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डेली न्यूज़

  • 25 Oct, 2021
  • 45 min read
भारतीय राजनीति

लोक सुरक्षा अधिनियम: जम्मू-कश्मीर

प्रिलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक अवस्थिति

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्री की यात्रा से पहले केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (J&K) में लगभग 700 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया और इनमें से कुछ व्यक्तियों को जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम (PSA), 1978 के तहत हिरासत में लिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • PSA के तहत किसी व्यक्ति को कार्यकारी आदेश के आधार पर अधिकतम दो वर्षों के लिये बिना किसी मुकदमे के हिरासत में लिया जा सकता है, यदि उसका कार्य राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के प्रतिकूल है।
  • प्रवर्तन:
    • निरोध आदेश या तो संभागीय आयुक्त या ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जाता है।
  • परिभाषा में संशोधन
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति के संबंधियों द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से प्रशासनिक निवारक निरोध आदेश को चुनौती देने का एकमात्र तरीका है।
      • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई करने तथा PSA को निरस्त करने के लिये अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार क्षेत्र है।
      • हालाँकि अगर आदेश को निरस्त कर दिया जाता है, तो सरकार द्वारा PSA के तहत एक और नज़रबंदी आदेश पारित करने और व्यक्ति को फिर से हिरासत में लेने पर कोई रोक नहीं है।
      • आदेश पारित करने वाले अधिकारी के खिलाफ कोई अभियोजन या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है।
  • PSA संबंधी मुद्दे:
    • मुकदमे के बिना हिरासत:
      • PSA किसी व्यक्ति को बिना औपचारिक आरोप के और बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति देता है।
      • सामान्य परिस्थितियों के विपरीत PSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को नज़रबंदी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं होती।
    • जमानत याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं: 
      • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अदालत के समक्ष जमानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है और वह हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के समक्ष उसका प्रतिनिधित्व करने के लिये किसी वकील को नियुक्त नहीं कर सकता है।
    • PSA की धारा 8:
      • यह हिरासत में  लेने के कई कारण प्रदान करता है, जिसमें "धर्म, मूल, जाति, समुदाय या क्षेत्र के आधार पर दुष्प्रचार करना या दुष्प्रचार का प्रयास करना, दुश्मनी या घृणा या वैमनस्य की भावना को उकसाना या ऐसे कार्यों को समर्थन करना शामिल है। 
      • इस संबंध में निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी ज़िला कलेक्टरों (DM) या ज़िलाधिकारियों की होती है, इसके लिये 12 दिन की अवधि प्रदान की जाती है, इसके अंतर्गत एक सलाहकार बोर्ड को नज़रबंदी को मंज़ूरी देनी होती है।
    • छोटे और बड़े अपराधों के बीच कोई भेद नहीं:
      • यह सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान के लिये 1 वर्ष तक और राज्य की सुरक्षा के लिये हानिकारक कार्यों हेतु 2 वर्ष तक की कैद की अनुमति देता है।
  • लोक सुरक्षा अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
    • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना है कि PSA के तहत किसी व्यक्ति को हिरासत में लेते समय DM का कानूनी दायित्व है कि वह उस व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने से पहले सभी परिस्थितियों का विश्लेषण करे।
    • यह भी माना गया है कि जब पहले से ही पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति को PSA के तहत गिरफ्तार किया जाता है, तो DM को उस व्यक्ति को हिरासत में लेने का "उपयुक्त कारण" दर्ज कराना पड़ता है।
    • हालाँकि DM किसी व्यक्ति को PSA के तहत कई बार हिरासत में ले सकता है, परंतु उसे बाद में नज़रबंदी आदेश पारित करते समय नए तथ्य प्रस्तुत करने होंगे।
    • साथ ही उन सभी तथ्यों, जिसके आधार पर निरोध आदेश पारित किया गया है, से हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अवगत कराया जाना चाहिये।
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निरोध के आधार को स्पष्ट करना और व्यक्ति से संवाद करना होता है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण:

  • यह एक लैटिन शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है "आपके पास शरीर होना चाहिये"। यह रिट मनमानी नज़रबंदी के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक कवच है।
  • इसे सार्वजनिक प्राधिकरणों के साथ-साथ निजी व्यक्तियों दोनों के खिलाफ जारी किया जा सकता है।
  • दूसरी ओर रिट वहाँ जारी नहीं की जाती है, जहाँ:
    • हिरासत वैध है।
    • कार्यवाही एक विधायिका या अदालत की अवमानना ​​के लिये की गई है।
    • निरोध की कार्यवाही एक सक्षम अदालत द्वारा की गई है।
    • हिरासत में रखना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

आगे की राह:

  • अब जबकि यह राज्य एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया है, PSA को अखिल भारतीय कानून के अनुरूप लाया जाना चाहिये था।
  • जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय नेताओं की निरंतर हिरासत जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने और राजनीतिक समाधान खोजने के लिये सही नहीं होगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि इस संभावित खतरनाक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये निवारक निरोध के कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का सावधानीपूर्वक अनुपालन किया जाना अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण है।
  • यदि सरकार की आलोचना करने का नागरिकों का अधिकार कानून और व्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है, तो एक कार्यशील लोकतंत्र के रूप में गणतंत्र का भविष्य एक खुला प्रश्न बन जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

चाय निर्यात में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

चाय के विकास के लिये आवश्यक दशाएँ

मेन्स के लिये:

चाय के विकास के लिये आवश्यक दशाएँ, चाय के निर्यात में गिरावट का कारण 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने चाय के निर्यात में वर्ष 2021 के पहले सात महीनों (जनवरी-जुलाई) में वर्ष 2020 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 14.4% की गिरावट दर्ज की है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • वर्ष 2021 के जनवरी से जुलाई महीने के दौरान कुल 100.78 मिलियन किग्रा चाय का निर्यात किया गया, जबकि वर्ष 2020 की समान अवधि में यह 117.56 मिलियन किग्रा था।
    • CIS (स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रमंडल) ब्लॉक 24.14 मिलियन किग्रा के साथ चाय का सबसे बड़ा आयातक रहा है, जिसने पिछली इसी समान अवधि में 30.53 मिलियन किग्रा का आयात किया था।
      • इस गिरावट के अपवाद केवल यूएसए और यूएई हैं जहाँ वर्ष 2021 की इस अवधि में निर्यात में वृद्धि हुई है।
  • गिरावट का कारण:
    • ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध:
    • कंटेनरों की अनुपलब्धता:
      • चाय के निर्यात में गिरावट के अन्य प्रमुख कारणों में शिपिंग कंटेनरों की अनुपलब्धता है जो कोविड-19 के बाद बहुत महँगे हो गए हैं।
    •  कम लागत वाली किस्मों की उपलब्धता:
      • वैश्विक बाज़ार में कम लागत वाली किस्मों की उपलब्धता और पारंपरिक रूप से मज़बूत आयातक देशों में व्यापार प्रतिबंधों के कारण चाय निर्यात में गिरावट आई है।
    • अन्य देशों की चाय की कम कीमत:
      • केन्या और श्रीलंका की चाय की कीमत बहुत कम होने से भारतीय चाय निर्यात क्षेत्र को पिछले दो-तीन वर्षों में नुकसान हुआ है।
      • केन्याई चाय का औसत नीलामी मूल्य भारतीय औसत नीलामी मूल्य से काफी कम है।
    •  घरेलू खपत:
      • चाय बोर्ड द्वारा वर्ष 2018 में प्रकाशित 'चाय की घरेलू खपत पर अध्ययन के सारांश' के अनुसार, भारत में उत्पादित चाय का लगभग 80% का प्रयोग घरेलू खपत के रूप में किया जाता है।
    • पाकिस्तान को निर्यात रोकना:
      • भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के कारण भारत ने पिछले तीन वर्षों से पाकिस्तान को चाय निर्यात पर रोक लगा रखी है।
    • महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था:
      • कोरोनावायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था में कई वस्तुओं के उत्पादन में कमी आई है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है। इसने अन्य कई महत्त्वपूर्ण कारणों के साथ-साथ भारत के चाय निर्यात को भी प्रभावित किया है।

चाय

  • परिचय:
    • चाय कैमेलिया साइनेंसिस के पौधे से बना एक पेय है। पानी के बाद यह दुनिया का सबसे ज़्यादा पिया जाने वाला पेय है।
  • उत्पत्ति:
    • ऐसा माना जाता है कि चाय की उत्पत्ति उत्तर-पूर्वी भारत, उत्तरी म्याँमार और दक्षिण-पश्चिम चीन में हुई थी, लेकिन यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि इनमें से वास्तव में यह पहली बार कहाँ पाई गई थी। इस बात के प्रमाण हैं कि 5,000 साल पहले चीन में चाय का सेवन किया जाता था।
  •   विकास की आवश्यक दशाएँ:
    • जलवायु: चाय एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पौधा है तथा गर्म एवं आर्द्र जलवायु में इसकी पैदावार अच्छी होती है।
    • तापमान: इसकी वृद्धि हेतु आदर्श तापमान 20-30°C होता है तथा 35°C से ऊपर और 10°C से नीचे का तापमान इसके लिये हानिकारक होता है।.
    • वर्षा: इसके लिये पूरे वर्ष समान रूप से वितरित 150-300 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • मिट्टी: चाय की खेती के लिये सबसे उपयुक्त छिद्रयुक्त अम्लीय मृदा (कैल्शियम के बिना) होती है, जिसमें जल आसानी से प्रवेश कर सके।        
  • भारत और चाय उत्पादन
    • भारत विश्व में चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
    • भारत दुनिया में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
      • चीन चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत दुनिया में चाय का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  •  अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस: 

Major-Tea

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की चौथी महासभा

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’

मेन्स के लिये: 

सौर ऊर्जा का महत्त्व और इस संबंध में भारत द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ (ISA) की चौथी महासभा आयोजित की गई थी।

  • इस महासभा में कुल 108 देशों ने हिस्सा लिया, जिसमें 74 सदस्य देश, 34 पर्यवेक्षक, 23 भागीदार संगठन तथा 33 विशेष आमंत्रित संगठन शामिल थे।

प्रमुख बिंदु

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के विषय में:
    • ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ संधि-आधारित एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका प्राथमिक कार्य वित्तपोषण एवं प्रौद्योगिकी की लागत को कम करके सौर विकास को उत्प्रेरित करना है।
    • पेरिस में वर्ष 2015 के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान भारत और फ्राँस द्वारा सह-स्थापित ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ वैश्विक जलवायु नेतृत्वकर्त्ता की भूमिका में भारत का महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
    • ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’, ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG) को लागू करने हेतु नोडल एजेंसी है, जिसका उद्देश्य एक विशिष्ट क्षेत्र में उत्पन्न सौर ऊर्जा को किसी दूसरे क्षेत्र की बिजली की मांग को पूरा करने के लिये स्थानांतरित करना है।
    • भारत ने ‘राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान’ (NISE) के गुरुग्राम स्थित परिसर में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ को 5 एकड़ भूमि आवंटित की है और 160 करोड़ रुपए की राशि जारी की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2021-22 तक ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के दैनिक व्यय को पूरा करना, एक कॉर्पस फंड का निर्माण करना और बुनियादी अवसंरचना का विकास करना है।
      • ‘राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान’ नवीन एवं नवीकरणीय मंत्रालय (MNRE) की एक स्वायत्त संस्था है और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शीर्ष राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थान है।
  • महासभा संबंधी मुख्य बिंदु:
    • सौर ऊर्जा में निवेश:
      • वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक निवेश हेतु प्रतिबद्धता।
      • COP26 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) में एक ‘सौर निवेश कार्य एजेंडा’ और एक ‘सौर निवेश रोडमैप’ लॉन्च किया जाएगा।
    • ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG):
      • COP26 में ‘ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (GGI-OSOWOG) के शुभारंभ हेतु ‘वन सन’ घोषणा को मंज़ूरी दी गई।
        • OSOWOG: सौर के लिये एकल वैश्विक ग्रिड की अवधारणा को पहली बार वर्ष 2018 के अंत में ISA की पहली महासभा में रेखांकित किया गया था।
        • COP26 ग्रीन ग्रिड पहल: इस पहल का उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा संक्रमण को कम करने हेतु आवश्यक बुनियादी अवसंरचना और बाज़ार संरचनाओं में सुधारों की गति एवं पैमाने को प्राप्त करने में मदद करना है।
    • नए ISA कार्यक्रम:
      • सौर पीवी पैनलों और बैटरी उपयोग अपशिष्ट एवं सौर हाइड्रोजन कार्यक्रम के प्रबंधन पर नए ISA कार्यक्रम शुरू किये गए हैं।
        • नई हाइड्रोजन पहल का उद्देश्य सौर बिजली के उपयोग को वर्तमान (USD 5 प्रति किलोग्राम) की तुलना में अधिक किफायती दर पर हाइड्रोजन के उत्पादन में सक्षम बनाना है तथा इसके तहत इसे USD 5 प्रति किलोग्राम तक लाना है।
  • भारत की कुछ सौर ऊर्जा पहलें:
    • राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का एक हिस्सा): भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने हेतु देश भर में सौर ऊर्जा के प्रसार की लिये पारिस्थितिक तंत्र का विकास करना।
    • INDC लक्ष्य: इसके तहत वर्ष 2022 तक 100 GW ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की अभिकल्पना की गई है।
      • यह गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करने और वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33% से 35% तक कम करने हेतु भारत के ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDCs) लक्ष्य के अनुरूप है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG):
    • सरकारी योजनाएँ: सोलर पार्क योजना, कैनाल बैंक और कैनाल टॉप योजना, बंडलिंग योजना, ग्रिड कनेक्टेड सोलर रूफटॉप योजना आदि।
    • पहला ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट: ‘नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड- रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (NTPC-REL) ने देश का पहला ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट स्थापित करने हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उइगर मुसलमानों के लिये उद्घोषणा

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, उइगर मुसलमानों के लिये उद्घोषणा

मेन्स के लिये:

चीन में उइगर मुसलमानों की स्थिति एवं इनकी सुरक्षा के लिये वैश्विक प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 43 देशों ने एक उद्घोषणा पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें चीन से शिनजियांग में उइगर मुस्लिम समुदाय के लिये विधि के शासन के माध्यम से पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है।

  • इससे पहले मार्च 2021 में तुर्की में कई सौ उइगर मुस्लिम महिलाओं ने चीन के साथ तुर्की के प्रत्यर्पण समझौते के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मार्च निकाला था।

Urumqi

प्रमुख बिंदु:

  • क्या है यह उद्घोषणा?
    • इस उद्घोषणा पर अमेरिका और अन्य देशों ने चीन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा उइगर मुसलमानों के खिलाफ नृजातीय संहार का आरोप लगाते हुए हस्ताक्षर किये थे।
      • वर्ष 2019 और 2020 में इसी तरह की घोषणाओं ने शिनजियांग में अपनी नीतियों के लिये चीन की निंदा की, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका ने बीजिंग पर नरसंहार करने का आरोप लगाया है।
    • इसने मानवाधिकारों की रक्षा के लिये शिनजियांग तक संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त सहित स्वतंत्र पर्यवेक्षकों की पहुँच स्थापित करने का भी आह्वान किया।
    • इसने शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में 'राजनीति संबंधी शिक्षा' शिविरों के एक बड़े नेटवर्क के अस्तित्व का उल्लेख किया, जहाँ एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है।
  • चीन का पक्ष:
    • चीन लंबे समय से नृजातीय संहार के आरोपों से इनकार करता रहा है। इसने इस उद्घोषणा की भी निंदा की और इसे चीन की छवि को चोट पहुँचाने की साजिश करार दिया।
    • चीन अपने शिविरों के 'शैक्षिक केंद्र' होने का दावा करता है, जहाँ उइगरों को व्यावसायिक कौशल सिखाकर उनके चरमपंथी विचारों को परिवर्तित किया जा रहा है।
      • हालाँकि वास्तव में इन शिविरों में क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है।
  • भारत का पक्ष:
    • उइगर संकट पर भारत सरकार ने लगभग चुप्पी साध रखी है।

उइगर मुस्लिम

  • परिचय:
    • उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति मध्य एवं पूर्वी एशिया से मानी जाती है।
      • उइगर अपनी स्वयं की भाषा बोलते हैं, जो कि काफी हद तक तुर्की भाषा के समान है और उइगर स्वयं को सांस्कृतिक एवं जातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब पाते हैं।
    • उइगर मुस्लिमों को चीन में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 55 जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में से एक माना जाता है।
      • हालाँकि चीन उइगर मुस्लिमों को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और यह अस्वीकार करता है कि वे स्वदेशी समूह हैं।
    • वर्तमान में उइगर जातीय समुदाय की सबसे बड़ी आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में रहती है।
      • उइगर मुस्लिमों की एक महत्त्वपूर्ण आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे- उज़्बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और कज़ाखस्तान में भी रहती है।
      • शिनजियांग तकनीकी रूप से चीन के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र है और यह क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है तथा भारत, पाकिस्तान, रूस एवं अफगानिस्तान सहित आठ देशों के साथ सीमा साझा करता है।
  • उइगरों का उत्पीड़न:
    • पिछले कुछ दशकों में चीन के शिनजियांग प्रांत की आर्थिक समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई है और इसी के साथ इस प्रांत में चीन के हान समुदाय के लोगों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है। 
      • ये लोग इस क्षेत्र में बेहतर रोज़गार कर रहे हैं जिसके कारण उइगर मुस्लिमों के समक्ष आजीविका एवं अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है।
      • इसी वजह से वर्ष 2009 में दोनों समुदायों के बीच हिंसा भी हुई, जिसके कारण शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी में 200 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर चीन के हान समुदाय से संबंधित थे। 
    • उइगर मुस्लिम दशकों से उत्पीड़न, ज़बरन नज़रबंदी, गहन जाँच, निगरानी और यहाँ तक ​​कि गुलामी जैसे तमाम तरह के दुर्व्यवहारों का सामना कर रहे हैं।
    • चीन का दावा है कि उइगर समूह एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहते हैं और पड़ोसी क्षेत्रों के साथ उइगर समुदाय के सांस्कृतिक संबंधों के कारण चीन के प्रतिनिधियों को भय है कि कुछ बाहरी शक्तियाँ शिनजियांग प्रांत में अलगाववादी आंदोलन को जन्म दे सकती हैं।

आगे की राह

  • चीन को अपने "पेशेवर प्रशिक्षण केंद्रों" को बंद करना चाहिये और धार्मिक एवं राजनीतिक कैदियों को जेलों व शिविरों से रिहा करना चाहिये। 
  • चीन को सही मायने में बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा को अपनाना चाहिये और उइगरों तथा चीन के अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को चीन के सामान्य नागरिक की तरह स्वीकार करना चाहिये। 
  • सभी देशों को उइगर मुस्लिमों को लेकर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिये और शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों के साथ हो रहे उत्पीड़न को रोकने के लिये चीन से तत्काल आग्रह करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

प्रिलिम्स के लिये:

GM फसल

मेन्स के लिये:

GM फसलों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

कोएलिशन फॉर GM फ्री इंडिया के अनुसार, जून 2021 में भारत द्वारा यूरोपीय संघ के देशों को निर्यात की जाने वाली एक खेप में 500 टन आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) चावल का पता चलने से "भारत और उसके कृषि बाज़ार की प्रतिष्ठा को नुकसान" हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

  • GM फसलें:
    • GM खाद्य पदार्थ उन पौधों से प्राप्त होते हैं जिनके जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर पर इसमें किसी विशिष्ट प्रजाति के आनुवंशिक गुणों को सामान्य प्रजाति की फसलों की उपज में वृद्धि, खर-पतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे के प्रतिरोध और इसमें पोषक सुधार के लिये संकरण विधि को अपनाया जाता है। 
    • संभवतः GM चावल की सबसे प्रसिद्ध किस्म गोल्डन राइस है।
      • गोल्डन राइस में डैफोडील्स और मक्का के पौधे के जीन सम्मिलित किये जाते हैं और यह विटामिन A से समृद्ध होता है।
    • भारत ने केवल एक GM फसल, बीटी कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी है।
    • देश में किसी भी GM खाद्य फसल को व्यावसायिक खेती के लिये मंज़ूरी नहीं दी गई है।
      • हालाँकि कम-से-कम 20 GM फसलों के लिये सीमित क्षेत्र परीक्षण की अनुमति दी गई है।
    • इसमें GM चावल की किस्में शामिल हैं जो कीड़ों और बीमारियों के प्रतिरोध में सुधार करती हैं, साथ ही संकर बीज उत्पादन तथा पोषण संबंधी वृद्धि भी शामिल है।
    • GM खाद्य पदार्थों का नुकसान यह है कि वे अपने परिवर्तित डीएनए के कारण एलर्जी का कारण बन सकते हैं और एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ा सकते हैं।

GM-Crops

  • GM चावल का निर्यात (भारत के निहितार्थ):
    • भारत दुनिया का शीर्ष चावल निर्यातक है, इसने वर्ष 2020 में 18 मिलियन टन अनाज (जैविक चावल) बेचकर 65,000 करोड़ रुपए कमाए, जिसमें से लगभग एक-चौथाई प्रीमियम बासमती है।
    • बासमती चावल खरीदने वाले ज़्यादातर पश्चिम एशियाई देश, अमेरिका और ब्रिटेन हैं, जबकि गैर-बासमती का अधिकांश हिस्सा अफ्रीकी देशों एवं पड़ोसी देशों नेपाल तथा बांग्लादेश द्वारा आयात किया जाता है।
    • यह भारत के लिये मुश्किल भरा हो सकता है जैसा कि वर्ष 2006 में अमेरिका में हुआ था, जब निर्यात के लिये तैयार शिपमेंट में GM चावल की कुछ मात्रा पाई गई थी।
      • इसके परिणामस्वरूप जापान, रूस और यूरोपीय संघ जैसे व्यापारिक साझेदारों ने अमेरिका से चावल के आयात को निलंबित कर दिया, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ।
    • उस समय चावल निर्यात लॉबी के दबाव में भारत ने बासमती बेल्ट में GM चावल के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिये नीतियों का मसौदा तैयार किया। हालाँकि देश के अन्य हिस्सों के किसानों, विशेष रूप से जो नए लेकिन बढ़ते जैविक चावल निर्यात बाज़ार का लक्ष्य रखते हैं, को चिंता है कि उनके उत्पाद दूषित हो सकते हैं।
      • अनधिकृत HtBt कपास और बीटी बैंगन पहले से ही व्यावसायिक रूप से उगाए जा रहे हैं, सैकड़ों उत्पादकों ने सरकारी प्रतिबंध की खुलेआम अवहेलना की है।

आगे की राह 

  • ऐसा लगता है कि भारत के शीर्ष चावल वैज्ञानिक फिलहाल पारंपरिक GM चावल अनुसंधान से दूर हो गए हैं।
    • हाल ही में गैर-GM शाकनाशी सहिष्णु चावल की पहली किस्में लॉन्च की गईं, जिसे सीधे बोया जा सकता है, इस प्रकार पानी और श्रम लागत (पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985) की बचत होती है।
    • IARI (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) नई जीन संपादन तकनीक {साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज (एसडीएन) 1 और 2} के माध्यम से सूखा-सहिष्णु, लवणता-सहिष्णु चावल के उपभेदों को बनाने के लिये भी काम कर रहा है, जिसे अभी तक नियामक अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है, जो किसी अन्य प्रजाति के जीन की प्रवृष्टि के बिना चावल के पौधे के अपने जीन को परिवर्तित करता है।
  • इस तरह की नई प्रगति के सामने घरेलू और निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को मज़बूत करने की ज़रूरत है।
  • प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये और विज्ञान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता है और अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन का नया सीमा कानून

प्रिलिम्स के लिये:

चीन का नया सीमा कानून, पूर्वी लद्दाख की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये:

चीन का नया सीमा कानून तथा भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जारी गतिरोध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन की विधायिका ने एक नया सीमा कानून पारित किया है जो राज्य और सेना को क्षेत्र की रक्षा करने तथा चीन के क्षेत्रीय दावों को कमज़ोर करने वाले "किसी भी कार्य का मुकाबला" करने का प्रावधान करता है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन का नया सीमा कानून:
    • संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता: यह निर्धारित करता है कि चीनी रिपब्लिक गणराज्य की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पवित्रता और अहिंसा पर आधारित है।
      • राज्य क्षेत्रीय अखंडता और भूमि की सीमाओं की रक्षा के लिये उपाय करेगा तथा क्षेत्रीय संप्रभुता एवं भूमि सीमाओं को कमज़ोर करने वाले किसी भी कार्य से रक्षा करेगा और उसका मुकाबला करेगा।
    • ज़िम्मेदारियाँ: यह सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों के प्रबंधन में सेना, राज्य परिषद या कैबिनेट एवं प्रांतीय सरकारों की विभिन्न ज़िम्मेदारियों को निर्दिष्ट करता है।
      • पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) "अभ्यास आयोजित करने" सहित सीमा से संबंधित कर्तव्यों का पालन करेगी और" आक्रमण, अतिक्रमण, उकसावे तथा अन्य कृत्यों का दृढ़ता से मुकाबला करेंगी।
      • राज्य सीमा सुरक्षा को मज़बूत करने, आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में सार्वजनिक सेवाओं व बुनियादी ढाँचे में सुधार, लोगों को प्रोत्साहित करने और वहाँ काम करने के लिये उपाय करेगा।
      • राज्य समानता, आपसी विश्वास और मैत्रीपूर्ण परामर्श के सिद्धांत का पालन करते हुए विवादों व लंबे समय से चले आ रहे सीमा संबंधी मुद्दों को ठीक से हल करने के लिये बातचीत के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ भूमि सीमा संबंधी मामलों को संभालेगा।
  • चिंताएँ:
    • यह भारत और भूटान दोनों के साथ विवादित क्षेत्रों में चीन की हाल की कुछ कार्रवाइयों को औपचारिक रूप देगा। कानून पारित होने के साथ ही चीन ने भूमि सीमाओं की गतिविधि में तेज़ी से कदम बढ़ाया है, जो पूर्वी और दक्षिण चीन सागर के विवादित जल में कार्रवाई के रूप में  प्रतिबिंबित होती है।
    • इसमें PLA द्वारा भारत की सीमा के साथ आगे के क्षेत्रों में सैनिकों की संख्या बढ़ाना और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पार कई उल्लंघन शामिल हैं।
    • हाल के वर्षों में चीन हवाई, रेल और सड़क नेटवर्क की स्थापना सहित सीमा पर बुनियादी ढाँचे को मजबूत कर रहा है। इसने तिब्बत में एक बुलेट ट्रेन भी शुरू की है जो अरुणाचल प्रदेश के करीब सीमावर्ती शहर निंगची (Nyingchi) तक जाती है।
    • भूटान के साथ सीमा पर नए "सीमांत गाँवों" का निर्माण।
  • चीन का सीमा विवाद:
    • चीन की 14 देशों के साथ 22,100 किलोमीटर की भूमि सीमा है।
      • इसने 12 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद को सुलझा लिया है।
    • भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है।
      • चीन और भूटान ने सीमा वार्ता में तेज़ी लाने हेतु तीन चरणों का रोडमैप तैयार करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • भारत-चीन सीमा विवाद वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ 3,488 किमी. और चीन-भूटान विवाद लगभग 400 किमी. क्षेत्र को कवर करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सफेद बौना तारा

प्रिलिम्स के लिये:

सफेद बौना तारा 

मेन्स के लिये:

सफेद बौने तारे का निर्माण और संबंधित अंतरिक्षीय गतिविधियाँ  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय टीम ने देखा कि एक सफेद बौने तारे ने अपनी चमक 30 मिनट में ही खो दी, इस प्रक्रिया में आमतौर पर कई दिनों से लेकर महीनों तक का समय लगता है।

प्रमुख बिंदु 

  • सफेद बौने तारे के बारे में: 
    • निर्माण:
      • सफेद बौने तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
      • ऐसे तारों का घनत्व बहुत अधिक होता है।
      • एक सामान्य सफेद बौना हमारे सूर्य के आकार का आधा होता है और इसकी सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1,00,000 गुना अधिक होता है।
      • सूर्य जैसे तारे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं के माध्यम से अपने केंद्र में  हाइड्रोजन को हीलियम में रूपांतरित करते हैं।
      • एक तारे के कोर में संलयन तापमान और बाहरी दबाव पैदा करता है (वे विशाल लाल दानवों के रूप में फैलते हैं), लेकिन यह दबाव एक तारे के द्रव्यमान द्वारा उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण द्वारा संतुलित हो जाता है।
      • तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाने के बाद गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक हो जाता है जिसके कारण तारे सफेद बौने तारों में रूपांतरित हो जाते हैं।
    • काले बौने तारे: 
      • सफेद बौने तारे को काला बौना तारा बनने में सैकड़ों अरबों वर्षों का समय लगता है, चूँकि ब्रह्मांड के सबसे पुराने तारे केवल 10 अरब से 20 अरब वर्ष पुराने हैं, इसलिये अभी तक कोई काले बौने तारे ज्ञात नहीं हैं।
      • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि सभी सफेद बौने शांत नहीं होते हैं और काले बौनों में बदल जाते हैं। 
    • चंद्रशेखर सीमा: 
      • सफेद बौने तारों के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा सौर द्रव्यमान के 1.44 गुना से अधिक विशाल नहीं हो सकती है।  
      • इस सीमा पर इसके केंद्र में दबाव इतना अधिक हो जाता है कि तारा थर्मोन्यूक्लियर सुपरनोवा के रूप में विस्फोट कर देता है।
  • ‘स्विच ऑन एंड ऑफ’ घटना:
    • सफेद बौना तारा, जिसकी चर्चा की गई है, एक द्विआधारीय प्रणाली का हिस्सा है जिसे ‘TW पिक्टोरिस’ कहा जाता है, यहाँ एक तारा और एक सफेद बौना तारा एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं।
      • दो पिंड एक-दूसरे के इतने करीब होते हैं कि तारा सामग्री को सफेद बौने में स्थानांतरित कर देता है।
    • जैसे ही यह सामग्री सफेद बौने तारे तक पहुँचती है, वैसे ही यह एक अभिवृद्धि डिस्क या गैस, प्लाज़्मा और इसके चारों ओर अन्य कणों की एक डिस्क का निर्माण करती है।
    • जैसे-जैसे अभिवृद्धि डिस्क संबंधी सामग्री धीरे-धीरे सफेद बौने तारे के करीब आती जाती है, यह आमतौर पर चमकीली हो जाती है।
    • ऐसे भी मामले हैं जब दाता तारे सफेद बौने तारे की अभिवृद्धि डिस्क के निर्माण में सहयोग नहीं करते हैं। हालाँकि इसके कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं।
    • जब ऐसा होता है तो डिस्क का चमकीलापन बना रहता है क्योंकि उसकी अपवाहित सामग्री पूर्वानुसार बनी रहती है।
      • इसके बाद अधिकांश सामग्री को अपवाहित करने में डिस्क को लगभग 1-2 महीने लगते हैं।
    • हालाँकि 30 मिनट में TW पिक्टोरिस की चमक में गिरावट पूरी तरह से अप्रत्याशित थी, यह ‘मैग्नेटिक गेटिंग’ नामक प्रक्रिया के कारण घटित हो सकता है।
      • ‘मैग्नेटिक गेटिंग’ प्रक्रिया  तब होती है जब चुंबकीय क्षेत्र सफेद बौने तारे के चारों ओर इतनी तेज़ी से घूम रहा होता है कि यह सफेद बौने को प्राप्त होने वाले पदार्थ की मात्रा में बाधा उत्पन्न करता है।
  • महत्त्व: यह खोज अभिवृद्धि के पीछे की भौतिकी को समझने में मदद करेगी- ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारे अपने आस-पास के तारों से सामग्री कैसे प्राप्त करते हैं।

चंद्रशेखर सीमा (Chandrashekhar Limit):

  • चंद्रशेखर सीमा एक स्थिर सफेद बौने तारे के लिये सैद्धांतिक रूप से संभव अधिकतम द्रव्यमान है।
  • सफेद बौने तारों के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा सौर द्रव्यमान के 1.44 गुना से अधिक विशाल नहीं हो सकती है। 
  • किसी भी अपक्षयी वस्तु को अधिक विशाल रूप से अनिवार्य रूप से न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल में गिरना चाहिये।
  • इस सीमा का नाम नोबेल पुरस्कार विजेता सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1931 में इस विचार का प्रस्ताव रखा था।
    • सितारों की संरचना और विकास में शामिल भौतिक प्रक्रियाओं पर उनके काम के लिये वर्ष 1983 में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Life-Cycle

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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