकता है तथा इसे पूरे देश में दोहराया जा सकता है।
- AI-संचालित लाभार्थी लक्ष्यीकरण और पुनरावृत्ति-मुक्ति: पात्र लेकिन अपवर्जित आबादी की पहचान करने, छद्म लाभार्थियों का पता लगाने और कल्याणकारी आवंटन को युक्तिसंगत बनाने के लिये AI और मशीन लर्निंग उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये।
- ये प्रणालियाँ लक्ष्यीकरण को परिष्कृत करने के लिये उपभोग पैटर्न, भू-स्थानिक डेटा और लेन-देन के डेटा का विश्लेषण कर सकती हैं। आगामी जनगणना के डेटा के साथ एकीकरण गतिशील अद्यतनों को सक्षम बनाता है।
- यह दक्षता, राजकोषीय विवेकशीलता और वितरण में समानता को बढ़ाता है। यह स्थिर सूचियों से अनुकूली लक्ष्यीकरण प्रणालियों में परिवर्तित होता है।
- ये प्रणालियाँ लक्ष्यीकरण को परिष्कृत करने के लिये उपभोग पैटर्न, भू-स्थानिक डेटा और लेन-देन के डेटा का विश्लेषण कर सकती हैं। आगामी जनगणना के डेटा के साथ एकीकरण गतिशील अद्यतनों को सक्षम बनाता है।
- संसाधनों की बर्बादी को कम करना और दक्षता में सुधार: भारत के कल्याणकारी कार्यक्रमों में एक बड़ी चुनौती संसाधनों की बर्बादी रही है, जहाँ कुप्रबंधन और अकुशल कार्यान्वयन के कारण लाभार्थियों तक पहुँचने वाली सहायता का एक बड़ा हिस्सा कभी पहुँच ही नहीं पाता।
- आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को त्रुटियों और डेटा बेमेल को कम करने के लिये बढ़ाया जा सकता है, जिससे कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में सटीकता में सुधार होगा।
- राशन की दुकानों पर स्मार्ट कार्ड और POS उपकरणों का उपयोग खाद्यान्न सब्सिडी के सटीक वितरण एवं निगरानी को और सुनिश्चित करता है।
- भारत ई-रुपी, एक डिजिटल वाउचर प्रणाली, जिसके माध्यम से लाभार्थियों को उनके फोन पर SMS या QR कोड के रूप में वाउचर प्राप्त होते हैं, को सक्रिय रूप से अपनाने का प्रयास कर सकता है।
- यह प्रणाली कल्याणकारी योजनाओं के वितरण को सुव्यवस्थित कर सकती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि लाभ सीधे एवं कुशलतापूर्वक इच्छित प्राप्तकर्त्ताओं तक पहुँचें।
- आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को त्रुटियों और डेटा बेमेल को कम करने के लिये बढ़ाया जा सकता है, जिससे कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में सटीकता में सुधार होगा।
- सार्वभौमिक डिजिटल समावेशन सुनिश्चित करना: डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में सुधार के साथ-साथ, हाशिये पर रहने वाले समुदायों, विशेषकर महिलाओं, बुजुर्गों और ग्रामीण आबादी को लक्षित करते हुए डिजिटल साक्षरता अभियान शुरू करना आवश्यक है।
- SMS-आधारित सेवाओं और मोबाइल वैन जैसे ऑफलाइन विकल्प विकसित किये जाने चाहिये, ठीक PMGDISHA (प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान) की तरह, जो ग्रामीण नागरिकों को प्रशिक्षित करने के लिये मोबाइल वैन का उपयोग करता है।
- इसके अलावा, डिजिटल प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्त्ता-अनुकूल और बहु-भाषाओं में उपलब्ध बनाकर, जैसा कि आधार नामांकन प्रक्रिया में देखा गया है, सरल बनाने से सुगमता सुनिश्चित होगी।
- स्थानीय अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के साथ सहयोग, जिन्होंने महिलाओं को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने में सहायता की है, डिजिटल खाई को और कम करेगा तथा सभी नागरिकों के लिये समावेशी पहुँच सुनिश्चित करेगा।
- समुदाय-आधारित समावेशन ऑडिट: अपवर्जन त्रुटियों की पहचान करने के लिये, समुदाय-आधारित संगठनों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा पंचायत एवं वार्ड स्तर पर वार्षिक समावेशन ऑडिट आयोजित किये जाने चाहिये।
- इन ऑडिट को मध्य-वर्ष के पाठ्यक्रम सुधारों के लिये सीधे योजना डेटाबेस में शामिल किया जाना चाहिये। समुदायों को सशक्त बनाने से सामाजिक जवाबदेही और सहभागी शासन सुनिश्चित होता है।
- यह निगरानी को लोकतांत्रिक बनाता है और कल्याणकारी प्रणालियों में नागरिक स्वामित्व को बढ़ावा देता है। इससे एक ऐसा समावेशन चक्र बनता है जो नीचे से ऊपर की ओर और पुनरावृत्तीय दोनों होता है।
- समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करना: कल्याणकारी कार्यक्रमों को भोजन, नकद अंतरण और स्वास्थ्य सेवा जैसी तात्कालिक ज़रूरतों को पूरा करने से आगे बढ़कर, व्यक्ति के कल्याण के विभिन्न पहलुओं को एकीकृत करके दीर्घकालिक सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- प्रशिक्षण से लेकर काम तक एक सतत् मार्ग प्रदान करने के लिये, आत्मनिर्भर विकास के चक्र को सक्षम करते हुए, PMKVY को रोज़गार गारंटी योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिये।
- एक समग्र दृष्टिकोण न केवल गरीबी के लक्षणों, बल्कि उसके मूल कारणों का भी निदान करेगा, जिससे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 38 के आधार पर हाशिये पर पड़े समूहों के लिये सतत् विकास संभव होगा।
- प्रशिक्षण से लेकर काम तक एक सतत् मार्ग प्रदान करने के लिये, आत्मनिर्भर विकास के चक्र को सक्षम करते हुए, PMKVY को रोज़गार गारंटी योजनाओं से जोड़ा जाना चाहिये।
- 'एक राष्ट्र, एक अधिकार' के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली से परे कल्याणकारी सुवाह्यता: भारत खाद्य सुरक्षा से परे पेंशन, छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य बीमा और आवास जैसी योजनाओं तक अधिकारों की सुवाह्यता का विस्तार करने का प्रायोगिक परीक्षण कर सकता है, जिससे प्रवासी एवं शहरी गरीब कहीं भी लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
- जियो-टैग्ड डिजिटल सत्यापन के साथ एक एकीकृत एक राष्ट्र, एक अधिकार (ONOE) कार्यढाँचा तैयार किया जाना चाहिये। रीयल-टाइम सेवा वितरण के लिये क्लाउड-आधारित MIS और आधार-लिंक्ड प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करता है कि गतिशीलता का अर्थ अपवर्जन नहीं है। यह एक ऐसा कल्याणकारी संजाल बनाता है जो पते का नहीं, बल्कि नागरिक का अनुसरण करता है।
- जियो-टैग्ड डिजिटल सत्यापन के साथ एक एकीकृत एक राष्ट्र, एक अधिकार (ONOE) कार्यढाँचा तैयार किया जाना चाहिये। रीयल-टाइम सेवा वितरण के लिये क्लाउड-आधारित MIS और आधार-लिंक्ड प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
एक विकसित भारत के लिये, भारत को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को डिजिटल शासन के साथ एकीकृत करके अपने कल्याणकारी कार्यढाँचे की पुनर्कल्पना करनी होगी, जिससे नागरिक न केवल लाभार्थी बनें, बल्कि विकास प्रक्रिया में सक्रिय हितधारक भी बनें। स्थानीय शासन को सुदृढ़ बनाना, बजट आवंटन में सुधार करना, समावेशिता सुनिश्चित करना और अक्षमताओं को दूर करना एक अधिक सुदृढ़ कल्याणकारी कार्यढाँचे का निर्माण करेगा। लीकेज को कम करके और दीर्घकालिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देकर, भारत अमर्त्य सेन के कल्याणकारी अर्थशास्त्र द्वारा निर्देशित एक न्यायसंगत एवं पारदर्शी प्रणाली बना सकता है जो सभी नागरिकों, विशेष रूप से सीमांत वर्ग के लोगों को लाभान्वित करे तथा स्थायी सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक सुरक्षा को बढ़ावा दे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. डेटा-आधारित कल्याण मॉडल की ओर बदलाव के बावजूद, भारत की कल्याणकारी व्यवस्था में असमानता, अक्षमता और डिजिटल बाधाओं जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। समावेशिता और दीर्घकालिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के लिये भारत अपने कल्याणकारी वितरण को किस प्रकार बेहतर बना सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011)
(a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य
(b) गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों के वयस्क सदस्य
(c) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य
(d) किसी भी परिवार के वयस्क सदस्य
उत्तर: (d)
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
- गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
- छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
- बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना ।
- मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1,2 और 3
(c) केवल 1,2 और 4
(d) केवल 3 और 4
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न 1. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। (2019)
प्रश्न 2. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021)