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डेली न्यूज़

  • 22 Apr, 2020
  • 63 min read
भूगोल

इंटरस्टेलर स्पेस में लिथियम प्रचुरता

प्रीलिम्स के लिये:

इंटरस्टेलर स्पेस, बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस, प्लेनेटरी एंगुलफमेंट

मेन्स के लिये:

बिग बैंग संकल्पना 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय खगोल-भौतिकी संस्थान’ (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के शोधकर्त्ताओं ने लीथियम से समृद्ध सैकड़ों विशाल तारों की खोज की है। 

मुख्य बिंदु:

  • शोधकर्त्ताओं ने तापमान एवं चमक का उपयोग करते हुए हजारों तारों की सापेक्ष स्थिति का विश्लेषण किया।  
  • IIA के वैज्ञानिकों द्वारा नासा के 'केपलर स्पेस टेलीस्कोप' से प्राप्‍त डेटा का उपयोग करके वायुमंडलीय कंपन का विश्लेषण किया गया।

शोध कार्य:

  • लीथियम से समृद्ध सैकड़ों विशाल तारों के निर्धारण के लिये वैज्ञानिकों ने बारंबारता, दबाव, गुरुत्वाकर्षण आदि के मॉडलों का अध्ययन किया। 
  • लीथियम समृद्ध तारों तथा अन्य तारों में अंतर स्थापित करने के वैज्ञानिकों ने तारों केंद्र/कोर में होने वाली हीलियम दहन प्रक्रिया को आधार बनाया।
    • हाइड्रोजन संलयन अभिक्रिया के कारण हीलियम का निर्माण होता है। 
  • हीलियम दहन अभिक्रिया की ग्रहों उपस्थिति यह बताती है कि इन ग्रहों में अन्य हल्के तत्त्व भी मौजूद हैं क्योंकि ड्यूटेरियम, हीलियम और लीथियम आदि हल्के तत्त्व बिग बैंग की घटना के दौरान बनने वाले प्रारंभिक पदार्थ थे

शोध के निष्कर्ष:  

  • शोध में यह बताया गया है लिथियम की अधिकता केवल हीलियम निर्माण/दहन वाले तारों में पाई जाती है।
  • इन विशाल तारों को लाल तारे यानी रेड क्लंप जाइंट (Red Clump Giants) के रूप में भी जाना जाता है।

शोध कार्य का महत्त्व:

  • यह खोज कई सिद्धांतों जैसे- ‘ग्रह उत्थान’ (Planet Engulfment) या बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (BBN) को खत्म करने या मान्यता प्रदान करने में मदद करेगी । 

इंटरस्टेलर स्पेस (Interstellar Space):

  • वैज्ञानिकों ने 'इंटरस्टेलर स्पेस' की शुरुआत को उस स्थान के रूप में परिभाषित किया है जहाँ सूर्य से आने वाली निरंतर प्रवाह सामग्री तथा चुंबकीय क्षेत्र, इसके आसपास के वातावरण को प्रभावित करते हैं। इसे हेलिओपॉज (Heliopause) भी कहा जाता है।

प्लेनेटरी एंगुलफमेंट (Planetary Engulfment)

  • प्रत्येक ग्रहीय प्रणाली में एक मेजबान या गेस्ट तारा होता है (जैसे- सूर्य सौर मंडल के ग्रहों के लिये मेजबान तारा है)। 
  • मेजबान तारा ‘सफेद बौना’ (White Dwarf) तारा बनने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता है अत: अपनी स्थिरता के कारण मेजबान तारा ‘इंटरस्टेलर स्पेस’ में मौजूद तारों के वायुमंडल की रासायनिक संरचना में बदलाव ला सकता है। 

बिग बैंग संकल्पना और लिथियम:

  • लिथियम (Lithium- Li) बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (Big Bang Nucleosynthesis- BBN) से उत्‍पन्‍न तीन मौलिक तत्त्वों में से एक है। अन्‍य दो तत्त्व हाइड्रोजन (H) और हीलियम (He) हैं।

बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (BBN)

  • यह संकल्पना ब्रह्मांड की शुरुआत कैसे हुई, इसके बारे में अग्रणी व्याख्या करती है। आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत है। इसे 'विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना' भी कहा जाता है।
  • इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड की शुरुआत एक छोटे से एकक परमाणु (Singularity) के साथ हुई थी तथा उसके 13.7 बिलियन वर्षों के बाद हमें आज की ब्रह्मांडीय व्यवस्था देखने को मिलती है।
  • ब्रह्मांड के निर्माण के समय हल्के तत्त्वों की बहुतायत भी इस सिद्धांत को सत्यापित करती है। बिग बैंग के प्रारंभिक मिनटों में हल्के तत्त्वों (जैसे ड्यूटेरियम, हीलियम और लिथियम) का निर्माण हुआ जबकि हीलियम से भारी तत्त्वों का निर्माण बाद के क्रम में हुआ क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भारी तत्त्वों का निर्माण तारों के आंतरिक भागों या कोर में होता  है।
  • सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड का लगभग 25% द्रव्यमान हीलियम से बना है जबकि 0.01% ड्यूटेरियम से तथा इससे भी कम लीथियम से निर्मित है।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

खाद्य असुरक्षा और G-20 मंत्रियों की बैठक

प्रीलिम्स के लिये

विश्व खाद्य कार्यक्रम, G-20

मेन्स के लिये

खाद्य असुरक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये G-20 देशों के कृषि मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। इस बैठक में खाद्य सुरक्षा, संरक्षा एवं पोषण पर इस महामारी के प्रभाव को लेकर चर्चा की गई। 

बैठक से संबंधी प्रमुख बिंदु

  • सऊदी अरब के पर्यावरण, जल एवं कृषि मंत्री अब्दुल रहमान अलफाजली की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में मुख्य रूप से COVID-19 के मुद्दे पर चर्चा की गई। 
  • इस बैठक में सभी G-20 सदस्य देशों समेत कुछ अतिथि देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
  • इस दौरान विभिन्न सहभागियों द्वारा खाद्य अपव्यय एवं नुकसान से बचने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संकल्प लिया गया।
  • इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने सामाजिक सुधार, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए लॉकडाउन अवधि के दौरान सभी कृषि कार्यों को छूट देने और आवश्यक कृषि उपज और खाद्य आपूर्ति की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार के निर्णयों को साझा किया।

संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी

  • संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme-WFP) ने हालिया आकलन में कहा गया है कि COVID-19 के कारण हुई आर्थिक गिरावट के प्रभावस्वरूप मौजूदा वर्ष में गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों की संख्या लगभग दोगुनी हो सकती है। 
  • WFP के अनुसार, COVID-19 संभावित रूप से लाखों लोगों के लिये काफी विनाशकारी है जो पहले से ही खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के अनुसार, ‘तीव्र भूख और कुपोषण का सामना कर रहे लोगों की संख्या में एक बार फिर से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और COVID-19 के कारण पैदा हुई उथल-पुथल कई अन्य परिवारों और समुदायों को खाद्य असुरक्षा के गंभीर संकट में ढकेल सकती है।
  • खाद्य असुरक्षा पर WFP द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में 48 देशों के तकरीबन 108 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे। वहीं वर्ष 2019 में यह आँकड़ा 135 मिलियन (कुल 55 देश) पर पहुँच गया।
    • ध्यातव्य है कि इनमें सबसे अधिक अफ्रीकी देश शामिल हैं।

खाद्य असुरक्षा 

  • खाद्य असुरक्षा को पैसे अथवा अन्य संसाधनों के अभाव में पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक अनियमित पहुँच के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
  • खाद्य सुरक्षा को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
    • मध्यम स्तरित खाद्य असुरक्षा (Moderate Food Insecurity):
      मध्यम स्तरित खाद्य असुरक्षा का अभिप्राय उस स्थिति से होता है जिसमें लोगों को कभी-कभी खाद्य की अनियमित उपलब्धता का सामना करना पड़ता हैं और उन्हें भोजन की मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ भी समझौता करना पड़ता है।
    • गंभीर खाद्य असुरक्षा (Severe Food Insecurity):
      गंभीर खाद्य असुरक्षा का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोग कई दिनों तक भोजन से वंचित रहते हैं और उन्हें पौष्टिक एवं पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। लंबे समय तक यथावत बने रहने पर यह स्थिति भूख की समस्या का रूप धारण कर लेती है।

खाद्य असुरक्षा और भारत

  • आजादी के समय से ही खाद्यान्न उत्पादन और खाद्य सुरक्षा देश के लिये एक बड़ी चुनौती रही है। 
  • भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित चिंताओं का इतिहास वर्ष 1943 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुए बंगाल अकाल में देखा जा सकता है, जिसके दौरान भुखमरी के कारण लगभग 2 मिलियन से 3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • औद्योगिकीकरण की दौड़ और 1960 के दशक में आए सूखों ने भारत को खाद्य सुरक्षा के प्रति और अधिक संवेदनशील बना दिया।
  • भारत में 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में हरित क्रांति ने दस्तक दी, जिससे देश के खाद्यान्न उत्पादन में काफी सुधार आया। हरित क्रांति की सफलता के बावजूद भी इसकी यह कहकर आलोचना की गई कि इसमें केवल गेंहूँ और चावल पर अधिक ध्यान दिया गया था।
  • आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 में सबसे अधिक कुपोषित लोग मौजूद थे।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकरीबन 14.8 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है।

COVID-19 और खाद्य असुरक्षा

  • मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व कोरोनावायरस का सामना कर रहा है, विश्व के लगभग सभी देश इस महामारी की चपेट में आ गए हैं।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 25 लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और इसके कारण लगभग 177000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • वायरस के कारण विश्व के लगभग सभी देशों में पूर्ण अथवा आंशिक लॉकडाउन लागू किया गया है, जिससे विश्व की लगभग सभी आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं।
  • विश्लेषकों के अनुसार, लॉजिस्टिक्स और उत्पादन चक्र में अवरोध के कारण उत्पन्न चुनौतियों से खाद्य सुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं।

आगे की राह

  • गंभीर रूप धारण कर चुकी कोरोनावायरस महामारी भारत समेत विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित किया है। भारत का गरीब वर्ग विशेषकर किसान इस महामारी से खासा प्रभावित हुए हैं। 
  • भारत सरकार द्वारा कृषक वर्ग को लाभ पहुँचाने के लिये सरकार द्वारा कई प्रयास किये जा रहे हैं। 
    • हाल ही में सरकार ने किसानों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से वर्ष 2020-21 में देय 2,000 रुपए की पहली किस्त अप्रैल 2020 में ही ‘पीएम किसान योजना’ के तहत खाते में डालने की घोषणा की थी। इसके तहत 7 करोड़ किसानों को कवर किया जाना है।
    • इसके अतिरिक्त केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि आधारित आपूर्ति श्रृंखलाओं में विघटन (विशेष रूप से खराब होने वाली उपज के लिये) को कम करने के लिये किसान रथ (Kisan Rath) मोबाइल ऐप्लिकेशन लाॅन्च किया है।
  • सरकार द्वारा किसानों के लिये कई प्रयास किये जा रहे हैं, आवश्यक है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इन प्रयासों का लाभ देश के प्रत्येक किसान और लाभार्थी तक पहुँचे और उनके इस संदर्भ में किसी समस्या का सामना न करना पड़े।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

COVID-19 पर UN का संकल्प

प्रीलिम्स के लिये 

संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये

महामारी प्रबंधन में वैश्विक संगठनों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी देशों के लिये दवाओं, टीकों और चिकित्सा उपकरणों तक न्यायसंगत तथा निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित करने और COVID-19 से लड़ने के लिये आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति के अनुचित भंडार को रोकने का आह्वान करते हुए सर्वसम्मति से एक संकल्प को अपनाया है।

प्रमुख बिंदु

  • मैक्सिको-ड्राफ्टेड रेज़ोल्यूशन (Mexico-Drafted Resolution) में सभी सदस्य देशों में महत्त्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति तथा दवाओं और टीकों का प्रवाह सुनिश्चित करने लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रभावी बहुपक्षवाद के महत्त्व को मान्यता दी है, ताकि सभी देशों पर कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सके।
  • यह संकल्प सदस्य देशों को COVID-19 के टीके और दवाओं के अनुसंधान तथा उसके वित्तपोषण को बढ़ाने देने हेतु सभी संबंधित हितधारकों के साथ कार्य करने को प्रोत्साहित करता है।
  • इस संकल्प में COVID-19 का मुकाबला करने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने और वैज्ञानिक आधार पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करने की भी बात की गई है।
  • यह संकल्प COVID-19 महामारी पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया दूसरा संकल्प है।
  • इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संपूर्ण वैश्विक समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले COVID-19 को समाप्त करने के लिये गहन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान करते हुए प्रस्ताव पारित किया था।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले प्रस्ताव में सभी सदस्य राष्ट्रों और अन्य संबंधित हितधारकों को तत्काल ऐसे कारकों को समाप्त करने हेतु कदम उठाने का आह्वान किया गया है जो सुरक्षित, प्रभावी एवं सस्ती आवश्यक दवाओं, टीकों, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों तथा चिकित्सा उपकरणों तक आसान पहुँच में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के निहितार्थ

  • विश्लेषकों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के उक्त संकल्प COVID-19 को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • COVID-19 को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए संकल्प आपदा और महामारी को नियंत्रित करने और उसके प्रसार को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की पुष्टि करते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए संकल्पों में COVID-19 के विरुद्ध लड़ाई में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अग्रणी और महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया है।
    • ध्यातव्य है कि हाल ही में अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर कोरोनावायरस महामारी के कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए उसकी फंडिंग पर रोक लगा दी थी।
  • हालिया संकल्प में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध किया गया कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर आवश्यक कदम उठाएँ, ताकि दवाओं, टीकों और चिकित्सा उपकरणों तक वैश्विक पहुँच को बढ़ावा दिया जा सके। 

आगे की राह

  • विश्व के लगभग सभी देश COVID-19 महामारी से जूझ रहे हैं, ऐसे समय में आवश्यक है कि सही हितधारक एक मंच पर आकर इस महामारी से लड़ने का प्रयास करें।
  • संयुक्त राष्ट्र समेत विश्व के तमाम बड़े संगठन इस महामारी से लड़ने में अपनी-अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। आवश्यक है कि इन संगठनों द्वारा किये जा रहे प्रयासों को सराहा जाए, क्योंकि यह समय इस संगठनों के लिये भी काफी महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

प्रवासी मज़दूरों के उत्थान में सरकारी योजनाओं की असफलता

प्रीलिम्स के लिये:

असंगठित क्षेत्र, प्रवासी श्रमिक

मेन्स के लिये:

अप्रवासी मज़दूरों से जुड़ी समस्याएँ, असंगठित क्षेत्र से संबंधित सरकार की योजनाएँ  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में देश में COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को देखकर भविष्य में इस वर्ग को ऐसी चुनौतियों से बचाने के लिये एक बेहतर विधिक प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई है।

मुख्य बिंदु:   

  • 25 मार्च, 2020 को देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के बाद देश के कई हिस्सों में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हुई है।
  • इस दौरान मज़दूरों को रोज़गार, आश्रय, भोजन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • इस दौरान देश के कई हिस्सों में सरकारी व्यवस्था इन मज़दूरों की समस्या का समाधान करने में उतनी सफल नहीं रही है।
  • इससे पहले भी देश में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के समाधान करने के लिये कई कानून जैसे-’ अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 (Inter-State Migrant Workmen Act- ISMW), 1979’, और  ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, {The Unorganised Workers’ Social Security (UWSS) Act}, 2008’ बनाए गए, परंतु कई कारणों से ये अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहे हैं।   

अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979:   

  • प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के समाधान के लिये बने कानूनी प्रावधानों में से एक वर्ष 1979 में लागू ‘अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम,  1979’  है।  
  • ISMW अधिनियम के अनुसार, अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूर वह व्यक्ति है जो किसी ठेकेदार (Contractor)  द्वारा या ठेकेदार के माध्यम से भर्ती किया गया हो।
  • साथ ही यह अधिनियम केवल उन संस्थानों पर लागू होता है जहाँ पाँच या इससे अधिक प्रवासी कर्मचारी कार्यरत हों।
    • गौरतलब है कि, देश के असंगठित क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश प्रवासी मज़दूर किसी पंजीकृत ठेकेदार के माध्यम से नहीं भर्ती किये जाते ऐसे में प्रवासी मज़दूरों की एक बड़ी आबादी इस अधिनियम का लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाती है।
    • इसके अतिरिक्त यह अधिनियम 5 से कम प्रवासी कर्मचारियों वाले संस्थानों पर लागू नहीं होता अतः यह अधिनियम ऐसे संस्थानों में कार्यरत प्रवासी मज़दूरों की सहायता करने में असफल रहा है।     

प्रवासी मज़दूरों के हितों की रक्षा के लिये अन्य कानूनी प्रावधान:

  • प्रवासी मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा एवं अन्य लाभ प्रदान करने के लिये वर्ष 2008 में ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008’ लागू किया गया था।  
  • इस अधिनियम में असंगठित मज़दूर की परिभाषा के तहत घर पर रहकर कार्य करने वाले लोग, स्वरोज़गार से जुड़े लोग और असंगठित क्षेत्र से जुड़े दिहाड़ी मज़दूरों को शामिल किया गया है।  
  • इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी कई योजनाओं को लागू किया है।
    • असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को वृद्धावस्था में संरक्षण प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना (Pradhan Mantri Shram Yogi Maan-dhan Yojana)।
    • राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत अटल पेंशन योजना। 
    • आसान शर्तों पर इंश्योरेंस उपलब्ध कराने के लिये ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana- PMJJBY)।   
    • दुर्घटना बीमा के लिये प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana) आदि।
  • UWSS अधिनियम के तहत दो महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ दी गई हैं: 
    1. असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का पंजीकरण 
    2. हर कर्मचारी के लिये अलग पहचान संख्या वाला एक स्मार्ट पहचान पत्र 
  • आँकड़ों से पता चलता है कि सरकार के कई प्रयासों के बावज़ूद भी ये योजनायें अपने अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने में उतनी सफल नहीं रही हैं।

सरकारी योजनाओं की असफलता के कारण:   

  • सरकार द्वारा लागू अधिकांश योजनाओं में कई योजनाएँ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत एक बड़े श्रमिक वर्ग तक पहुँचने में असफल रही हैं।
  • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और इस क्षेत्र के रोज़गार के संबंध में एक व्यापक केंद्रीय डेटा के अभाव में सरकारें मज़दूरों की समस्याओं का आकलन करने में असफल रही हैं।
  • सरकार की कई योजनाएँ नागरिकों को उनके राज्यों में ही उपलब्ध होती हैं ऐसे में प्रवासी मज़दूरों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
  • असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले मज़दूरों को अधिकांशतः सरकार की योजनाओं की जानकारी नहीं होती है, ऐसे में जागरूकता और परामर्श के अभाव में बहुत से पात्र लोग भी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते।

समाधान:

  • वर्तमान आवश्यकताओं के आधार पर सक्रिय अधिनियमों में आवश्यक परिवर्तन किये जाने चाहिये। 
  • कर्मचारियों को आधार कार्ड से जुड़े यूनीक वर्कर्स आइडेंटीफिकेशन नंबर (Unique Worker’s Identification No.) प्रदान कर कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
  • प्रवासी मज़दूरों के लिये देश के हर राज्य में  मनरेगा, उज्ज्वला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • प्रवासी मज़दूरों के गृह राज्य, आयु, कार्य करने की क्षमता के आधार पर एक विस्तृत डेटाबेस स्थापित किया जाना चाहिये।
  • राज्यों के बीच प्रवासी मज़दूरों से जुड़े विवादों के समाधान हेतु संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत स्थापित ‘अंतर्राज्यीय परिषद्’ (The Inter-State Council-ISC) की सहायता ली जा सकती है। 

स्रोत: द हिंदू  


जैव विविधता और पर्यावरण

दिल्ली की जल गुणवत्ता में सुधार

प्रीलिम्स के लिये:

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, घुलित ऑक्सीजन 

मेन्स के लिये:

भारत में जल प्रदूषण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (Delhi Pollution Control Committee-DPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

  • दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने यमुना नदी के जल से नौ नमूने और नालियों के जल से 20 नमूने एकत्रित किये और विभिन्न मापदंडों के आधार पर वर्ष 2019 के नमूनों से इनकी तुलना की।
    • यमुना के नौ स्थानों से एकत्रित जल के नमूनों में से सिर्फ एक स्थान पर जल की गुणवत्ता जल के मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई।
    • नौ स्थानों में से पाँच स्थानों पर बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biological Oxygen Demand-BOD) में 18-33% की कमी आई है।

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड

(Biological Oxygen Demand-BOD):

  • ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है। जहाँ उच्च BOD है वहाँ DO निम्न होगा। 
  • जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है। परंतु BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है साथ ही यह बहुत लंबी प्रक्रिया है। इसलिये BOD को प्रदूषण मापन में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
  • गौरतलब है कि उच्च स्तर के BOD का मतलब पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा को विघटित करने हेतु अत्यधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में नौ स्थानों में से चार स्थानों पर घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO) की मात्रा शून्य थी, जबकि वर्तमान में DO स्तर 2.3-4.8 mg/l है।

Pollution-level

घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO):

  • यह जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन के लिये आवश्यक होती है। 
  • जब जल में DO की मात्रा 8.0mg/l से कम हो जाती है तो ऐसे जल को संदूषित (Contaminated) कहा जाता है। जब यह मात्रा 4.0 mg/l से कम हो जाती है तो इसे अत्यधिक प्रदूषित (Highly Polluted) कहा जाता है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2020 में यमुना में जल का औसत प्रवाह 3900 क्यूसेक है, जबकि अप्रैल 2019 में जल का औसत प्रवाह 1000 क्यूसेक था।

जल प्रदूषण: 

  • जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक अभिलक्षणों में प्राकृतिक एवं मानव-जनित प्रक्रियाओं द्वारा होने वाला ऐसा अवनयन जिससे कि वह मानव एवं अन्य जैविक समुदायों के लिये अनुपयुक्त हो जाता है, जल प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण के कारण:

  • कृषि का अपशिष्ट व जानवरों का नदी/तालाब को गंदा करना।
  • वनोन्मूलन ( इससे मिट्टी व अन्य पदार्थों नदी तंत्र में पहुँचकर उसे प्रदूषित करते हैं।)
  • अस्थियाँ व लाश को नदी में बहाना 
  • घरों का कूड़ा-करकट नदी तंत्र में बहाना।
  • विद्युत उर्जा केंद्र पर ठंडे पानी का प्रयोग एवं जल-स्रोत में उच्च ताप युक्त पानी का निकास ।
  • खनिज उद्योग में पानी का प्रयोग एवं अयस्क युक्त पानी को छोड़ना।
  • तेल अधिप्लाव (Oil Spillage)-रेडियोएक्टिव रसायनों का जलीय तंत्र तक पहुँचना।

जल प्रदूषण के प्रभाव:

  • जल के बहुत अधिक दूषित होने के कारण जलीय जंतु जैसे-मछलियाँ जल्दी मर जाती हैं।
  • जल प्रदूषण के कारण पर्यावरण-चक्र में परिवर्तन हो सकता है।
  • सेप्टिक टैंकों (Septic Tank) का निर्माण सही ढंग से न किये जाने के कारण भू-जल का स्रोत दूषित हो जाता है। दूषित भू-जल के कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  • इसके कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह:

  • जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है, जल प्रदूषण को कम करने एवं भू-जल स्तर को बढ़ाने संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय अतिशीघ्र लिये जाने चाहिये। जलभराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिये, साथ ही सीवेज के जल के पुनर्चक्रण के लिये अवसंरचना का विकास करने की आवश्यकता है जिससे ऐसे जल का पुनः उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विद्युत उत्प्रेरक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण

प्रीलिम्स के लिये:

उत्प्रेरक, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा तथा भंडारण प्रौद्योगिकियों में तकनीक के प्रयोग से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology-INST) के वैज्ञानिकों ने पर्यावरण के अनुकूल विद्युत-उत्प्रेरक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण विकसित किया है जिसकी लागत भी कम होगी ।

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध कार्य अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (American Chemical Society) द्वारा  ‘जर्नल इनआर्गेनिक केमिस्ट्री’ (Journal Inorganic Chemistry) में प्रकाशित किया गया है।
  • ऑक्सीजन अपचयन अभिक्रिया (Oxygen Reduction Reaction- ORR) के तहत विद्युत-उत्प्रेरक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण की खोज की गई है जो आयरन (Fe), मैंगनीज़ (Mn), नाइट्रोज़न (N) और कार्बन (C) पर आधारित है।
  • यह उपकरण मछली के गलफड़ाें से बनाया गया है जिसकी संरचना अद्वितीय छिद्रयुक्त (Unique Porous) होती है।
    • उष्म उपचार के बाद यह एक बेहतर इलेक्ट्रोड तथा विद्युत चालक (कार्बन नेटवर्क) की तरह कार्य करता है।
  • यह कम लागत वाली विद्युत-उत्प्रेरक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण प्लैटिनम-कार्बन उत्प्रेरक (Platinum On Carbon Catalyst) से बेहतर है। साथ ही इस उपकरण का pH मान एक से कम या 13 से ज्यादा या सात हो सकता है।
    • pH (हाइड्रोजन की क्षमता-Potential of Hydrogen):
      • pH जल की अम्लता और क्षारीयता (Acidic and Basic) मापने का पैमाना है। pH पैमाना 0-14 तक होता है। pH का मान 7 से कम होने पर जल अम्लीय, 7 से अधिक होने पर जल क्षारीय तथा 7 होने पर जल उदासीन होता है।

उत्प्रेरक (Catalyst):

  • वे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया के दौरान रासायनिक एवं मात्रात्मक रूप में बिना परिवर्तित हुए रासायनिक अभिक्रिया की दर में वृद्धि करते हैं, उत्प्रेरक कहलाते हैं।

वैज्ञानिकों का प्रयोग:

  • विद्युत-उत्प्रेरक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण की मदद से एक ज़िंक-एयर बैटरी (Zn−air battery) तैयार की गई जो एक लंबी अवधि के बाद भी चार्ज-डिस्चार्ज हो रही थी तथा यह उत्प्रेरक प्लैटिनम-कार्बन उत्प्रेरक से बेहतर कार्य करता है।
  • इस प्रयोग से वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि आयरन (Fe) और मैंगनीज़ (Mn) के कारण यह बेहतर कार्य करता है।

उपकरण के लाभ:

  • ‘जैव-प्रेरित कार्बन नैनोस्ट्रक्चर’ नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) और भंडारण प्रौद्योगिकियों (Storage Technologies) जैसे ईंधन सेल, जैव ईंधन सेल और मेटल-एयर बैटरी के उर्जा रूपांतरण में सहायक होंगी।

Equipment

नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy):

  • यह ऐसी ऊर्जा है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जल शक्ति ऊर्जा और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को शामिल किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि यह कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है और इसे लगातार नवीनीकृत किया जा सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों (जो कि दुनिया के काफी सीमित क्षेत्र में मौजूद हैं) की अपेक्षा काफी विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं और ये सभी देशों में काफी आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं।

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान

(Institute of Nano Science and Technology-INST):

  • मोहाली (पंजाब) स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST) भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST)के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। 
  • इसकी स्थापना भारत में नैनो मिशन के अंतर्गत नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिये की गई है।
  • इसे सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम-1860 के तहत पंजीकृत किया गया था।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल की कीमतें शून्य से नीचे के स्तर पर

प्रीलिम्स के लिये:

ब्रेंट क्रूड तथा वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल 

मेन्स के लिये:

भारत की ऊर्जा सुरक्षा और क्रूड ऑयल  

चर्चा में क्यों?

‘ब्लूमबर्ग’ (Bloomberg) मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, COVID- 19 महामारी के चलते संयुक्त राज्य अमेरिका के तेल बाज़ार में ‘वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट’ (West Texas Intermediate- WTI) तेल की कीमतें 40.32 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं है।

मुख्य बिंदु:

  • ब्लूमबर्ग के अनुसार तेल की कीमत का इतना कम स्तर पूर्व में द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद देखने को मिल था। 
  • वर्तमान में तेल की कीमत शून्य अंक से भी नीचे हो गई है तथा इस मूल्य पर कच्चे तेल के विक्रेता को ही प्रत्येक बैरल की खरीद पर खरीदार को 40 डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है।

तेल का कीमत स्तर में गिरावट: 

  • वर्ष 2020 की शुरुआत में 60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से मार्च के अंत तक 20 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई थी।
  • मांग और आपूर्ति में अंतर; महामारी के कारण तेल बाज़ार, अमेरिका सहित वैश्विक स्तर पर मांग की कमी का सामना कर रहे हैं।

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समस्या की शुरुआत:

  • 'पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन' (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) जिसका नेतृत्त्व सऊदी अरब करता है तथा OPEC+ जिसमें रूस को भी शामिल किया जाता है, ने मिलकर मार्च माह की शुरुआत में तेल की कीमतों को स्थिर रखने के लिये आयोजित की जाने वाली ‘OPEC रूस वार्ता स्थगित’ कर दी गई। परिणामस्वरूप OPEC देशों ने तेल का उत्पादन समान मात्रा में जारी रखा। 

तेल की कीमतों पर प्रभाव:

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के दबाव में सऊदी अरब और रूस के बीच सुलह के बाद तेल निर्यातक देशों ने उत्पादन में 10 मिलियन बैरल प्रति दिन कटौती करने का निर्णय लिया परंतु इसके बाद भी तेल की मांग में तेज़ी से कमी देखी गई।
  • मार्च और अप्रैल के दौरान आपूर्ति-मांग के बीच संतुलन पूरी तरह खराब हो गया। 

WTI

तेल की कीमत नकारात्मक कैसे? 

  • आपूर्ति पक्ष संबंधी समस्या:
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि तेल के उत्पादन में कटौती या तेल के कुएँ को पूरी तरह से बंद करना एक कठिन निर्णय होता है, क्योंकि इसे फिर से शुरू करना बेहद महँगा और बोझिल कार्य होता है। 
    • इसके अलावा यदि कोई देश उत्पादन में कटौती करता है तो इस देश बाज़ार में हिस्सेदारी (निर्यात) खोने का जोखिम रखता है।
    • कई तेल उत्पादक उत्पादन बंद करने के बजाय कम कीमतों पर भी अपने तेल से छुटकारा की बिक्री करना चाहते थे क्योंकि मई माह में तेल की बिक्री पर मामूली नुकसान की तुलना में फिर से तेल उत्पादन शुरू करना ज्यादा महँगा होगा।
  • मांग पक्ष संबंधी समस्या:
    • जबकि उपभोक्ता या आयातक देश तेल अनुबंधों से बाहर आना चाहते थे क्योंकि तेल निर्यातक देश इन देशों को अधिक तेल खरीदने के लिये मज़बूर करना चाहते थे जबकि  इन देशों के पास तेल को भंडारित करने के लिये कोई जगह नहीं थी।
  • अल्पकालिक समाधान:
    • खरीददार और विक्रेता दोनों पक्ष तेल अनुबंध से छुटकारा पाने चाहते थे इससे WTI तेल अनुबंध की कीमतें शून्य से भी नीचे चली गईं। अत: अल्पावधि के लिये तेल आपूर्तिकर्त्ता अनुबंधधारक देशों को 40 डॉलर प्रति बैरल का भुगतान भी करना चाहते हैं ताकि तेल का उत्पादन बंद न हो।

तेल कीमतों का भविष्य:

  • COVID-19 महामारी का प्रसार अभी भी लगातार हो रहा है जिससे वैश्विक तेल की मांग में प्रतिदिन गिरावट आ रही है। कुछ अनुमानों का दावा है कि आगामी तिमाही में कुल मांग 30% तक गिर जाएगी। अंत में मांग-आपूर्ति में संतुलन या असंतुलन ही तेल की कीमतों को निर्धारित करेगा।

भारत पर प्रभाव:

  • भारत के क्रूड ऑयल बास्केट में WTI शामिल नहीं है। इसमें केवल ब्रेंट ऑयल (Brent Oil) तथा कुछ खाड़ी देशों का तेल शामिल हैं, इसलिये भारतीय तेल आयात पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होगा। लेकिन तेल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर गिरावट होने से भारतीय ऑयल बास्केट की कीमतों में भी गिरावट दिखाई देती है। 

price-crude

आगे की राह:

  • यदि सरकार तेल की कीमतों में हुई गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं को देती है तो यह महामारी के बाद सरकार के आर्थिक कार्यक्रम में मदद करेगा क्योंकि इससे खपत में वृद्धि होगी।
  • सरकारें (केंद्र और राज्यों दोनों) तेल पर उच्च कर लगाकर सरकारी राजस्व को बढ़ा सकती है।

ब्रेंट क्रूड तथा वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट(WTI): 

  • ब्रेंट क्रूड ऑयल का उत्पादन उत्तरी सागर में शेटलैंड द्वीप (Shetland Islands) और नॉर्वे के बीच तेल क्षेत्रों से होती है, जबकि वेस्ट क्रूड इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल के क्षेत्र मुख्यत: अमेरिका में अवस्थित है। 
  • ब्रेंट क्रूड और WTI दोनों ही लाइट और स्वीट (Light and Sweet) होते हैं। 

WTI-vs-Brent

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का वैज्ञानिक निस्तारण

प्रीलिम्स के लिये:

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, COVID-19  

मेन्स के लिये:

COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास,  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (National Green Tribunal- NGT) ने COVID-19 की महामारी को देखते हुए देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (Bio-Medical Waste) के अवैज्ञानिक निस्तारण (Unscientific Disposal) से उत्पन्न जोखिम को कम करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये हैं।  

मुख्य बिंदु:

  • NGT के अनुसार, देश के 2.7 लाख स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में से मात्र 1.1 लाख को ही ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Bio-Medical Waste Management Rules- BMWM  Rules), 2016’ के तहत अधिकृत किया गया है।
  • ऐसे में COVID-19 की महामारी को देखते हुये जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के अवैज्ञानिक निस्तारण से उत्पन्न जोखिम को कम करने हेतु ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ और ‘प्रदूषण नियंत्रण समितियों’ को इस अंतर को कम करने के लिये प्रयास करने होंगे। 
  • इसके अतिरिक्त ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board- CPCB) ने भी ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ और प्रदूषण नियंत्रण समितियों को COVID-19 के दौरान जैव-अपशिष्टों के निस्तारण के लिये ज़रूरी दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट ( Bio-Medical Waste): 

  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट से आशय मनुष्यों या पशुओं के उपचार, चिकित्सीय जाँच या चिकित्सा से जुड़े शोध कार्यों  या उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्टों से है।

उदाहरण:  संक्रमित रक्त या कोशिका नमूने, सीरिंज (सुई), बैंडेज, दस्ताने, मास्क या अन्य उपकरण आदि।  

  • भारत में मार्च 2016 में लागू ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

जैव-अपशिष्टों के निस्तारण हेतु CPCB के दिशा-निर्देश:  

  • COVID-19 संक्रमित मरीज़ों के लिये अलग आइसोलेशन वार्ड (Isolation Ward) वाले अस्पतालों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम- 2016, के तहत वार्ड में कलर कोडेड (Colour Coded) कूड़ेदान/बैग रखने जैसे प्रयासों के माध्यम से जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को अलग रखने की व्यवस्था करनी चाहिये।
  • COVID-19 आइसोलेशन वार्ड से अपशिष्टों को एकत्रित करते समय अतिरिक्त सावधानी के रूप में दो परतों  (Double Layer) वाले बैग या एक साथ दो बैग का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • अपशिष्टों को ‘कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल फैसिलिटीज़’ (Common Bio-medical Waste Treatment and Disposal Facilities- CBMWTFs) पर भेजने से पहले अलग भंडारण कक्ष में रखा जाना चाहिये या इसे आइसोलेशन वार्ड से सीधे CBWTF कलेक्शन वैन में रखा जा सकता है।
  • COVID-19 आइसोलेशन वार्ड से अपशिष्टों को निकालने के लिये प्रयोग होने वाले कूड़ेदान, ट्राॅली आदि पर ‘COVID-19' लेबल लगाया जाना चाहिये और वार्ड से निकलने वाले अपशिष्टों का अलग रिकार्ड रखा जाना चाहिये।
  • COVID-19 वार्ड में प्रयोग किये जाने वाले  कूड़ेदान, ट्राॅली आदि की 1% सोडियम हाइपोक्लोराइट (Sodium Hypochlorite) वाले घोल से प्रतिदिन सफाई की जानी चाहिये।

कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल फैसिलिटीज़’

(Common Bio-medical Waste Treatment and Disposal Facilities- CBMWTFs) :

  • CBMWTF अपशिष्ट निस्तारण के वे संयंत्र/केंद्र होते हैं जहाँ स्वास्थ्य क्षेत्र से निकलने वाले जैव- चिकित्सा अपशिष्टों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिये वैज्ञानिक मानकों के तहत उनका निस्तारण किया जाता है।
  • वर्तमान में देश के 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 200 अधिकृत CBMWTF सक्रिय हैं, जबकि 7 राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों (गोवा, अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम) में कोई CBMWTF नहीं है।   

क्वारंटीन कैंप से निकलने वाले जैव-अपशिष्टों का निस्तारण:    

  • CPCB ने स्पष्ट किया कि क्वारंटीन कैंप/सेंटर से आशय उन स्थानों से है जहाँ स्थानीय प्रशासन या अस्पताल के निर्देशों पर COVID-19 से संक्रमित या संक्रमण की आशंका वाले व्यक्तियों को 14 या इससे अधिक दिनों तक रहने को कहा गया है।
  • क्वारंटीन कैंप से निकलने वाले सामान्य ठोस अपशिष्ट को स्थानीय शहरी निकाय द्वारा नियुक्त कर्मचारी को दिया जाना चाहिये या ठोस अपशिष्ट के निस्तारण के प्रचलित तरीकों से इसका निस्तारण किया जा सकता है।
  • क्वारंटीन कैंप से निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के निस्तारण के लिये क्वारंटीन कैंप का संचालक/संरक्षक नज़दीकी CBMWTF संचालक को सूचित करेगा, CBMWTF संचालक की जानकारी स्थानीय प्रशासन के पास उपलब्ध होगी।
  • क्वारंटीन कैंप/क्वारंटीन होम या होम केयर से निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को  ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत ‘घरेलू खतरनाक अपशिष्ट’ (Domestic Hazardous Waste) के रूप में चिन्हित किया जाएगा और इसका निस्तारण ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम’, 2016 के नियमों के तहत किया जाएगा। 
  • CPCB के अनुसार, ये दिशा-निर्देश वर्तमान में COVID-19 के संदर्भ में उपलब्ध जानकारी और अन्य संक्रामक बीमारियों  जैसे- HIV, H1N1 आदि के उपचार के दौरान बने संक्रामक अपशिष्टों के प्रबंधन में अपनाए गए तरीकों पर आधारित हैं। आवश्यकता पड़ने पर इनमें परिवर्तन किये जा सकते हैं।  

चुनौतियाँ:

  • फरवरी 2019 में संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत में लगभग 200  CBMWTFs संचालित हैं, जो कि हमारी वर्तमान आवश्यकता के सापेक्ष बहुत ही कम हैं।
  • NGT की जाँच के अनुसार,  देश में  2.7 लाख स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में से मात्र 1.1 लाख को ही ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के तहत अधिकृत किया गया है।
  • ऐसे में यह आँकड़े वर्तमान में COVID-19 के संक्रमण की प्रकृति को देखते हुए एक गंभीर चुनौती की ओर संकेत करते हैं।
  • वर्तमान में देश के बहुत से छोटे शहरों और कस्बों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये निर्धारित मानकों का पालन नहीं किया जाता है, इन क्षेत्रों में COVID-19 के जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का वैज्ञानिक मानकों के तहत निस्तारण न होने से COVID-19 संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।

आगे की राह:

  • COVID-19 के संक्रमण को रोकने में मानव संपर्क को कम करने के साथ ही जैव चिकित्सा अपशिष्टों से इस बीमारी के संक्रमण को रोकना बहुत ही आवश्यक है।
  • छोटे कस्बों और नगरों में अपशिष्ट प्रबंधन और निस्तारण में लगे कर्मचारियों को उच्च कोटि के सुरक्षा उपकरणों के साथ ही मानकों के अनुरूप अपशिष्टों के निस्तारण के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
  • वर्तमान में COVID-19 से संक्रमित या संक्रमण की संभावना वाले लोगों को क्वारंटीन कैंप या उनके घरों में रखा गया है, अतः ऐसे व्यक्तियों की देखभाल कर रहे लोगों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट और इसके वैज्ञानिक निस्तारण के तरीकों के संदर्भ में जागरूक किया जाना चाहिये।

स्रोत:  द हिंदू      


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 अप्रैल, 2020

अमेरिका में आव्रजन अस्थायी रूप से निलंबित

कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका ने आगामी 60 दिनों के लिये अप्रवासन (Immigration) पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। अमेरिकी सरकार ने आगामी 60 दिन के लिये नए ग्रीन कार्ड जारी करने या वैध स्थायी निवास की अनुमति देने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। हालाँकि इस कदम का उन लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा जो अस्थायी तौर पर देश में आ रहे हैं। इस प्रकार H-1B जैसे गैर आव्रजन कार्य वीजा पर रह रहे हैं लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। H-1B  वीजा मुख्य तौर पर प्रौद्योगिकी के विदेशी पेशेवरों को जारी किया जाता है। किंतु अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय का उन भारतीय-अमेरिकियों पर असर पड़ेगा जो अभी ग्रीन कार्ड मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं। गौरतलब है कि COVID-19 वैश्विक महामारी के कारण अमेरिका में तकरीबन 2.2 करोड़ लोगों ने बेरोज़गारी भत्ते के लिये आवेदन किया है जो कि स्वयं में एक नया रिकॉर्ड है। ध्यातव्य है कि COVID-19 के कारण विश्व की तमाम आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हुई हैं और इस वायरस के कारण विश्व के लगभग सभी देशों ने पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लागू किया है। इस लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं और इसके कारण कई लोगों के बेरोज़गार होने की आशंका है।

जीन डिच

‘टॉम एंड जेरी’ के निर्देशक और ऑस्कर विजेता जीन डिच (Gene Deitch) का हाल ही में 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। जीन डिच एनिमेटर, प्रोड्यूसर और बेहतरीन फिल्म डायरेक्टर के रूप में काफी प्रसिद्ध थे। जीन डिच को मशहूर कार्टून कैरेक्टर्स ‘टॉम एंड जेरी’ के लिये काफी ख्याति प्राप्त थी। जीन डिच का जन्म 8 अगस्त, 1924 को शिकागो में हुआ था और उनका पूरा नाम यूज़ीन मेरिल डिच (Eugene Merril Deitch) था। उन्होंने ‘टॉम एंड जेरी’ के कुल 13 भाग निर्देशित किये थे, इसके अतिरिक्त जीन डिच ने ‘पोपाय द सेलर’ (Popeye the Sailor) सीरिज़ के भी कुछ भाग निर्देशित किये थे। जीन डिच फिल्म जगत में कार्य करने से पूर्व सेना में थे। उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ने के बाद एनिमेशन कार्य शुरू किया और एक ऐसे कार्टून को जन्म दिया जिसे आज संपूर्ण विश्व ‘टॉम  एंड जेरी’ के नाम से जानता है। अपने कैरियर के दौरान जीन डिच एनिमेटर, इलस्ट्रेटर और फिल्म निर्माता के तौर पर कई पुरस्कार जीते थे। जीन डिच की फिल्म ‘मुनरो’ (Munro-1960) ने बेस्ट एनिमेटेड शॉर्ट फिल्म के लिये वर्ष 1960 में अकेडमी अवॉर्ड (Academy Awards) जीता था। जीन डिच को वर्ष 1961 में फिल्म 'मुनरो' के लिये ही ‘ऑस्कर’ पुरस्कार भी दिया गया।

अल्‍कोहल आधारित हर्बल सैनिटाइजर

राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute-NBRI) ने कोरोनोवायरस प्रकोप के बीच सैनिटाइज़र की बढ़ती मांग के मद्देनज़र अल्‍कोहल आधारित हर्बल सैनिटाइज़र विकसित किया है। इसमें बहुत प्रभावी प्राकृतिक रोगाणुरोधी एजेंट-तुलसी और कीटाणुओं को मारने के लिये आइसोप्रोपिल अल्कोहल है। संस्‍थान के निदेशक के अनुसार, हर्बल हैंड सैनिटाइज़र का चिकित्सकीय परीक्षण किया गया है और सतह के रोगाणुओं को नष्‍ट करने में इसे बहुत प्रभावी पाया गया है। उन्होंने बताया कि इसका प्रभाव लगभग 25 मिनट तक रहता है और यह त्वचा को निर्जलीकरण (Dehydration) से बचाता है। संस्थान के निर्देशक के अनुसार, ‘क्लीन हैंड जेल’ (Clean hand gel) के ब्रांड नाम का यह उत्पाद जल्द ही बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगा। ध्यातव्य है कि NBRI वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) के घटक अनुसंधान संस्थानों में से एक है। मूल रूप इसकी स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान (NBG) के रूप में की गई थी।

‘सुजलाम सुफलाम जलसंचय अभियान’ का तीसरा चरण

गुजरात सरकार ने लॉकडाउन के मध्य ‘सुजलाम सुफलाम जलसंचय अभियान’ के तीसरे चरण की शुरुआत की है। यह अभियान 10 जून तक लागू रहेगा। इस अभियान के तहत गुजरात सरकार ने मानसून से पूर्व झीलों और नदियों को गहरा करने की योजना बनाई है। इस बार गुजरात सरकार ने अभियान को इस तरह से लागू करने की योजना बनाई है कि ग्रामीण जनसंख्या, मुख्य तौर पर प्रवासियों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध हो सकें। गुजरात सरकार के अनुसार, इस दौरान COVID-19 के मानदंड जैसे सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का कड़ाई से पालन किया जाएगा। यह योजना वर्ष 2018 में गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इस योजना की सफलता के पश्चात् राज्य सरकार ने अपने दूसरे चरण के दौरान योजना के वित्तीय योगदान को 60 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था।


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