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एडिटोरियल

  • 04 Sep, 2021
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रीकरण की चुनौतियाँ

यह एडिटोरियल 03/09/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Is monetising public assets a good idea?’’ लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में घोषित राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई है और आगे की राह सुझाई गई है।

हाल ही में सरकार ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline- NMP) जारी की है जो उन विभिन्न सार्वजनिक संपत्तियों को सूचीबद्ध करने वाला एक दस्तावेज़ है जिन्हें अगले चार वर्षों में निजी कंपनियों को पट्टे पर दिया जाएगा। 

सरकार का विश्वास ​​है कि क्षमता से कम उपयोग की जा रही सार्वजनिक संपत्तियों के मुद्रीकरण से सरकार को लगभग 6 लाख करोड़ रुपये प्राप्त होंगे और अर्थव्यवस्था के प्रोत्साहन के लिये नई अवसंरचनाओं के निर्माण में मदद मिलेगी। आलोचकों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह मूल्यवान राष्ट्रीय संपत्तियों को ‘क्रोनी कैपिटलिस्टों’ के हाथ बेच रही है। 

इस संदर्भ में, समग्र आर्थिक विकास पर इस योजना के दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है।

राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP):

  • नीति आयोग द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन का उद्देश्य राष्ट्रीय अवसंरचना में "विकास, कमीशन, मुद्रीकरण और निवेश" के एक सुदृढ़ चक्र का निर्माण करना है। 
  • इसका लक्ष्य निजी क्षेत्र को संलग्न कर ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में संभावनाओं को साकार करना, उन्हें राजस्व अधिकार हस्तांतरित करना (हालाँकि परियोजनाओं में स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं) और इस प्रकार प्राप्त पूँजी को देश भर में बुनियादी अवसंरचनाओं के निर्माण के लिये उपयोग करना है।  

NMP के पक्ष में तर्क:

  • भारत को और अधिक बुनियादी अवसंरचनाओं की आवश्यकता है परंतु सार्वजनिक क्षेत्र के पास उसके विकास के लिये आवश्यक संसाधनों का अभाव है। इस परिदृश्य में दो संभावित प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं: 
    • नये बुनियादी अवसंरचना के निर्माण के लिये एक संविदात्मक ढाँचे के साथ (कि उसे क्या कार्य करना है) निजी क्षेत्र को संलग्न करने और फिर उसके द्वारा अपने स्वयं के संसाधन जुटाने पर विचार किया जा सकता है।   
    • यह समझना कि निर्माण चरण में अधिक जोखिम होते हैं और इसलिये सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा परिसंपत्ति का निर्माण करना और फिर इसे निजी खिलाड़ियों को बेचना (या यदि एकमुश्त बिक्री नहीं की जाती है तो निजी क्षेत्र को इसका प्रबंधन सौंपना) बेहतर विकल्प हो सकता है।   
  • भारत सहित किसी भी देश के लिये नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण के मार्ग में दो बाधाएँ हैं— 
    • दीर्घावधिक, पूर्वानुमेय और सस्ती पूँजी तक पहुँच तथा निष्पादन क्षमता, जहाँ सरकारी एवं निजी एजेंसियाँ ​​​​एक साथ कई प्रमुख परियोजनाओं पर कार्य कर सकती हैं। 
    • इस प्रकार, NMP को बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में सुधार को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है।

NMP के लाभ:

  • संसाधन वृद्धि का सृजन: NMP सरकार को इच्छुक निजी पार्टियों के माध्यम से पूँजी तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करेगा।    
    • ये निवेशक मुद्रीकृत परिसंपत्तियों का रखरखाव एवं परिचालन करेंगे और नकदी प्रवाह उत्पन्न करेंगे, जबकि इसके साथ ही बुनियादी अवसंरचना क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय एवं मानव संसाधन क्षमता का भी निर्माण करेंगे।    
    • संसाधन वृद्धि का यह सुदृढ़ चक्र वार्षिक बजटीय पूँजीगत व्यय आवंटन की प्रतीक्षा किये बिना सरकार को तुरंत ही किसी नए बुनियादी ढाँचे में निवेश कर सकने में सहायता करेगा।  
  • संपत्ति का स्वामित्व सरकार द्वारा प्रबंधित: मौजूदा ब्राउनफील्ड, गैर-जोखिमयुक्त संपत्ति, जो चार वर्षीय मुद्रीकरण पाइपलाइन का अंग है, नई ग्रीनफील्ड परिसंपत्तियों के लिये निष्पादन क्षमता के सृजन में मदद करेगी।  
    • सरकार संपत्ति के परिचालन और रखरखाव के अधिकारों का मुद्रीकरण कर रही है न कि उसके स्वामित्व का।
  • उचित मूल्य हिस्सेदारी: अनुबंधों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाएगा कि सरकार को मुद्रीकरण से उचित वर्तमान मूल्य प्राप्त हो, जबकि निजी पार्टियों को पर्याप्त परिचालन लचीलापन और नियामक दृश्यता प्राप्त होगी। 
    • इसके अलावा, चूँकि अनुबंध की शर्तें 25 वर्ष या उससे अधिक अवधि की हो सकती हैं, बोली लगाने में प्रकट रुचि से पता चलता है कि निवेशक दीर्घकालिक नियामक स्थिरता और निश्चितता के प्रति आश्वस्त हैं।
  • बेहतर लक्षित: NMP करदाताओं के लिये कोई नई वित्तीय देनदारी प्रस्तुत नहीं करता है यह वास्तव में एक बेहतर लक्षित "उपयोगकर्त्ता भुगतान" संरचना का प्रतिनिधित्व करता है।  
    • उदाहरण के लिये, यदि दिल्ली में एक स्टेडियम का मुद्रीकरण नहीं किया जाता है तो पूरे देश के करदाता इसके रखरखाव के लिये भुगतान करेंगे। लेकिन एक मुद्रीकृत स्टेडियम के लिये भुगतान केवल दिल्ली में इसकी सुविधाओं का उपयोग करने वालों द्वारा किया जाएगा। यह परिचालन राजस्व उत्पन्न करने का एक बेहतर तरीका है।
  • सफल उदाहरण: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India) और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा परिसंपत्ति मुद्रीकरण के विचार को पहले ही विभिन्न रूपों में आजमाया जा चुका है।    
    • यहाँ तक ​​कि राज्य स्तर पर भी, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का रखरखाव टोलिंग अधिकारों के निमित्त एक रियायतग्राही द्वारा किया जा रहा है।  

संबंधित चुनौतियाँ:

  • उपयुक्त मूल्य को साकार करना: मुद्रीकरण पाइपलाइन की पहली और प्रमुखतम आलोचना यह है कि परिसंपत्तियों से पर्याप्त मूल्य को साकार किया जा सकेगा या नहीं। 
    • यह बोली प्रक्रिया की गुणवत्ता और इस बात पर निर्भर करता है कि पर्याप्त संख्या में निजी खिलाड़ी बोली लगाने के लिये आकर्षित होते हैं या नहीं।
  • बोलीदाताओं की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना: परिसंपत्ति मुद्रीकरण से क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा नहीं मिलेगा—यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यह है कि बोली की शर्तों को ऐसा बनाया जाए कि यह किसी छोटे, विशिष्ट या पूर्व-निर्धारित लोगों के समूह तक सीमित न हो।    
    • हालाँकि, परियोजना की पूँजी तीव्रता (Capital Intensity) के कारण हर कोई बोली लगाने में सक्षम नहीं होगा। इसके बावजूद यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रक्रिया में पर्याप्त भागीदारी हो।
  • निष्पादन जोखिम: इतने वृहत कार्यक्रम में निश्चय ही निष्पादन जोखिम भी शामिल होगा। यद्यपि यही कारण है कि NMP ‘वन-साइज़-फिट्स-ऑल’ का दृष्टिकोण नहीं अपना रहा है। 
  • करदाताओं द्वारा भुगतान: एक विचारणीय विषय यह है कि चूँकि करदाताओं ने इन सार्वजनिक संपत्तियों के लिये पहले ही भुगतान कर रखा है, तो इनका उपयोग करने के लिये वे पुनः निजी पार्टी को भुगतान क्यों करें। 
  • उप-इष्टतम संविदात्मक प्रवर्तन: इस तरह की योजना की सफलता के लिये एक उप-इष्टतम संविदात्मक और न्यायिक ढाँचे को लेकर व्याप्त संदेह के कारण भी इसकी आलोचना की जा रही है। 
  • एकाधिकारवादी परिप्रेक्ष्य: कुछ प्रमुख व्यावसायिक घराने NMP के तहत प्रस्तुत की जाने वाली संपत्ति के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर सकते हैं।

आगे की राह:

  • संसाधन बढ़ाने के अन्य तरीके: एक विकास वित्त संस्था (Development Finance Institution- DFI) की स्थापना और केंद्रीय एवं राज्य बजट में अवसंरचना निवेश की हिस्सेदारी को बढ़ाने जैसे संसाधन वृद्धि के अन्य तरीके अपनाए जा सकते हैं।     
  • विवाद समाधान तंत्र: न्यायिक प्रक्रियाओं को सशक्त करने पर अधिक बल नहीं दिया जा सकता। कुशल और प्रभावी विवाद समाधान तंत्र स्वाभाविक रूप से और स्वचालित रूप से NMP के डिज़ाइन और निष्पादन में शामिल होना चाहिये। 
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुव्यवस्थित करना: हाल के अनुभव बताते हैं कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (public-private partnerships- PPP) में अब पारदर्शी नीलामी, जोखिमों और अदायगी की स्पष्ट समझ तथा किसी भी एवं सभी इच्छुक पार्टियों के लिये एक खुला क्षेत्र शामिल है।  
    • इस प्रकार, ग्रीनफील्ड परियोजनाओं में PPP की उपयोगिता की उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
  • पारदर्शी बोली: पारदर्शी बोली NMP परियोजना के सबसे महत्त्वपूर्ण भागों में से एक है। इस प्रकार, पारदर्शिता बनाए रखना परिसंपत्ति मूल्य को उपयुक्त रूप से साकार कर सकने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • नीति आयोग की सिफारिशें:
    • InvITs को दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के दायरे में लाना: IBC प्रावधानों का विस्तार InvITs तक करने से ऋणदाताओं को एक तेज़ और अधिक प्रभावी ऋण पुनर्गठन और समाधान विकल्प तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
    • टैक्स ब्रेक्स (Tax Breaks): कर-कुशल और उपयोगकर्ता-अनुकूल तंत्र, जैसे InvITs में कर-लाभों की अनुमति देना खुदरा निवेशकों (व्यक्तिगत/गैर-पेशेवर निवेशक) को आकर्षित करेगा।

निष्कर्ष

चूँकि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अस्थिर और अनिश्चित बना हुआ है, अग्रिम रूप से वित्तीय संसाधनों को जुटाना एक साहसिक, रचनात्मक और आश्वस्तिकारक नीति वक्तव्य है। यह विश्व को संकेत देता है कि भारत सरकारी कोषागार के हितों के साथ व्यापार के लिये खुला है और नागरिकों को मज़बूती से संरक्षित किया गया है।

अभ्यास प्रश्न: 'सरकार संपत्ति के परिचालन और रखरखाव के अधिकारों का मुद्रीकरण कर रही है, न कि उसके स्वामित्व का।' प्रस्तुत वक्तव्य के आलोक में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन से संबद्ध मुद्दों पर चर्चा कीजिये।


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