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डेली न्यूज़

  • 23 Dec, 2019
  • 31 min read
शासन व्यवस्था

अरुणाचल प्रदेश में विद्यालयों का वर्गीकरण

प्रीलिम्स के लिये:

अरुणाचल प्रदेश में विद्यालयों के वर्गीकरण की श्रेणियाँ

मेन्स के लिये:

अरुणाचल प्रदेश में विद्यालयों के वर्गीकरण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में मंज़ूर ‘स्थानांतरण एवं नियुक्ति नीति-2020’ (Transfer & Posting Policy, 2020) के अनुसार सभी सरकारी विद्यालयों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाएगा।

मुख्य बिंदु:

  • अरुणाचल प्रदेश के 3,513 सरकारी विद्यालयों तथा 211 सामुदायिक विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति एक प्रमुख मुद्दा है।
  • अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों में बेहतर पहुँच के कारण इन क्षेत्रों में छात्र-शिक्षक अनुपात पक्ष में है।
  • छात्रों के शैक्षणिक हितों की रक्षा के लिये शिक्षकों का आवश्यकता-आधारित वितरण एवं नियुक्ति में स्वतंत्र और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर शिक्षकों को नौकरी में संतुष्टि प्रदान करने के लिये अरुणाचल प्रदेश मंत्रिमंडल ने ‘स्थानांतरण एवं नियुक्ति नीति-2020’ (Transfer & Posting Policy, 2020) को मंज़ूरी प्रदान की है।

क्या है सरकारी विद्यालयों का वर्गीकरण:

  • अरुणाचल प्रदेश में ‘स्थानांतरण एवं नियुक्ति नीति-2020’ के तहत सभी सरकारी विद्यालयों का वर्गीकरण ‘हार्ड’(Hard), ‘मीडियम (Medium)’ और ‘सॉफ्ट’ (Soft), श्रेणियों में किया जाएगा।
  • विद्यालयों का यह वर्गीकरण नियुक्ति स्थान की भौगोलिक स्थलाकृति, विद्यालय तक पहुँच, नियुक्ति स्थान पर रुकने की व्यवस्था में कठिनाई के आधार पर किया जाएगा।
  • इस वर्गीकरण का कारण विद्यालयों के आस-पास की भौगोलिक स्थिति, बुनियादी सुविधाओं की कमी और शिक्षकों की उनके पसंदीदा क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्र में काम करने की अनिच्छा है।
  • इस नई नीति के तहत सभी नव-नियुक्त शिक्षकों को तीन वर्ष एवं परिवीक्षा अवधि के दौरान ‘हार्ड’ श्रेणी के विद्यालयों में नियुक्त किया जाएगा।
  • इसके बाद इन्हें पाँच वर्षों तक ‘मीडियम’ श्रेणी वाले विद्यालयों में नियुक्त किया जाएगा और तत्पश्चात् इनकी नियुक्ति ‘सॉफ्ट’ श्रेणी वाले विद्यालयों में की जाएगी।
  • अरुणाचल प्रदेश राज्य के शिक्षा विभाग को दूरदराज़ के उन क्षेत्रों में 16,594 नियमित शिक्षकों को नियुक्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ स्कूलों में छात्र तो पर्याप्त संख्या में हैं परंतु शिक्षकों की भारी कमी है।
  • इस नीति के तहत शिक्षकों का स्थानांतरण ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से अप्रैल / मई के महीने में किया जाएगा।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के अंतर्गत समृद्ध जनजातीय, सांस्कृतिक, भाषायी विविधता और उच्च साक्षरता दर वाले आठ राज्य आते हैं। इस पूरे क्षेत्र में शिक्षा के आधारभूत ढाँचे और सुविधाओं का अभाव है, अतः इस क्षेत्र में दी जा रही शिक्षा का स्तर तथा इससे संबंधित आधारभूत ढाँचे को सुधारने की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक तंबाकू खपत में कमी

प्रीलिम्स के लिये

वैश्विक तंबाकू उपभोग में कमी को प्रदर्शित करते आँकड़े, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये

भारत में स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “तंबाकू उपभोग का प्रचलन 2000-2025” (Trends in Prevalence of Tobacco Use 2000-2025) के तीसरे संस्करण में कहा गया है कि विश्व में तंबाकू के उत्पादन में लगातार कमी आई है।

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मुख्य बिंदु:

  • वर्तमान में 13 से 15 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों में लगभग 4 करोड़ 30 लाख बच्चे तंबाकू का सेवन करते हैं जिसमें 1 करोड़ 40 लाख लड़कियाँ तथा 2 करोड़ 90 लाख लड़के शामिल हैं।
  • WHO द्वारा पहली बार कहा गया है कि तंबाकू का प्रयोग करने वाले पुरुषों की संख्या में लगातार कमी हुई है।
  • तंबाकू के सेवन से प्रतिवर्ष 80 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से 70 लाख लोग तंबाकू का प्रत्यक्ष सेवन करते हैं, जबकि 10 लाख से अधिक लोग अप्रत्यक्ष तौर पर (सिगरेट के धुँए से आदि कारणों से) प्रभावित होते हैं।
  • तंबाकू की खपत से होने वाली अधिकतर मौतें निम्न एवं मध्यम आय वर्ग वाले देशों में होती हैं। इन देशों में तंबाकू उत्पादन करने वाली कंपनियों का हस्तक्षेप तथा बाज़ार व्यापक पैमाने पर होता हैं।
  • पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर तंबाकू के प्रयोग में कमी आई है वर्ष 2000 में जहाँ 1,397 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते थे वहीं वर्ष 2018 में 1,337 करोड़ लोग इसका सेवन करते हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि तंबाकू के सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या में वृद्धि नहीं हो रही है तथा यह अनुमानित है कि तंबाकू का सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2020 तक 10 लाख की कमी आएगी।
  • वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2020 तक तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों (पुरुष व महिला दोनों) की संख्या में 1 करोड़ की कमी आएगी तथा वर्ष 2025 तक अतिरिक्त 2 करोड़ 70 लाख लोग इसका प्रयोग छोड़ देंगे।
  • वर्ष 2010 के बाद विश्व के लगभग 60 प्रतिशत देशों में तंबाकू के सेवन में लगातार कमी आई है।

आगे की राह:

  • इन उपलब्धियों के बावजूद सरकारों द्वारा वर्ष 2025 तक वैश्विक तंबाकू खपत में 30 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि वर्ष 2025 तक इसमें केवल 23 प्रतिशत की ही कमी की जा सकेगी।
  • तंबाकू के सेवन में 30 प्रतिशत की कमी के लक्ष्य को केवल 32 देशों द्वारा ही लागू किया जा रहा है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि विश्व के अन्य देश भी तंबाकू के प्रयोग को सीमित करने की कोशिश करें।
  • वैश्विक स्तर पर तंबाकू के प्रयोग में इस कमी से प्रदर्शित होता है कि यदि सरकारों द्वारा व्यापक स्तर पर तंबाकू एवं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन के प्रति मज़बूत नीतियाँ लागू की जाएँ तो इससे देश के नागरिकों और समाज के स्वास्थ्य स्तर में सुधार हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ईरान संयुक्त आयोग

प्रीलिम्स के लिये:

चाबहार बंदरगाह और ईरान की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

भारत-ईरान द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के विदेशमंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने 19वें भारत-ईरान संयुक्त आयोग (19th India-Iran Joint Commission) की बैठक के दौरान ईरान के विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ से मुलाकात की।

  • इस बैठक के दौरान चाबहार बंदरगाह (Chabahar Port) और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम {Citizenship (Amendment) Act} जैसे विषयों पर वार्ता हुई।
  • बैठक में दोनों देशों ने अपने "प्राचीन, ऐतिहासिक और अटूट" संबंधों पर प्रतिबद्धता व्यक्त की, साथ ही दोनो देशों को प्रभावित करने वाले निकट द्विपक्षीय संबंधों एवं क्षेत्रीय तथा वैश्विक मुद्दों पर भी वार्ता की।

Iran

भारत के दृष्टिकोण से ईरान का महत्त्व:

  • भारत और ईरान के संबंध प्राचीनकाल से ही बहुआयामी और गहरे रहे हैं। ईरान की भौगोलिक स्थिति भारत के लिये अतिमहत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत ईरान के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी कनेक्टविटी प्राप्त कर सकता है।
  • वर्तमान में भारत यही कार्य कर भी रहा है। चाबहार बंदरगाह के अतिरिक्त अश्गाबाद समझौता (Ashgabat Agreement) और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North–South Transport Corridor- INSTC) के माध्यम से भारत, ईरान के साथ द्विपक्षीय संबंध मज़बूत करने के साथ ही क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं का भी ध्यान रख रहा है।
  • भारत और ईरान की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ पाकिस्तान से लगती हैं इसलिये भारत तथा ईरान के बीच बेहतर राजनीतिक संबंध पाकिस्तान के लिये भू-राजनीतिक दबाव उत्पन्न करेगा।
  • भारत की अर्थव्यवस्था आज भी ऊर्जा के परंपरागत स्रोत्रों अर्थात् तेल पर निर्भर करती है, भारत अभी भी तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता नहीं प्राप्त कर सका है, इसलिये उसे तेल के आयात पर निर्भर रहना होता है। इस प्रकार की स्थिति में भारत के लिये ईरान का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है। इसी के मद्देनज़र भारत, ईरान के ऊपर अमेरिकी प्रतिबंधों के इतर तेल आयात का भुगतान भारतीय रुपए और यूरो में करते हुए अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाए हुए है।

भारत-ईरान से संबंधित मुद्दे:

  • ईरान ने चिंता जताई है कि ईरान के ऊपर वैश्विक कार्यवाही के मद्देनज़र भारत ने भी सभी तेल आयातों को रोक दिया था। इस प्रकार की कार्यवाही से भारत और ईरान के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा साथ ही चाबहार बंदरगाह विकास परियोजनाओं की विकास गति भी बहुत धीमी हो गई।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिये भारत को प्रदान की गई "आंशिक छूट" (Narrow Exemption) जारी रहेगी। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत अफगानिस्तान को किये जाने वाले अपने निर्यात में विविधता लाना चाहता है।
  • भारत-ईरान संयुक्त आयोग की बैठक के बाद भारत, ईरान और अफगानिस्तान के राजनयिकों के मध्य नई दिल्ली में चाबहार में त्रिपक्षीय परियोजना के विकास हेतु कई नई पहलों पर चर्चा के लिये मुलाकात की गई।

भारत और इस्लामिक सहयोग संगठन:

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और सर्वोच्च न्यायालय के अयोध्या मामले से संबंधित फैसले के बारे में 57 सदस्यीय संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन ने भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है।
  • जेद्दा स्थित OIC के सचिवालय का नेतृत्व सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

हाई रेंज माउंटेन लैंडस्केप प्रोजेक्ट

प्रीलिम्स के लिये:

UNDP, हरित केरलम मिशन, हाई रेंज माउंटेन लैंडस्केप प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये:

पर्यावरण और विकास से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा पोषित हाई रेंज माउंटेन लैंडस्केप प्रोजेक्ट (High Range Mountain Landscape Project) को केरल के 11 ग्राम पंचायतों में नए नाम से पुनः शुरू किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

Sustainable-Eco-Conservation-Project

  • स्थानीय लोगों और विशेषकर इडुकी ज़िले के लोगों के विरोध के कारण यह परियोजना वर्ष 2014 से लंबित थी जिसे अब 2,198 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • इस परियोजना का नया नाम ‘अंचुनाद गाँव और उसके आस-पास के क्षेत्र में बहु-उपयोगी प्रबंधन के माध्यम से सतत आजीविका और जैव विविधता संरक्षण’ (Sustainable Conservation Through Multiuse Management of Anchunad and Adjoining Landscape) रखा गया है।
  • इस परियोजना में हरित केरलम मिशन ग्राम पंचायत स्तर पर विशेष प्रयोजन वाहन है और परियोजना को वन क्षेत्रों के अंदर वन विभाग द्वारा एवं वन क्षेत्रों के अंतर्गत पंचायतों में पर्यावरण-विकास समितियों तथा वन संरक्षण समितियों के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • इस परियोजना को वर्ष 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • यह परियोजना इडुकी ज़िले के देविकुलम ब्लॉक के एदामालाक्कुदी (Edamalakkuddy), मुन्नार, देविकुलम, चिन्नाकनाल, मांकुलम, मरायुर, कन्थाल्लुर और बत्तावड़ा ग्राम पंचायत तथा आदिमाली ब्लॉक के आदिमाली ग्राम पंचायत एवं कुट्टमपुझा (एर्नाकुलम ज़िला), अथिराप्पिल्ली (थ्रिशूर ज़िला) ग्राम पंचायतों में क्रियान्वित की जा रही है।
  • गौरतलब है कि इन 11 ग्राम पंचायतों में से 9 पंचायतें केवल इडुकी ज़िले की हैं।
  • यह परियोजना मुन्नार वन्यजीव डिवीज़न, मुन्नार प्रादेशिक डिवीज़न, मरायुर चंदन डिवीजन, मांकुलम, मलयत्तूर, वाझाचल, चालकुडी और थेट्टेकल पक्षी अभयारण्य के तहत आठ वन विकास एजेंसियों को भी कवर करेगी।
  • वर्ष 2014 में परियोजना के खिलाफ इडुकी ज़िले में कड़ा प्रतिरोध किया गया था जिसके कारण इस परियोजना को रोक दिया गया था।
  • UNDP कार्यक्रम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन, जल स्रोत का संरक्षण, सतत् कृषि, आजीविका कार्यक्रम और हरित केरलम मिशन को इस परियोजना के तहत लागू किया जाएगा।

हाई रेंज माउंटेन लैंडस्केप प्रोजेक्ट

भारत हाई रेंज माउंटेन लैंडस्केप प्रोजेक्ट पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change), केरल सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के बीच एक साझेदारी तथा वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility) द्वारा समर्थित है। इस परियोजना का उद्देश्य पश्चिमी घाट के पर्वतीय परिदृश्य में जैव-विविधता के संरक्षण के लिये एक प्रभावी बहु-उपयोग प्रबंधन ढाँचा विकसित करना है।

प्रोजेक्ट के लक्ष्य:

  • पर्वतीय परिदृश्य के बहु-उपयोग के लिये प्रभावी प्रशासनिक रूपरेखा तैयार करना।
  • मुन्नार परिदृश्य की पारिस्थितिक अखंडता को सुरक्षित करना।
  • संसाधनों के समुदाय-आधारित सतत् उपयोग और प्रबंधन के लिये क्षमताओं को मज़बूत करना।

प्रोजेक्ट का महत्त्व:

  • यह प्रोजेक्ट विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण भारत की पर्वतीय जैव-विविधता के स्थायी प्रबंधन में योगदान करेगा।
  • यह जैव-विविधता के संरक्षण संबंधी विचारों को उत्पादन क्षेत्रों से जोड़ने में मदद करेगा।
  • यह जलवायु परिवर्तन तथा अन्य संबद्ध समस्याओं के प्रत्याशित प्रभावों सहित प्रतिगामी कारकों को संबोधित करेगा।

हरित केरलम मिशन (Haritha Keralam Mission):

  • केरल सरकार द्वारा राज्य को स्वच्छ और हरित बनाने के लिये 8 दिसंबर, 2016 को ‘हरित केरलम मिशन’ शुरू किया गया था।
  • इसके तहत सरकारी कार्यालयों में हरित प्रोटोकॉल लागू किये जाने का प्रावधान है तथा इसके अंतर्गत CMO और सचिवालय स्थित अन्य कार्यालयों में किसी भी बैठक या कार्यक्रम में प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
  • इसके तहत प्लास्टिक की बोतलों, कैरी बैग, पैकेज्ड पेयजल, डिस्पोजेबल प्लेट और फ्लेक्स बोर्ड के उपयोग की इजाज़त नहीं होगी। केवल पर्यावरण अनुकूल सामग्री ही CMO कार्यालय सहित सरकारी कार्यालयों में इस्तेमाल की जाएगी।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम

(United Nations Development Programme- UNDP):

  1. UNDP संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास का एक नेटवर्क है।
  2. इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है।
  3. UNDP गरीबी उन्मूलन, असमानता को कम करने हेतु लगभग 70 देशों में कार्य करता है।
  4. इसके अलावा देश के विकास को बढ़ावा देने के लिये नीतियों, नेतृत्व कौशल, साझेदारी क्षमता तथा संस्थागत क्षमता को बढाने और लचीला बनाने में मदद करता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिमी तट पर मैक्रो तथा माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा पश्चिमी तट पर किया गया प्लास्टिक प्रदूषण संबंधी अध्ययन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography-NIO) द्वारा पश्चिमी तट पर मैक्रोप्लास्टिक (Macroplastic) तथा माइक्रोप्लस्टिक (Microplastic) के प्रदूषण से संबंधित अध्ययन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • NIO द्वारा किये इस अध्ययन की रिपोर्ट का शीर्षक ‘भारत के पश्चिमी तट पर मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक का आकलन: आधिक्य, वितरण, बहुलक के प्रकार, विषाक्तता’ (Assessment of Macro and Micro Plastics along the West Coast of India: Abundance, Distribution, Polymer type and Toxicity) है।
  • शोधकर्त्ताओं ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित 10 समुद्र तटों (Beaches) पर दो वर्षों तक मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण तथा समुद्री जीवों पर उनके विषाक्त प्रभाव का अध्ययन किया।

अध्ययन से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • कर्नाटक और गोवा की तुलना में महाराष्ट्र में उच्च ज्वार रेखा (High Tide Line) पर स्थित समुद्र तटों पर मैक्रो तथा माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषकों की अधिक मात्रा पाई गई।
  • महाराष्ट्र में मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषकों की सबसे अधिक मात्रा पाए जाने का कारण भूमि-आधारित है, जिसमें तट के समीप स्थित प्लास्टिक उद्योग, बंदरगाह क्षेत्र, पेट्रोलियम उद्योग एवं पर्यटन गतिविधियाँ में वृद्धि शामिल है।
  • इन समुद्र तटों पर प्लास्टिक के प्रदूषित पदार्थ सफेद, हल्के पीले, गहरे भूरे, हरे, नीले और लाल जैसे विभिन्न रंगों में पाए गए।
  • प्लास्टिक के संदूषित पदार्थों से समुद्री पर्यावरण को बचाने के लिये शोधकर्त्ताओं ने सरकारों को एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single Use Plastic) के उपयोग को हतोत्साहित करने तथा प्लास्टिक का पुनर्चक्रण (Recycling) बढ़ाने से संबंधित नीतियों के निर्माण की सलाह दी है।
  • शोधकर्त्ताओं ने सरकारों को लोगों में प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के संबंध में सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन की भी सलाह दी है।

मैक्रोप्लास्टिक तथा माइक्रोप्लास्टिक:

पाँच मिलीमीटर से कम लंबाई वाले प्लास्टिक के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक तथा पाँच मिलीमीटर से अधिक लंबाई वाले टुकड़े को मैक्रोप्लास्टिक कहते हैं।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान:

  • यह एक बहु-विषयक महासागरीय अनुसंधान संस्थान है एवं ‘वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) की घटक प्रयोगशालाओं में से एक है।
  • इसका मुख्यालय ‘डोना पाउला’ (गोवा) में स्थित है, इसके तीन क्षेत्रीय कार्यालय कोच्चि (केरल), मुंबई (महाराष्ट्र) और विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1960 के अंतर्राष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान के तहत 1 जनवरी 1966 को हुई थी।
  • इस संस्थान का मुख्य कार्य हिंद महासागर की महासागरीय विशेषताओं का परीक्षण करना तथा उन्हें समझना है।
  • इस संस्थान द्वारा समुद्र विज्ञान की जैविक, रासायनिक, भू-गर्भीय और भौतिक विशेषताओं से संबंधित शाखाओं में शोध किया जाता है, साथ ही समुद्र इंजीनियरिंग, समुद्री उपकरण तथा समुद्री पुरातत्व विषयों में भी शोध किया जाता है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (23 दिसंबर, 2019)

राष्ट्रीय गणित दिवस

1729

प्रत्येक वर्ष 22 दिसंबर को देश में राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाया जाता है। यह देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को समर्पित है जिनका जन्म 22 दिसंबर, 1887 को हुआ था। गणित का मानवता के विकास में बड़ा महत्त्व है। इस महत्त्व के प्रति लोगों के बीच जागरुकता पैदा करना राष्ट्रीय गणित दिवस का मुख्य उद्देश्य है। इलाहाबाद स्थित सबसे पुरानी विज्ञान अकादमी नेशनल अकैडमी ऑफ साइंस इंडिया प्रत्येक वर्ष गणित के अनुप्रयोगों और रामानुजन पर कार्यशाला का आयोजन करती है।

गणित में रामानुजन का सबसे बड़ा योगदान हार्डी-रामानुजन नंबर को माना जाता है। एक बार जब जी.एच. हार्डी अस्पताल में रामानुजन से मिलने गए तो उन्होंने बताया कि वह एक टैक्सी कैब से आए जिसका नंबर 1729 था। हार्डी ने कैब के नंबर को बोरिंग बताया, जिस पर रामानुजन ने तुरंत कहा, “नहीं, यह बोरिंग नहीं बल्कि बहुत दिलचस्प नंबर है। यह सबसे छोटी संख्या है जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है।” तब से 1729 को उनके सम्मान में हार्डी-रामानुजन नंबर कहा जाता है।


अमेरिकी स्पेस कमांड

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 738 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट को मंज़ूरी देने के साथ ही अंतरिक्ष में अपनी स्थिति को और मज़बूत करने के उद्देश्य से आधिकारिक तौर पर स्पेस कमांड शुरू करने का ऐलान किया है। ट्रंप प्रशासन की ओर से नई US स्पेस फोर्स के गठन की दिशा में यह बेहद अहम कदम माना जा रहा है। US स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की छठी शाखा होगी। जॉन रेमंड को स्पेस कमांड का पहला प्रमुख बनाया गया है। विदित हो कि अमेरिकी सेना ने वर्ष 2018 में अमेरिकी साइबर कमांड की स्थापना के बाद से कोई और कमांड नहीं बनाया था। SPACECOM सेना की 11वीं लड़ाकू कमान है और प्रत्येक के पास सैन्य अभियानों के लिये एक भौगोलिक या कार्यात्मक मिशन तय है। अमेरिका ने इस स्पेस कमांड की स्थापना अंतरिक्ष में चीन और रूस से होने वाले खतरों से बचाव हेतु की है। वर्तमान में अमेरिकी सेना की पाँच शाखाएँ हैं: आर्मी (Army), वायु सेना (Air Force), नौसेना (Navy), मरीन (Marines) और तटरक्षक बल (Coast Guard)। अमेरिकी वायु सेना के पास पहले से ही एक समर्पित अंतरिक्ष युद्ध ऑपरेशन (Space Warfare Operation) है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अंतरिक्ष कमांड का गठन पहले भी किया गया था और वह वर्ष 1985 से वर्ष 2002 के बीच कार्यान्वित था।


चार्ल्स मिशेल

बेल्ज़ियम के पूर्व प्रधानमंत्री चार्ल्स मिशेल ने यूरोपियन काउंसिल तथा यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है। 751 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद में उनके नाम को बहुमत का समर्थन मिला। इस निकाय यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष के साथ सभी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख या सरकार के प्रमुख शामिल होते हैं। इसकी बैठकों की अध्यक्षता उस सदस्य देश का प्रतिनिधि करता है जिसके पास उस समय यूरोपीय संघ की परिषद की अध्यक्षता होती है। परिषद के पास कोई औपचारिक कार्यकारी या वैधानिक अधिकार नहीं है, पर यह उन प्रमुख मुद्दों और निर्णयों से संबद्ध रहती है जो यूरोपीय संघ के सामान्य राजनीतिक दिशा-निर्देशों को परिभाषित करते हैं। परिषद की बैठक एक वर्ष में कम-से-कम दो बार जस्टस लिपसियस बिल्डिंग में होती है, जो यूरोपीय संघ का कॉन्सीलियम है। इसके नि-वर्तमान अध्यक्ष एलन टस्क हैं, जिनका कार्यकाल 30 नवंबर को समाप्त हो गया।


सेतुरमन पंचनाथन

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिष्ठित नेशनल साइंस फाउंडेशन की अध्यक्षता के लिये भारतीय-अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक डॉ. सेतुरमन पंचनाथन को चुना है। नेशनल साइंस फाउंडेशन एक अमेरिकी सरकारी एजेंसी है जो विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के सभी गैर-चिकित्सकीय क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान एवं शिक्षाओं को समर्थन देती है। इसका चिकित्सकीय समकक्ष नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ है। डॉ. सेतुरमन पंचनाथन का अनुसंधान, नवोन्मेष, अकादमिक प्रशासन एवं नीति में लंबा एवं विशिष्ट अनुभव है। नेशनल साइंस फाउंडेशन के वर्तमान निदेशक फ्रांस कोरडोवा का छह वर्ष का कार्यकाल 2020 में समाप्त होगा जिसके बाद पंचनाथन यह पदभार संभालेंगे।


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