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डेली न्यूज़

  • 21 Nov, 2018
  • 34 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कोलंबो प्रोसेस (Colombo Process) : काठमांडू डिक्लेरेशन (Kathmandu Declaration)

हाल ही में नेपाल की राजधानी काठमांडू में कोलंबो कंसल्टेशन के वरिष्ठ अधिकारियों की पाँचवीं बैठक और छठा मंत्रिस्तरीय कंसल्टेशन (Consultation) आयोजित हुआ। इस कंसल्टेशन की थीम ‘Safe, Regular and Managed Migration: A Win-Win for All’ रखी गई थी। इस कंसल्टेशन में 27 बिंदुओं वाले काठमांडू घोषणापत्र को सर्वसम्मति से मंज़ूर किया गया।  

  • सदस्य देश सदस्य प्रवासी श्रमिकों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने और सतत् विकास लक्ष्यों के प्रवास-संबंधी तत्त्वों का कार्यान्वयन करने पर सहमत हुए। साथ ही महिला प्रवासी श्रमिकों के लिये समानता को बढ़ावा देने और प्रवासी श्रमिकों को वाणिज्य दूत (Consular) से सहयोग दिये जाने पर भी रजामंदी हुई।
  • कोलंबो कंसल्टेशन के सभी 12 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। इनमें नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

कोलंबो प्रोसेस क्या है?

  • कोलंबो प्रोसेस की स्थापना 2003 में हुई थी। कोलंबो प्रोसेस एक क्षेत्रीय सलाहकारी प्रक्रिया (Regional Advisory Process) है।
  • यह एशियाई देशों के लिये विदेशी रोज़गार और संविदात्मक (Contractual) श्रम का प्रबंधन करने वाला एक प्लेटफॉर्म है।
  • कोलंबो प्रोसेस का मूल उद्देश्य प्रवासी श्रमिक भेजने वाले एशियाई देशों द्वारा अपने अनुभव साझा करना है ताकि उनकी समस्याओं को समझा जा सके। साथ ही विदेश जाने वाले श्रमिकों के सामने आने वाले मुद्दों पर उन देशों के साथ संवाद बढ़ाना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है, जिन देशों में प्रवासी श्रमिक जाते हैं।

  • अनुमानों के मुताबिक, हर साल 2.5 मिलियन से अधिक एशियाई श्रमिक अनुबंध के तहत विदेशों में काम करने के लिये अपना देश छोड़ देते हैं। इनमें से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से प्रवासी श्रमिकों (Migrant workers) का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न प्रकार के कार्य करने के लिये खाड़ी देशों में जाता है।
  • इनके अलावा व्यापार और निर्माण क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक काम करने खाड़ी देशों में जाते हैं। साथ ही प्रवासी श्रमिक उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों में भी काम करने जाते हैं। जिस प्रकार एशियाई प्रवासी श्रमिकों की मौजूदगी विश्व के हर कोने में देखी जा रही है, उसी प्रकार उनका प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है।

स्रोत : द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

क्लाइमेट फाइनेंस के लिये BASIC का दबाव

चर्चा में क्यों?

दिसंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र का कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (Conference of Parties- COP) की 24वीं बैठक से पहले दिल्ली में ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (Brazil, South Africa, China and India- BASIC) के पर्यावरण मंत्रियों और शीर्ष जलवायु परिवर्तन वार्ताकारों के बीच बैठक का आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि BASIC चार देशों ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन का समूह है जिसका गठन वर्ष 2009 में हुआ था।

प्रमुख बिंदु

  • BASIC समूह के देशों ने विकसित देशों से विकासशील देशों को वर्ष 2020 तक क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में हर साल 100 बिलियन डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने की मांग की। BASIC समूह में शामिल देशों का मानना है कि अभी तक विकसित देशों द्वारा वास्तव में इस राशि का केवल एक अंश ही प्रदान किया गया है।
  • इसके अलावा BASIC समूह के देशों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यदि विकसित देश अपनी प्रतिबद्धता को 2020 तक पूरा नहीं कर पाते हैं तो इसे आगे भी जारी रखा जाए।
  • इस बैठक के बाद BASIC समूह के देशों के बीच COP-24 तथा G-77 सहित अन्य कई मंचों पर पर्यावरण संरक्षण संबंधी प्रतिबद्धताओं का पालन करते विकासशील देशों के हितों के संरक्षण की आवाज़ एकजुट होकर उठाने पर सहमति बनी है।
  • BASIC समूह के देशों ने विकसित देशों को वित्तीय समर्थन को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया और NDCs (Nationally Determined Contributions) के माध्यम से भविष्य की कार्रवाई के लिये पार्टियों को सूचित करने हेतु नए सामूहिक वित्तीय लक्ष्य को अंतिम रूप देने की मांग की। NDCs का तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु उत्सर्जन को कम करने के लिये देशों द्वारा की गईं प्रतिबद्धताओं से है

भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (india’s Nationally Determined Contribution)

  • पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution) की संकल्पना को प्रस्तावित किया गया है, इसमें प्रत्येक राष्ट्र से यह अपेक्षा की गई है कि वह ऐच्छिक तौर पर अपने लिये उत्सर्जन के लक्ष्यों का निर्धारण करे। 
  • एन.डी.सी. राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (Nationally Determined Contributions -NDCs) का बिना शर्त क्रियान्वयन और तुलनात्मक कार्यवाही के परिणामस्वरूप पूर्व औद्योगिक स्तरों के सापेक्ष वर्ष 2100 तक तापमान में लगभग 2⁰C की वृद्धि होगी, जबकि यदि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों का सशर्त कार्यान्वयन किया जाएगा तो इसमें कम-से-कम 0.2% की कमी आएगी। 
  • जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादन का ग्रीनहाउस गैसों में 70% योगदान होता है। रिपोर्ट में 2030 के लक्षित उत्सर्जन स्तर और 2⁰C और 5⁰C के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनाए जाने वाले मार्गों के बीच विस्तृत अंतराल है।
  • वर्ष 2030 के लिये सशर्त और शर्त रहित एनडीसी के पूर्ण क्रियान्वयन हेतु तापमान में 2⁰C की बढ़ोतरी 11 से 5 गीगाटन कार्बन-डाइऑक्साइड के समान है।

ग्लोबल एन्वायरनमेंट फेसिलिटी (GEF)

  • इसका गठन वर्ष 1991 में किया गया था।
  • यह विकासशील व संक्रमणशील अर्थव्यवस्थाओं को जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय जल, भूमि अवमूल्यन, ओजोन क्षरण, पर्सिसटेन्ट आर्गेनिक प्रदूषकों के संदर्भ में परियोजनाएँ चलाने के लिये वित्तपोषित करता है।
  • इससे प्राप्त धन अनुदान व रियायती फंडिंग के रूप में आता है।
  • यह फेसिलिटी यू.एन. अभिसमय के तहत् दो अन्य कोषों- लीस्ट डेवलप्ड कंट्रीज़ फंड (LDCF) और स्पेशल क्लाइमेट चेंज फंड (SCCF) को प्रशासित करता है।

अल्पविकसित देश कोष (LDCF)

  • इस कोष का गठन अल्पविकसित देशों को‘नेशनल एडैप्टेशन प्रोग्राम्स ऑफ एक्शन’ (NAPAs) के निर्माण व क्रियान्वयन में सहायता करने के लिये किया गया था।
  • एनएपीए के ज़रिये अल्पविकसित राष्ट्रों के एडैप्टेशन एक्शन की वरीयता की पहचान की जाती है।
  • इस कोष के तहत अल्पविकसित देशों को कृषि, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु सूचना सेवाएं, जल संसाधन प्रबंधन, तटीय क्षेत्र प्रबंधन, आपदा प्रबंधन आदि नज़रिये से मूल्यांकित किया जाता है।

विशेष जलवायु परिवर्तन कोष (SCCF)

  • इस कोष का गठन यूएनएफसीसीसी के तहत् वर्ष 2001 में किया गया था। इसे एडैप्टेशन, तकनीकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण, ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, कृषि, वानिकी और अपशिष्ट प्रबंधन एवं आर्थिक विविधीकरण से संबंधित परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये गठित किया गया था।
  • यह जीवाश्म ईंधन से प्राप्त आय पर अत्यधिक निर्भर देशों में आर्थिक विविधीकरण (Economic Diversification) व जलवायु परिवर्तन राहत हेतु अनुदान देता है।

एडैप्टेशन फंड

  • इस कोष का गठन भी वर्ष 2001 में किया गया था। इसका उद्देश्य 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल के साझेदार विकासशील देशों में ठोस एडैप्टेशन परियोजनाओं व कार्यक्रमों का वित्तपोषण करना था।
  • ऐसे राष्ट्रों पर विशेष ध्यान दिया जाता है जो जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक गंभीर खतरों का सामना कर रहे हैं।
  • इस कोष को राशि क्लीन डेवलपमेंट मेकेनिज्म (CDM) से प्राप्त होती है। एक सीडीएम प्रोजेक्ट गतिविधि के लिये जारी ‘सर्टीफाइड एमीशन रिडक्शन (CERs) का 2 प्रतिशत इस कोष में जाता है।

हरित जलवायु कोष (GCF)

  • यह यूएनएफसीसीसी के तहत् एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है।
  • वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हरित जलवायु कोष के गठन का प्रस्ताव किया गया था जिसे 2011 में डरबन में हुए सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया।
  • यह कोष विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये सहायता राशि उपलब्ध कराता है।
  • कोपेनहेगेन व कॉनकून समझौते में विकसित देश इस बात पर सहमत हुए थे कि वर्ष 2020 तक लोक व निजी वित्त के रूप में हरित जलवायु कोष के तहत् विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराया जाएगा।
  • वहीं 19वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (वारसा में) में 2016 तक 70 बिलियन डॉलर देने का लक्ष्य तय किया गया जिसे विकासशील राष्ट्रों ने अस्वीकार किया था।
  • उल्लेखनीय है कि नवंबर 2010 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के 16वें सत्र (Cop-16) में स्टैडिंग कमिटी ऑन फाइनेंस के गठन का निर्णय किया गया था ताकि विकासशील देशों की जरूरतों का ध्यान रखा जा सके।

कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (Conference of Parties-COP)

  • यह संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCC) के हस्ताक्षरकर्त्ता देशों (कम-से-कम 190 देशों) का एक समूह है, जो हर साल जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को हल करने के उपायों पर चर्चा करने के लिये बैठक आयोजित करता है।

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

कारोबार में सुगमता (Ease of Doing Business) ग्रैंड चैलेंज

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर कारोबार में सुगमता (Ease of Doing Business)  से जुड़ी सात चिह्नित समस्‍याओं को सुलझाने के लिये ‘ग्रैंड चैलेंज’ लॉन्च किया। इस चैलेंज का उद्देश्‍य युवा भारतीयों, स्‍टार्ट-अप्‍स और अन्‍य निजी उद्यमियों की क्षमताओं का दोहन करना है, ताकि वर्तमान अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकियों की सहायता से जटिल समस्‍याओं का समाधान निकाला जा सके।

  • भारत सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि कारोबारी माहौल को निरंतर बेहतर बनाने की प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं आना चाहिये। सरकार का प्रयास भारत को दुनिया के उन सबसे आकर्षक स्‍थलों में शामिल करवाना  है, जहाँ कारोबार करना सबसे आसान होगा। ऐसे में यह ग्रैंड चैलेंज सरकार के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित होगा।

विश्‍व बैंक की कारोबार में सुगमता रिपोर्ट (Doing Business Report)

विश्‍व बैंक ने 31 अक्तूबर को कारोबार में सुगमता रिपोर्ट (Doing Business Report-2019) जारी की थी। इस रिपोर्ट में भारत 23 पायदानों की ऊँची छलांग लगाकर 2017 के 100वें पायदान से ऊपर चढ़कर 77वें पायदान पर पहुँच गया। विश्‍व बैंक की इस रिपोर्ट में 190 देशों में कारोबारी माहौल का आकलन किया गया है।

  • सरकार द्वारा इस दिशा में किये जा रहे निरंतर प्रयासों के परिणामस्‍वरूप भारत ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक में पिछले दो वर्षों में 53 पायदान और पिछले चार वर्षों (2014-2018) में 65 पायदान ऊपर चढ़ चुका है।
  • इस रिपोर्ट से 10 पैमानों पर 190 देशों में व्यवसाय या कारोबार संबंधी नियम-कायदों और उन पर अमल के लक्ष्यों के बारे में पता चलता है, जो किसी भी व्यवसाय के समूचे कारोबारी चक्र पर असर डालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत 10 संकेतकों में से 6 संकेतकों से जुड़ी अपनी रैंकिंग को बेहतर करने में कामयाब रहा है। साथ ही 10 संकेतकों में से 7 संकेतकों पर वैश्विक सर्वोत्तम कारोबारी तौर-तरीकों के और करीब पहुँच गया है। जिन छह संकेतकों पर भारत ने अपनी रैंकिंग सुधारी है उनमें शामिल हैं:

  • ग्रैंड चैलेंज लॉन्च करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत को विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रैंकिंग में टॉप-50 देशों में पहुंचाने का लक्ष्य रखा। ग्रैंड चैलेंज का उद्देश्य कारोबार सुगमता का लाभ आम आदमी तक पहुँचाने की अवधारणा पर भी जोर देता है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने देश में वृद्धि और विकास के लिये अधिक निवेश की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए भारत को 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य भी तय किया। इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिये अर्थव्‍यवस्‍था के हर सेक्‍टर में सुधार करने का ज़िक्र भी प्रधानमंत्री ने किया।

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार और विश्व बैंक (World Bank) ने झारखंड के लोगों को 24 x 7 विश्‍वसनीय, गुणवत्‍ता संपन्‍न तथा किफायती बिजली प्रदान करने के उद्देश्‍य से झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना (Jharkhand Power System Improvement Project) के लिये 310 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्‍ताक्षर किये।

प्रमुख बिंदु

  • विश्व बैंक से से प्राप्त इस ऋण के एक बड़े भाग का उपयोग बिजली ट्रांसमिशन संरचना में सुधार करने हेतु किया जाएगा ।
  • परियोजना सरकारी क्षेत्र की बिजली ट्रांसमिशन और वितरण कंपनियों की संस्‍थागत क्षमताओं को विकसित करने और उनके संचालन में सुधार पर केंद्रित होगी।

क्या है झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना?

  • यह परियोजना भारत सरकार द्वारा 2014 में लॉन्च किये गए ‘सबके लिये बिजली’ (Power for All) कार्यक्रम का हिस्‍सा है।
  • इस परियोजना में निजी और सार्वजनिक निवेश के माध्‍यम से 2022 तक बिजली उत्‍पादन क्षमता में 5 गीगावाट (सौर ऊर्जा से 1.5 गीगावाट उत्‍पादन सहित) की वृद्धि करने का प्रावधान है।

परियोजना के प्रमुख घटक

  • परियोजना के प्रमुख घटकों में नए सब-स्‍टेशनों तथा मुख्‍य रूप से 132 किलोवाट वोल्‍टेज स्तर की नई ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण करना और राज्य लोड डिस्‍पैच सेंटर (State Load Dispatch Centre- SLDC) के संचालन को मज़बूती प्रदान करने के लिये प्रणाली स्‍थापित करने में झारखंड ऊर्जा संचार निगम लि. (Jharkhand Urja Sancharan Nigam Limited- JUSNL) को समर्थन देना है। इससे राज्‍य ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने में मदद मिलेगी।

परियोजना के लाभ

  • झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना से झारखंड में नई बिजली ट्रांसमिशन संरचना के निर्माण में मदद मिलेगी और राज्य की बिजली क्षेत्र की कंपनियों की तकनीकी दक्षता और वाणिज्‍यिक प्रदर्शन में सुधार होगा।
  • परियोजना से ऑटोमेटेड सब-स्टेशन तथा नेटवर्क विश्‍लेषण एवं नियोजन उपकरण जैसे आधुनिक टेक्‍नोलॉजी समाधान लागू करने में मदद मिलेगी। इससे बिजली की विश्‍वसनीय आपूर्ति संभव होगी।
  • यह परियोजना घरों, उद्योगों, कारोबार तथा अन्‍य उत्‍पादक क्षेत्रों के लिये बिजली आपूर्ति बढ़ाने में सहायता देगी और गरीबी उपशमन तथा झारखंड के समावेशी विकास में योगदान करेगी।

स्रोत : पी.आई.बी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ग्रोथ-इंडिया टेलीस्कोप (GROWTH-India Telescope)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के हनले, लद्दाख (Hanle, Ladakh) में स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला (Indian Astronomical Observatory) में 0.7m ग्रोथ-इंडिया दूरबीन ने अपना पहला वैज्ञानिक अवलोकन किया है, उल्लेखनीय है कि यह अवलोकन नोवा विस्फोट (nova explosion) का अनुवर्ती (follow up) अध्ययन है।

टेलीस्कोप के बारे में

  • ग्रोथ इंडिया नामक इस टेलीस्कोप ने 6 माह पहले ही काम करना शुरू किया है।
  • नोवा M31N-2008 का अवलोकन इस दूरबीन द्वारा प्राप्त पहला वैज्ञानिक अवलोकन है। उल्लेखनीय है कि M31N-2008 नामक आवर्ती नोवा में कई बार विस्फोट हुआ है लेकिन हालिया विस्फोट नवंबर 2018 में हुआ।
  • संभवतः यह दूरबीन पूरी तरह से रोबोटिक है, अतः यह स्वयं कार्य करने में सक्षम है।
  • यह लगभग 10 से 15 सेकंड में आकाश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में अपना ध्यान केंद्रित कर सकता है।
  • इसका कैमरा हज़ारों-लाखों प्रकाश वर्ष दूर स्थित खगोलीय पिंडों को देख सकता है।

नोवा क्या है?

  • नोवा किसी सफ़ेद बौने तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने के बाद उसमें होने वाला एक तीव्र विस्फोट है। इस विस्फोट में अनियंत्रित गति से नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) होता है। इसके कारण तारे की चमक में अस्थायी वृद्धि होती है।
  • सुपरनोवा के विपरीत यह तारा विस्फोट के बाद अपनी पहले की अवस्था में वापस लौट आता है।

अवलोकन का महत्त्व

  • नोवा विस्फोट का अवलोकन खगोल विज्ञान में भले ही एक छोटा कदम हो लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों के लिये यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि यह इस दूरबीन द्वारा प्राप्त यह पहला अवलोकन है।

GROWTH के बारे में

  • ग्रोथ-इंडिया टेलीस्कोप ग्लोबल रिले ऑफ़ ऑब्जरवेटरी वाचिंग ट्रांजिएंट्स हैपन (Global Relay of Observatories Watching Transients Happen) का हिस्सा है।
  • भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, ताइवान, यूके और इज़राइल के विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान इस पहल का हिस्सा हैं।
  • इस पहल के तीन लक्ष्य हैं-
  1. जब भी लीगो (LIGO) समूह बाइनरी न्यूट्रॉन स्टार के विलय की पहचान करता है तब उसके आस-पास के क्षेत्रों में विस्फोटों की खोज करना
  2. उसके पास स्थित युवा सुपरनोवा (supernova) विस्फोटों का अध्ययन करना
  3. आस-पास के क्षुद्र ग्रहों (asteroids) का अध्ययन करना।

स्रोत : द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 November)

  • भारत और रूस ने किया 500 मिलियन डॉलर की लागत से गोवा शिपयार्ड में भारतीय नौसेना के लिये दो स्टील्थ फ्रिगेट्स बनाने का समझौता; टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत डिज़ाइन आदि में सहयोग देगा रूस
  • भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस मिसाइल के लिये डेढ़ बिलियन डॉलर की डील होगी;  भारत को रूस से मिलेगा कम दूरी के टारगेट पर निशाना लगाने वाला Igla-S एयर डिफेंस सिस्टम
  • भारत और वियतनाम रक्षा, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगबाहरी अंतरिक्ष,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, तेल एवं गैस, संरचना विकासकृषि और नवाचार आ‍धारित क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमत
  • यौन उत्पीड़न को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी; इस वैश्विक संगठन में इस तरह का यह पहला प्रस्ताव
  • मालदीव ने किया फिर से 53 देशों के राष्ट्रमंडल समूह में शामिल होने का फैसला; अक्तूबर 2016 में छोड़ दी थी राष्ट्रमंडल की सदस्यता
  • विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम करने वाली आठ भारतीय-अमेरिकी महिलाओं को मिला अमेरिका में सम्मान; नासा की खगोल विज्ञानी मधुलिका गुहाठाकुरता भी इनमें शामिल
  • BASIC देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक का नई दिल्ली में आयोजन; उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, भारत और चीन इसके सदस्य 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 की तुलना में 2017 में भारत में मलेरिया के मामलों में 24 फीसदी की कमी
  • ऑस्ट्रेलिया नहीं करेगा UN माइग्रेशन फॉर ग्लोबल कॉम्पैक्ट पर हस्ताक्षर, समझौते को मौजूदा आप्रवासन नीतियों को कमज़ोर करने वाला बताया
  • सिंगल पेरेंट मदर मामलों में 5 दिसंबर से पैन कार्ड पर पिता का नाम लिखने की अनिवार्यता होगी समाप्त
  • सुप्रीम कोर्ट ने की गवाह संरक्षण योजना पर अमल की तैयारी;  राष्ट्रीय न्यायिक सेवाएँ प्राधिकरण के साथ विचार-विमर्श के बाद बनी है योजना
  • केंद्र सरकार बनाएगी निर्भया फंड के तहत 1023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स; देशभर में बलात्कार और POCSO अधिनियम के लंबित मामलों का निपटारा करने के लिये न्याय विभाग ने दिया था प्रस्ताव
  • सोनिया गांधी ने किया जयराम रमेश द्वारा लिखित Indira Gandhi-A Life in Nature पुस्तक के हिंदी संस्करण ‘इंदिरा गांधी-प्रकृति में एक जीवन’ का विमोचन
  • केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने किया डॉ. राजेश भट्ट द्वारा लिखित ‘रेडियो कश्‍मीर-इन टाइम्‍स ऑफ पीस एंड वॉर’  नामक पुस्‍तक का विमोचन
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दिया गया 2017 का इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण एवं विकास पुरस्कार
  • पर्यावरण शिक्षा और संरक्षण में योगदान देने के लिये नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस को 2018 का इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण एवं विकास पुरस्कार देने की घोषणा
  • उत्तर प्रदेश ने लॉन्च किया ‘नारी सशक्तीकरण संकल्प’ अभियान; महिलाओं में नेतृत्व क्षमता विकसित करने एवं उन्हें अपने अधिकारों के प्रति मुखर बनाना है इसका उद्देश्य

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 21 नवंबर, 2018

विश्व धरोहर सप्ताह (World Heritage Week)

  • कुछ दशक पूर्व यूनेस्को द्वारा 19-25 नवंबर की अवधि को विश्व धरोहर सप्ताह के रूप में चिह्नित किये जाने के बाद से पूरी दुनिया में 19 से 25 नवंबर तक विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जाता है।
  • इसका उद्देश्य अमूल्य धरोहरों के संरक्षण के बारे में जागरूकता को बढ़ाना और वास्तुशिल्प एवं सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाना है।
  • भारत में अब तक यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहरों की संख्या 37 है।

मतिबाबू डिवाइस (Matibabu Device)

हाल ही में मतिबाबू डिवाइस और एप्लीकेशन को 'इंजीनियरिंग इनोवेशन के लिये अफ्रीका पुरस्कार' 2018 (Africa Prize for Engineering Innovation) के तहत प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि यह पुरस्कार महाद्वीप पर इंजीनियरिंग नवाचार को समर्पित पुरस्कार है।

  • मतिबाबू डिवाइस मलेरिया का पता लगाने के लिये उपयोग की जाने वाली एक गैर-संक्रमणीय (non-invasive) परीक्षण किट है।
  • यह एक कम लागत वाली और पुन: प्रयोग की जा सकने वाली डिवाइस है जिसका उपयोग मलेरिया के त्वरित परीक्षण के लिये किया जा सकता है। इसे युगांडा में विकसित किया गया है।
  • 'मतिबाबू' एक स्वाहिली (Swahili) भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘उपचार’।
  • मौजूदा परीक्षण विधियों जिनमें परीक्षण के लिये रक्त की आवश्यकता होती है, के विपरीत इस डिवाइस में परीक्षण के लिये रक्त की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इस डिवाइस को एक उँगली पर लगा दिया जाता है और 'प्रकाश तथा चुंबकत्व का उपयोग करके, प्रकाश की एक तरंग लाल रक्त कोशिकाओं के रंग, आकार और गाढ़ेपन (शरीर में मलेरिया परजीवी की उपस्थिति होने पर अक्सर ये सभी प्रभावित होते हैं) में परिवर्तन का पता लगाने के लिये उँगली को स्कैन करती है।
  • इस डिवाइस द्वारा किये गए परीक्षण का परिणाम एक मिनट के अंदर उपलब्ध होता है और इस परिणाम को डिवाइस से जुड़े मोबाइल फोन पर भेज दिया जाता है।
  • इस डिवाइस की एक विशेषता यह भी है कि इसका उपयोग करने के लिये किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन में भी 'मतिबाबू' को वर्ष 2018 के 50 सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया गया है।

रेडियो कश्‍मीर- इन टाइम्‍स ऑफ पीस एंड वार

हाल ही में ‘रेडियो कश्‍मीर- इन टाइम्‍स ऑफ पीस एंड वार’ (Radio Kashmir – In Times of Peace & War)  नामक पुस्‍तक का विमोचन किया गया।

  • यह पुस्तक डॉ. राजेश भट्ट ने लिखी है जो कि वर्तमान में आकाशवाणी, नई दिल्‍ली के नीति प्रभाग निदेशालय में कार्यरत हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. भट्ट ने 250 से अधिक अकादमिक शोधपत्र और लेख लिखे हैं।
  • ‘रेडियो कश्‍मीर- इन टाइम्‍स ऑफ पीस एंड वार’ नामक पुस्‍तक गहरे और विस्‍तृत शोध पर आधारित है तथा लेखक ने देश के कल्‍याण एवं सुरक्षा संबंधी विभिन्‍न मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सरकार और जनता के हितों की सुरक्षा के लिये मीडिया द्वारा निभाई गई अहम भूमिका को रेखांकित किया है।
  • वर्ष 1947 के बाद से सामाजिक और सांस्‍कृतिक ताने-बाने को कायम रखने में रेडियो कश्‍मीर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जिसका उल्लेख इस पुस्‍तक में किया गया है।
  • पुस्‍तक में देशवासियों की सेवा करने, खासतौर से इस क्षेत्र के लोगों की सेवा करने तथा राज्‍य के लोकतांत्रिक संस्‍थानों को मज़बूत बनाने में रेडियो कश्मीर की भूमिका का भी उल्‍लेख किया गया है।

सोलर बबल ड्रायर

हाल ही में वैज्ञानिकों ने सोलर बबल ड्रायर (Solar Bubble Dryer -SBD) नामक अनाज  सुखाने की एक अभिनव तकनीक ओडिशा के किसानों के सामने प्रस्तुत की।

  • इस तकनीक का विकास फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (International Rice Research Institute -IRRI), ग्रेनप्रो (Grainpro) (एक अग्रणी फसल बाद (post-harvest) समाधान प्रदान करने वाली कंपनी) और जर्मनी के होहेनहेम विश्वविद्यालय (University of Hohenheim) ने संयुक्त रूप से किया है।
  • SBD अनाज सुखाने के लिये एक कम लागत वाली तकनीक है जिसका उद्देश्य अनाज के बिखराव, जानवर और मौसम आदि से बचाते समय धूप में अनाज सुखाने की प्रक्रिया का एक सरल और लचीला विकल्प प्रदान करना है।
  • यह नई तकनीक इस प्रकार विकसित की गई है कि किसान मशीनरी को स्वयं ही विघटित कर सकते हैं तथा फिर से इसे जोड़ भी सकते हैं। इस मशीन के लिये सौर ऊर्जा और पारंपरिक बिजली दोनों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।

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