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डेली न्यूज़

  • 27 Feb, 2021
  • 51 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

FATF ने पाकिस्तान को ग्रे सूची में बरकरार रखा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) ने फैसला लिया है कि वह पाकिस्तान को आगामी जून सत्र तक " ग्रे सूची" (Grey List) में बनाए रखेगा।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि: 

  • अक्तूबर 2020 सत्र के दौरान FATF द्वारा पाकिस्तान के लिये निर्धारित 27 सूत्रीय कार्रवाई योजना को पूर्ण करने की समय-सीमा को कोविड-19 महामारी के कारण फरवरी 2021 तक विस्तारित कर दिया गया था। 
    • तब इसने 27 निर्देशों में से 6 का पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया था।
  • FATF ने जून 2018 में पाकिस्तान को ’ग्रे सूची’ में रखने के बाद 27 सूत्रीय कार्रवाई योजना जारी की थी। यह कार्रवाई योजना धन शोधन और आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने से संबंधित है।

पाकिस्तान को ग्रे सूची में बरकरार रखने के विषय में:

  • FATF आतंकवाद का मुकाबला करने में पाकिस्तान की उल्लेखनीय प्रगति को स्वीकार करता है, हालाँकि पाकिस्तान ने अभी भी इन 27 सूत्रीय कार्रवाई योजना में से तीन को पूरा नहीं किया है।
  • ये तीन बिंदु आतंकी फंडिंग के बुनियादी ढाँचे और शामिल संस्थाओं के खिलाफ वित्तीय प्रतिबंध तथा दंड के संदर्भ में प्रभावी कदम से संबंधित हैं।
  • FATF जून 2021 सत्र के दौरान पाकिस्तान द्वारा किये गए उपायों और सुधारों की स्थिरता का परीक्षण करेगा। इसके बाद FATF द्वारा पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखने या निकालने की समीक्षा की जाएगी।

महत्त्व: 

  • FATF ने पाकिस्तान के विरुद्ध आतंकी गतिविधियों के लिये धन जुटाने में शामिल कई प्रतिबंधित संगठनों जैसे- जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद आदि पर कार्रवाई में निष्क्रियता के मामले में संज्ञान लिया है।
  • भारत ने कई मौकों पर 26/11 के मुंबई और पुलवामा हमलों सहित कई आतंकी मामलों में पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों की संलिप्तता को उजागर किया है।
  • पाकिस्तान का FATF की ग्रे सूची में बना रहना उसके समक्ष यह दबाव बनाएगा कि वह भारत में इस तरह के आतंकवादी हमलों को रोकने के लिये पर्याप्त उपाय करे।

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल के विषय में: 

  • FATF का गठन वर्ष 1989 में जी-7 देशों की पेरिस में आयोजित बैठक में हुआ था।
  • FATF मनी लांड्रिंग, टेरर फंडिंग जैसे मुद्दों पर दुनिया में विधायी और नियामक सुधार लाने के लिये आवश्यक राजनीतिक इच्छा शक्ति पैदा करने का काम करता है। यह व्यक्तिगत मामलों को नहीं देखता है।

उद्देश्य: 

  • FATF का उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।

मुख्यालय: 

सदस्य देश: 

FATF की सूचियाँ:

  • ग्रे लिस्ट: 
    • किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।
  • ब्लैक लिस्ट: 
    • किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक लिस्ट’ (Black List) में शामिल होने का अर्थ है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।

सत्र: अध्यक्ष FATF प्लैनरी (FATF Plenary) की बैठक बुलाता है और इसकी अध्यक्षता करता है। FATF प्लैनरी ही FATF की निर्णय निर्माण संस्था है जिसकी हर वर्ष तीन बार बैठक होती है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

सीतानदी-उदंती टाइगर रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

सीतानदी उदंती टाइगर रिज़र्व (Sitanadi Udanti Tiger Reserve) के कोर एरिया (Core Areas) में स्थित गाँवों में रहने वाले हज़ारों आदिवासी अपने सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों (Community Forest Resource Rights) को मान्यता प्रदान करने को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

  • अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 [Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers Recognition of Forest Rights Act, 2006 (FRA)] के तहत सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resource-CFR) अधिकार प्रदान किये जाते हैं।
  • टाइगर रिज़र्व का गठन एक कोर/बफर रणनीति के आधार पर किया जाता है। कोर एरिया को एक राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य की कानूनी स्थिति प्राप्त होती है, जबकि बफर या परिधीय क्षेत्र में वन और गैर-वन भूमि शामिल होती है जिसे  बहु-उपयोगी क्षेत्र के रूप में व्यवस्थित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

वन अधिकार अधिनियम  (FRA) के प्रावधान:

  • FRA के बारे में:
    • वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 (Forest Rights Act -FRA, 2006) वनों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति (FDST) और अन्य परंपरागत वन निवासियों (OTFD) के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है जो कि वर्षों से वन क्षेत्र में निवास कर रहे हैं।
    • यह FDST और OTFD की आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण हेतु शासन व्यवस्था को मज़बूत करता है।
    • ग्राम सभा व्यक्तिगत वन अधिकारों ( Individual Forest Rights- IFR) या सामुदायिक वन अधिकारों ( Community Forest Rights- CFR) की प्रकृति और सीमा के निर्धारण हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार प्रदान करती है जो  FDST और OTFD दोनों को दिया जा सकता है।
  • व्यक्तिगत अधिकार: इसमें स्वतः खेती और निवास का अधिकार शामिल है।
  • सामुदायिक अधिकार: इसमें चराई, मत्स्य पालन और वनों में जल निकायों तक पहुंँच, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) हेतु आवास का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार स्थायी उपयोग आदि के लिये किसी भी सामुदायिक वन संसाधन का पुन: निर्माण या संरक्षण तथा उनका प्रबंधन करना शामिल है।
  • सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार: ये ग्राम की परंपरागत अथवा रूढ़िगत सीमाओं के भीतर अथवा चरवाहा समुदायों द्वारा ऋतुगत प्रयोग किये जाने वाले स्थलों परआदिवासियों तथा OTFDs के अधिकार हैं।
    • इनमें आरक्षित वन तथा आरक्षित क्षेत्र जैसे- अभयारण्य (Sanctuaries)  एवं राष्ट्रीय उद्यान (National Park) शामिल हैं ।

सीतानदी-उदंती टाइगर रिज़र्व:

  • स्थापना: 
    • सीतानदी-उदंती टाइगर रिज़र्व वर्ष 2008-09 में अस्तित्व में आया जिसमे दो अलग-अलग रिज़र्व (उदंती और सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य) को एक साथ मिलाया गया। 
  • अवस्थिति: यह छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले में स्थित है।
  • पारिस्थितिक विविधता: 
    • इसमें साल वन के साथ वनों में उगने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें शामिल हैं।
    • एशियाई जंगली भैंस कोर एरिया में पाई जाने वाली प्रमुख लुप्तप्राय प्रजाति है।
    • बाघ के अलावा अन्य लुप्तप्राय और दुर्लभ प्रजातियों में भारतीय वुल्फ (Indian Wolf), तेंदुआ, स्लॉथ बीयर (Sloth Bear) और माउस हिरण (Mouse Deer) शामिल हैं।
  • नदियाँ:
    • सीतानदी नदी का उद्गम स्थल सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य के मध्य से होता है।
    • उदंती नदी उदंती वन्यजीव अभयारण्य के एक बड़े हिस्से को कवर करती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

छत्तीसगढ़ में अन्य टाइगर रिज़र्व:

  • अचानकमार टाइगर रिज़र्व
  • इंद्रावती टाइगर रिज़र्व।

National-Parks

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

पुद्दुचेरी में राष्ट्रपति शासन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी में वी.नारायणस्वामी की नेतृत्व वाली काॅन्ग्रेस सरकार द्वारा विश्वास मत परीक्षण के दौरान पर्याप्त बहुमत न जुटा पाने के बाद उपराज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है।

  • राष्ट्रपति इस बात से सहमत थे कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी जिसमें केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी का प्रशासन केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम (Government of Union Territories Act) 1963 के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता था।

प्रमुख बिंदु: 

केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन:

  • भारतीय संविधान के भाग VIII के तहत अनुच्छेद 239 से लेकर अनुच्छेद 242 तक के प्रावधान केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन से संबंधित हैं।
  • प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट होता है तथा वह राज्यपाल की तरह राज्य का प्रमुख नहीं होता है। 
    • राष्ट्रपति एक प्रशासक के पदनाम को निर्दिष्ट कर सकता है; यह उपराज्यपाल या मुख्य आयुक्त या प्रशासक हो सकता है।
  • केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी (वर्ष 1963 में), दिल्ली (वर्ष 1992 में) और जम्मू-कश्मीर (वर्ष 2019 में) में एक विधानसभा और मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया है।
    • परंतु केंद्रशासित प्रदेशों में इस प्रकार की व्यवस्था राष्ट्रपति और संसद के सर्वोच्च नियंत्रण को कम नहीं करती है।
    • संसद केंद्रशासित प्रदेशों के लिये तीनों अनुसूचियों (राज्य सूची सहित) के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।

संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामले में प्रावधान (1963 के अधिनियम के अनुसार):

  • यदि राष्ट्रपति,केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक से रिपोर्ट प्राप्त करने पर या अन्यथा इस बात से संतुष्ट है कि -
    • ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें संबंधित केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, या
    • केंद्रशासित प्रदेश के समुचित प्रशासन के लिये ऐसा करना आवश्यक या समुचित है,
  • ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति, आदेश देकर एक निर्धारित अवधि (जितना वह उचित समझे) के लिये इस अधिनियम के सभी या किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है, और
    • ऐसे आकस्मिक और परिणामी प्रावधान कर सकता है जो अनुच्छेद 239 के प्रावधानों के तहत केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन के लिये आवश्यक या उचित प्रतीत हों।

एक राज्य में राष्ट्रपति शासन:

  • अर्थ:
    • राष्ट्रपति शासन का तात्पर्य राज्य सरकार के निलंबन और संबंधित राज्य में प्रत्यक्ष रूप से केंद्र का शासन लागू होने से है।
    • इसे  'राज्य आपातकाल' या 'संवैधानिक आपातकाल’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 के माध्यम से केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
    • अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है, यदि राष्ट्रपति इस बात से आश्वस्त है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकती है। राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर या दूसरे ढंग से (राज्यपाल के विवरण के बिना) भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है।
  •  संसदीय अनुमोदन और समयावधि:
    • राष्ट्रपति शासन लागू करने की घोषणा को इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।
    • राष्ट्रपति शासन की घोषणा को मंज़ूरी देने वाला प्रत्येक प्रस्ताव किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत से पारित किया जा सकता है।
    • यदि यह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत हो तो राष्ट्रपति शासन छह माह तक रहता है, इसे अधिकतम तीन वर्ष की अवधि (प्रत्येक छह माह पर संसद की स्वीकृति के साथ ) के लिये बढ़ाया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति शासन का प्रभाव: राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त होती हैं: 
    • वह राज्य सरकार के कार्यों को अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल तथा अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्ति प्राप्त होती है।
    • वह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग/निर्वहन संसद द्वारा किया जाएगा।
    • वह ऐसे सभी कदम उठा सकता है जिसमें राज्य के किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित प्रावधानों को निलंबित करना शामिल है।
  • निरसन:
    • राष्ट्रपति किसी भी समय एक परिवर्ती घोषणा के माध्यम से राष्ट्रपति शासन को रद्द कर सकता है। इस तरह की उद्घोषणा के लिये संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
    • ऐसा तब होता है, जब किसी राजनीतिक दल का नेता विधानसभा में बहुमत के लिये आवश्यक न्यूनतम संख्या (या उससे अधिक) में सदस्यों के समर्थन के साथ सरकार बनाने के लिये अपना दावा प्रस्तुत करता है।

राष्ट्रपति शासन से जुड़ी सिफारिशें/निर्णय: 

  • प्रशासनिक सुधार आयोग (1968) द्वारा सिफारिश की गई कि राष्ट्रपति शासन के संबंध में राज्यपाल की रिपोर्ट उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिये और इस संबंध में राज्यपाल को अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिये।
  • राजमन्नार समिति (1971) ने भारत के संविधान से अनुच्छेद 356 और 357 को हटाने की सिफारिश की थी।
  • सरकारिया आयोग (1988) ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 356 का उपयोग बहुत ही दुर्लभ मामलों में किया जाना चाहिये, उदाहरण के लिये ऐसे मामलों में जब राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता को बहाल करने के लिये ऐसा करना अपरिहार्य हो जाए।
  • एस.आर. बोम्मई फैसला (1994):
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन स्थितियों को सूचीबद्ध किया जहाँ अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उचित प्रयोग हो सकता है।
    • ऐसी ही स्थिति 'त्रिशंकु विधानसभा’ की है, अर्थात् ऐसी स्थिति जब विधानसभा के आम चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त हो पाता।
  • न्यायमूर्ति वी. चेलैया आयोग (2002) ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 356 का उपयोग पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद/संयम से किया जाना चाहिये और इसे केवल अनुच्छेद 256, 257 और 355 के तहत सभी प्रावधानों के विफल रहने के बाद अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग में लाना चाहिये।
  • पुंछी आयोग (2007) ने  अनुच्छेद 355 और 356 में संशोधन की सिफारिश की। इस आयोग ने केंद्र द्वारा इन अनुच्छेदों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाते हुए राज्यों के हितों की रक्षा करने की मांग की।

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

फार्मास्यूटिकल्स और आईटी हार्डवेयर के लिये PLI योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर के लिये 22,350 करोड़ रुपए की लागत वाली उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को मंज़ूरी दी है।

  • इससे पूर्व सरकार ने 51,311 करोड़ रुपए के प्रस्तावित परिव्यय के साथ चिकित्सा उपकरणों, मोबाइल फोन और निर्दिष्ट 'सक्रिय दवा सामग्री' (API) के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की घोषणा की थी।

प्रमुख बिंदु

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना

  • इस योजना का उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों की बिक्री में हो रही वृद्धि पर कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करना होता है। 
  • इसके तहत विदेशी कंपनियों को भारत में इकाई स्थापित करने के लिये आमंत्रित किया जाता है, हालाँकि इसका प्राथमिक उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित करना है।

Incentive-work

सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर क्षेत्र

  • 7350 करोड़ रुपए की लागत वाली इस योजना के तहत भारत में निर्मित सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर उत्पादों के लिये शुद्ध वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष 2019-20) पर 1-4 प्रतिशत नकद प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
  • इस योजना के लक्षित सेगमेंट में लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन PC और सर्वर आदि शामिल हैं।
  • अवधि: 4 वर्ष 
  • लाभ
    • इस योजना के माध्यम से भारत स्वयं को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित कर सकेगा, जिससे भारत आईटी हार्डवेयर निर्यात हेतु एक महत्त्वपूर्ण गंतव्य बन जाएगा।
    • इससे 4 वर्षों में 1,80,000 से अधिक (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) रोज़गार सृजन होने की संभावना है।
    • इससे आईटी हार्डवेयर के लिये घरेलू मूल्य वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके वर्ष 2025 तक 20-25 प्रतिशत तक बढ़ जाने की उम्मीद है।

फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र

  • वर्ष 2020 में लागू 6,940 करोड़ रुपए की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना महत्त्वपूर्ण थोक दवाओं पर केंद्रित थी, जबकि यह नवीनतम योजना अन्य प्रकार की थोक दवाओं पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • इसके तहत वर्ष 2020-21 से वर्ष 2028-29 (कुल 9 वर्षों में) के बीच प्रोत्साहन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • योजना के लिये आवेदन करने वाले दवा निर्माताओं को भारत में पंजीकृत होना अनिवार्य है और उन्हें अपने वैश्विक उत्‍पादन राजस्‍व (GMR) के आधार पर तीन श्रेणियों में से किसी एक में समाहित किया जाएगा, ताकि औषधीय उद्योग की योजना व्‍यापक और व्यवस्थित तरीके से लागू की जा सके।

योजना द्वारा लक्षित दवाओं की श्रेणियाँ

  • श्रेणी-1
    • इसमें जैवऔषधीय; कॉम्प्‍लेक्‍स जेनेरिक औषधियाँ; पेटेंट दवाएँ; गंभीर बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाएँ और वे दवाएँ जो महँगी होती हैं तथा भारत खासतौर पर उनके लिये बहुराष्ट्रीय दवा निर्माताओं पर निर्भर रहता है।
  • श्रेणी-2
    • इसमें सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स सामग्री (APIs), कीई स्टार्टिंग मैटेरियल (KSMs) और ड्रग इंटरमीडिएट (DIs) शामिल हैं।
  • श्रेणी-3
    • इसमें ऑटो इम्‍यून ड्रग्‍स, कैंसर-रोधी दवाएँ, मधुमेह-रोधी दवाएँ, संक्रमण-रोधी दवाएँ, हृदय रोग संबंधी दवाएँ, साइकोट्रॉपिक ड्रग्‍स और एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्‍स, इन-विट्रो डायग्‍नोस्टिक उपकरण तथा भारत में निर्मित न होने वाली अन्‍य औषधियाँ शामिल हैं। 

प्रोत्साहन

  • श्रेणी-1 और श्रेणी-2 के लिये
    • योजना के अंतर्गत श्रेणी 1 और श्रेणी 2 दवाओं के लिये उत्‍पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्‍साहन की दर 10 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्‍य का), पाँचवें वर्ष के लिये 8 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिये 6 प्रतिशत होगी।
  • श्रेणी-3
    • योजना के अंतर्गत श्रेणी-3 उत्‍पादों के लिये उत्‍पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्‍साहन की दर 5 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्‍य का), पाँचवें वर्ष के लिये 4 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिये 3 प्रतिशत होगी।

फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में योजना का लाभ

  • चीन पर निर्भरता कम हुई
    • चीन के रूप में एक मितव्ययी विकल्प होने के कारण सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स सामग्री (APIs) को लेकर भारत की क्षमता में पिछले कुछ वर्षों में कमी देखने को मिली है।
    • भारत का फार्मास्यूटिकल्स उद्योग वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत थोक दवाओं के आयात के लिये चीन पर निर्भर है।
  • निर्यात में बढ़ोतरी
    • भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उद्योग उत्पादन की मात्रा के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा है और यह लगभग 40 बिलियन डॉलर का है।
    • भारत, वैश्विक स्तर पर निर्यात की जाने वाली कुल दवाओं और औषधियों में लगभग 3.5 प्रतिशत का योगदान देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड  एन्वायरनमेंट (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा सेंटर फॉर एन्वायरनमेंट रिपोर्ट, 2021 (State of Environment Report, 2021) जारी की गई है।

  • CSE नई दिल्ली स्थित एक सार्वजनिक हित अनुसंधान और परामर्शकारी संगठन है, जो सतत् और न्यायसंगत विकास की वकालत करता है और इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर शोध करता है। 

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु: 

  • पेंडिमिक जनरेशन 
    • भारत में 375 मिलियन बच्चों (नवजात शिशुओं से लेकर 14 साल के बच्चों तक) में 'पेंडिमिक जनरेशन' की शुरूआत देखी जा सकती है, जिसके दीर्घकालीन प्रभाव हो सकते हैं। कम वज़न, स्टंटिंग (कम ऊँचाई के साथ कम उम्र) तथा शिक्षा और कार्य उत्पादकता में कमी के चलते बाल मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।
  • स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि:  
    • कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर 500 मिलियन से अधिक बच्चों को  स्कूल से बाहर कर दिया गया जिनमें आधे से अधिक भारत के थे।
  • गरीबी में अत्यधिक वृद्धि: 
    • कोविड -19 ने विश्व के गरीबों को और अधिक निर्धन बना दिया हैमहामारी के चलते 115 मिलियन से अधिक अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी की चपेट में आ सकते हैं जिनमें से अधिकांश दक्षिण एशिया में रहते हैं
  • प्रदूषण का बिगड़ता स्तर:  
    • वर्ष 2009 और 2018 के मध्य भारत में वायु, जल और भूमि प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी हुई है। 
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश में 88 प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर/समूहों (Industrial Clusters) में से 35 में समग्र पर्यावरणीय गिरावट, 33 में वायु गुणवत्ता का बिगड़ता स्तर, 45 में अधिक प्रदूषित जल  और 17 में भूमि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को चिह्नित किया गया है।
    • महाराष्ट्र का तारापुर सबसे प्रदूषित क्लस्टर के रूप में उभरा है।

सतत् विकास रैंकिंग के संबंध में: 

  • सतत् विकास के मामले में भारत 192 देशों में 117वें स्थान पर रहा जो  पाकिस्तान के अलावा सभी दक्षिण एशियाई देशों में सबसे पीछे था।
  • सतत् विकास लक्ष्यों में राज्यों का प्रदर्शन:
    • सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य: केरल, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना। 
    • सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य : बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और उत्तर प्रदेश।

अन्य रिपोर्टस:

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

मन्‍नथू पद्मनाभन

चर्चा  में क्यों?

हाल ही में भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी मन्‍नथू पद्मनाभन की पुण्यतिथि मनाई गई।

Mannathu-Padmanabhan

प्रमुख बिंदु

जन्म:

  • मन्‍नथू पद्मनाभन का जन्म 2 जनवरी, 1878 को केरल के कोट्टायम ज़िले में पेरुना नामक स्थान पर हुआ था।

मन्‍नथू पद्मनाभन के विषय में:

  • वह दक्षिण-पश्चिमी राज्य केरल के एक समाज सुधारक तथा स्वतंत्रता सेनानी थे।
  • सरदार के.एम. पणिकर ने उन्हें केरल के ‘मदन मोहन मालवीय' की संज्ञा दी। 
  • उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत वर्ष 1893 में सरकारी प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक के रूप में की।
  • वर्ष 1905 में उन्होंने अपना पेशा बदल दिया और मजिस्ट्रेट न्यायालयों में कानून का अभ्यास शुरू कर दिया।

राजनैतिक तथा सामाजिक योगदान:

  • उन्होंने वायकोम (वर्ष 1924) एवं गुरुवायूर (वर्ष 1931) के मंदिर-प्रवेश सत्याग्रहों और अस्पृश्यता विरोधी आंदोलनों में भाग लिया।
    • वायकोम सत्याग्रह त्रावणकोर (वर्तमान केरल) के मंदिरों में दलित वर्ग के लोगों को प्रवेश की अनुमति देने हेतु चलाया गया आंदोलन था। यह आंदोलन वर्ष 1924-25 के दौरान केरल के कोट्टायम ज़िले में वायकोम के शिव मंदिर के पास हुआ। उस समय वायकोम त्रावणकोर रियासत का एक हिस्सा था।
    • गुरुवायूर सत्याग्रह केरल के प्रसिद्ध 'गुरुवायूर मंदिर' में दलितों को प्रवेश की अनुमति देने हेतु चलाया गया था। यह मंदिर वर्तमान थ्रिसूर ज़िले में है जो उस समय मालाबार ज़िले के पोन्नानी तालुक का हिस्सा था और अब केरल का हिस्सा है।
  • उन्हें नायर समुदाय का सुधारक और नैतिक मार्गदर्शक माना जाता है। उन्होंने नायर समुदाय के सदस्यों को बुरे और रूढ़िवादी रिवाजों का त्याग करने के लिये प्रेरित किया।
  • उन्होंने सभी जातियों के लिये मंदिर प्रवेश की मांग करने और अस्पृश्यता का अंत करने के उद्देश्य से नायर समुदाय का नेतृत्व किया।
  • वर्ष 1914 में उन्होंने नायर सर्विस सोसाइटी की स्थापना की।
  • वर्ष 1946 में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के सदस्य बने और त्रावणकोर में सर सी.पी. रामास्वामी प्रशासन के विरुद्ध आंदोलन में भाग लिया।
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण 14 जून, 1947 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
  • वर्ष 1949 में पद्मनाभन त्रावणकोर विधानसभा के सदस्य बने।
  • वर्ष 1964 में केरल कॉन्ग्रेस के गठन में भी उन्होंने सहायक की भूमिका निभाई जो भारत की पहली क्षेत्रीय पार्टी थी।

पुरस्कार एवं सम्मान:

  • वर्ष 1966 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें भारत केसरी की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मृत्यु:

  • 25 फरवरी, 1970 को 92 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
  • उनकी समाधि NSS मुख्यालय चंगनाचेरी में स्थित है जो केरल के कोट्टायम ज़िले की नगरपालिका है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

समुद्र तल की एयरलाइन मैपिंग

चर्चा में क्यों?

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS) समुद्र तल की बेहतर छवि/तस्वीर प्राप्त करने के लिये अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्षद्वीप द्वीपसमूह की एयरलाइन मैपिंग की योजना बना रहा है।

  • लक्षद्वीप अरब सागर में स्थित एक द्वीपसमूह है। यह केरल के तट से दूर स्थित एक प्रकार का प्रवाल द्वीप है। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्व में स्थित हैं।

प्रमुख बिंदु

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS)

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • हैदराबाद में स्थित इस संस्थान को वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था।
  • यह पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (ESSO), नई दिल्ली की एक इकाई है।
    • ESSO पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिये कार्यकारी विंग के रूप में कार्य करता है।
  • जनादेश
    • समाज, उद्योग, सरकारी एजेंसियों और वैज्ञानिक समुदाय को निरंतर महासागर अवलोकन तथा व्यवस्थित एवं केंद्रित अनुसंधान के माध्यम से सर्वोत्तम संभव महासागर सूचना व सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करना।

हालिया पहलें

  • इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्षद्वीप में ‘बाथिमेट्रिक’ (Bathymetric) अध्ययन करने के लिये राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) की सहायता लेने की योजना बना रहा है।
    • NRSC: यह अंतरिक्ष विभाग के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्राथमिक केंद्रों में से एक है।
    • बाथिमेट्री
      • इसका अभिप्राय समुद्र, नदियों और झीलों समेत सभी प्रकार के जल निकायों के ‘तल’ के अध्ययन से है। 
      • ‘बाथिमेट्री’ मूल रूप से समुद्र की सतह के सापेक्ष समुद्र की गहराई को संदर्भित करता है, हालाँकि इसका अर्थ पानी के नीचे के इलाके की गहराई और आकार से भी है।
  • राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) पहले ही देश के पूरे तटीय क्षेत्रों की टोपोग्राफिक एयरबोर्न लेज़र टेरेन मैपिंग (ALTM) कर चुका है।
    • ALTM एक सक्रिय रिमोट सेंसिंग तकनीक है जो विशाल क्षेत्रों में उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन पर स्थलाकृति को मापने के लिये लाइट डिटेक्शन और रेंजिंग (LIDAR) का प्रयोग करती है।
    • ALTM एक एयरबोर्न प्लेटफॉर्म तथा पृथ्वी की सतह के बीच की सीमा/विस्तार को मापने के लिये प्रति सेकंड कई हज़ार बार लेज़र स्पंदित करता है।
    • लेज़र ट्रांसमीटर के अंदर एक घूर्णी दर्पण या किसी अन्य स्कैनिंग तंत्र का उपयोग कर लेज़र स्पंदनों को एक कोण बनाते हुए तेज़ी से गुज़रने दिया जाता है जिससे परावर्तक सतह पर किसी रेखा या अन्य पैटर्न/प्रतिरूप का पता लगाया जा सकता है।
  • वैज्ञानिक द्वारा समुद्र तल के अधिक सटीक चित्र प्राप्त करने के लिये पूर्व और पश्चिम दोनों तटों की 3D मल्टी-हैज़ार्ड मैपिंग हेतु डेटा को एकीकृत किया जा रहा है। 

महत्त्व

  • हालिया सुनामी की चेतावनी के मद्देनज़र इस प्रकार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • हाल ही में इंडोनेशिया के तटों पर समुद्र तल में हुए भूस्खलन के कारण आम लोगों को जान-माल की काफी क्षति हुई थी और इस दौरान प्रशासन को आम लोगों को सचेत करने के लिये पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाया था।

अन्य पहलें

  • आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तट पर ऐसे कई स्थानों की पहचान की गई है, जहाँ समुद्र की बेहतर निगरानी और चक्रवातों जैसी आपदाओं की अधिक सटीक भविष्यवाणी के लिये टाइड गेज (Tide Gauge) स्थापित किया जा सके।
  • चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) और संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्र वैज्ञानिक एजेंसी, मैसाचुसेट्स-आधारित वुड्स होल ओशनग्राफिक इंस्टीट्यूट (WHOI) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS) के शोधकर्त्ता कलकत्ता तट से दूर बंगाल की खाड़ी से प्राप्त आँकड़ों का अध्ययन और विश्लेषण कर रहे हैं, इन आँकड़ों को ‘फ्लक्स बॉय’ (Flux Buoy) के माध्यम से प्राप्त किया गया है।
    • इस उपकरण को समुद्र की गहराई में विभिन्न स्तरों पर तापमान, दबाव, लवणता, विकिरण और भू-रासायनिक परिवर्तनों की निगरानी के लिये रखा गया गया था।

वैश्विक पहलें

  • सीबेड 2030 (Seabed 2030) जापान के निप्पॉन फाउंडेशन और जनरल बाथिमेट्री चार्ट ऑफ ओशंस (GEBCO) की संयुक्त परियोजना है।
  • परियोजना का लक्ष्य वर्ष 2030 तक विश्व महासागर तल के निश्चित मानचित्र का निर्माण करने के लिये अब तक उपलब्ध बाथमीट्रिक डेटा का एकत्रण  और इसे सभी के लिये उपलब्ध कराना है।

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

नए IT नियम 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा  सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) 2021 नियमों को अधिसूचित किया गया है।

  • नए नियम व्यापक रूप से सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (Over-The-Top- OTT) प्लेटफाॅर्मों हेतु लाए ग हैं।
  • इन नियमों को सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 87 (2) के तहत तथा  पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियम 2011 के स्थान पर लाया गया है।

OTT-Platforms

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि :

  • वर्ष 2018
    • सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिका (प्रज्जवल मुकदमा) पर स्वतः संज्ञान लेते हुए 11 दिसम्बर, 2018 के आदेश में कहा था कि भारत सरकार सामग्री उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म और अन्य अनुप्रयोगों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप और गैंगरेप की तस्वीरों, वीडियो तथा साइट को खत्म करने के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश तैयार कर सकती है।
  • वर्ष 2020
    • राज्यसभा की एक तदर्थ समिति ने सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के खतरनाक मुद्दे और बच्चों और समाज पर पड़ने वाले इसके प्रभावों के अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा ऐसी सामग्री के मूल निर्माता की पहचान किये जाने की सिफारिश की।
    • सरकार द्वारा वीडियो स्ट्रीमिंग ओवर-द-टॉप [Video Streaming Over-The-Top (OTT)] प्लेटफॉर्म को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में  लाया गया।

सोशल मीडिया/मध्यस्थों हेतु नए दिशा-निर्देश:

  • सोशल मीडिया मध्यस्थों की श्रेणियाँ: 
    • उपयोगकर्त्ताओं की संख्या के आधार पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मध्यस्थों को दो समूहों में विभाजित किया गया है:
      • सोशल मीडिया मध्यस्थ
      • महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ
  • प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा अतिरिक्त जांँच-पड़ताल/निरीक्षण का अनुपालन:
    • मध्यवर्ती इकाइयों सहित सोशल मीडिया द्वारा नियमों में सुझाई गई जांँच-पड़ताल का पालन किया जाता तो उन पर सेफ हार्बर प्रावधान (Safe Harbour Provisions) लागू नहीं होंगे।
    • सेफ हार्बर प्रावधानों को आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत परिभाषित किया गया है।
  • शिकायत निवारण तंत्र की अनिवार्यता : 
    • मध्यस्थों को प्राप्त होने वाली शिकायतों के निस्तारण हेतु एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और इस अधिकारी के नाम व संपर्क विवरण को साझा करना होगा।
    • शिकायत अधिकारी भेजी जाने वाली शिकायत को  24 घंटे के भीतर प्राप्त करेगा तथा प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर इसका समाधान करना होगा।
  • उपयोगकर्त्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना:
    • मध्यस्थों को कंटेंट की शिकायत मिलने के 24 घंटों के भीतर उसे हटाना होगा या उस तक पहुंँच को निष्क्रिय करना होगा जो किसी व्यक्ति की निजता को उजागर करते हों, किसी व्यक्ति को पूर्ण या आंशिक रूप से निर्वस्त्र या यौन क्रिया में दिखाते हों या बदली गई छवियों सहित छद्मरूप में दिखाते हों।
    • ऐसी शिकायत या तो किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है।
  • प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा अतिरिक्त जांँच-पड़ताल का पालन :
    • नियुक्तियाँ: नए नियमों के अनुसार, मुख्य अनुपालन अधिकारी, एक नोडल संपर्क व्यक्ति और एक रेज़ीडेंट शिकायत अधिकारी को नियुक्त करने की आवश्यकता है तथा नियुक्त किये जाने वाले  सभी व्यक्ति भारत के निवासी होने चाहिये।
    • अनुपालन रिपोर्ट: एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित किये जाने की आवश्यकता है जिसमें प्राप्त शिकायतों का विवरण और शिकायतों पर की गई कार्रवाई का विवरण हो, साथ ही हटाई गई सामग्रियों का विवरण भी उल्लेखित हो।
    • प्रवर्तक की पहचान सुनिश्चित करना: 
      • संदेश भेजने की प्रकृति में मुख्य रूप से सेवाएँ प्रदान करने वाले महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों को सूचना देने से पहले प्रवर्तक की पहचान को सत्यापित करना होगा
      • यह भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित अपराधों की रोकथाम एवं उनका पता लगाने, जांँच, अभियोजन या सज़ा के प्रयोजन हेतु आवश्यक है।

गैर-कानूनी सूचना को हटाना:

अदालत के आदेश के रूप में या अधिकृत अधिकारी के माध्यम से एक उपयुक्त सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा अधिसूचित वास्तविक जानकारी मिलने पर मध्यस्थों द्वारा पोषित या ऐसी किसी जानकारी का प्रकाशन नहीं किया जाना चाहिये जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, सार्वजनिक आदेश, दूसरे देशों के साथ मित्रवत संबंधों आदि के हित में किसी कानून के तहत निषेध हो।

समाचार प्रकाशकों, OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया के लिये नियम:

  • OTT हेतु:
    • सामग्री का स्व-वर्गीकरण:
      • नियमों के अनुसार, OTT प्लेटफॉर्म को ऑनलाइन चयनित सामग्री का प्रकाशक कहा जाता है, इस सामग्री को पाँच आयु आधारित श्रेणियों- U (यूनिवर्सल), U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+ और A (वयस्क) में वर्गीकृत किया जाएगा।
    • पैरेंटल लॉक:
      • U/A 13+ या उससे ऊपर की श्रेणी के लिये OTT प्लेटफॉर्म पर पैरेंटल लॉक का फीचर देना होगा और A श्रेणी के कंटेंट के लिये आयु को वेरिफाई करने का बेहतर मैकेनिज़्म तैयार करना होगा।
    • ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट के प्रकाशक को हर कंटेंट या कार्यक्रम के साथ कंटेंट विवरणी में प्रमुखता से वर्गीकृत रेटिंग का उल्लेख करते हुए उपयोगकर्त्ता को कंटेंट की प्रकृति बतानी होगी और हर कार्यक्रम की शुरुआत में दर्शक विवरणी (Viewer Description) प्रस्तुत कर कार्यक्रम देखने से पहले दर्शक को सोच-समझकर निर्णय लेने में सक्षम बनाना होगा।
  • डिजिटल मीडिया पर समाचार प्रकाशकों हेतु:
    • समाचार प्रशासकों को डिजिटल मीडिया पर ‘भारतीय प्रेस परिषद’ के पत्रकारिता आचरण मानदंड और ‘केबल टेलीविन नेटवर्क विनियमन अधिनियम, 1995’  के तहत कार्यक्रमों पर नज़र रखनी होगी, ताकि ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया को एक समान वातावरण में उपलब्ध कराया जा सके।
  • शिकायत समाधान तंत्र:
    • नियमों के तहत स्व-विनियमन के विभिन्न स्तरों के साथ एक तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया गया है।
      • स्तर-I : प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन
      • स्तर-II : प्रकाशकों की स्व-विनियमित संस्थाओं का स्व-विनियमन
      • स्तर-III : निगरानी तंत्र
  • प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन:
    • प्रकाशक को भारत में एक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना होगा, जो प्राप्त शिकायतों के समाधान के लिये जवाबदेह होगा। 
    • यह अधिकारी स्वयं द्वारा प्राप्त हर शिकायत पर 15 दिन के भीतर निर्णय लेगा।
  • स्व-विनियमित संस्था:
    • प्रकाशकों की एक या ज़्यादा स्व-विनियामकीय संस्थाएँ हो सकती हैं।
    • ऐसी संस्था की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या एक स्वतंत्र प्रतिष्ठित व्यक्ति करेगा, जिसमें छह से अधिक सदस्य नहीं होंगे।
    • इस संस्था को सूचना और प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण कराना होगा।
    • यह संस्था प्रकाशक द्वारा पालन किये जा रहे आचार संहिता संबंधी नियमों की निगरानी करेगी और उन शिकायतों का समाधान करेगी, जिनका प्रकाशक द्वारा 15 दिन के भीतर समाधान नहीं किया गया है।
  • निगरानी तंत्र :
    • सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक निगरानी तंत्र विकसित करेगा।
    • यह आचार संहिताओं सहित स्व-विनियमित संस्थाओं हेतु एक चार्टर का प्रकाशन करेगा। यह शिकायतों की सुनवाई के लिये एक अंतर विभागीय समिति का गठन करेगा।

स्रोत- पीआईबी


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