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डेली न्यूज़

  • 27 Sep, 2019
  • 56 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रैनिटिडिन में कार्सिनोजेनिक पदार्थों की उपस्थिति

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US Food and Drug Administration- US FDA) द्वारा रैनिटिडिन (Ranitidine) में कार्सिनोजेनिक पदार्थों (Carcinogenic Substances) की निम्नस्तरीय उपस्थिति को चिह्नित करने के बाद भारत की शीर्ष दवा नियामक संस्था केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) ने जाँच का आदेश दिया है।

केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन

(Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO):

  • CDSCO स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (National Regulatory Authority- NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता तथा गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
  • औषध एवं प्रसाधन नियम, 1940 एवं नियम 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and Rules1945) के तहत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, चिकित्सीय परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।

प्रमुख बिंदु:

  • CDSCO ने राज्य के नियामकों को अपने क्षेत्राधिकार के तहत रेनिटिडिन निर्माताओं से संवाद करने का निर्देश दिया है, जिससे उत्पादों को सत्यापित किया जा सके तथा रोगी की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • कुछ रैनिटिडिन दवाओं में निम्न स्तर पर एन-नाइट्रोसोडाइमिथाइलएमीन (N-nitrosodimethylamine- NDMA) नामक नाइट्रोसामाइन (Nitrosamine) अशुद्धि होती है, इसको एक कैंसर कारक माना जाता है।
  • जाँच से पता चला है कि NDMA मानव को नुकसान पहुँचा सकता है। FDA ने प्रारंभिक जाँच में पाया कि सामान्य खाद्य पदार्थों में भी रेनिटिडिन काफी मात्रा में पाया जाता है।
  • CDSCO ने राज्यों से यह सुनिश्चित करने के लिये भी कहा है कि दवा केवल चिकित्सीय परामर्श के बाद ही बेची जाए क्योंकि यह अनुसूची एच (Schedule H) में शामिल दवा है।

अनुसूची एच (Schedule H):

‘अनुसूची एच’ औषध एवं प्रसाधन नियम, 1945 के अंतर्गत सूचीबद्ध औषधियों की एक श्रेणी है, इन औषधियों को बिना चिकित्सीय परामर्श के नहीं खरीदा जा सकता है।

कैंसरकारक पदार्थ (Carcinogenic Substances):

  • ये पदार्थ या विकिरण कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।
  • ये जीनोम को नुकसान पहुँचाने या कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करने की क्षमता रखते हैं।
  • गामा किरणें और अल्फा किरणें कार्सिनोजेनिक पदार्थों के उदाहरण हैं।
  • कार्सिनोजेनिक पदार्थों को अक्सर सिंथेटिक रसायनों के रूप में माना जाता है लेकिन वास्तव में वे प्राकृतिक या सिंथेटिक दोनों हो सकते हैं।

कैंसर (Cancer):

  • यह ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
  • कैंसर रोगों का एक समूह है जो मानव शरीर के अन्य भागों में फैलने की क्षमता के साथ असामान्य कोशिका वृद्धि का कारण बनता है।

रैनिटिडिन (Ranitidine):

  • रैनिटिडिन, एसिडिटी और ऊपरी आँत के अल्सर में प्रयोग होने वाली सबसे पुरानी दवाओं में से एक है और इसे प्रोटॉन पंप ब्लॉकर्स (Proton Pump Blockers) जैसी अन्य दवाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।
  • रैनिटिडिन का प्रयोग आमतौर पर एंटी-एसिडिटी ड्रग के रूप में किया जाता है। यह टैबलेट, इंजेक्शन आदि के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
  • यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं’ (Model List of Essential Medicines) की सूची में भी शामिल है।
  • रैनिटिडिन का ज़िंटैक (Zintec), एज़टैक (Aztec) और रानटैक(Rantac) आदि ब्रांडों के नाम से देश में विपणन किया जाता है।

एन-नाइट्रोसोडाइमिथाइलएमीन (N-nitrosodimethylamine- NDMA):

  • NDMA को इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (International Agency For Research On Cancer) द्वारा मनुष्यों के लिये कैंसरकारक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यह पानी और खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला एक पर्यावरणीय प्रदूषक है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भूल जाने का अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (European Court of Justice) ने गूगल को विश्व भर में संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा से जुड़े लिंक को नहीं हटाने की अनुमति दे दी है।

पृष्ठभूमि

  • व्यक्तियों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति (Free Speech) और वैध सार्वजनिक हित के बिना इंटरनेट सर्च परिणामों से व्यक्तिगत जानकारी हटाने को लेकर फ्राँस तथा गूगल के बीच एक मामला यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस में विचाराधीन था।
  • न्यायालय ने अपने फैसले में ऑनलाइन गोपनीयता कानून की पहुँच को 'भूल जाने का अधिकार' के रूप में सीमित कर दिया और इंटरनेट पर उपलब्ध लोगों के डेटा के नियंत्रण पर उनकी क्षमता को भी व्याख्यायित किया।

यूरोपीय कानून के अनुसार, गूगल किसी विशेष देश द्वारा अनुरोध किये जाने पर अपने खोज इंजन संस्करणों (Search Engine Version) से वैश्विक रूप से इस तरह की जानकारी को हटाने के लिये बाध्य नहीं है।

  • न्यायालय ने कहा कि इंटरनेट से डेटा को हटाते समय गोपनीयता और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के बीच के संतुलन को ध्यान में रखा जाना चाहिये ।

यूरोपीय न्यायालय

(European Court)

  • यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (European Court of Justice- ECJ) कानूनी मामलों के लिये वर्ष 1952 में स्थापित यूरोपीय संघ का सर्वोच्च न्यायालय है।
  • यूरोपीय संघीय न्यायालय, कोर्ट ऑफ जस्टिस एंड जनरल कोर्ट (Court of Justice and General Court) का संयुक्त रूप है तथा इसका मुख्यालय लक्ज़मबर्ग में है।
  • रोम संधि के अनुच्छेद 164 के अनुसार, यूरोपीय संघ के न्यायालय को वहाँ के कानून की व्याख्या करने और सभी सदस्य देशों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है।

भारत के संदर्भ में भूल जाने का अधिकार

  • भूल जाने का अधिकार, के इंटरनेट पर उपलब्ध किसी व्यक्ति निजी डेटा के भ्रामक, अप्रासंगिकता को सीमित करने, हटाने या सही करने की क्षमता को संदर्भित करता है।
    • यह किसी व्यक्ति द्वारा अनुरोध किये जाने पर उसकी व्यक्तिगत जानकारी को वैध रूप से हटाने की अनुमति देता है।
  • भूल जाने का अधिकार निजता के अधिकार से अलग है, जहाँ निजता के अधिकार में ऐसी जानकारी शामिल होती है जो सार्वजनिक रूप से ज्ञात नहीं है। वहीं भूल जाने के अधिकार में एक निश्चित समय पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को हटाना और तीसरे पक्ष को जानकारी तक पहुँचने से रोकना भी शामिल है।
  • विधायी दृष्टिकोण: भारत में भूल जाने के अधिकार से संबंधित कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (वर्ष 2008 में संशोधित) और सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2011 में भूल जाने के अधिकार से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है।
    • भूल जाने के अधिकार से संबंधित केवल तीन परिदृश्यों को डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे की धारा 27 में सूचीबद्ध किया गया है जिसके तहत किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा।

किसी व्यक्ति से संबंधित डेटा के प्रकटीकरण की आवश्यकता न रह गई हो या डेटा के उपयोग करने की सहमति वापस ले ली गई हो तब ऐसी स्थितियों मे भूल जाने का अधिकार लागू होगा।

  • न्यायिक दृष्टिकोण : भारत में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ न्यायालयों ने किसी व्यक्ति के भूल जाने के अधिकार को बरकरार रखा है।
    • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महिला के अधिकार को यह कहते हुए भुला दिया कि यह अधिकार पश्चिमी देशों की प्रवृत्ति के अनुरूप है। महिलाओं से जुड़े सामान्य और अति संवेदनशील मामले जो संबंधित व्यक्ति की शालीनता तथा प्रतिष्ठा को प्रभावित करते है, में भूल जाने के अधिकार का पालन किया जाना चाहिये।
    • इसी प्रकार एक अन्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और गूगल से पूछा था कि क्या निजता के अधिकार में इंटरनेट से अप्रासंगिक सूचनाओं को हटाने का अधिकार शामिल है?

आगे की राह

  • व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा का अधिकार (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत) तथा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की जानकारी की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 के तहत) के बीच एक संतुलन होना चाहिये।
  • एक ऐसा व्यापक डेटा संरक्षण कानून होना चाहिये जो इन मुद्दों की व्याख्या कर सके और दो ऐसे मौलिक अधिकारों के बीच के विवाद को कम करे जो भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण हिस्से स्वर्णिम त्रिमूर्ति कला (GoldenTrinity- Art14,19 और 21) से बने हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G-4 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यूयार्क में संपन्न एक बैठक के बाद जापान, जर्मनी, ब्राज़ील और भारत (G-4) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में सुधारों की मांग की।

  • वर्तमान में UNSC में स्थायी सदस्य- अमेरिका, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और चीन हैं जिनमे से केवल चीन ही विकासशील देशों की श्रेणी में आता है।
  • वैश्विक भू-राजनीति के बदलते स्वरूप और विकासशील देशों की बढ़ती भूमिका के कारण परिषद की संरचना में बदलाव की मांग की जा रही है साथ ही भारत तथा ब्राज़ील जैसे विकासशील देशों की भूमिका भी बढ़ाने की मांग की जा रही है।
  • इसके अतिरिक्त अंतर-सरकारी वार्ताओं (Inter Governmental Negotiations- IGN) को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में और महासभा के नियमों तथा प्रक्रियाओं के तहत निर्देशित किये जाने की मांग की गई।
  • G-4 के सदस्य देशों ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार संबंधी निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) में दो-तिहाई के बहुमत से होना चाहिये, जैसा कि UNGA के वर्ष 1998 के एक प्रस्ताव में उल्लेखित है।
  • G-4 देशों ने वर्ष 2020 में संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांँठ के मौके पर इसमें संरचनात्मक सुधार किये जाने की मांग कर अपनी प्रतिबध्दता व्यक्त की है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता:

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से वैश्विक भू-राजनीति और वैश्विक मुद्दों में परिवर्तन आया है, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने नए मुद्दे ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं अतः संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यशैली में भी परिवर्तन होना चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुई थी उस समय विश्व दो गुटों में विभाजित था, इसलिये वैश्विक समरसता और एकरूपता के ध्येय से इसकी संरचना की गई थी।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध बाद के शीत युद्ध की स्थितियों में भी इसकी संरचना की प्रासंगिकता बनी रही, क्योंकि शीत युद्ध के दौरान के दो प्रतियोगी रूस और अमेरिका, दोनों को स्थायी सदस्यता प्राप्त थी। साथ ही दोनों इस प्रकार के वैश्विक पटल पर एक-दूसरे को संतुलित कर रहे थे।
  • शीत युद्ध के दौरान प्रत्यक्ष संघर्ष न होने में UNSC की संरचना के तहत रूस और अमेरिका द्वारा एक दूसरे की शक्तियों को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा था।
  • सोवियत संघ के विघटन और उदारीकृत अर्थव्यवस्था के मद्देनज़र जहाँ विश्व एक तरफ वैश्वीकरण के व्यापक प्रभाव के कारण प्रत्यक्ष राजनीतिक गुटबंदी से दूर हो गया, वहीं दूसरी तरफ आर्थिक गुटबंदी, संरक्षणवाद, राज्य प्रायोजित आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रासंगिक मुद्दे वैश्विक पटल पर प्रमुखता से उभरे।
  • उपरोक्त नवीन विश्व के प्रासंगिक मुद्दों के समाधान के लिये संयुक्त राष्ट्र में व्यापक परिवर्तन होना चाहिये क्योंकि वर्तमान संरचना के अनुसार इन मुद्दों से प्रभावित पक्षों की भूमिका संयुक्त राष्ट्र में कम हो गई है।
  • वर्तमान समय में विश्व दो गुटों विकासशील और विकसित में बंँटा हुआ है लेकिन UNSC में केवल चीन ही एक विकासशील देश है, इसके अतिरिक्त अफ्रीका जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की यहाँ पर उपस्थिति ही नहीं है।
  • पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं, इसके साथ ही भारत जैसे देश की वैश्विक स्तर पर बढ़ती भूमिका इसकी संयुक्त राष्ट्र में अधिक महत्त्वपूर्ण भागीदारी का आह्वान करती है।

(G-4)

  • सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग के लिये जापान, जर्मनी, भारत और ब्राज़ील ने G-4 के नाम से एक गुट बनाया है और स्थायी सदस्यता के मामले में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
  • G-4 देश लगातार बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करने के साथ ही UNSC की संरचना में सुधार की मांग कर रहे हैं।
  • G-4 देश 21वीं शताब्दी की समकालीन ज़रूरतों के लिये संयुक्त राष्ट्र की स्वीकार्यता हेतु सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहे हैं।

कॉफी क्लब (Coffee Club)

  • सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में विस्तार और G-4 देशों की स्थायी सदस्यता के प्रयासों का कॉफी क्लब या यूएफसी (Uniting for Consensus- UFC) गुट के देश विरोध करते हैं।
  • कॉफी क्लब में इटली, पाकिस्तान, मेक्सिको, मिस्र, स्पेन, अर्जेंटीना और दक्षिण कोरिया जैसे 13 देश सक्रिय रूप से शामिल हैं।
  • कॉफी क्लब के देश स्थायी सदस्यता के विस्तार के पक्षधर न होकर अस्थायी सदस्यता के विस्तार के समर्थक हैं, लेकिन इन देशों की आशंका सामूहिक न होकर व्यक्तिगत हितों पर कहीं अधिक टिकी हुई है। जैसे- पाकिस्तान, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत के साथ शक्ति संतुलन के मद्देनज़र उसकी स्थायी सदस्यता का विरोध करता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

(United Nations Security Council- UNSC)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की संरचना की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1945 में किया गया था और इसके पाँच स्थायी सदस्य (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) हैं।
  • सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है।
  • इन स्थायी सदस्य देशों के अतिरिक्त 10 अन्य देशों को दो वर्ष की अस्थायी सदस्यता सुरक्षा परिषद में मिलती रहती है।
  • UNSC के स्थायी और अस्थायी सदस्यों को बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद का अध्यक्ष बनाया जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान क्वाड देशों (Quad Countries- India, US, Australia and Japan) के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई।
  • क्वाड (Quad) समूह को नवंबर 2017 में औपचारिक रूप से स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य हिंद और प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

स्वदेशी ईंधन सेल प्रणाली

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के स्थापना दिवस के अवसर पर देश की पहली स्वदेशी उच्च तापमान ईंधन सेल प्रणाली का अनावरण किया गया।

विकास :

  • इस उच्च तापमान ईंधन सेल प्रणाली का विकास ‘न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव (New Millennium Indian Technology Leadership Initiative- NMITLI)’ के तहत वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा भारतीय उद्योगों की साझेदारी में किया गया है।
  • इस कार्य को CSIR की तीन प्रयोगशालाओं तथा दो भारतीय उद्योगों के बीच सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) के माध्यम से पूरा किया गया है।
    • CSIR की तीन प्रयोगशालाएँ
      • CSIR- राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (CSIR- National Chemical Laboratory), पुणे
      • CSIR- राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (CSIR- National Physical Laboratory), नई दिल्ली
      • CSIR- केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान (CSIR- Central Electrochemical Research Institute), कराइकुडी (चेन्नई सेंटर)
    • दो भारतीय उद्योग
      • मैसर्स थर्मैक्स लिमिटेड (M/s Thermax Limited), पुणे
      • मैसर्स रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (M/s Reliance Industries Limited), मुंबई

प्रमुख तकनीकी विशेषताएँ :

  • 5.0 kW की क्षमता वाली यह ईंधन सेल प्रणाली मेथनॉल/जैव-मीथेन का उपयोग करके उपोत्पाद के रूप में ऊष्मा और पानी के साथ हरित तरीके से बिजली पैदा करती है।
  • इस ईंधन सेल की दक्षता 70% से अधिक है, जो इसे अनन्य रूप से विशिष्ट बनाती है।
  • यह ईंधन सेल ‘उच्च तापमान प्रोटॉन विनिमय झिल्ली (High Temperature Proton Exchange Membrane- HTPEM)’ प्रौद्योगिकी पर आधारित है।

अनुप्रयोग एवं महत्त्व :

  • यह भारत सरकार के डीज़ल को हरित वैकल्पिक ईंधन द्वारा प्रतिस्थापित करने के मिशन के अनुरूप है तथा इस उच्च तापमान ईंधन सेल प्रणाली का विकास भारत की कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगा।
  • स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में यह ईंधन सेल प्रणाली वर्तमान ग्रिड-प्रणाली के सशक्त विकल्प की क्षमता से युक्त है।
  • इस ईंधन सेल प्रौद्योगिकी का विकास स्वदेशी है और गैर-ग्रिड ऊर्जा सुरक्षा के मामले में राष्ट्रीय महत्त्व रखता है।
  • यह छोटे कार्यालयों, वाणिज्यिक इकाइयों, डेटा केंद्रों आदि स्थिर (Stationary) बिजली अनुप्रयोगों के लिये सबसे उपयुक्त है।
  • यह प्रणाली टेलीकॉम टावरों तथा दूरस्थ स्थानों और रणनीतिक अनुप्रयोगों के लिये कुशल, स्वच्छ और विश्वसनीय बैकअप पावर जनरेटर (Backup Power Generator) की आवश्यकता को भी पूरा करेगी।
  • यह एक विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी है और इसका विकास भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा करता है।

न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव

(New Millennium Indian Technology Leadership Initiative- NMITLI)

  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000-01 में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) मोड (Mode) में एक दूरदर्शी अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम के रूप में इसे शुरू किया गया।
  • भारत सरकार की ओर से वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा इस कार्यक्रम का प्रबंधन किया जाता है ।
  • इसका उद्देश्य पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की सहायता से सभी प्रमुख क्षेत्रों में तकनीकी विकास के माध्यम से भारत को एक नेतृत्वकारी भूमिका प्रदान करना है।
  • NMITLI में शामिल हैं:
    • PPP के तहत समान शेयरिंग (50:50) के आधार पर उद्योगों और अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का वित्तपोषण;
    • वेंचर कैपिटल फंड्स (Venture Capital Funds) के साथ परियोजनाओं का सह-वित्तपोषण;
    • दीर्घकालिक प्रयासों के लिये चयनित क्षेत्रों में NMITLI के तहत नवाचार केंद्रों की स्थापना; इत्यादि
  • NMITLI के तहत परियोजनाओं को ऋण को इक्विटी में बदलने हेतु लचीलापन और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को अनुसंधान एवं विकास में चुनिंदा रूप से शामिल करने की भी अनुमति दी जाती है।

स्रोत : PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिकी राष्ट्रपति पर महाभियोग

चर्चा में क्यों?

यूक्रेन के राष्ट्रपति से बातचीत के मसले पर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ने संसद में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की जाँच शुरू करने की घोषणा की।

अमेरिका के संदर्भ में महाभियोग:

  • अर्थ: महाभियोग एक ऐसा प्रावधान है जो काँग्रेस (अमेरिकी संसद) को अमेरिकी राष्ट्रपति को हटाने की अनुमति देता है।
  • अमेरिकी संविधान के तहत प्रतिनिधि सभा (निचला सदन) के पास महाभियोग के अंतर्गत अमेरिकी राष्ट्रपति पर आरोप लगाने की शक्ति प्राप्त है।
  • प्रतिनिधि सभा में बहुमत के बाद महाभियोग चलाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। सदन की न्यायिक समिति आमतौर पर महाभियोग की कार्यवाही के लिये ज़िम्मेदार होती है।
  • सीनेट को महाभियोग के तहत राष्ट्रपति के दोषी पाए जाने पर उसे पद से हटाने की शक्ति प्राप्त है। जब राष्ट्रपति पर मुकदमा चलाया जाता है, तो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा कार्यवाही की अध्यक्षता की जाती है।

महाभियोग लगाने का आधार:

  • महाभियोग तब लगाया जाता है जब ‘देशद्रोह, रिश्वत, दुराचार या अन्य किसी बड़े अपराध’ में शामिल होने की आशंका जताई गयी हो।
  • हालाँकि अमेरिकी संविधान में ‘दुराचार’ तथा ‘उच्च अपराध’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • अनिवार्य रूप से इसका तात्पर्य उच्चस्तरीय सार्वजनिक अधिकारी द्वारा सत्ता के दुरुपयोग करने से है, जिसमें यह ज़रूरी नहीं है कि सामान्य आपराधिक क़ानून का उल्लंघन हो।
  • ऐतिहासिक रूप से अमेरिका ने इसमें भ्रष्टाचार और अन्य दुर्व्यवहारों को शामिल किया है; जिसमें न्यायिक कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास करना भी शामिल है।

पृष्ठभूमि:

  • अभी तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के तहत नहीं हटाया गया है।
  • हालाँकि अब तक केवल दो राष्ट्रपतियों को महाभियोग का सामना करना पड़ा। 1968 में राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन तथा 1998 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर महाभियोग चलाया गया लेकिन सीनेट ने उन्हें दोषी नहीं ठहराया।
  • वहीं राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (1974) ने हटाए जाने से पहले इस्तीफा दे दिया।

Stage by Stage

प्रक्रिया:

  • न्यायिक समिति द्वारा जाँच:
    • यदि राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जाता है तो सर्वप्रथम संसद की न्यायिक समिति इन आरोपों की जाँच करती है। यदि आरोप सत्य साबित होते हैं तो इस मामले को पूरे सदन के समक्ष पेश किया जाता है।
  • प्रतिनिधि सभा में वोटिंग:
    • उपर्युक्त आरोपों पर प्रतिनिधि सभा में वोटिंग होती है। यदि वोटिंग महाभियोग के पक्ष में होती है तो कार्यवाही सीनेट को सौंप दी जाती है।
  • सीनेट ट्रायल तथा वोटिंग:
    • सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में सीनेट न्यायालय के समान कार्य करती है।
    • सुनवाई के लिये सीनेटर्स के बीच से कुछ सांसदों को चुना जाता है, जो कि प्रबंधक के रूप में जाने जाते हैं। ये प्रबंधक अभियोजकों की भूमिका निभाते हैं।
    • इस ट्रायल के दौरान राष्ट्रपति का वकील अपना पक्ष रखता हैं। सुनवाई पूरी होने के बाद सीनेट दोषसिद्धि का परीक्षण करती है तथा वोट देती है।
    • यदि सीनेट में उपस्थित कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य राष्ट्रपति को दोषी पाते हैं, तो राष्ट्रपति को हटा दिया जाता है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन रिपोर्ट, 2018-19

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन रिपोर्ट (All India Survey on Higher Education-AISHE), 2018-19 जारी कर दी गई है।

पृष्ठभूमि

  • इस सर्वे में AISHE वेब पोर्टल पर सूचीबद्ध देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों को शामिल किया गया है।
  • इनमें कुल 993 विश्वविद्यालय, 39931 कॉलेज और 10725 स्टैंड अलोन संस्थाएँ हैं। इनमें से 962 विश्वविद्यालयों, 38179 कॉलेजों और 9190 स्टैंड अलोन संस्थाओं ने इस सर्वे में भाग लिया।
  • AISHE की रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के साथ ही कई राज्य सरकारों ने भी सर्वे के लिये डेटा संग्रहण में भाग लिया।

प्रमुख निष्कर्ष

  • सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) 2017-18 में 25.8% से बढ़कर 2018-19 में 26.3% हो गया है।
  • छात्रों के लिये GER 26.3% है, जबकि छात्राओं के लिये GER 26.4% है।
  • अनुसूचित जातियों के लिये GER 21.8% से बढ़कर 23%, जबकि अनुसूचित जनजातियों के लिये यह 15.9% से बढ़कर 17.2% हो गया है।
  • इसी समयावधि में निरपेक्ष रूप से नामांकन 3.66 करोड़ से बढ़कर 3.74 करोड़ छात्रों तक पहुँच गया है।
  • 2017-18 में कुल नामांकन में महिला नामांकन का हिस्सा 47.6% से बढ़कर, यह 2018-19 में 48.6% हो गया है।
  • विश्वविद्यालयों की संख्या 2017-18 के 903 से बढ़कर 2018-19 में 993 और इसी अवधि में कुल उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या 49,964 से बढ़कर 51,649 हो गई है।
  • स्नातक (Undergraduate-UG) स्तर पर कुल नामांकन में से 35.9% ने कला/मानविकी/ सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को प्राथमिकता दी।
  • 16.5% विद्यार्थियों ने विज्ञान संकाय और 14.1% विद्यार्थियों ने वाणिज्य संकाय में नामांकन कराया हैं। अभियांत्रिकी अर्थात् इंजीनियरिंग चौथे स्थान पर है।
  • स्नातकोत्तर (Postgraduate-PG) स्तर पर जहाँ एक-तिहाई स्नातक छात्रों ने मानविकी विषयों में प्रवेश लिया वहीं प्रबंधन भी स्नातकोत्तर स्तर पर एक पसंदीदा संकाय है।
  • विज्ञान और इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी स्नातकों ने M.Phil और Ph.D कार्यक्रमों में अपेक्षाकृत अधिक नामांकन दर्ज कराया हैं।
  • कॉलेजों की सर्वाधिक संख्या के मामले में शीर्ष 8 राज्य निम्नलिखित हैं:

1. उत्तर प्रदेश

2. महाराष्ट्र

3. कर्नाटक

4. राजस्थान

5. हरियाणा

6. तमिलनाडु

7. गुजरात

8. मध्य प्रदेश

    • उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दो राज्यों में 18-23 वर्ष आयु वर्ग में उच्च शिक्षा के लिये नामांकन के मामले में छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या अधिक है।
    • 18-23 वर्ष आयु वर्ग की प्रति लाख आबादी पर कॉलेजों की संख्या अर्थात् कॉलेज घनत्व भी भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है। 28 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बिहार जैसे राज्य में जहाँ यह मात्र 7 है, तो वहीं कर्नाटक में 53 है।
    • केवल 2.5% कॉलेज Ph.D कार्यक्रम चलाते हैं जबकि स्नातकोत्तर (PG) स्तर के कार्यक्रम चलाने वाले कॉलेजों की संख्या 34.9% है।
    • 60.53% कॉलेज ग्रामीण इलाकों में स्थापित हैं।
    • 11.04% कॉलेज अनन्य (Exclusive) रूप से महिलाओं के लिये समर्पित हैं। ऐसे कुल 16 विश्वविद्यालय हैं जिनमें से राजस्थान में सर्वाधिक 3 और तमिलनाडु में 2 विश्वविद्यालय हैं।
    • विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्र-शिक्षक अनुपात 29 है।
    • राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों में छात्राओं की सबसे कम भागीदारी है। इसके बाद राज्य स्तरीय निजी मुक्त विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यालयों (सरकारी) में छात्राओं की सबसे कम भागीदारी है।

    स्रोत : टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदू


    शासन व्यवस्था

    व्यवहार परिवर्तन में कानून की भूमिका

    भूमिका

    कानून प्रणाली समाज में लोगों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करने और कर्त्तव्यों के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।

    • कानून नागरिकों के लिये आचरण के आदर्श स्थापित करता है।
    • कानून के अनुपालन का समाज के अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि नागरिकों के व्यवहार में परिवर्तन लाने में कानून की प्रभावकारिता अभी भी बहस का विषय है।

    ऐसे उदाहरण जहाँ व्यवहार में परिवर्तन लाने में कानून सफल रहे

    • सार्वजनिक व्यवहार को प्रभावित करने के मामले में कानूनों के सफल होने की अधिक संभावना है। जैसे धूम्रपान को नियंत्रित करने के लिये स्वास्थ्य चेतावनी सहित कई उपायों का उपयोग किया जाता हैं।
    • लेकिन एक कारक जिसने धूम्रपान में निरंतर गिरावट लाने में योगदान किया है, वह है सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध।
    • मनुष्य किसी व्यवहार की अपेक्षित लागत के आधार पर भी एक निषिद्ध गतिविधि में संलग्न होने के बारे में निर्णय लेते हैं।
    • यदि सज़ा की गंभीरता और संभावना किसी गतिविधि से प्राप्त होने वाले लाभ या आनंद से अधिक है, तो व्यक्ति उस व्यवहार से बचना चाहेगा।
    • जैसे संशोधित मोटर वाहन अधिनियम, 2019 ने जुर्माने को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा कर लोगों को यातायात नियमों का पालन करने के लिये बाध्य किया है।

    ऐसे उदाहरण जहाँ व्यवहार में परिवर्तन लाने में कानून सफल नहीं रहे

    • लिंग समानता के लिये केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं होगा, खासकर जब धार्मिक मुद्दों की बात हो।
    • ट्रिपल तलाक़ को प्रतिबंधित करने वाले कानून को पारित करने के बाद भी पति द्वारा मुस्लिम महिलाओं पर किये जाने वाले अत्याचारों का अंत नहीं हुआ है।
    • इसके अलावा संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह भी होते हैं जिन्हें कानून द्वारा विनियमित नहीं किया जा सकता है।
    • संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह विचार, तर्क-शक्ति या चीज़ों को याद रखने की प्रक्रियाओं संबंधी त्रुटियाँ हैं जो किसी की पसंद और निर्णय को प्रभावित करती हैं। मस्तिष्क अपने दिन-प्रतिदिन के मामलों के बारे में निर्णय लेने के लिये इन पूर्वाग्रहों का प्रयोग करता है।
    • जैसे अमेरिका से लेकर गुजरात और केरल जैसे भारतीय राज्यों में शराबबंदी लागू कर नागरिकों को शराब पीने से रोकने के प्रयासों में ख़ास सफलता नहीं मिली है।
    • समाज में गहराई तक जड़ जमाए बैठे नस्ल, लिंग, संबंधी पूर्वाग्रहों को मिटाने के लिये कानून बनाना लगभग असंभव है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। लेकिन फिर भी LGBTQ+ समुदाय को अभी समाज में स्वीकृति नहीं मिली है।

    अन्य मामले जहाँ कानून सामाजिक परिवर्तन लाने में विफल रहा है

    • धारा 370 का निरसन, कश्मीर के लोगों को भारत के बाकी हिस्सों से भावनात्मक रूप से एकीकृत करने में विफल रहा है।
    • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध लागू किया। इसके बावजूद दिवाली के बाद की सुबह दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में काफी वृद्धि देखी गई थी।

    व्यवहार परिवर्तन हेतु वैकल्पिक रणनीतियाँ

    नज़ सिद्धांत: यह व्यवहारात्मक विज्ञान की संकल्पना है जिसमें बिना दबाव के तथा सकारात्मक दिशा-निर्देशों और परोक्ष सुझावों द्वारा लोगों को वांछनीय और लाभकारी व्यवहार अपनाने हेतु प्रेरित किया जाता है।

    • इस सिद्धांत का उपयोग भारत में कर अनुपालन बढ़ाने या गरीब परिवारों आदि में ड्रॉप आउट दर को कम करने में किया जा सकता है।

    ICE मॉडल: सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education and Communication-ICE) ऐसा उपाय है जो एक निर्धारित समयावधि में किसी विशिष्ट समस्या के बारे में लक्षित समूह के व्यवहार को बदलने या सुदृढ़ करने का प्रयास करता है।

    • अमेरिका में पिछले 30 वर्षों में LGBTQ+ समुदाय के प्रति दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन हुआ है। यह नाटकीय बदलाव किसी कानून के कारण नहीं हुआ, बल्कि बहस और विचार-विमर्श के कारण समाज में विकसित हुई परानुभूति (Empathy) का परिणाम है।

    छात्रों की भूमिका: समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन लाने के लिये छात्र परिवर्तन के वाहक की भूमिका निभा सकते हैं।

    • स्वच्छ भारत मिशन को सफल बनाने के लिये स्वच्छाग्रही बनने में छात्रों द्वारा निभाई गई भूमिका इसका सफल उदाहरण है।

    नेतृत्व की भूमिका: समाज के शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई अपील भी समाज के बड़े भाग को प्रभावित करती है।

    • स्वच्छ भारत मिशन और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना की सफलता में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा जनता से की गई अपील को इसकी मिसाल माना जा सकता है।

    नागरिक समाज की भूमिका: नागरिक समाज लोगों और सरकार के बीच एक सेतु का काम कर सकता है।

    • उदाहरण के लिये नागरिक समाज कश्मीर समस्या के समाधान में सहयोगी की भूमिका निभा सकता है।

    निष्कर्ष

    • मानव गतिविधि और व्यवहार से संचालित समस्या के समाधान के लिये सरकार और न्यायालयों से परे दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • अच्छे और प्रभावी नियमों की भी अपनी भूमिका होती है, लेकिन सांस्कृतिक और व्यावहारिक बदलाव सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
    • इस संदर्भ में महात्मा गांधी की यह उक्ति ध्यान में रखी जानी चाहिये कि जो परिवर्तन आप दूसरों में देखना चाहते हैं, वह परिवर्तन आप खुद में लाइये।

    स्रोत : लाइवमिंट


    जैव विविधता और पर्यावरण

    जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

    चर्चा में क्यों?

    संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एक्शन सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते, 2015 के तहत निर्धारित वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने की प्रतिबद्धता को तत्परता के साथ लागू करने की अपील की है।

    प्रमुख बिंदु

    विश्व के प्रमुख जलवायु विज्ञान संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एक्शन सम्मेलन के लिये यूनाइटेड इन साइंस (United in Science) शीर्षक से एक रिपोर्ट ज़ारी की है, जिसमें जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न विश्लेषण सम्मिलित किये गए हैं। इस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-

    • वर्ष 2015-2019 के बीच का औसत वैश्विक तापमान इससे पहले के किन्हीं अन्य पाँच वर्षों के औसत वैश्विक तापमान की तुलना में अधिक है।
    • वर्ष 2015-2019 का औसत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक युग (1850-1900 AD) के औसत तापमान से 1.1°C और वर्ष 2011-2015 के औसत वैश्विक तापमान के स्तर से 0.2°C अधिक है।
    • औसत वैश्विक तापमान के कारण वर्ष 2015-19 के बीच होने वाली ग्लेशियर की क्षति भी अन्य किन्हीं पाँच वर्षों की तुलना में अधिक है।
    • रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा में गिरावट के बजाय वर्ष 2018 में 2% की वृद्धि दर्ज की गई है और यह 37 बिलियन टन के शीर्ष रिकार्ड स्तर पर पहुँच गई है।
    • जहाँ वर्ष 1997-2006 के मध्य औसत वैश्विक समुद्र तल में वृद्धि दर 3.04 मिमी. प्रतिवर्ष रही थी वहीं वर्ष 2007-16 के दौरान यह 4 मिमी. प्रतिवर्ष के स्तर पर पहुँच गई है।
    • औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि के परिणामस्वरूप सागरीय अम्लीयता में भी 26% की वृद्धि हुई है।

    जलवायु परिवर्तन से संबंधित अन्य चरम प्रभाव:

    • फ्रांँस और जर्मनी में हीट वेव (Heat Wave) का भीषण प्रभाव।
    • वर्तमान वर्ष के ग्रीष्मकाल के दौरान दक्षिणी यूरोप में दिल्ली जैसा प्रभाव।
    • अमेज़न, मध्य अफ्रीका और साइबेरिया के वनों में अचानक लगी भीषण आग।

    जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु उठाए गए कदम:

    • पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते, 2015 के तहत विभिन्न देशों को कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने से संबंधित प्रतिबद्धता और उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं।
    • कई छोटे व मध्यम देश वर्ष 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था को ‘शुद्ध कार्बन तटस्थ’ (Net Carbon Neutral) बनाने की दिशा में अग्रसर हैं। हालाँकि अमेरिका, ब्राज़ील और कनाडा जैसे बड़े देश अपने उत्तरदायित्व से पीछे हट रहे हैं।

    Climate Action

    आगे की राह

    वास्तविक अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी क्रियाओं (Transformative Action) की संभावित अधिकतम प्रभाविता को सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है-

    • वित्त (Finance): सार्वजनिक और निजी स्रोतों से वित्त इकट्ठा कर सभी प्राथमिक क्षेत्रों का डिकार्बोनाइज़ेशन (Decarbonization) करना चाहिये।
    • ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition): जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाई जानी चाहिये।
    • प्रकृति आधारित समाधान (Nature Based Solution): प्रकृति आधारित समाधानों जैसे जैव-विविधता, कार्बन सिंक, वनीकरण को बढ़ावा देना आदि पर ज़ोर देना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त शमन रणनीति (Mitigation Strategy), युवाओं की सहभागिता (Youth Engagement) और लोगों की सहभागिता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बढ़ते भूमंडलीय तापन की तीव्रता को कम किया जाना चाहिये।
    • वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधनों के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष

    भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अधिकतम सुभेद्य देशों की सूची में आता है। अत: ऐसे समय में जब अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देश अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे हट रहे हैं तो भारत को यथास्थितिवादी रवैया न अपनाते हुए सामूहिक कार्रवाई के लिये आगे आना चाहिये।

    स्रोत: द हिंदू


    विविध

    Rapid Fire करेंट अफेयर्स (27 September)

    • 23 सितंबर को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र की घोषणा का अनुसरण करते हुए बधिरों के अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह के हिस्से के रूप में यह मनाया जाता है। विश्व बधिर संघ की ओर से प्रतिवर्ष सितम्बर माह के अंत में ‘अंतरराष्ट्रीय बधिर सप्ताह’ का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2018 में इसका आयोजन 23 से 30 सितंबर, 2018 तक किया गया था। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की थीम सांकेतिक भाषा के साथ, सभी लोग सम्मिलित हैं (With Sign Language, Everyone is Included) रखी गई है।
    • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण- एपीडा (Products Export Development Authority- APEDA) ने त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एवं क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में पूर्वोत्‍तर क्षेत्र, विशेष रूप से त्रिपुरा के कृषि उत्पादों की निर्यात संभावना पर चर्चा की गई। इस बैठक में बांग्‍लादेश, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया, संयुक्‍त अरब अमीरात, बहरीन, कुवैत और यूनान के 20 अंतर्राष्‍ट्रीय खरीदारों ने हिस्सा लिया। एपीडा ने इस क्षेत्र के निर्यातकों की मदद के लिये विभिन्‍न पहलें शुरू की हैं। त्रिपुरा में अनानास, अदरक, हल्दी जैसी विशेष जिंसों के साथ-साथ बागवानी उत्पादों, सुगंधित चावल और तिलहन आदि उगाए जाते हैं । इसके लिये राज्य सरकार बुनियादी ढाँचे और रसद सुविधाओं का निर्माण करने के लिये पूरी कोशिश कर रही है। इसके अलावा, रेल और सड़क की बेहतर कनेक्टिविटी तथा सीमा पार बांग्‍लादेश से होकर कनेक्टिविटी उपलब्‍ध कराने की योजना बनाई गई है। विदित हो कि एपीडा की स्थापना दिसंबर, 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा की गई और इसने संसाधित खाद्य निर्यात प्रोत्साहन परिषद का स्थान लिया था।
    • ‘सिंगापुर-भारत हैकाथन’ के दूसरे संस्करण का आयोजन IIT मद्रास में 28 और 29 सितंबर को किया जा रहा है। भारत और किसी अन्‍य देश के बीच यह अपने किस्‍म का पहला संयुक्‍त अंतर्राष्ट्रीय हैकाथन है। इस संयुक्‍त हैकाथन का लक्ष्‍य भारत और शेष विश्‍व के छात्र समुदाय के बीच सहयोग को बढ़ावा देना तथा हमारे समाज की कुछ चुनौतीपूर्ण समस्‍याओं का नवोन्‍मेषी व लीक से हटकर समाधान तलाशना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 सितंबर को इसके विजेताओं को पुरस्‍कार प्रदान करेंगे। ज्ञातव्य है स्‍मार्ट कैंपस विषय पर आधारित सिंगापुर-भारत हैकाथन का पहला संस्‍करण नवंबर, 2018 में एनटीयू सिंगापुर में हुआ था। इस साल का हैकाथन तीन विषयों पर केंद्रित है- ‘अच्‍छी सेहत और तंदुरुस्‍ती’, ‘अच्‍छी शिक्षा’ तथा ‘किफायती और स्‍वच्‍छ ऊर्जा’। इस हैकथान में सबसे ज्‍यादा नवाचारी समाधान प्रस्‍तुत करने वाली टीम को 10,000 डॉलर, दूसरी, तीसरी और चौथी विजेता टीमों को क्रमश: 8,000 डॉलर 6,000 डॉलर तथा 4,000 डॉलर दिये जाएंगे।
    • तमिलनाडु के कोडियाकराई वन्यजीव संरक्षण अभयारण्य में हिरणों के पुनर्वास का अनूठा काम शुरू किया गया है। यह कार्य केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी योजना के तहत तंजावुर के शिवगंगई उद्यान में आठ करोड़ रूपये की लागत से किया जा रहा है। डॉक्टरों के एक दल ने इन हिरणों की जाँच की तत्पश्चात इन्हें कोडियाकराई के घने जंगलों में छोड़ दिया गया। पॉइंट कैलिमेर वाइल्डलाइफ एंड बर्ड सैंक्चुअरी तमिलनाडु में 21.47-वर्ग किलोमीटर का संरक्षित क्षेत्र है। इसे तमिल में कोडियाककारई कहते हैं। यह अभयारण्य वर्ष 1967 में भारत के स्थानिक स्तनपायी प्रजाति ब्लैकबक के संरक्षण के लिये बनाया गया था। इसका अंतर्राष्ट्रीय नाम पॉइंट कैलिमेर वन्यजीव अभयारण्य है।
    • दुनियाभर में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला सर्च इंजन गूगल आज अपना 21वाँ जन्मदिन मना रहा है। आज हम हर बात की जानकारी लेने के लिये गूगल की मदद लेते हैं। गूगल आज के समय में देश और दुनिया में काफी कुछ बदलने की ताकत रखता है। गूगल के सहयोग से आज हमारे देश के रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को फ्री वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध हो रही है। इसके साथ ही गूगल मैप्स देश की बड़ी आबादी को रोज रास्ता दिखाने में मददगार साबित हो रहे हैं। गूगल ने वर्ष 1998 में अपना पहला डूडल 'बर्निंग मैन फेस्टिवल' पर बनाया था। इसी तरह मई 2012 में गूगल ने अपने डूडल को नया रूप दिया था। यह एक गेम के रूप में था और ऐसा पहली बार हुआ था कि एक यूजर के रूप में आप गूगल डूडल के साथ खेल सकते थे। यह डूडल Pac-Man वीडियो गेम 30 साल पूरे होने के मौके पर बनाया गया था। दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने अपना डोमेन (Google.com) 15 सितंबर 1997 को रजिस्टर कराया था, लेकिन वर्ष 2005 से कंपनी अपना जन्मदिन 27 सितंबर, को मना रही है। इस वर्ष अपने जन्मदिन पर गूगल ने अपने डूडल में एक बड़ा वाला मॉनिटर, एक की-बोर्ड, माउस और एक प्रिंटर दिखाया है। इस डूडल में गूगल ने अपने ऑफिस के एक फोटो का इस्तेमाल किया है। इसमें लगाई गई फोटो को 27 सितंबर 1998 को खींचा गया था। गूगल की स्थापना सर्गेई ब्रिन और लैरी पेज ने वर्ष 1998 में की थी।

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